महाजनपद क्या है, यह प्रश्न दिमाग में आते ही आप जान गए होंगे कि महाजनपद दो शब्दों ‘महा’ और ‘जनपद’ से मिलकर बना है। महाजनपद का अर्थ है एक ऐसा बड़ा भू-भाग, जहाँ लोगों का निवास हों। भारत में जनपद या महाजनपद की व्यवस्था कोई आज या कल में बनी व्यवस्था नहीं है, बल्कि महाजनपद की व्यवस्था के साक्ष्य तो उत्तर वैदिक काल से ही मिलते हैं। इस ब्लॉग में आपको महाजनपद क्या है, और इसके इतिहास से जुड़ी संपूर्ण जानकारी दी जा रही है। इसलिए ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़ें।
महानपद क्या है? | एक ऐसा बड़ा भाग जहाँ जनता का निवास होता है। |
प्राचीन भारत में कितने महाजनपद थे? | 16 महाजनपद |
प्राचीन भारत के सबसे महत्वपूर्ण महाजनपद | वज्जि, मगध, कोशल, कुरु, पांचाल, गंगाधर तथा अवन्ती |
प्राचीन भारत में परिवर्तनकारी काल कौन सा रहा? | छठी शताब्दी ई.पू. को परिवर्तनकारी काल माना जाता है। |
महाजनपद शब्द का प्रयोग | बड़ी राजनैतिक और भौगोलोक इकाईयों के तौर पर महाजनपद शब्द का प्रयोग किया जाता है। |
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महाजनपद का संक्षिप्त इतिहास
महाजनपद का इतिहास टटोला जाए तो आपको भारत में इस व्यवस्था की जानकारी बौद्ध धर्म के उदय से भी पहले सोलह राज्यों या कुलीन वर्गों के गणतंत्र के रूप में मिलेगी। यह व्यवस्था प्राचीन भारत में छठी से चौथी शताब्दी ईसा पूर्व तक बेहतर ढंग से अस्तित्व में देखने को मिल जाती है।
इस व्यवस्था में गणतंत्र और राजतंत्र दोनों के रूपों का उल्लेख मिल जाता है। अंगुत्तर निकाय जैसे प्राचीन बौद्ध ग्रंथ में “सोलह महान राज्यों और गणराज्यों” के संदर्भ देखने को मिलते हैं, यह राज्य भारतीय उपमहाद्वीप के पूर्वी भाग से लेकर उत्तर-पश्चिम में भाग तक फैले थे।
भारतीय इतिहास में छठी-पाँचवीं शताब्दी ईसा पूर्व एक प्रमुख मोड़ माना जाता है, यह एक ऐसा मोड़ था जिसने सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के बाद, भारत के पहले बड़े शहरों के उदय के साथ-साथ, श्रमण आंदोलनों (बौद्ध और जैन धर्म सहित) की विचारधाराओं के उदय को नज़दीक से देखा। महाजनपद के इतिहास के बाद, इसकी क्या विशेषताएं थी, यह भी आपको जान लेना चाहिए।
महाजनपद की विशेषताएं
महाजनपद के इतिहास को जानने के बाद आपको इसकी विशेषताएं भी जान लेनी चाहिए। यह विशेषताएं निम्नलिखित हैं-
- महाजनपद की व्यवस्था में एक राजा का शासन होता था, लेकिन गण और संघ के नाम से विख्यात राज्यों पर कई लोगों का समूह शासन करता था। इस समूह के प्रत्येक व्यक्ति को राजा की उपाधि प्राप्त थी, इन्ही गणों से भगवान महावीर और भगवान गौतम बौद्ध संबंध रखते थे।
- महाजनपद की व्यवस्था में वज्जि संघ तथा इसी प्रकार के अन्य राज्यों में, भूमि सहित अनेक आर्थिक स्त्रोतों पर राजाओं का ही समूहिक नियंत्रण होता था।
