शिरीष के फूल का पाठ लोकप्रिय लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी द्वारा लिखा गया है। आपको बता दें कि हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने ऐसी कई रचनाएं लिखी हैं। हम यहां उन्हीं के द्वारा शिरीष के फूल पाठ से आपके सामने लेखक परिचय, पाठ का सारांश, कठिन शब्द, MCQ और प्रश्न-उत्तर आपके सामने लाएंगे। चलिए, जानते हैं शिरीष के फूल को इस ब्लॉग की मदद से।
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लेखक का परिचय
लोकप्रिय लेखक हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के गाँव में 19 अगस्त 1907 में हुआ था। इन्होंने काशी के संस्कृत महाविद्यालय से शास्त्री परीक्षा उत्तीर्ण करके 1930 में काशी हिंदू विश्वविद्यालय से ज्योतिषाचार्य की उपाधि प्राप्त की। 1950 तक हजारी प्रसाद हिंदी भवन के निदेशक रहे। उसके बाद यह काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष बने। 1960 में पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में इन्होंने हिंदी विभागाध्यक्ष (होडा) का पद ग्रहण किया। इन्होंने अपने जीवन में शिरीष के फूल जैसी कई अन्य रचनाएं की और उसके लिए उपलब्धियां भी हासिल कीं. इनकी मृत्यु 19 मई 1979 में 71 वर्ष की उम्र में हुई।
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पाठ प्रतिपाद्य व सारांश
प्रतिपादय
शिरीष के फूल’ शीर्षक निबंध ‘कल्पलता’ से उद्धृत है। इसमें लेखक ने आँधी, लू और गरमी की प्रचंडता में भी बच्चे की तरह अविचल होकर कोमल फूलों का सौंदर्य बिखेर रहे शिरीष के माध्यम से मनुष्य का जीवन और कलह के बीच धैर्यपूर्वक, लोगों के लिए चिंता, कर्तव्यशील बने रहने को महान मानव की मूल्य के रूप में स्थापित किया है। उसे इतिहास-विभूति गांधी जी की याद हो आती है तो वह गांधीवादी मूल्यों के अभाव की पीड़ा से भी कसमसा उठता है।
- निबंध की शुरुआत में लेखक शिरीष के फूल की कोमल सुंदरता के जाल बुनता है, फिर उसे भेदकर उसके इतिहास में और फिर उसके जरिए मध्यकाल के सांस्कृतिक इतिहास में घुसता है, फिर जीवन व सामंती शाही जीवन को सावधानी से उकेरते हुए उसका खोखलापन भी उजागर करता है।
- वह अशोक के फूल के भूल जाने की तरह ही शिरीष को नजरअंदाज किए जाने की साहित्यिक घटना से आहत है। इसी में उसे सच्चे कवि का तत्त्व-दर्शन भी होता है।
- उसका मानना है कि योगी की बिना किसी से जुड़ी शून्यता और प्रेमी की सरस पूर्णता एक साथ उपलब्ध होना सच्चे कवि होने की एकमात्र शर्त है।
- ऐसा कवि ही समस्त प्राकृतिक और मानवीय वैभव में रमकर भी चूकता नहीं और निरंतर आगे बढ़ते जाने की प्रेरणा देता है।
सारांश
- लेखक शिरीष के फूल के पेड़ों के समूह के बीच बैठकर लेख लिख रहा है। जेठ की गरमी से धरती जल रही है। शिरीष ऊपर से नीचे तक फूलों से लदा है। गर्मी में कम ही फूल खिलते हैं। अमलतास केवल पंद्रह-बीस दिन के लिए फूलता है। कबीरदास को इस तरह दस दिन फूल खिलना पसंद नहीं है। शिरीष में फूल लंबे समय तक रहते हैं। वे वसंत में खिलते हैं तथा भादों माह तक फूलते रहते हैं। भीषण गर्मी और लू में यही शिरीष अवधूत (बच्चे के मन) की तरह जीवन की का मंत्र पढ़ाता रहता है। शिरीष के वृक्ष बड़े व छायादार होते हैं। पुराने रईस मंगल-जनक वृक्षों में शिरीष को भी लगाया करते थे। वात्स्यायन कहते हैं कि बगीचे के घने छायादार वृक्षों और बकुल के पेड़ में ही झूला लगाना चाहिए। लेखक शिरीष को भी उपयुक्त मानता है।
