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उत्तर- इस पद में गोपियाँ कृष्ण के चतुर और राजनीतिज्ञ रूप का वर्णन कर रही हैं। उनका मानना है कि कृष्ण अब प्रेम भाव से दूर होकर राजनीति जैसी चालें चलने लगे हैं। गोपियों को ऐसा प्रतीत होता है कि कृष्ण का मन अब उनके प्रति पहले जैसा अनुरक्त नहीं रहा, बल्कि वह अब धोखे और कूटनीति का व्यवहार करने लगे हैं।
अन्य प्रश्न
- मन की मन ही माँझ रही। गोपियों की मन की इच्छा मन में ही क्यों रह गई?
- कृष्ण के प्रति अपने दृढ़ प्रेम का वर्णन करते हुए गोपियों ने उद्धव से क्या कहा?
- गोपियों ने उद्धव को ‘बड़भागी’ क्यों कहा है?
- गोपियों ने कृष्ण को किसके समान कहा और क्यों?
- ज्यौं जल माहँ तेल की गागरि, बूँद न ताकौं लागी’ पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
- गोपियों ने स्वयं को अबला क्यों कहा है?
- गोपियों की विरह-व्यथा और अधिक क्यों बढ़ गई है?
- गोपियाँ किस आशा पर विरह के कष्ट को सहन कर रही थीं?
- गोपियों द्वारा उद्धव को भाग्यवान कहने में क्या व्यंग्य निहित है?
- उद्धव के व्यवहार की तुलना किस-किस से की गई है?
- गोपियों ने किन-किन उदाहरणों के माध्यम से उद्धव को उलहाने दिए हैं?
- ‘नाहीं परत कही’ में गोपियाँ अपनी व्यथा क्यों नहीं कह पा रही हैं?
- गोपियों को उद्धव द्वारा दिया गया योग संदेश कैसा लगता है और क्यों?
- ‘यह तौ ‘सूर’ तिनहिं लै सौंपौ, जिनके मन चकरी’ इस पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
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