समान नागरिक संहिता: उद्देश्य, इतिहास और महत्व

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समान नागरिक संहिता

भारत विविधताओं से भरा हुआ ऐसा देश है जहां अनेक धर्म, पंथ, जातियां, भाषाएं और सांस्कृतिक परंपराएं एक साथ सामाजिक सद्भावना के साथ निवास करती हैं। इस सांस्कृतिक बहुलता के बीच संविधान सभी को एक समानता का आधार प्रदान करता है, जिसके कारण हर नागरिक को सम्मान पूर्ण जीवन जीने का अवसर मिलता है। समानता के सिद्धांत का परिचय देता ‘समान नागरिक संहिता’ भी है, जिसे अंग्रेजी में यूनिफाॅर्म सिविल कोड (UCC) कहा जाता है और ये भारत के संविधान के अनुच्छेद 44 के अंतर्गत उल्लेखित है। UPSC जैसी कई प्रतियोगी परीक्षाओं में इससे संबंधित कई प्रश्नों को पूछा जाता है। इस लेख में समान नागरिक संहिता की जानकारी दी गई है।

समान नागरिक संहिता क्या है?

समान नागरिक संहिता का मतलब है कि किसी भी धर्म, जाति, संप्रदाय और वर्ग के लिए पूरे देश में एक ही नियम और कानून लागू हो। देश के हर हिस्से में एक समान कानून की व्यवस्था को ही समान नागरिक संहिता कहा जा सकता है, जिसके तहत सभी धार्मिक समुदायों के लिए विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के नियम एक जैसे होंगे।

समान नागरिक संहिता का उद्देश्य

समान नागरिक संहिता (UCC) का उद्देश्य देश में एक ऐसा समान नागरिक कानून लागू करना है, जो धर्म, जाति या लिंग की परवाह किए बिना सभी नागरिकों पर समान रूप से लागू हो। UCC का मुख्य लक्ष्य सभी नागरिकों को समान अधिकार, समान उत्तरदायित्व और एक न्यायसंगत कानूनी प्रक्रिया प्रदान करना है।

समान नागरिक संहिता का इतिहास

UCC के इतिहास पर प्रकाश डाला जाए तो आप जानेंगे कि मूल अधिकारों पर बनी एक उप-समिति ने UCC के मसौदे को शामिल किया था। इस उप-समिति में बी. आर. अंबेडकर, के. एम. मुंशी, मीनू मसानी, हंसा मेहता, अमृत कौर और अल्लादी कृष्णास्वामी अय्यर जैसे कानूनों के जानकार शामिल थे। सर्वप्रथम इसे डॉ बी. आर. अंबेडकर द्वारा अनुच्छेद 35 के मसौदे में शामिल किया गया था, जिसे बाद में अनुच्छेद 44 में बदल दिया गया।

संविधान सभा की बहसों में समान नागरिक संहिता को लेकर व्यापक चर्चा हुई, जिसमें इस सभा के प्रमुख सदस्य डॉ. भीमराव अंबेडकर ने स्पष्ट रूप से इसका मुखरता से समर्थन किया। अपने समर्थन देने के साथ-साथ उन्होंने इस पर यह तर्क दिया कि देश को एक मजबूत, आधुनिक और न्यायसंगत समाज बनाने के लिए पर्सनल लॉ के कारण उत्पन्न असमानताओं को समाप्त करना आवश्यक है।

हालांकि, उस समय के कई सदस्यों ने धार्मिक स्वतंत्रता और अल्पसंख्यकों की भावनाओं का हवाला देते हुए इस पर आपत्ति जताई। परिणामस्वरूप, इसे मौलिक अधिकारों की श्रेणी में न रखकर अनुच्छेद 44 के तहत नीति निर्देशक तत्वों में रखा गया। भारत सरकार के विधि आयोग ने समय-समय पर इस पर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करके इसमें बदलाव की मांग की, जिससे कई बार देश में इस विषय पर सार्थक चर्चाओं ने जन्म लिया।

वर्ष 2023 में शुरू की गई नई पहल के तहत केंद्र सरकार ने समान नागरिक संहिता को लागू करने के लिए विधि आयोग और जनता से अपने सुझाव और राय मांगी। यह प्रक्रिया जून 2023 में शुरू की गई थी और इस पर लाखों नागरिकों ने अपने सुझाव भेजे। इसके बाद विभिन्न संदर्भों में इस मुद्दे पर व्यापक चर्चा हुई।

