Milkha Singh Essay : ‘फ्लाइंग सिख’…मिल्खा सिंह पर इस तरह लिखें निबंध

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Milkha Singh Essay in Hindi : मिल्खा सिंह को द फ़्लाइंग सिख भी कहा जता है। मिल्खा सिंह भारतीय ट्रैक और फ़ील्ड रनर थे। भारतीय खेल इतिहास में मिल्खा सिंह का बड़ा योगदान है। हम सभी लोगों के लिए मिल्खा सिंह संघर्ष और जस्सबे की एक अनूठी मिसाल है। उन्होंने भारत-पाक बँटवारे के समय कठिन परिस्थितियों का सामना करने के बावजूद उनकी सफलता कई लोगों को प्रेरणा देती है। कई बार छात्रों को मिल्खा सिंह पर निबंध लिखने के लिए दिया जाता है। Milkha Singh Essay in Hindi के बारे में जानने के लिए इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें। 

मिल्खा सिंह पर 100 शब्दों में निबंध

मिल्खा सिंह पर 100 शब्दों में निबंध (Milkha Singh Essay in Hindi) इस प्रकार है-

मिल्खा सिंह का जन्म 17 अक्टूबर 1935 में हुआ था। मिल्खा सिंह एक भारतीय ट्रैक-एंड-फील्ड एथलीट थे। मिल्खा सिंह 1960 के रोम ओलंपिक 400 मीटर की दौड़ चौथे स्थान पर आए थे उस समय वे ओलंपिक एथलेटिक्स स्पर्धा के फाइनल में पहुँचने वाले पहले भारतीय व्यक्ति थे। भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय वर्ष 1947 में माता-पिता की हत्या के बाद वे भारत आ गए थे। शुरुआत में उन्होंने रेस्तरां में काम किया था इसके बाद भारतीय सेना में शामिल हो गए थे। सेना में जाकर उन्होंने अपनी धावक क्षमताओं की पहचान की। मिल्खा सिंह ने 200 और 400 मीटर की दौड़ में भारत में ट्रायल जितने के बाद 1956 के मेलबर्न ओलंपिक में वे प्रारंभिक हिट के समय बाहर हो गए थे। मिल्खा सिंह ने अपने जीवन में कई स्वर्ण पदक जीते हैं। वर्ष 1959 में मिल्खा सिंह को में पद्म श्री  से सम्मानित किया गया था। मिल्खा सिंह ने 18 जून 2021 को अपनी अंतिम सांस ली। 

मिल्खा सिंह पर 200 शब्दों में निबंध

मिल्खा सिंह पर 200 शब्दों में निबंध (Milkha Singh Essay in Hindi) इस प्रकार है-

मिल्खा सिंह आजादी के बाद भारत देश के सबसे महान एथलीटों में से एक हैं। अपने समय में मिल्खा सिंह एथलेटिक्स के क्षेत्र में स्वर्ण पदक जीतने वाले एकमात्र भारतीय पुरुष एथलीट थे। मिल्खा सिंह ने 1960 में 400 मीटर फाइनल ओलंपिक खेल में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन दिया था जिसके लिए उन्हें जाना जाता है। उसी के बाद उन्हें द फ़्लाइंग सिंह के नाम से भी जाना जाने लगा था। मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 वर्तमान पाकिस्तान में था। मिल्खा सिंह के माता पिता को भारत पाकिस्तान विभाजन के समय उनकी आंखों के सामने मार दिया गया था। उन्होंने उस समय बहुत ही कठिन समय देखा था। महज बारह वर्ष की उम्र में वे पाकिस्तान से भागकर भारत आ गए थे। 

भारत आकर कड़ी मेहनत करने के बाद वे भारतीय सेना में शामिल हो गए जिसके बाद उन्होंने अपनी एथेलेटिक्स का करियर शुरू किया। वर्ष 1955 में 200 मीटर की दौड़ और 400 मीटर की दौड़ में सर्विस मीट में दूसरे स्थान पर थे। वर्ष 1960 में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर में 46.2 सेकंड में पूरा किया था, उनके इस प्रदर्शन को आज भी सराह जाता है। वर्ष 1956 के मेलबर्न ओलंपिक में मिल्खा सिंह में भारत देश का प्रतिनिधित्व किया था। मिल्खा सिंह की विरासत आज भी लोगों के बीच जीवित है। 

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मिल्खा सिंह पर 500 शब्दों में निबंध

Milkha Singh Essay in Hindi 500 शब्दों में इस प्रकार है:

