संत रविदास जयंती : पढ़िए संत रविदास जी के दोहे अर्थ सहित, चौपाई, अनमोल विचार

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संत रविदास जी के दोहे

संत रविदास जयंती पर युवाओं को संत रविदास जी के दोहे और संत रविदास जी की चौपाई पढ़ने का अवसर प्राप्त होगा। संत रविदास जी के दोहे व संत रविदास जी की चौपाई युवाओं को खुलकर जीवन जीने के लिए प्रेरित करेंगे। भारत एक ऐसा राष्ट्र है जो आदि काल से संतों, गुरुओं, तपस्वियों की तपस्थली रहा है। भारतीय सनातन धर्म के ज्ञान का प्रकाश भारतीय संतों द्वारा विश्व के हर कोने में फैलाया गया, इसी ज्ञान के कारण मानव ने मानवता की शिक्षा को प्राप्त किया है। भारत के ऐसे ही शिरोमणि संतों में से एक संत रविदास जी का भी नाम आता है, जिनके दोहे और चौपाई आपका मार्गदर्शन करेंगे। संत रविदास जी के दोहे, चौपाई और संत रविदास जी के अनमोल विचार पढ़ने के लिए ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़ें।

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संत रविदास जी के दोहे

संत रविदास जी के दोहे मानव को ज्ञान के सद्मार्ग की ओर ले जाने का कार्य करते हैं। संत रविदास जी के दोहे कुछ इस प्रकार हैं;

रविदास’ जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच,
नर कूँ नीच करि डारि है, ओछे करम की कीच।।

भावार्थ: इस दोहे के माध्यम से संत रविदास जी कहते हैं कि केवल जन्म लेने मात्र से कोई नीच नही बन जाता है बल्कि इंसान के कर्म ही उसे नीच बनाते हैं।


जाति-जाति में जाति हैं, जो केतन के पात,
रैदास मनुष ना जुड़ सके जब तक जाति न जात।।

भावार्थ: इस दोहे के माध्यम से संत रविदास जी समाज को बताते हैं कि जिस प्रकार केले के तने को छिला जाए तो पत्ते के नीचे पत्ता फिर पत्ते के नीचे पत्ता और अंत में कुछ नही निकलता है और पूरा पेड़ खत्म हो जाता है। ठीक उसी प्रकार इंसान भी जातियों में बांट दिया गया है इन जातियों के विभाजन से इन्सान तो अलग-अलग बंट जाता है और अंत में इंसान भी खत्म हो जाते हैं। लेकिन यह जाति खत्म नही होती है इसलिए रविदास जी कहते है जब तक ये जाति खत्म नही होगा, तब तक इन्सान एक दूसरे से जुड़ नही सकता है या एक नही हो सकता है।


हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।।

भावार्थ: इस दोहे में संत रविदास बताते हैं कि हीरे से बहुमूल्य हरि यानि भगवान हैं, उनको छोड़कर अन्य चीजो की आशा करने वालों को अवश्य ही नर्क जाना पड़ता है। संत रविदास जी के वचनों के अनुसार प्रभु की भक्ति को छोडकर इधर-उधर भटकना व्यर्थ है।


करम बंधन में बन्ध रहियो, फल की ना तज्जियो आस
कर्म मानुष का धर्म है, सत् भाखै रविदास।।

भावार्थ: इसका दोहे का अर्थ है कि हमे हमेशा अपने कर्म में लगे रहना चाहिए। संत रविदास जी कहते हैं कि हमें अपने कर्मों के साथ-साथ, इसके बदले मिलने वाले फल की आशा भी नही छोडनी चाहिए। संत रविदास इस दोहे के माध्यम से बताते हैं कि कर्म करना हमारा धर्म है तो फल पाना भी हमारा सौभाग्य है।


कृस्न, करीम, राम, हरि, राघव, जब लग एक न पेखा
वेद कतेब कुरान, पुरानन, सहज एक नहिं देखा।।

भावार्थ: इस दोहे का भावार्थ है कि राम, कृष्ण, हरी, ईश्वर, करीम, राघव सब एक ही परमेश्वर के अलग अलग नाम है। संत रविदास समाज को बताते हैं कि वेद, कुरान, पुराण आदि सभी ग्रंथो में एक ही ईश्वर का गुणगान किया गया है, और सभी ईश्वर की भक्ति के लिए सदाचार का पाठ सिखाते हैं।


