Chhand Kitne Prakar Ke Hote Hain: छंद कितने प्रकार के होते हैं?

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Chhand Kitne Prakar Ke Hote Hain
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छंद शब्द ‘छद्’ धातु से बना है जिसका अर्थ है ‘आह्लादित करना’ या ‘खुश करना।’ यह आह्लाद वर्ण या मात्रा की नियमित संख्या के विन्यास से उत्पन्न होता है। छंद का दूसरा नाम पिंगल भी है। इसका कारण यह है कि छंद-शास्त्र के आदि प्रणेता पिंगल नाम के ऋषि थे। बताना चाहेंगे छंद का सर्वप्रथम उल्लेख ‘ऋग्वेद’ (Rigveda) में मिलता है। वहीं छंद मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं। 

छंद की परिभाषा 

वर्णों या मात्राओं के नियमित संख्या के विन्यास से यदि आह्लाद (खुशी, प्रसन्नता, हर्ष) पैदा हो, तो उसे छंद कहते हैं। सरल भाषा में कहें तो निश्चित वर्णों या मात्राओं की विराम, गति या यति आदि से बंधी हुई शब्द योजना को छंद कहते हैं। 

छंद के अंग 

छंद के अंग निम्नलिखित हैं;-

  • चरण/ पद/ पाद 
  • वर्ण और मात्रा 
  • संख्या और क्रम
  • गण  
  • गति
  • यति/विराम  
  • तुक 

छंद के प्रकार 

वर्ण व मात्रा के आधार पर तथा चरणों के विन्यास के आधार पर छंद के भेद इस प्रकार हैं;-

  1. वर्णिक छंद – वर्णिक छंद के सभी चरणों में वर्णों की संख्या समान रहती है और लघु-गुरु का क्रम समान रहता है।
    सम
    अर्द्धसम विषम 
  2. मात्रिक छंद – मात्रिक छंद वे छंद है जिनमें अक्षरों या वर्णों की मात्राओं के अनुसार नियम निर्धारित होते हैं। इसके पादों में वर्णक्रम ज्यादा हो सकते हैं पर मात्रा परस्पर होनी चाहिए, यह अनावश्यक नहीं है कि कम ज्यादा हों ही। इसका अभिप्राय यह है कि मात्रिक छंदों में मात्रा को ही ध्यान में रखकर नियम बनाए जाते हैं। वर्ण या अक्षरों को नहीं।
    सम
    अर्द्धसम विषम
  3. मुक्त छंद – जिस विषम छंद में वर्णिक या मात्रिक प्रतिबंध न हो, न प्रत्येक चरण में वर्णों की संख्या और क्रम समान हो और मात्राओं की कोई निश्चित व्यवस्था हो तथा जिसमें नाद और ताल के आधार पर पंक्तियों में लय लाकर उन्हें गतिशील करने का आग्रह हो, वह मुक्त छंद है। 

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