प्रस्तावना 

मिल्खा सिंह भारत के महान एथलीट में से हैं। उन्होंने पूरी दुनिया में अपना नाम किया था। मिल्खा सिंह दौड़ने की अपनी असाधारण प्रतिभा के धनी थे। मिल्खा सिंह हमारे लिए संघर्ष और जज्बे की अनूठी मिसाल है। उन्होंने भारत पाकिस्तान विभाजन के समय कई कठिन परिस्थितियों का सामना किया था उसके बाद भी हार नहीं मानी और बुलंदियों को छुआ। 18 जून 2021 को कोरोना महामारी से पीड़ित रहने के बाद मिल्खा सिंह इस दुनिया को सदा के लिए अलविदा कह गए। उनकी विरासत आज भी लोगों के बीच जीवित है। 

मिल्खा सिंह की जीवनी और निजी जीवन

मिल्खा सिंह का जन्म 20 नवंबर 1929 को उस समय के पाकिस्तान के गोविंदपुरा में हुआ था। यह जगह वर्तमान में मुजफ्फरगढ़ जिला है जोकि पाकिस्तान में स्थित है। बचपन से ही मिल्खा सिंह में एक अच्छे धावक के गुण थे। वे बचपन में अपने स्कूल से आने-जाने के लिए रोज़ 10 किलोमीटर चलते थे। भारत पाकिस्तान के समय मिल्खा सिंह के माता पिता की हत्या हो गई थी उसके बाद मिल्खा सिंह भारत आ गए। साल 1952 में 23 वर्ष की आयु में मिल्खा सिंह भारतीय सेना में एक युवा सिपाही के रूप में भर्ती हो गए। जब वह भारतीय सेना में शामिल हुए, तब उनके शिक्षकों ने पहचाना कि वह एक अच्छे धावक हैं। उन्होंने अपने शिक्षक के वादे के अनुसार सिर्फ़ एक गिलास दूध के लिए छह मील की दौड़ लगाई। वर्ष 1962 में उन्होंने निर्मल सैनी से विवाह किया। वे एक पूर्व भारतीय महिला वॉलीबॉल खिलाड़ी और टीम की कप्तान रह चुकी थीं। जीव मिल्खा सिंह राठौर, प्रसिद्ध भारतीय पेशेवर गोल्फ़र, मिल्खा सिंह के बेटे हैं और उन्होंने कई चैंपियनशिप और टूर्नामेंट जीते हैं। उनकी पत्नी निर्मल सैनी से उनकी 3 बेटियाँ और एक बेटा है।

मिल्खा सिंह उपलब्धियां और रिकॉर्ड

मिल्खा सिंह एक महान भारतीय धावक थे। उन्होंने अपने जीवन में उपलब्धियां और रिकॉर्ड बनाए हैं। मिल्खा सिंह ने अपने करियर की शुरुआत में वर्ष 1958 एशियन गेम्स में 200 मीटर और 400 मीटर और 440 यार्ड्स की दौड़ में 3 गोल्ड मेडल जीते थे। वर्ष 1962 में एशियन गेम्स में 400 मीटर और 4×400 मीटर रिले में 2 गोल्ड जीते थे। वर्ष 1964 में कोलकाता नेशनल गेम्स में मिल्खा सिंह ने 400 मीटर की दौड़ में सिल्वर मेडल जीता था। वर्ष 1959 में मिल्खा सिंह को भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कारों में से एक पद्मश्री से सम्मानित किया गया था।

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मिल्खा सिंह का एथलेटिक्स के बाद का सफर और जीवन

मिल्खा सिंह का बचपन भारत के विभाजन से बहुत अधिक प्रभावित था। इसी वजह से उनके निजी जीवन में कई उतार-चढ़ाव थे। वर्ष 1960 में भारत-पाकिस्तान खेल प्रतियोगिता के दौरान उन्हें आमंत्रित किया गया। उस समय के भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने मिल्खा सिंह को भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए कहा था। इस प्रतियोगिता में मिल्खा सिंह ने पाकिस्तान के सबसे तेज़ धावक अब्दुल खालिक ने चुनौती दी थी। मिल्खा ने अब्दुल खालिक को हराकर भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता। तब के पाकिस्तान के जनरल अयूब खान ने उन्हें फ्लाइंग सिख ऑफ इंडिया नाम दिया था। 

वर्ष 1958 के एशियाई खेलों में मिल्खा सिंह की उपलब्धियों ने उन्हें सिपाही से जूनियर कमीशन अधिकारी के पद पर पदोन्नत भी किया गया। इसके बाद वे पंजाब के शिक्षा मंत्रालय की मदद करने के लिए खेल निदेशक बन गए। मिल्खा सिंह की आत्मकथा का नाम द रेस ऑफ़ माई लाइफ़ है। इस आत्मकथा में उनकी बेटी सोनिया संवलका ने सह लेखिका के रूप में उनकी मदद की थी। वर्ष 2003 में उन्होंने वंचित एथलीटों की मदद के लिए मिल्खा सिंह चैरिटेबल ट्रस्ट की स्थापना भी की थी। 2013 में राकेश ओमप्रकाश मेहरा द्वारा निर्देशित भाग मिल्खा भाग नामक एक जीवनी पर आधारित फिल्म बनाई गई थी, जिसमें फरहान अख्तर और सोनम कपूर ने मुख्य भूमिका निभाई थी। 18 जून 2021 में COVID-19 के कारण निमोनिया के कारण उनकी मृत्यु हो गई।