- हर महाजनपद की एक राजधानी होती थी, जिसको किले से घेरकर सुरक्षा के बंदोबस्त किए जाते थे। किलेबंद राजधानियों के रख-रखाव, सेनाओं और नौकर शाही के लिए भारी आर्थिक साधनों की आवश्यकता पड़ती थी।
- महाजनपद की व्यवस्था में शासकों का मुख्य काम किसानों, व्यापारियों और शिल्पकारों से कर तथा भेंट वसूल करना आदि था।
- महाजनपद की व्यवस्था में कुछ राज्यों ने अपनी स्थायी सेनाएँ और नौकरशाही तंत्र को तैयार किया, वहीं शेष राज्य सहायक सेना पर निर्भर रहते थे।
प्राचीन भारत के महाजनपद के नाम
प्राचीन भारत में कुल 16 महाजनपद शामिल थे जिनका उल्लेख उत्तर वैदिक काल से लेकर बौद्ध और जैन धर्म के ग्रंथों में भी देखने को मिल जाता है, इन 16 महाजनपदों की जानकारी निम्नलिखित है:-
महाजनपद का नाम | महाजनपद की राजधानी | वर्तमान भौगोलिक स्थिति |
काशी | वाराणसी | वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
कोसल | श्रावस्ती | अयोध्या के आसपास का क्षेत्र, उत्तर प्रदेश |
कुरु | इंद्रप्रस्थ | दिल्ली,मेरठ एवं हरियाणा के आस-पास का क्षेत्र |
कम्बोज | हाटक | राजौरी/हाजरा, उत्तर प्रदेश |
अंग | चंपा | भागलपुर /मुंगेर के आस-पास का क्षेत्र, पूर्वी बिहार |
मगध | राजगृह, वैशाली, पाटलिपुत्र | पटना /गया (मगध के आस-पास का क्षेत्र ), मध्य-दक्षिणी बिहार |
वज्जि | वैशाली, विदेह, मिथिला | दरभंगा/मधुवनी के आस-पास का क्षेत्र, बिहार |
मल्ल | कुशावती | देवरिया, उत्तर प्रदेश |
चेदि | शक्तिमती | बुंदेलखंड, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश का कुछ क्षेत्र |
वत्स | कौशाम्बी | प्रयागराज, उत्तर प्रदेश |
पांचाल | अहिछत्र ,काम्पिल्य | उत्तरी उत्तर प्रदेश |
मत्स्य या मच्छ | विराट नगर | जयपुर, राजस्थान |
सुरसेन या शूरसेन | मथुरा | मथुरा, उत्तर प्रदेश |
गांधार | तक्षशिला | पेशावर व रावलपिंडी के आस-पास का क्षेत्र, पाकिस्तान |
अश्मक | पोतन | दक्षिण भारत में गोदावरी नदी घाटी के आस-पास का क्षेत्र |
अवंती | उज्जैन ,महिष्मति | मालवा, मध्य प्रदेश |
महाजनपदों का शासन और प्रशासन
महाजनपदों का युग (छठी शताब्दी ईसा पूर्व) भारतीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जब छोटे-छोटे जनपदों ने विकसित होकर शक्तिशाली “महाजनपद” का रूप लिया। इतिहास में इस समय को राजनीति, प्रशासन और राज्यव्यवस्था के विकास की दिशा में एक बड़ी छलांग के रूप में देखा गया है। नीचे दिए गए बिंदुओं के माध्यम से महाजनपदों का शासन और प्रशासन की व्यवस्था के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकेगी –
- छठी शताब्दी ईसा पूर्व अधिकतर महाजनपदों में राजतंत्र (राजा का शासन) था, लेकिन कुछ में गणतंत्र (जनता द्वारा चुना गया शासक मंडल) भी देखने को मिलता है।