रैदास प्रेम नहिं छिप सकई, लाख छिपाए कोय। 
प्रेम न मुख खोलै कभऊँ, नैन देत हैं रोय॥ 

भावार्थ: इस दोहे का भावार्थ है कि प्रेम कोशिश करने पर भी छिप नहीं पाता, वह प्रकट हो ही जाता है। प्रेम का बखान वाणी द्वारा नहीं हो सकता। प्रेम को तो आँखों से निकले हुए आँसू ही व्यक्त करते हैं।

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रविदास जी की चौपाई

संत रविदास जी की चौपाई पढ़कर विद्यार्थियों का परिचय जीवन के वास्तविक ज्ञान से होगा, जिसके लिए उन्हें यह ब्लॉग अवश्य पढ़ना चाहिए। संत रविदास जी की चौपाई कुछ इस प्रकार हैं;

चौपाई 1:

मन चंगा तो कठौती में गंगा,
जो मन मैला तो गंगा मैला।।
जाति-पाँति पूछे नहिं कोई,
हरि को भजे सोई गोसाई।।

चौपाई 2:

कबीर कहै सुनिऐ भाई साधो,
जहाँ जहाँ नाम हरि का बसत हैं।।
तेहि तीर्थ हमहिं जाइए,
जहाँ हरि भक्त निवास करत हैं।।

चौपाई 3:

प्रभु जी तुम चन्दन हम पानी,
रंग रंगीला रंग हमारा।।
ज्यों ज्यों तुम रंगो चन्दन पानी,
त्यों त्यों हम रंगत भारी।।

चौपाई 4:

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई,
जो चाहे सोई मांगे, दे दे मुख से बोली।।

चौपाई 5:

नारी तू नर के ऊपर है,
जैसे नदी ऊपर धरती।।
नारी के बिना नर अधूरा,
जैसे सृष्टि के बिना परमेश्वर।।

चौपाई 6:

जो तो पापी है तो मैं भी पापी,
जो तो सच्चा है तो मैं भी सच्चा।।
तेरे दर पे सब आए हैं,
कोई बड़ा नहीं, कोई छोटा नहीं।।

चौपाई 7:

जैसे सपने में सुख होता है,
जैसे सपने में दुःख होता है।।
वैसे ही यह संसार है,
एक सपने के समान।।

चौपाई 8:

जैसे दीपक जलता है,
और अंधेरा दूर होता है।।
वैसे ही नाम जपने से,
मन का अंधेरा दूर होता है।।

चौपाई 9:

जैसे नदी बहती है,
और समुद्र में मिल जाती है।।
वैसे ही आत्मा भी,
परमात्मा में मिल जाती है।।

चौपाई 10:

जैसे सूरज चमकता है,
और अंधेरा दूर होता है।।
वैसे ही प्रेम के प्रकाश से,
दुःख दूर होता है।।

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संत रविदास जी के अनमोल विचार

संत रविदास जी के के अनमोल विचार समाज में सामाजिक सद्भावना बढ़ाने का कार्य करते हैं। संत रविदास जी के अनमोल विचार कुछ इस प्रकार हैं;

  • मन चंगा तो कठौती में गंगा।
  • जन्म जात मत पूछिए, का जात और पात। रैदास पूत सम प्रभु के कोई नहिं जात-कुजात।।
  • ऐसा चाहूं राज मैं, जहां मिले सबन को अन्न। छोट बड़ो सब सम बसे, रविदास रहे प्रसन्न।।
  • ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन, पूजिए चरण चंडाल के जो होवे गुण प्रवीन।।
  • माता पिता गुरुदेव, तीन देव लोक माही। इनकी सेवा कर लेवो, हरि को भजो रज खाही।।
  • संत भाखै रविदास, प्रेम काज सदा निराला। प्रेम ही राम, प्रेम ही रहीम, प्रेम ही सब सारा।।
  • जहां पर प्रेम न होय, वहां पर नरक समीप। जहां पर प्रेम रहे, वहां बैकुंठ लोक सदीप।।

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आशा है कि आपको इस ब्लॉग के माध्यम से संत रविदास जी के दोहे, संत रविदास जी की चौपाई और संत रविदास जी के अनमोल विचार पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ होगा। आशा करते हैं कि यह ब्लॉग आपको इंफॉर्मेटिव लगा होगा, इसी प्रकार के अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ जुड़े रहें।

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