ईद उल जुहा या ईद-उल-अजहा को बकरीद के नाम से जाना जाता है। 2024 में बकरीद 17 जून 2024 को मनाई जाएगी। इस्लाम में साल भर में दो ईद मनाई जाती हैं, जिसमें एक को ‘मीठी ईद’ कहा जाता है और दूसरी को बकरीद। यह इस्लाम के सबसे पवित्र त्यौहार में एक है। साथ ही ईद सबसे प्रेम करने का संदेश देती है और यह ईद-उल-जुहा कुर्बानी का दिन भी होता है। बकरीद के दिन इसलिए बकरे या किसी अन्य पशु की कुर्बानी दी जाती है। इसे इस्लामिक कैलेंडर के हिसाब से आखिरी महीने के दसवें दिन मनाया जाता है, जिसके बारे में आपको जरूर जानना चाहिए। इसलिए आज के इस ब्लॉग में हम ईद उल जुहा और उसके इतिहास के बारे में बताएँगे।
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ईद उल जुहा क्या है?
ईद उल जुहा जिसे हम कुर्बानी ईद भी कहते हैं, ये रमज़ान या ईद उल फितर या मीठी ईद के 70वें दिनों के बाद मनाई जाती है। ईद की तारीख चाँद दिखाने के बाद की मुकरर की जाती है। ये इस्लाम का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जिसका ज़िक्र कुरान में भी है।
2024 में कब मनाया जाएगा
17 जून 2024 को ईद-उल-अजहा मनाया जाएगा। ईद उल अजहा इस्लामी कैलेंडर का 12वां और आखिरी महीना होता है।
क्यों मनाई जाती है ईद उल जुहा?
मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार पैगंबर हज़रत इब्राहिम के सपने में अल्लाह ने उनकी सबसे प्यारी चीज़ की कुर्बानी मांगी थी । वो अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे उनके लिए धर्म संकट की परिस्तिथिति पैदा हो गयी। एक तरफ अल्लाह का फरमान दूसरी तरफ उनका बेटा। उन्होंने अपनी भावनाओं को परे रखते हुए अल्लाह के फरमान का पालन करने की बात मानी और अपने बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया। पैगंबर हज़रत इब्राहिम ने अपने बेटे को गले लगाया और बेटे ने गर्दन झुकाई जैसे ही इब्राहिम ने गर्दन पर छुरी फेरी अल्लाह ने इस्माइल को हटा कर बकरे को को रख दिया। इस दिन के बाद से ही ईद उल जुहा यानि बकरीद मनाने की शुरुआत हुई।
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किसकी कुर्बानी दी जाती है?
ईद उल जुहा ईद के दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। अगर किसी जानवर के शरीर में कोई दिक्कत होती है तो उसकी कुर्बानी नहीं दी जाती है। ईद उल जुहा के दिन कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक खुद के लिए, दूसरा सगे-संबंधियों के लिए और तीसरे हिस्से को गरीब लोगों में बांटने का रिवाज है।
ईद उल जुहा और ईद उल फितर में अंतर
ईद उल जुहा और ईद-उल-फितर में फर्क इतना है कि ईद-उल-फितर खुशी के तौर पर देखा जाता है, जिसे रमजान के तौर पर मनाया जाता है और ईद उल जुहा यानी की बकरीद गरीब और मुस्लिमों के लिए उनके साथ मिलकर मनाई जाती है। कुर्बानी का जो सिधांत है उसका यही मतलब है कि वह गोश्त गरीबों में बाटे ताकि गरीबों को एक वक्त का खाना मिल सके। नमाज अदा करने के बाद वे भेड़ या बकरी की कुर्बानी (बलि) देते हैं और परिवार के सदस्यों, पड़ोसियों और गरीबों के उसे बाटते है ।
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नमाज़
मस्जिद में लोग सूरज उदय होने के बाद नमाज अदा कर सकते है। प्रार्थना और सीख के बाद लोग गले लग कर एक दूसरे को ईद मुबारक बोलते हैं। साथ ही इस दिन सभी जगह हर्ष और उल्लास का माहौल देखने को मिलता है।
ईद उल जुहा की परंपराएँ
बच्चें ,महिलाएं और पुरुष के खुले मैदान में नमाज़ अदा करते हैं नमाज़ अदा करने के लिए नए कपड़ो में तैयार होते हैं । अपने सबसे अच्छे घरेलू पशु जैसे गाये , ऊट , बकरी , भेड़ को पैगंबर हज़रत इब्राहिम के बेटे की बलि के प्रतिक के रूप में मनाया जाता है । महिलाएं पकवान बनाती हैं। सभी एक दूसरे को बाटते हैं, गिफ्ट देते हैं और बच्चों को ईदी भी दी जाती है। सभी यह त्योहार हिजरी के आखिरी महीने जल हिज्ज में मनाया जाता है। इस महीने में दुनिया भर के मुस्लिम हज की यात्रा में जाते हैं। हज़रत इब्राहिम के सपने और कुर्बानी की घटना के बाद अपने बेटे और पत्नी हाजरा को मक्का में लाने का निर्णय लिया था। उस समय मक्का सिर्फ एक रेगिस्तान था। हज़रत इब्राहिम ने अपने बेटे और पत्नी को वहां बसाया औड़े। उस समय रेगिस्तान में अपने परिवार को बसाना इब्राहिम के लिए कुर्बानी के समान था। इस्माइल बड़े हुए तो एक काफिला गुजर रहा था उसमें एक लड़की थी। उस लड़की से इस्माइल का विवाह करवा दिया गया। एक वंश की रचना हुई जिसे इश्माइलिट्स, या वनु इस्माइल कहा जाता है। इसी वंश में हज़रत मुहम्मद साहब का जन्म हुआ था।
आशा है कि इस ब्लाॅग में आपको ईद उल जुहा से जुड़ी पूरी जानकारी मिल गई होगी। इसी तरह के अन्य ट्रेंडिंग आर्टिकल्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।