विश्व कविता दिवस के लिए कविताएं

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विश्व कविता दिवस

विश्व कविता दिवस के अवसर पर आज का यह ब्लॉग कविताओं के सृजन की अमर गाथा आपके सामने सुनाएगा, एक ऐसी गाथा जिसके लिए जितने शब्द लिखे जाये उतने कम हैं। समाज में होने वाली उथल-पुथल हो, या युग परिवर्तन या कोई क्रांतिकारी बदलाव, परिस्थिति चाहे जो भी हो कवि और कविताओं ने हर परिस्थिति में अपनी अहम भूमिका निभाई है।

कविताओं को समाज का दर्पण (आईना) माना जाता है, एक ऐसा दर्पण जिसने समाज को सदैव वास्तविकता दिखाई है। सोये समाज की नींदों को तोड़कर कविताओं ने हमेशा समाज की चेतना को जागरूक करने का प्रयास किया है। फिर चाहे दौर किसी विदेशी आक्रमणकारी द्वारा जुल्मों का हो या किसी अपने की क्रूरता का, कविताओं ने लोगों को संगठित कर न्याय के लिए अन्याय का प्रतिकार करना सिखाया।

शीर्षक: कविताएं (समाज का दर्पण)

“समाज की चेतना को नींद से जगाती हैं कविताएं
लोकहित में सिंहासनों से भी टकराती हैं कविताएं
क्रूरता के गिरेबां को दोनों हाथों से पकड़ 
गुलामी की जंजीरों पर प्रहार करती हैं कविताएं 
भय को आँखों से निकाल फेंकती हैं
समाज का दर्पण निर्भयता से देखती हैं
आशाओं के दीपक जलाती हैं कविताएं  
निराशाओं को जड़ से मिटाती हैं कविताएं
छल-फरेब की कमर तोड़ती हैं
वीरों का न कभी साथ छोड़ती हैं
प्रेम को परिभाषित करती हैं कवियताएं
वीरता भरी गाथाएं गाती हैं कविताएं
पीड़ाओं में पलकर भी जीती हैं कविताएं
अमृत अमरता का सदैव पीती हैं कविताएं…”
 -मयंक विश्नोई

कहा जाता है कि संसार ही परिवर्तन का नियम हैं, संसार में परिवर्तन साकारात्मक होने के साथ-साथ नाकारात्मक भी होता है। कविताओं की यही भूमिका होती है कि साकारात्मक परिवर्तन का सम्मान करें और नाकारात्मक परिवर्तन का प्रतिकार करें।

क्रांति चाहे जो भी हुई हो या जिस देश में भी हुई हो, वहां के लोगों को जागरूक करने का काम कविताओं ने ही किया। कविताओं ने सदैव समाज को न्याय के प्रति प्रेरित किया। कविताएं एक ऐसी प्रेरणा होती हैं, जिनके शब्द युगों-युगों तक समाज को जीने का सही सलीका सिखाते हैं।

कुछ भारतीय कवियों की अमर कविताएं

कवियों की कलम से निकले शब्दों को संगठित करके समाज को जिन वाक्यों से सुशोभित किया जाता है, वही कविताएं कहलाती हैं।

मीराबाई 

विश्व कविता दिवस

रामधारी सिंह दिनकर

शीर्षक : परिचय 
“न देखे विश्व, पर मुझको घृणा से
मनुज हूँ, सृष्टि का श्रृंगार हूँ मैं
पुजारिन, धुलि से मुझको उठा ले
तुम्हारे देवता का हार हूँ मैं
बंधा तूफ़ान हूँ, चलना मना है
बँधी उद्याम निर्झर-धार हूँ मैं
कहूँ क्या कौन हूँ, क्या आग मेरी
बँधी है लेखनी, लाचार हूँ मैं…”
 -रामधारी सिंह दिनकर

विश्व कविता दिवस

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला 

शीर्षक : दीन 
“यहाँ कभी मत आना
उत्पीड़न का राज्य दुःख ही दुःख
यहाँ है सदा उठाना
क्रूर यहाँ पर कहलाता है शूर
और हृदय का शूर सदा ही दुर्बल क्रूर
स्वार्थ सदा ही रहता परार्थ से दूर
यहाँ परार्थ वही, जो रहे
स्वार्थ से हो भरपूर…”
-सूर्यकांत त्रिपाठी निराला 

विश्व कविता दिवस का इतिहास

विश्व कविता दिवस मनाए जाने के पीछे का इतिहास उतना ही सादगी से भरा है जितना कि किसी कवि का जीवन होता है। विश्व कविता दिवस की शुरुआत पेरिस से मानी जाती है हालाँकि हर देश ने अपने हर युग में कई महान कवियों को जन्म दिया है। विश्व कविता दिवस के दिन दुनियाभर के लोग कविताओं को पढ़कर और सराह कर कवियों का सम्मान करते हैं।

सर्वप्रथम 1999 में संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों ने कविता की भूमिका और कवियों के योगदान को सम्मानित करने पर विचार किया था। यूँ तो पहली बार कविता दिवस को अक्टूबर के महीने में मनाया गया था लेकिन फिर 21 मार्च के दिन को आधिकारिक तौर पर विश्व कविता दिवस के रूप में मान्यता मिल गयी।

आशा है कि आपको यह ब्लॉग जानकारी से भरपूर लगा होगा और इसके शब्द आपको प्रेरित करेंगे। इसी प्रकार के ब्लॉग पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट के साथ बनें रहें।

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