आज़ादी जिसकी पृष्ठभूमि में भारत को मिली एक ऐसी असनीय पीड़ा की कहानी है, जिसे विभाजन की विभीषका के रूप में जाना जाता है। यह एक ऐसा कहानी है जो माँ भारती की संतानों में आज़ादी से पहले हुए रक्तपात, मज़हब के नाम पर माँ की ममता के विभाजन को दर्शाती है। विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस एक ऐसा दिन है जो हमें उस दिन की याद दिलाता है, जब दूध में दरार पड़ गयी थी और मज़हब के नाम पर नरसंहार को अंजाम दिया गया था।
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस एक ऐसी कहानी है, जिसने लाखों लोगों को अपना घर छोड़कर दर-दर की ठोकरे खाने पर मजबूर किया। यह एक ऐसी कहानी है, जिसने वर्षों पुरानी सभ्यता के इतिहास और संरचना के ढांचें को तहस-नहस करके क्रूरताभरी कुछ यादें दी। विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस मनाने का मुख्य कारण भारतीय समाज में एकता और अखंडता की पवित्र अलख जगाना है, ताकि भविष्य में कभी भारत को ऐसी त्रासदी का सामना न करना पड़े।
“अखंड भारत को मिली आज़ादी पर कलंक समान है विभाजन की विभीषिका
मज़हब के नाम पर क्रूरता से हुआ नरसंहार है विभाजन की विभीषिका
इतिहास में लिखा काला अध्याय है विभाजन की विभीषिका
विजय की ख़ुशी में भी पराजय का पर्याय है विभाजन की विभीषिका…”
-मयंक विश्नोई
विभाजन की विभीषिका का संक्षिप्त इतिहास
भारत ने 200 साल तक जिस आज़ादी का सपना देखा, जिस आज़ादी के लिए लाखों भारतीय ने बलिदान दिया, जिस आज़ादी के लिए वीरों के रक्त से भूमि लाल रही, जिस आज़ादी के लिए भारत की पुण्यभूमि ने क्रूर अंग्रेजों से मिली सारी यातनाएं झेलीं। उस आज़ादी को टुकड़ों में मिलता देख, मज़हब के नाम पर होता नरसंहार और लोगों का पलायन देख, उन सभी बलिदानियों की आत्मा भी बहुत रोई होगी।
1947 में भारत ने आज़ादी तो पाई लेकिन यह आज़ादी अधूरी थी क्योंकि इस आज़ादी ने माँ का बंटवारा किया। भारत को विभाजन का वो गहरा दुःख और इससे मिलने वाली यातनाओं को सहना पड़ा। आज़ादी इतनी अधूरी थी कि आनन-फानन में लॉर्ड माउंटबेटेन ने भारत को बिना जाने और सोचे समझे बंटवारें की लकीर खींच डाली। इस विभाजन की विभीषका ने मानव के भीतर से मानवता का अंत कर दिया, इतिहास के इस काले अध्याय को क्रूरता के आँगन में प्रताड़ित मानवता के प्रमाण के रूप में देखा जाता है।
इस भौगोलिक बंटवारे ने भारत के लोगों को सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व मानसिक रूप से तोड़कर रख दिया था। जिसमें करीब 60 लाख गैर-मुस्लिम लोगों ने वो स्थान छोड़ दिया था, जो बाद में पाकिस्तान बन गया था। ठीक उसी प्रकार करीब 65 लाख मुस्लिम लोगों ने भारत छोड़कर पाकिस्तान को चुना। इसी बीच भीषण नरसंहार हुए, पाकिस्तान से गैर-मुसलमानों के साथ इस सीमा तक प्रताड़ना की गई कि लोग पलायन को मजबूर हुए।
विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस
विभाजन मानव इतिहास की एक ऐसी त्रासदी रही, जिसमें मरने वालों की संख्या लगभग 5 से 10 लाख रही है, विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस को मनाये जाने के पीछे मुख्य कारण यह है कि भारत की युवा पीढ़ी, आज़ादी के तोहफे के रूप में मिले विभाजन को जान और पहचान सके। विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस के माध्यम से उन सभी बलिदानियों को श्रद्धा सुमन अर्पित किए जाते हैं, जिन्होंने विभाजन में असंख्य बलिदान किए। विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस को मनाने से भेदभाव, मनमुटाव, दुर्भावना को खत्म कर एकता का विस्तार, सामाजिक सद्भाव की भावना को बढ़ाया जा सकता है।
कैसे मनाएं विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस
आज की युवा पीढ़ी का विभाजन से बने इस काले इतिहास के बारे में जान लेना अति आवश्यक है, ताकि आज की पीढ़ी इस आज़ादी की सही कीमत समझ पाए। भारत के जिम्मेदार नागरिक के रूप में आप विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस को निम्नलिखित माध्यमों से मना सकते हैं-
- ब्लॉग अथवा डिस्ट्रिक्ट लेवल पर तिरंगा यात्रा निकालकर।
- अपनी कला अथवा कलम के माध्यम से विभाजन पर लेख लिखकर।
- विभाजन की विभीषिका पर पोस्टर बनाकर।
- विभाजन की विभीषिका पर नुक्कड़ नाटक आदि के माध्यम से।
- विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस पर लगी प्रदर्शनियों और इस पर आयोजित प्रतियोगताओं में प्रतिभाग कर के, इत्यादि।
आशा है कि विभाजन विभीषिका स्मृति दिवस का यह ब्लॉग आपको इतिहास के उस काले अध्याय से परिचित कराएगा, जिसको जानकर आप आज़ादी की एहमियत को समझ पाएंगे। ऐसे ही ट्रेंडिंग इवेंट से जुड़े ऐसे ही अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।