संविधान की प्रस्तावना- हम भारत के लोग…यहां देखें विस्तार से

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संविधान की प्रस्तावना

भारत के संविधान की प्रस्तावना से तात्पर्य संविधान के सार से है। 22 जनवरी 1947 में संविधान की प्रस्तावना को अपनाया गया था और संविधान के अन्य टाॅपिक्स की तरह स्टूडेंट्स के लिए संविधान की प्रस्तावना काफी महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसके बारे में UPSC के एग्जाम के अलावा अन्य परीक्षाओं में भी पूछा जाता है। इसलिए इस ब्लाॅग में हम संविधान की प्रस्तावना क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण है आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे।

संविधान के बारे में

भारत का संविधान भारत के शासन के लिए रूपरेखा है और सरकारी संस्थानों की संरचना, शक्तियों को स्थापित करता है। भारतीय संविधान को 26 नवंबर 1949 को अपनाया गया था और यह 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ था। भारत का संविधान दुनिया में सबसे लंबे लिखित संविधान के रूप में जाना जाता है। इसका पेनिंग स्टेटमेंट संविधान के आदर्शों और उद्देश्यों, जैसे न्याय, स्वतंत्रता, समानता को रेखांकित करता है।

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संविधान की प्रस्तावना क्या है?

संविधान की प्रस्तावना- हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न, समाजवादी , पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए और उसके समस्त नागरिकों को: सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, श्रद्धा और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता, प्राप्त कराने के लिए और उन सब में, व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित कराने वाली, बंधुता बढ़ाने के लिए, दृढ़ संकल्पित होकर अपनी संविधानसभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हजार छह विक्रमी) को एतद् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

Preamble to the Constitution of India in Hindi

संविधान की प्रस्तावना का इतिहास क्या है?

संविधान की प्रस्तावना को भारतीय संविधान की आत्मा कहा जाता है। यह संविधान का एक अभिन्न अंग है और 1946 में जवाहरलाल नेहरू द्वारा संवैधानिक संरचना का वर्णन करते हुए उद्देश्य प्रस्ताव पेश किया गया था। 22 जनवरी 1947 को इस प्रस्तावना को अपनाया गया। इसने भारत के संविधान को आकार दिया है। यह प्रस्तावना संविधान के उद्देश्यों को बताती हैं।

संविधान की प्रस्तावना क्यों महत्वपूर्ण है?

यह प्रस्तावना भारत के संविधान और भारत के लोगों के लिए महत्वपूर्ण है। इसमें स्वतंत्र राष्ट्र, लोकतांत्रिक समाजवाद (निजी क्षेत्र और सरकारी क्षेत्र एक साथ काम कर सकते हैं), धर्मनिरपेक्षता, लोकतंत्र, न्याय, स्वतंत्रता, समानता, देश की एकता और अखंडता के साथ-साथ भाईचारे की बात कही गई है। प्रस्तावना के महत्व पर सर्वोच्च न्यायालय (सुप्रीम कोर्ट) द्वारा भी कई बार चर्चा की गई है।

प्रस्तावना के मुख्य शब्द

प्रस्तावना में मुख्य शब्द और उनके अर्थ इस प्रकार हैंः

सार्वभौमइस शब्द का अर्थ है कि भारत एक स्वतंत्र राज्य है और इसके ऊपर किसी अन्य का कोई अधिकार नहीं है।
समाजवादीइस शब्द को शब्द संविधान की प्रस्तावना में 42वें संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा जोड़ा गया था और इसका अर्थ है कि यह लोकतांत्रिक समाजवाद का अनुसरण करता है।
धर्मनिरपेक्षधर्मनिरपेक्ष शब्द को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा जोड़ा गया था। इससे देश के सभी धर्मों को राज्य से समान दर्जा और समर्थन मिलता है।
लोकतांत्रिकलोकतंत्र में देश के लोगों के पास सर्वोच्च शक्ति होती है।
गणतंत्रगणतंत्र शब्द भेदभाव को रोकता है और यह गणराज्य के रूप में भारत की पहचान को दर्शाता है।
न्यायन्याय शब्द का अर्थ है कि सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक रूप से न्याय की मांग की जाती है।
स्वतंत्रताभारतीय संविधान की प्रस्तावना में स्वतंत्रता शब्द- विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है।
समानताभारत के नागरिकों को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक दृष्टि से स्थिति और अवसर की समानता देना।
बिरादरी-बंधुत्वराष्ट्र की एकता को सुरक्षित करने के लिए भाईचारे या बंधुत्व शब्द को दर्शाया गया है।

संविधान की प्रस्तावना का संशोधन

प्रस्तावना में संशोधन को भी महत्वपूर्ण माना गया। बता दें कि 42वां संशोधन अधिनियम, 1976 केशवानंद भारती मामले के फैसले के बाद यह स्वीकार किया गया कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है। संविधान के एक भाग के रूप में संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत प्रस्तावना में संशोधन किया जा सकता है, लेकिन प्रस्तावना की मूल संरचना में संशोधन नहीं किया जा सकता है। 

अब तक 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से प्रस्तावना में केवल एक बार संशोधन किया गया है। 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 के माध्यम से प्रस्तावना में ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ शब्द जोड़े गए हैं। ‘संप्रभु’ और ‘लोकतांत्रिक’ के बीच ‘समाजवादी’ और ‘धर्मनिरपेक्ष’ जोड़ा गया। ‘राष्ट्र की एकता’ को ‘राष्ट्र की एकता और अखंडता’ में बदल दिया गया है।

भारतीय संविधान की प्रस्तावना के बारे में रोचक तथ्य

भारतीय संविधान की प्रस्तावना के बारे में रोचक तथ्य इस प्रकार हैंः

  • संविधान की प्रस्तावना को भारत के संपूर्ण संविधान के लागू होने के बाद अधिनियमित किया गया था।
  • ‘धर्मनिरपेक्ष‘ शब्द को 42वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा भारतीय संविधान की प्रस्तावना में जोड़ा गया था।
  • प्रस्तावना भारत के सभी नागरिकों को विश्वास, विश्वास और पूजा की स्वतंत्रता प्रदान करती है।
  • प्रस्तावना में न्याय का आदर्श (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक) सोवियत संघ (रूस) के संविधान से लिया गया है।
  • गणतंत्र और स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के आदर्श फ्रांसीसी संविधान से उधार लिए गए हैं।
  • प्रस्तावना पहली बार अमेरिकी संविधान के माध्यम से पेश की गई थी।

संविधान की प्रस्तावना PDF

lddashboard.legislative.gov.in के अनुसार संविधान की प्रस्तावना PDF यहां दी जा रही हैः

FAQs

क्या प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है?

प्रस्तावना संविधान का एक हिस्सा है। 

प्रस्तावना का स्रोत क्या है?

प्रस्तावना संविधान की पृष्ठभूमि के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू द्वारा दिए गए उद्देश्य प्रस्ताव का रिजल्ट है। 

भारतीय संविधान का जनक कौन है?

डॉ. भीमराव अंबेडकर।

प्रस्तावना का अर्थ क्या है?

भारत के संविधान की प्रस्तावना से तात्पर्य संविधान के सार से है। 22 जनवरी 1947 में संविधान की प्रस्तावना को अपनाया गया था।

आशा है कि इस ब्लाॅग में आपको संविधान की प्रस्तावना के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। एग्जाम की तैयारी और बेहतर करने व UPSC में पूछे जाने वाले क्वैश्चंस के बारे में अधिक जानकारी के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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