- शिरीष की डालें कमजोर होती हैं, लेकिन उस पर झूलनेवालियों का वजन भी कम ही होता है। शिरीष के फूल को संस्कृत साहित्य में कोमल माना जाता है। कालिदास ने लिखा है कि शिरीष के फूल केवल भौंरों के पैरों का दबाव सहन कर सकते हैं, पक्षियों के पैरों का नहीं। इसके आधार पर भी इसके फूलों को कोमल माना जाने लगा, पर इसके फलों की मजबूती नहीं देखते। वे तभी स्थान छोड़ते हैं, जब उन्हें धकेला जाता है। लेखक को उन नेताओं की याद आती है जो समय को नहीं पहचानते तथा धक्का देने पर ही पद को छोड़ते हैं। लेखक सोचता है कि पुराने की यह अधिकार-लिप्सा क्यों नहीं समय रहते सावधान हो जाती। वृद्धावस्था व मृत्यु-ये जगत के सत्य हैं। शिरीष के फूल को भी समझना चाहिए कि झड़ना निश्चित है, परंतु सुनता कोई नहीं। मृत्यु का देवता निरंतर कोड़े चला रहा है। उसमें कमजोर समाप्त हो जाते हैं। जीवनधारा व समय के बीच संघर्ष चालू है। हिलने-डुलने वाले कुछ समय के लिए बच सकते हैं। झड़ते ही मृत्यु निश्चित है।
- लेखक को शिरीष बच्चे मन की तरह लगता है। हर स्थिति में ठीक रहता है। भयंकर गर्मी में भी यह अपने लिए जीवन-रस ढूँढ़ लेता है। एक वनस्पतिशास्त्री ने बताया कि यह वायुमंडल से अपना रस खींचता है तभी तो भयंकर लू में ऐसे मीठा केसर उगा सका। बच्चों के मुँह से भी संसार की सबसे सरस रचनाएँ निकली हैं। कबीर व कालिदास उसी श्रेणी के हैं। जो कवि अनासक्त नहीं रह सका, जो फक्कड़ नहीं बन सका, जिससे लेखा-जोखा मिलता है, वह कवि नहीं है। कर्णाट-राज की प्रिया विज्जिका देवी ने ब्रहमा, वाल्मीकि व व्यास को ही कवि माना। लेखक का मानना है कि जिसे कवि बनना है, उसे फक्कड़ बनने की ज़रूरत है। कालिदास अनासक्त योगी की तरह शांत मन, चतुर प्रेमी थे। उनका एक-एक श्लोक मुग्ध करने वाला है। शकुंतला का वर्णन कालिदास ने किया।
- राजा दुष्यंत ने भी शंकुतला का चित्र बनाया, लेकिन उन्हें हर बार उसमें कमी महसूस होती थी। काफी देर बाद उन्हें समझ आया कि शकुंतला के कानों में शिरीष के फूल लगाना भूल गए हैं। कालिदास सौंदर्य के बाहरी कवर को भेदकर उसके भीतर पहुँचने में समर्थ थे। वे सुख-दुख दोनों में भाव-रस खींच लिया करते थे। ऐसी प्रकृति सुमित्रानंदन पंत व रवींद्रनाथ में भी थी। शिरीष पक्की तरह लेखक के मन में भावों की तरंगें उठा देता है। वह आग उगलती धूप में भी बना रहता है। आज देश में मारकाट, आगजनी, लूटपाट आदि का बवंडर है। ऐसे में क्या स्थिर रहा जा सकता है? शिरीष रह सका है। गांधी जी भी रह सके थे। ऐसा तभी संभव हुआ है जब वे वायुमंडल से रस खींचकर कोमल व कठोर बने। लेखक जब शिरीष की ओर देखता है तो हूक उठती है-हाय, वह अवधूत आज कहाँ है!