परिणामस्वरूप उत्तराखंड सरकार ने वर्ष 2024 में समान नागरिक संहिता विधेयक पारित किया। इस विधेयक के अंतर्गत सभी नागरिकों के लिए एक समान विवाह और तलाक कानून की पैरवी की गई, साथ ही इसमें विवाह की न्यूनतम आयु समान रूप से निर्धारित की गई। इसके साथ ही इसमें बहुविवाह पर प्रतिबंध, लिव-इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता और पंजीकरण को आवश्यक कर दिया गया।

समान नागरिक संहिता का महत्व

यहां दिए गए निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से आप समान नागरिक संहिता के महत्व को जान सकेंगे –

  1. UCC लागू होने से भारत के सभी नागरिकों के लिए समान अधिकार सुनिश्चित किए जा सकेंगे, जो समानता की भावना को जन्म देंगे।
  2. अलग-अलग धार्मिक कानूनों के स्थान पर एकसमान कानून लागू होने से न्याय प्रणाली में पारदर्शिता और सरलता आएगी, जिससे भारत के न्यायिक सुधार में परिवर्तन आएगा।
  3. महिलाओं को विशेष रूप से कुछ धार्मिक कानूनों में भेदभाव का सामना करना पड़ता है। इसके तहत महिलाओं को बराबरी का अधिकार मिलेगा, जिससे लैंगिक न्याय को भी बढ़ावा मिलेगा।
  4. एक समान कानून सामाजिक एकता को मजबूती देता है और इससे राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप को बढ़ावा मिलता है।

समान नागरिक संहिता से क्या आएँगे बदलाव?

UCC से जुड़े बदलाव नीचे दिए गए बिंदुओं में समझाए गए हैं:-

  • लैंगिक समानता को बढ़ावा मिलेगा।
  • सभी समुदाय के लोगों को एक समान अधिकार दिए जाएंगे।
  • समान नागरिक सहिंता लागू होने से महिलाओं की स्थिति में सुधार होगा।
  • बहुविवाह पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी।
  • गांव के स्तर पर शादी के रजिस्ट्रेशन की सुविधा होगी। 
  • लिव-इन रिलेशन का डिक्लेरेशन देना होगा।
  • लड़कियों की शादी की उम्र बढ़ाई जाएगी।
  • जनसंख्या नियंत्रण पर भी बात की जाएगी।
  • पति-पत्नी दोनों को तलाक के समान आधार और अधिकार उपलब्ध होंगे।
  • बच्चों के अनाथ होने पर गार्जियनशिप का प्रोसेस आसान होगा।

गोवा में पहले से ही लागू है UCC

भारत के राज्यों में, गोवा वह राज्य है जहां यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) पहले से ही लागू है। गोवा में आज भी पुर्तगाली नागरिक संहिता, 1867 का संशोधित रूप लागू है, जिसके कारण सभी धर्मों और समुदायों के लिए एक समान फैमिली लॉ का पालन किया जाता है।

FAQs

भारत के कितने राज्यों में समान नागरिक संहिता लागू है?

गोवा और उत्तराखंड ऐसे राज्य हैं जहां समान नागरिक संहिता (UCC) लागू है।

समान नागरिक संहिता क्या है?

UCC का मतलब है कि किसी भी धर्म, जाति, संप्रदाय और वर्ग के लिए पूरे देश में एक ही नियम लागू होगा। 

यूसीसी लागू करने वाला पहला राज्य कौन सा है?

भारत की स्वतंत्रता के बाद UCC लागू करने वाला उत्तराखंड पहला राज्य है।

समान नागरिक संहिता के नुकसान क्या हैं?

UCC से धार्मिक स्वतंत्रता प्रभावित हो सकती है, अल्पसंख्यकों व जनजातीय समुदायों की पहचान पर खतरा बढ़ सकता है और इसे लागू करना देश की विविधता के कारण मुश्किल हो सकता है।

इस लेख में आपको समान नागरिक संहिता की सभी आवश्यक जानकारी मिल गई होगी। ऐसे ही UPSC से संबंधित अन्य लेख पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।  

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