उपसंहार 

साल 2013 में अपने जीवन पर आधारित एक पुस्तक ‘द रेस ऑफ माइ लाइफ’ लिखी थी। इस पुस्तक पर साल 2014 में ‘भाग मिल्खा भाग’ के नाम से एक फिल्म भी बन चुकी है। लोगों के द्वारा इस फ़िल्म को काफी सरहाया गया। वह ओलम्पिक रिकॉर्ड बनाने वाले अकेले भारतीय धावक हैं । उनके बेटे जीव मिल्खा सिंह ने उनके बारे में सच ही कहा है- “मिल्खा सिंह कई पीढ़ियों में एक बार ही पैदा होता है।” अब वो हमरे बीच में नही रहे है लेकिन वो अपनी ऐसी वे छोड़ गए है जिससे हर किसी के दिल में सदैव जीवित रहेगें भारत को अपने इस अभूतपूर्व धावक पर सदा गर्व रहेगा ।

मिल्खा सिंह पर 10 लाइन्स 

मिल्खा सिंह पर 10 लाइन्स नीचे दी गई है:

  • मिल्खा सिंह को फ्लाइंग सिख के नाम से भी जाना जाता है।
  • मिल्खा सिंह भारत के महानतम एथलीटों में से एक थे। 
  • मिल्खा सिंह 1929 में पंजाब में जन्मे थे, उन्होंने विभाजन की भयावहता के समय अपार कठिनाइयों को पार किया। 
  • मिल्खा एक महान धावक थे, जो 400 मीटर में माहिर थे, और उन्होंने 1956, 1960 और 1964 के ओलंपिक खेलों में भारत का प्रतिनिधित्व किया।
  • उनका सबसे उल्लेखनीय प्रदर्शन 1960 के रोम ओलंपिक में हुआ, वहां वे कांस्य पदक से चूक गए थे और चौथे स्थान पर आए थे।
  • मिल्खा ने 1958 के राष्ट्रमंडल खेलों और कई एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीते थे। 
  • मिल्खा सिंह की दृढ़ता और समर्पण की उनकी कहानी भारत और उसके बाहर अनगिनत एथलीटों को प्रेरित करती है।
  • मिल्खा सिंह की आत्मकथा का नाम ‘द रेस ऑफ माइ लाइफ’ है। 
  • वर्ष 2014 में मिल्खा सिंह के जीवन पर भाग मिल्खा भाग के नाम से एक फिल्म भी बन चुकी है। 
  • मिल्खा सिंह को 1959 में पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। 

FAQs 

मिल्खा सिंह क्यों प्रसिद्ध है?

मिल्खा सिंह, आजाद भारत के पहले स्पोर्टस स्टार, जिन्होंने अपनी गति और आगे बढ़ने के विश्वास के साथ करीब एक दशक से अधिक समय तक भारतीय ट्रैक एंड फील्ड पर राज किया। उन्होंने अपने जीवन में कई रिकॉर्डस बनाए और कई पदक हासिल किए।

मिल्खा सिंह की आत्मकथा क्या थी?

सिंह की आत्मकथा, द रेस ऑफ माई लाइफ (अपनी बेटी सोनिया संवलका के साथ सह-लिखित), 2013 में प्रकाशित हुई थी।

मिल्खा सिंह को कौन सा पुरस्कार दिया गया था?

फ्लाइंग सिख, मिल्खा सिंह को वर्ष 1959 में भारत सरकार द्वारा पद्म श्री से सम्मानित किया गया था। पद्मश्री मिल्खा सिंह भारतीय फ़ील्ड धावक और ट्रैक धावक थे। वह राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों में 400 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक जीतने वाले एकमात्र एथलीट हैं। 

मिल्खा सिंह से हम क्या सीखते हैं?

मिल्खा सिंह ने कहा था, कड़ी मेहनत, समर्पण और अनुशासन ये तीन शब्द मेरे पिता के जीवन भर के मंत्र थे। मिल्खा सिंह ने इन मूल्यों को जिया और इन्हें जीवन का तरीका बना लिया, और हर खिलाड़ी को इनका पालन करना चाहिए। तभी कोई देश और खुद के लिए सफलता हासिल कर सकता है।

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