ईद उल जुहा

1 minute read
बकराईद मनाने की वजह

हर साल भारत में अलग- अलग त्योहार मनाएं जाते हैं । त्योहार हमारे जीवन का अनोमल हिस्सा है ये हमारे जीवन को खुशियों , अभिलाषाओं और उमंग से भर देते है। भारत  एक सांस्कृतिक देश है जहाँ अनेक धर्मो के लोग रहते हैं । हर धर्म के त्यौहारों को बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता हैं। चाहे हिन्दुओं की दिवाली हो , सिखों की लोहड़ी , ईसाइयों का क्रिसमस हो या मुसलमानों की ईद। जैसा ईद को ईद-उल-अजहा या ईद-उल-जुहा भी कहा जाता है। दुनिया भर में उत्साह के साथ मनाया जाता है। आज हम इस ब्लॉग से जानेगे की क्यों मनाई जाती है ईद-उल-जुहा , 2021 में कब मनाई जाएगी, ईद-उल-जुहा  का महत्व आदि और इससे जुड़े कई तथ्यों पर बात करेंगे।

Check Out: अच्छे विद्यार्थी के 10 गुण

ईद उल जुहा क्या है?

ईद उल जुहा जिसे हम कुर्बानी ईद भी कहते है ये रमज़ान या ईद उल फितर या मीठी ईद के 70दिनों के बाद मनाई जाती है। ईद की तारीख चाँद दिखाने के बाद की मुकरर की जाती है । ये इस्लाम का एक महत्वपूर्ण त्योहार है जिसका ज़िक्र कुरान में भी है। 

2021 में कब मनाया जाएगा

2021 में भारत में बकरीद 20 या 21 जुलाई को मनाया जाएगा। लेकिन ये संभावित तारीख है। ईद उल जुहा का चांद दिखने के बाद ही इसकी तारीख का ऐलान  होगा। इसलिए बकरीद की तारीख एक दिन आगे या पीछे हो सकती है।  ईद उल अजहा इस्लामी कैलेंडर का 12वां और आखिरी महीना होता है। 

CheckOut: Personality Development Tips in Hindi

क्यों मनाई जाती है ईद उल जुहा

मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार पैगंबर हज़रत इब्राहिम के सपने में अल्लाह ने उनकी सबसे प्यारी चीज़ की कुर्बानी मांगी थी । वो अपने बेटे से बहुत प्यार करते थे उनके लिए धर्म संकट की परिस्तिथिति पैदा हो गयी ।एक तरफ अल्लाह का फरमान दूसरी तरफ उनका लख्ते जिगर बेटा ।उन्होंने अपनी भावनाओं को परे रखते हुए अल्लाह के फरमान का पालन करने की बात मान और बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया ।   पैगंबर हज़रत इब्राहिम  ने अपने बेटे को गले लगाया और बेटे ने गर्दन झुकाई जैसे ही इब्राहिम ने गर्दन पर छुरी फेरी अल्लाह ने इस्माइल को हटा कर बकरे को को रख दिया ।

किसकी कुर्बानी दी जाती है?

ईद उल जुहा  ईद के दिन बकरा ,भेड़, ऊट इनमें से किसी की भी कुर्बानी देनी पड़ती है । अगर किसी जानवर के शरीर का कोई टूटता तो उसकी कुर्बानी नहीं दी जाती है ।ईद उल जुहा के दिन कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा जाता है। एक खुद के लिए, दूसरा सगे-संबंधियों के लिए और तीसरे हिस्से को गरीब लोगों में बांटने का रिवाज है।पहले अपना कर्ज उतारें, फिर हज पर जाएं। तब बकरीद मनाएं। इसका मतलब यह है कि इस्लाम व्यक्ति को अपने परिवार, अपने समाज की पूरी ज़िम्मेदारी  निभाने पर जोर देता है।

CheckOut: 100 Motivational Quotes in Hindi

ईद उल जुहा और ईद उल फितर में अंतर 

 ईद उल जुहा और  ईद-उल-फितर में फर्क इतना है कि ईद-उल-फितर खुशी के तौर पर देखा जाता है रमजान के तौर पर मनाई जाती है और ईद उल जुहा  यानी की बकरीद गरीब और मुस्लिमों के लिए उनके साथ मिलकर मनाई जाती है । कुर्बानी का जो सिधांत है उसका यही मतलब है कि वह गोश्त गरीबों में बाटे ताकि गरीबों को एक वक्त का खाना मिल सके। नमाज अदा करने के बाद वे भेड़ या बकरी की कुर्बानी (बलि) देते हैं और परिवार के सदस्यों, पड़ोसियों और गरीबों के उसे बाटते है । 

नमाज़ 

मस्जिद में लोग सूरज उदय होने के बाद नमाज अदा कर सकते है।प्रार्थना और सीख के बाद लोग गले लग कर एक दूसरे को ईद मुबारक बोलते हैं । लोगों को आमंत्रित करते हैंऔर सभी जगह हर्ष और उल्लास का माहौल देखने को मिलता है। 

ईद उल जुहा की परंपराएँ

बच्चें ,महिलाएं और पुरुष के खुले मैदान में नमाज़ अदा करते हैं नमाज़ अदा करने के लिए नए कपड़ो में तैयार होते हैं । अपने सबसे अच्छे घरेलू पशु जैसे गाये , ऊट , बकरी , भेड़ को पैगंबर हज़रत इब्राहिम के बेटे की बलि  के प्रतिक के ररूप में मनाया जाता है । महिलाएं पकवान बनाती हैं। सभी एक दूसरे को बाटते हैं, गिफ्ट देते हैं और  बच्चों को ईदी भी दी जाती है। सभी यह त्योहार हिजरी के आखिरी महीने जल हिज्ज में मनाया जाता है। इस महीने में दुनिया भर के मुस्लिम हज की यात्रा में जाते हैं।हज़रत इब्राहिम के सपने और कुर्बानी की घटना के बाद अपने बेटे और पत्नी हाजरा को मक्का में लाने का निर्णय लिया था। उस समय मक्का सिर्फ एक रेगिस्तान था। हज़रत इब्राहिम ने अपने बेटे और पत्नी को वहां बसाया औड़े। उस समय रेगिस्तान में अपने परिवार को बसाना इब्राहिम के लिए कुर्बानी के समान था।इस्माइल बड़े हुए तो एक काफिला गुजर रहा था उसमें एक लड़की  थी। उस लड़की  से इस्माइल का विवाह करवा दिया गया। एक वंश की रचना हुई  जिसे इश्माइलिट्स, या वनु इस्माइल कहा जाता है। इसी वंश में हज़रत मुहम्मद साहब का जन्म हुआ था। 

CheckOut: jane bodhdh dharam ka etihaas

सही मायने में  ईद उल जुहा (बकरीद) त्योहार त्याग का प्रतीक है मुस्लिमों के मुख्य त्योहारों में से यह त्योहार लोगों की सेवा करने की तरफ प्रभावित करता हैं  आशा करते हैं बकरीद त्यौहार पर ब्लॉग आपको पसंद आया होगा।अगर पसंद आए है तो अपने दोस्तों के साथ इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करे। हमारे Leverage Edu मैं आपको इसी प्रकार के कई सारे ब्लॉग मिलेंगे जिसे पढ़कर आप कई सारी जानकारियां प्राप्त कर सकेंगे। 

प्रातिक्रिया दे

Required fields are marked *

*

*