- वैशाली एक प्रमुख गणराज्य था जहाँ लिच्छवि वंश का लोकतांत्रिक शासन था – यह आज के लोकतंत्र की शुरुआत मानी जा सकती है। बताना चाहेंगे कि वैशाली में 700 से अधिक गणपति (संसद जैसे सदस्य) मिलकर निर्णय लेते थे।
- इस दौरान राजा के साथ मंत्रिपरिषद होती थी, जो निर्णय लेने में सहायता करती थी। सेना, कर वसूली, न्याय व्यवस्था आदि के लिए अलग-अलग अधिकारी की नियुक्ति की जाती थी।
- मगध जैसे महाजनपद ने एक संगठित प्रशासन प्रणाली अपनाई थी, जहाँ बिंबिसार और अजातशत्रु जैसे शासकों ने कुशलतापूर्वक शासन किया।
महाजनपदों की आर्थिक व्यवस्था
महाजनपदों की आर्थिक व्यवस्था से जुड़ी अहम जानकारी को जानने के लिए निम्नलिखित बिंदुओं को पढ़ें, जो इस प्रकार हैं –
- महाजनपदों की आय का मुख्य स्रोत कृषि था। गंगा और यमुना जैसी नदियों के किनारे स्थित महाजनपद (जैसे मगध, कोशल) उपजाऊ भूमि पर आधारित थे। किसान गेहूं, जौ, चावल आदि की खेती करते थे। इससे न केवल खाद्य सुरक्षा मिली, बल्कि अधिशेष उत्पादन ने व्यापार को भी जन्म दिया।
- राजा अपनी प्रजा से कर वसूलता था, जिसे ‘भाग’ कहा जाता था। यह आमतौर पर फसल का छठा भाग होता था। इसके अलावा व्यापारियों से भी कर लिया जाता था।
- महाजनपदों के बीच और विदेशों के साथ व्यापार होता था। नालंदा, तक्षशिला जैसे नगर व्यापारिक केंद्र थे। उस समय ‘पंचमार्क’ चाँदी की मुद्राएं प्रचलित थीं, जिससे विनिमय आसान हुआ।
- मिट्टी, लकड़ी, धातु और कपड़ा निर्माण जैसे शिल्प उद्योग महाजनपदों की आर्थिक विविधता को दर्शाते हैं। इन्हीं से महाजनपदों में शहरीकरण को बढ़ावा मिलता था।
- श्रमिकों और दासों का उपयोग कृषि, निर्माण और व्यापार में होता था। यह एक कठोर लेकिन व्यवहारिक व्यवस्था थी।
महाजनपदों में धर्म और संस्कृति का विकास
नीचे महाजनपदों में धर्म और संस्कृति के विकास के बारे में बताया गया है, जो इस प्रकार हैं –
- इस काल में वेदों की व्याख्या के साथ-साथ उपनिषदों, श्रमण परंपरा, जैन धर्म और बौद्ध धर्म का उदय हुआ।
- गौतम बुद्ध और महावीर स्वामी जैसे महापुरुषों ने तत्कालीन समाज में व्याप्त अंधविश्वास, हिंसा और जातिवाद के विरुद्ध आवाज़ उठाई। धर्म अब केवल कर्मकांड तक सीमित नहीं रहा, बल्कि नैतिकता, करुणा और आत्म-ज्ञान पर आधारित हो गया।
- मगध, कोशल और अवंति जैसे महाजनपदों के राजाओं ने इन नए धार्मिक विचारों को संरक्षण दिया। उदाहरण के लिए, मगध के शासक बिंबिसार और अजातशत्रु ने बुद्ध को न केवल समर्थन दिया बल्कि बौद्ध संघों की स्थापना में मदद भी की।
- इस काल में मठों, विहारों और स्तूपों का निर्माण हुआ, जो धार्मिक शिक्षा और साधना के केंद्र बने। इसके साथ ही पालि, प्राकृत और संस्कृत भाषाओं में धार्मिक ग्रंथ लिखे गए, जो आज भी सांस्कृतिक धरोहर हैं।
- इस दौरान महाजनपदों में बौद्ध और जैन साहित्य ने लोकभाषाओं को भी समृद्ध किया।
FAQs