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कठिन शब्द
शिरीष के फूल पाठ से जुड़े कठिन शब्द इस प्रकार हैं:
शब्द | अर्थ |
जेठ | गर्मी का मौसम |
अमलतास | एक पेड़ |
अवधूत | बच्चे के मन की तरह |
वृद्धावस्था | बूढ़ी अवस्था |
निरंतर | लगातार |
अनासक्त | किसी से न जुड़ा हो |
आधार | सबूत |
वर्णन | जिक्र |
मुग्ध | बेकाबू |
शिरीष के फूल PDF
MCQs
(क) 10 दिन
(ख) 5 दिन
(ग) 15-20 दिन
(घ) 30 दिन
उत्तर: (ग)
(क) संस्कृत
(ख) उर्दू
(ग) अंग्रेजी
(घ) हिब्रू
उत्तर: (क)
(क) मीरा
(ख) रत्ना
(ग) पद्मावती
(घ) शकुंतला
उत्तर: (घ)
(क) सांप
(ख) भौंरो
(ग) गिद्धों
(घ) चूहों
उत्तर: (ख)
(क) वात्स्यायन
(ख) कालिदास
(ग) कबीर
(घ) पाश
उत्तर: (क)
(क) उदास
(ख) प्रेमी
(ग) फक्कड़
(घ) आज़ाद
उत्तर: (ग)
A. भिखारी के साथ
B. अवधूत के साथ
C. साधु के साथ
D. गृहस्थ के साथ
उत्तर: B
A. डॉ० नगेन्द्र
B. रामवृक्ष बेनीपुरी
C. उदय शंकरभट्ट
D. आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी
उत्तर: D
A. आम का
B. नीम का
C. अमलतास का
D. शिरीष का
उत्तर: C
A. शीत ऋतु
B. शिरीष ऋतु
C. वसंत ऋतु
D. वर्षा ऋतु
उत्तर: C
A. कमजोर
B. मजबूत
C. मोटी
D. पतली
उत्तर: A
A. कबीरदास
B. सूरदास
C. तुलसीदास
D. बिहारी
उत्तर: C
A. रावण
B. अत्याचारी राजा
C. ब्रह्मा
D. महाकाल देवता
उत्तर: D
A. कालिदास
B. व्यास
C. वाल्मीकि
D. भवभूति
उत्तर: A
A. विजय देवी
B. लक्ष्मी देवी
C. पार्वती देवी
D. विज्जिका देवी
उत्तर: D
A. महात्मा गांधी
B. जवाहर लाल नेहरू
C. सरदार पटेल
D. लाल बहादुर शास्त्री
उत्तर: A
शिरीष के फूल से संबंधित प्रश्नोत्तर
उत्तर: लेखक शिरीष के पेड़ों के समूह के बीच में बैठकर लिख रहा है। इस समय जेठ माह की जलाने वाली धूप पड़ रही है तथा सारी धरती अग्निकुंड की भाँति बनी हुई है।
उत्तर: शिरीष वसंत ऋतु आने पर लहक उठता है तथा आषाढ़ के महीने से इसमें पूर्ण मस्ती होती है। कभी-कभी वह उमस भरे भादों मास तक भी फूलता है।
उत्तर: शिरीष के फूल बेहद कोमल होते हैं, जबकि फल अत्यधिक मजबूत होते हैं। वे तभी अपना स्थान छोड़ते हैं जब नए फल और पत्ते मिलकर उन्हें धकियाकर बाहर नहीं निकाल देते।
उत्तर: जीवन का सत्य है-वृद्धावस्था व मृत्यु। ये दोनों जगत के अतिपरिचित व अतिप्रामाणिक सत्य हैं। इनसे कोई बच नहीं सकता।
उत्तर: कालिदास को लेखक ने ‘अनासक्त योगी’ कहा है। उन्होंने ‘मेघदूत’ जैसे सरस महाकाव्य की रचना की है। बाहरी सुख-दुख से दूर होने वाला व्यक्ति ही ऐसी रचना कर सकता है।
दुष्यंत ने शकुंतला का चित्र बनाया था, परंतु उन्हें उसमें संपूर्णता नहीं दिखाई दे रही थी। काफी देर बाद उनकी समझ में आया कि शकुंतला के कानों में शिरीष पुष्प नहीं पहनाए थे, गले में मृणाल का हार पहनाना भी शेष था।
‘अवधूत’ वह है जो सांसारिक मोह माया से ऊपर होता है। वह संन्यासी होता है। लेखक ने शिरीष को कालजयी अवधूत कहा है क्योंकि वह कठिन परिस्थितियों में भी फलता-फूलता रहता है। भयंकर गर्मी, लू, उमस आदि में भी शिरीष का पेड़ फलों से लदा हुआ मिलता है।
‘नितांत ढूँठ’ का अर्थ है-रसहीन होना। लेखक स्वयं को प्रकृति-प्रेमी व भावुक मानता है। उसका मन भी शिरीष के फूलों को देखकर तरंगित होता है।
शिरीष के पेड़ पर फूल भयंकर गरमी में आते हैं तथा लंबे समय तक रहते हैं। उमस में मानव बेचैन हो जाता है तथा लू से शुष्कता आती है। ऐसे समय में भी शिरीष के पेड़ पर फूल रहते हैं। इस प्रकार वह अवधूत की तरह जीवन की अजेयता का मंत्र प्रचारित करता है।
इसका अर्थ यह है कि शिरीष के पेड़ वसंत ऋतु में फूलों से लद जाते हैं तथा आषाढ़ तक मस्त रहते हैं। आगे मौसम की स्थिति में बड़ा फेर-बदल न हो तो भादों की उमस व गरमी में भी ये फूलों से लदे रहते हैं।
