Yoga Poem : योग की महिमा बताती कविताएं, आपको योग करने के लिए प्रेरित करेंगी

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Yoga Poem in Hindi

योग पर कविताएं मानव को योग की महिमा बताकर, उसे योग के प्रति जागरूक करने का काम करती हैं। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर समाज को योग के महत्व के प्रति जागरूक किया जाता है, इसका श्रेय भारत को जाता है क्योंकि हमारे देश ने ही योग के ज्ञान को विश्व के हर कोने तक पहुंचाने के लिए इसकी पहल की थी। दुनियाभर में हर वर्ष 21 जून को पूरे हर्षोल्लास के साथ अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाया जाता है। योग दिवस के अवसर पर आप अपने परिजनों और मित्रों के साथ योग पर कविताएं (Yoga Poem in Hindi) साझा कर सकते हैं, जो उन्हें योग को अपनाने के लिए प्रेरित करने का प्रयास करेंगी।

योग पर कविताएं – Yoga Poem in Hindi

योग पर कविताएं (Yoga Poem in Hindi) आपको योग को अपनाने और स्वस्थ जीवन जीने के लिए प्रेरित करेंगी जो नीचे दी गई हैं ये विभिन्न कवियों की रचनाओं का एक समावेश है –

कविता का नामकवि का नाम
योग-रश्मिजनार्दन राय
एक योगी सहज योग साधे हुयेआनन्द बल्लभ ‘अमिय’
योग दिवस परआभा झा
योग-विभूति-सिद्धिहनुमानप्रसाद पोद्दार
आओ हम सब मिलकर योग दिवस मनायेंडॉ. मनजीत कौर
योग करे अंतर्मन को शुद्धमयंक विश्नोई

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योग-रश्मि

योग पर कविताएं (Yoga Poem in Hindi) समाज को योग का महत्व बताने का प्रयास करेंगी, योग पर लिखित लोकप्रिय कविताओं में से एक कविता “योग-रश्मि” है जो कुछ इस प्रकार है –

चीर तम को समर्था का कोई यहाँ,
योग को जगमगाकर कोई जा रहा।
था धरा का यहां ‘राम’ व्याकुल पड़ा,
तन से, मन से बहुत खिन्न आकुल खड़ा।
काम भी कर रही शक्ति पीछे खड़ी,
योग का ध्यान उसको था होता रहा।

थक चुका था बहुत लड़ के जीवन में वह,
रोग से क्षीण, तन से औ साहस से वह।
एक संकेत पाकर ‘परम हंस’ से,
योग का ही उसे ध्यान होता रहा।

हो गयी फिर कृपा सत्यानन्द की,
ज्ञानी गुरु योग-अवतार की।
युग के अवतार की प्रेरणा पा मधुर,
अनुप्राणित सदा वह था होता रहा।

लग गया फिर शिविर योग का एक यहां,
‘आत्म-दर्शन’ का पद-तल जोक पहुंचा यहां।
हो गई फिर धरा धन्य विद्यालय की,
योग का गीत गुंजित था होता रहा।

ऊँ का जो मधुर उच्चरित स्वर मिला,
वन्दना कर गुरु की अमित बल मिला।
ध्यान ऐसा हुआ भूल तन, मन गया,
एक अनुभव नया नित्य होता रहा।

छात्र-छात्रा, अभिभावक, अध्यापक सभी,
योग की सुर-सरि में नहा के सभी।
‘आत्म-दर्शन’ - निर्देशन के आलोक से,
ज्ञान-वर्द्धन सतत सब का होता रहा।

सीखने करने अभ्यास आसन के थे,
लग गये प्राण-पण से सजग होके वे।
फिर तो छिटकी किरण दिव्य ऐसी यहां,
मार्ग-दर्शन सहज सब का होता रहा।

स्वामी ‘आत्म-दर्शन’ के दर्शन ही से,
अकलानन्द के मात्र आ जाने से।
रश्मियाँ योग की, ध्यान की, ज्ञान की,
पाके अनुप्राणित, प्रेरित जन होता रहा।

सौम्य वातावरण भव्य अब बन गया,
योग में जन मानस का मन रम गया।
चिर ऋणी हम सभी है स्वामी तेरे,
मिट गया तम सवेरा जो होता रहा।