प्राचीन भारत के इतिहास को देखा जाए तो राज्य या प्रशासनिक इकाईयों को जनपद कहा जाता था। उत्तर वैदिक काल में महाजनपद के बारे में उल्लेख मिलता है।
छठी शताब्दी ईसा पूर्व 16 महाजनपदों की स्थापना हुई थी, उन जनपदों में वो जनपद शामिल थे जो पहले कभी स्वायत्त हुआ करते थे।
प्राचीन भारत में कुल 16 महाजनपद थे।
जनपद महाजनपदों से छोटे होते थे, हालांकि जनपद ‘गणों, संघों और पौरियों’ से बड़े होते थे। वहीं महाजनपद को एक देश अथवा एक राज्य की भांति महान साम्राज्य की ख्याति प्राप्त हुआ करती थी।
महाजनपद शब्द को बड़ी संख्या में ‘ग्रामीण और शहरी बस्तियों के एकीकरण’ के प्रतीक के रूप में देखा जा सकता है।
महाजनपद में 16 राज्य शामिल थे। प्राचीन बौद्ध साहित्य, अंगुत्तर निकाय पाठ 16 महाजनपदों की सूची देता है। ये हैं – काशी, कोसल, अंग, मगध, वाज्जि, मल्ल, चेदि, वत्स, कुरु, पांचाल, मच्छ, सूरसेन, अश्मक, अवंति, गांधार और कम्बोज। ये महाजनपद या तो राजतंत्र या गणतंत्र (गणसंघ) हैं।
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में कुछ साम्राज्यों के विकास में वृद्धि हुयी थी जो बाद में प्रमुख साम्राज्य बन गये और इन्हें महाजनपद या महान देश के नाम से जाना जाने लगा था। आर्य यहां की सबसे प्रभावशाली जनजाति थी जिसे ‘जन’ कहा जाता था जिससे जनपद शब्द की उत्पत्ति हुयी थी।
छठी शताब्दी ईसा पूर्व में कुछ साम्राज्यों के विकास में वृद्धि हुयी थी जो बाद में प्रमुख साम्राज्य बन गये और इन्हें महाजनपद या महान देश के नाम से जाना जाने लगा था। आर्य यहां की सबसे प्रभावशाली जनजाति थी जिसे ‘जन’ कहा जाता था जिससे जनपद शब्द की उत्पत्ति हुयी थी।
मगध महाजनपद की सीमा उत्तर में गंगा से दक्षिण में विन्ध्य पर्वत तक, पूर्व में चम्पा से पश्चिम में सोन नदी तक विस्तृत थीं। यह दक्षिणी बिहार में स्थित था जो कालान्तर में उत्तर भारत का सर्वाधिक शक्तिशाली महाजनपद बन गया। मगध की प्राचीन राजधानी राजगृह थी।
महाजनपद लगभग छठी शताब्दी ईसा पूर्व में अस्तित्व में आए। यह वह समय था जब छोटे-छोटे जनपद एकजुट होकर बड़े और संगठित राज्यों में बदलने लगे।
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आशा है कि महाजनपद क्या है? का जवाब आपको मिल गया होगा। इससे आपका प्राचीन महाजनपद के इतिहास से संबंधित ज्ञान बढ़ा होगा। इतिहास से जुड़े हुए ऐसे ही अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।
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Baudh ar jain dharm me kitne
Mahajanpad milte hai ek dusre se..?-
पूजा जी, बौद्ध और जैन धर्म में 16 जनपद मिलते हैं।
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2 comments
Baudh ar jain dharm me kitne
Mahajanpad milte hai ek dusre se..?
पूजा जी, बौद्ध और जैन धर्म में 16 जनपद मिलते हैं।