शिरीष के नए फल व पत्ते नवीनता के परिचायक हैं तथा पुराने फल प्राचीनता के। नयी पीढ़ी प्राचीन रूढ़िवादिता को धकेलकर नव-निर्माण करती है। यही संसार का नियम है।
कालिदास को आधार मानकर बाद के कवियों को ‘परवर्ती’ कहा गया है। उन्होंने भी भूल से शिरीष के फूलों को कोमल मान लिया।
शिरीष के फूल बेहद कोमल होते हैं, जबकि फल अत्यधिक मजबूत होते हैं। वे तभी अपना स्थान छोड़ते हैं जब नए फल और पत्ते मिलकर उन्हें धकियाकर बाहर नहीं निकाल देते।
लेखक को शिरीष के फलों व आधुनिक नेताओं के स्वभाव में अडिगता तथा कुर्सी के मोह की समानता दिखाई पड़ती है। ये दोनों तभी स्थान छोड़ते हैं जब उन्हें धकियाया जाता है।
लेखक का मानना है कि शकुंतला सुंदर थी, परंतु देखने वाले की दृष्टि में सौंदर्यबोध होना बहुत जरूरी है। कालिदास की सौंदर्य दृष्टि के कारण ही शकुंतला का सौंदर्य निखरकर आया है। यह कवि की कल्पना का चमत्कार है।
रवींद्रनाथ ने एक जगह लिखा है कि राजोद्यान का सिंहद्वार कितना ही गगनचुंबी क्यों न हो, उसकी शिल्पकला कितनी ही सुंदर क्यों न हो, वह यह नहीं कहता कि हममें आकर ही सारा रास्ता समाप्त हो गया। असल गंतव्य स्थान उसे अतिक्रम करने के बाद ही है, यही बताना उसका कर्तव्य है।
FAQs
शिरीष का फूल आँधी लू और गर्मी की प्रचंडता में भी अवधूत की तरह अविचल होकर कोमल पुष्पों का सौंदर्य बिखेर रहे शिरीष के माध्यम से मनुष्य की अजेय जिजीविषा और तुमुल कोलाहल-कलह के बीच धैर्यपूर्वक लोक के साथ चिंतारत, कर्तव्यशील बने रहने को महान मानवीय मूल्य के रूप में स्थापित करता है।
हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने शिरीष के फूल की रचना की थी।
शिरीष की तुलना अद्भुत अवधूत से की गई है। शिरीष को अद्भुत अवधूत की संज्ञा इसलिए दी गई है क्योंकि दुख हो या सुख वह कभी हार नहीं मानता। कबीर भी शिरीष के समान मस्त बेपरवाह पर सरस थे। अद्भुत अवधूत से शिरीष फूल की तुलना की गई है।
भयंकर गर्मी में भी यह अपने लिए जीवन-रस ढूँढ लेता है। एक वनस्पतिशास्त्री ने बताया कि यह वायुमंडल से अपना रस खींचता है तभी तो भयंकर लू में ऐसे मीठा केसर उगा सका। बच्चों के मुँह से भी संसार की सबसे सरस रचनाएँ निकली हैं।
शिरीष नाम का मतलब एक फूल, बारिश पेड़ होता है।
शिरीष मध्यम आकार का सघन छायादार पेड़ है, जो सम्पूर्ण भारत के गर्म प्रदेशों में एवं पहाड़ी क्षेत्रों में ८ हज़ार फुट की ऊँचाई तक पाया जाता है। इनकी प्रमुख विशेषता सहजता से इनका पुष्पित-पल्लवित होना है। इसकी टहनियां चारों ओर फैली रहती हैं जो इसके आकार को समुचित सघनता प्रदान करती हैं।
शिरीष में फूल लंबे समय तक रहते हैं। वे वसंत में खिलते हैं तथा भादों माह तक फूलते रहते हैं। भीषण गर्मी और लू में यही शिरीष अवधूत (बच्चे के मन) की तरह जीवन की का मंत्र पढ़ाता रहता है। शिरीष के वृक्ष बड़े व छायादार होते हैं।
आशा करते हैं कि आपको शिरीष के फूल के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी मिली होगी। इसी तरह के अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए बने रहिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ।
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संस्कृत साहित्य में शिरीष के फूल को कोमल किसने माना है कक्षा 12 वी अध्याय शिरीष के फूल से
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गुड़िया जी, आपके सुझाव के लिए आपका सादर आभार। इसी प्रकार हमारी वेबसाइट से जुड़ी रहिये।
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संस्कृत साहित्य में शिरीष के फूल को कोमल किसने माना है कक्षा 12 वी अध्याय शिरीष के फूल से
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