आप अपने बने धन्य हम हो गये,
प्रेम-मुरली बजी ब्रह्म में खो गये।
शान्ति के पाठ से स्वर हरि ऊँ सुन,
पथ आलोकित नित्य होता रहा।

चीर तम को समर्था का कोई यहाँ,
योग को जगमगाकर कोई जा रहा।

-जनार्दन राय

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एक योगी सहज योग साधे हुये

योग पर कविताएं (Yoga Poem in Hindi) आपके सामने योग की महिमा प्रस्तुतिकरण करेंगी, योग पर लिखित लोकप्रिय कविताओं में से एक कविता “एक योगी सहज योग साधे हुये” है। यह कविता आदियोगी देवों के देव महादेव की वंदना करती है जो कुछ इस प्रकार है –

एक योगी सहज योग साधे हुए,
ज्ञानमुद्रा लगाकर के तल्लीन है।

तन पर बाघम्बरी ओढ़ कर, कंठ में,
नाग माला ऋचा शांति की गा रही।
शीश शशिराज हैं वेणी बाँधी जटा,
मध्य से गंग निर्मल बही जा रही।
रूप राशी सदा मंगलाचार कर,
कामना से यती सर्वदा हीन है।

भष्म तन पर मले कर पिनाकी धरे,
भस्म कर दे मलिन मन के कुविचार को।
डम डमक नाद डमरू करे व्योम में,
भर दे सृष्टि के हर रव में सुविचार को।
झोली भरते महादेव, मृड, हर, शिवम्,
पर स्वयं मोह माया परे लीन हैं।

सृष्टि में है वही उसमें ही सृष्टि है,
बह रहा है वही पाँच तत्वों में भी।
देह से आत्मा, स्नायु से रक्त में,
देव में है बसा प्रेत तत्वों में भी।
सबके भीतर वह्नि पुंज-सा जल रहा,
नित नया है वही नित्य प्राचीन है।

एक योगी सहज योग साधे हुए,
ज्ञानमुद्रा लगाकर के तल्लीन है।

-आनन्द बल्लभ 'अमिय'

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योग दिवस पर

इस ब्लॉग में लिखित Yoga Poem in Hindi की लोकप्रिय श्रेणी में “योग दिवस पर” भी शामिल है, जो कुछ इस प्रकार है –

योगक साधक बनल सदा सँ, विश्व गुरु अछि देश हमर:
भौतिक आत्मिक आ आध्यात्मिक ज्ञान विवेकक केंद्र प्रवर।

पतंजलिक अष्टांग योग जीवन जीबाक कला सिखबैछ:
चित्त वृत्ति कें कय निरोध सब आधि व्याधि कें दूर करैछ।

कपाल भाति, भ्रामरी, भस्त्रिका केओ करय अनुलोम विलोम
बाहर काया सौष्ठव होअए, विहुँसय अंतर हृदयक व्योम।

भाँति-भाँति के योगासन थिक, यथायोग्य अभ्यास करी
श्वांस-श्वांस में परमात्मा संग मिलनक सुखद प्रयास करी।

-आभा झा

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योग-विभूति-सिद्धि

हनुमानप्रसाद पोद्दार की कविता “योग-विभूति-सिद्धि” को Yoga Poem in Hindi की श्रेणी में बेहद ही लोकप्रिय माना जाता है, जो कुछ इस प्रकार है –

‘योग-विभूति-सिद्धि’, अति दुर्लभ, सहज नहीं हो सकतीं प्राप्त।
पर इनसे न ‘मुक्ति’ मिल सकती, कहते सिद्ध अनुभवी आप्त॥
है अवश्य ही बड़ा विलक्षण यह मुनियोंका योग-महत्व।
जान सके वे इसके द्वारा ईश-सृष्टि का सारा तत्व॥

इसे छोड़, फिर हु‌ए अग्रसर चिन्मय ‘परम-धाम’ की ओर।
मिले परम प्रभुमें वे जाकर, हु‌ए ‘नित्य आनन्द-विभोर’॥
यही चरम फल श्रेष्ठ योग का, यही योगियों का नित साध्य।
इसीलिये करते साधन वे, मान एक प्रभु को आराध्य॥

वही ‘युक्ततम’ जो भजते हैं अन्तरात्मासे भगवान।
नित्य-निरन्तर हो अनन्य जो, रह प्रभुके प्रति श्रद्धावान॥

-हनुमानप्रसाद पोद्दार
योग पर कविताएं

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आओ हम सब मिलकर योग दिवस मनायें

योग पर कविताएं (Yoga Poem in Hindi) आपके सामने योग की महिमा प्रस्तुतिकरण करेंगी, योग के प्रति जागरूकता फैलाती लोकप्रिय कविताओं में से एक कविता “आओ हम सब मिलकर योग दिवस मनायें” है जो कुछ इस प्रकार है –

आओ हम सब मिलकर योग दिवस मनायें,
गांव-गांव और शहर-शहर में, इसकी अलख जगायें

योग का मतलब है जोड़ना,
मोह को मन से तोड़ना,
मानव को प्रकृति से जोड़ना,
चित्त की वृत्तियों को सिकोड़ना।
बस इतनी सी बात, लोगों को समझायें
आओ हम सब मिलकर, योग दिवस मनायें।

इसमें न कोई खर्चा, न कोई और दिखावा है,
स्वस्थ रहें हम कैसे, बस इसका ही बढ़ावा है।
लेकर चटाई हम सब, धरती पर बैठ जायें,
आओ हम सब मिलकर, योग दिवस मनायें।

चाहे खड़े हों, चाहे बैठे हों, या चाहे हों लेटे,
योग एक स॔तुलन है, विविध विधा लपेटे।
गहरी लम्बी सांस खींचकर, इसे शुरू करायें,
आओ हम सब मिलकर, योग दिवस मनायें।

पद्मासन हो वज्रासन हो, या हो चकरा आसन,
ध्यानमग्न हो बैठ जायें, बिना करे प्राशन।
सबसे पहले उठकर, इसको ही अपनायें,
आओ हम सब मिलकर योग दिवस मनायें।

योग बहुत है फायदेमंद, जैसे शाक मूल और कंद,
मिट जाये सारे मन के द्वंद्व, बिना क्लेश और बिना क्रंद।
दैनिक जीवनचर्या का, हिस्सा इसे बनायें,
आओ हम सब मिलकर योग दिवस मनायें।

आयुर्वेद और योग का, झंडा हम फहरायें,
भारतदेश और विश्व को, रोगमुक्त बनायें।
इसी प्रतिज्ञा को लेकर, हम आगे बढ़ते जायें,
आओ हम सब मिलकर योग दिवस मनायें।

-डॉ. मनजीत कौर

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योग करे अंतर्मन को शुद्ध

Yoga Poem in Hindi की लिस्ट में स्वलिखित एक सरल कविता “योग करे अंतर्मन को शुद्ध” कुछ इस प्रकार है –

“सत्य यही है कि जीवन है बुद्ध
 शांति की स्थापना हो, न हो मन में युद्ध
 पहले योग करे हमें तनाव मुक्त
 फिर योग करे अंतर्मन को शुद्ध

 योग बनाए हमारी पहचान को
 सशक्त करता हमारे ये यशगान को
 पहले योग बनाता है जीवन सुखद
 फिर योग करे अंतर्मन को शुद्ध

 हर समस्या का एक मात्र समाधान है
 योग ही समृद्धि की सच्ची पहचान है
 योग के समक्ष है जीवन की निराशाएं तुच्छ
 यही अटल सत्य है कि योग करे अंतर्मन को शुद्ध

 योग ही कहलाता है सफलता का मंत्र
 योग से जागृत होता मानव का तंत्र
 पहले योग से चरित्र सद्गुणों से युक्त
 फिर योग करे अंतर्मन को शुद्ध...”

-मयंक विश्नोई

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आशा है कि इस ब्लॉग के माध्यम से आप Yoga Poem in Hindi (योग पर कविताएं) पढ़ पाए होंगे, योग पर कविताएं युवाओं को स्वस्थ जीवन जीने के लिए प्रेरित करने का प्रयास करेंगी। इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

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