मिल्खा सिंह भारत के उन नामचीन एथलीट में से है, जिन्होंने भारत के धावकों के नाम का परचम दुनिया भर में फैलाया है। कुछ लोग असाधरण प्रतिभा के स्वामी होते है उनमे में से ही एक थे- मिल्खा सिंह। संघर्ष और जस्सबे की एक अनूठी मिसाल है , जिन्होंने भारत – पाक बँटवारे के साये अपने माता पिता को खो दिया इसे बावजूद इसे अपनी ताकत बनाया और बुलंदियों को छुआ। लेकिन लगातार एक महीने तक कोरोना से जंग लड़ने के बाद ज़िन्दगी की रेस हर गए । जिन्होंने हर भारतीय को सोचने और हासिल करने के लिए पंख दिए वो Flying Sikh हमेशा के लिए हमारे बीच से चले गए।आइए जानते है भारत के पहले स्वर पदक विजेता के बारे में।
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जख्म से प्रेरणा तक का सफ़र
मिल्खा सिंह का जन्म 29 नवंबर 1929 गोविंदपुर , पाकिस्तान में एक शिख राठौर परिवार में हुआ।कुछ दस्तावेज़ो के अनुसार 17 अक्टूबर 1935 माना जाता है। पाकिस्तान से भारत शरणार्थी के रूप में ट्रेन से दिल्ली आये और शरणार्थी शिविरों में छोटे- मोटे अपराध करके गुज़ारा और उसके बाद शाहदरा पुनर्वास कॉलोनी में रहे । उनके अन्दर अपने परिवार को खोने का आघात लगा और उन्होंने एक समय डाकू बनाने का मन बना लिया था लेकिन उनके भाई मलखान सिंह ने उन्हें भारतीय सेना में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। लगातार तीन बार सेना में शामिल होने का प्रयास किया जिसमे वो विफल हुए चौथे प्रयास में सफल होने के बाद 1951 में सेना में भर्ती हुए । भर्ती के वक़्त क्रॉस कंट्री रचे में छठा स्थान हासिल किया , इसके बाद सेना की स्पेशल ट्रेनिंग के लिए चुना था। इस बात पर यकीन करना मुश्किल की इतनी छोटी सी उम्र में सब देखने के बाद कोई “फ्लाइंग सिख” बन सकता है।
मिल्खा सिंह निजी जीवन
भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की कप्तान निर्मित कौर से 1955 मे चंडीगढ़ में मुलाकात हुई। 1962 में दोनों शादी के बंधन में बंध गए, उनके चार बच्चे है जिसमे से 3 बेटियाँ और1बेटा है , गोल्फर जीव मिल्खा सिंह।1999 में उन्होंने एक बच्चे को कोद लिया जिनका नाम हविलदार बिक्रम सिंह था जो टाइगर हिल युद्ध में शहीद हो गए।
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मेडल्स का सिलसिला
आर्मी कोच हवलदार गुरुदेव सिंह की ट्रेनिंग के अन्दर और कड़ी मेहनत के बाद 1956 में मेलबर्न कामनवेल्थ गेम्स में 100मीटर और 200मीटर में भारत का प्रतिनिधित्व किया इस प्रतिस्पर्धा में उन्होंने कोई मैडल तो नही जीता।लेकिन ४०० मीटर रेस के समय चार्ल्स जेकिंस से हुई मुलाकात ने उन्हें न सिर्फ प्रेरित किया बल्कि उन्खे ट्रेनिंग के नए तरीकों से अवगत कराया। इससे प्रेरणा के चलते 1957 में 400मीटर रचे को 5 सेकंड में पूरा करके नया राष्ट्र कीर्तिमान स्थापितं किया। कटक में 1958राष्ट्री खेल में उन्होंने 400मीटर और 200मीटर रेस में भाग लिया और स्वर्ण मैडल जीता। 1958 में ब्रिटिश कामनवेल्थ प्रतिश्पर्धा में उन्होंने 400मीटर रेस में स्वर्ण पदक जीता, इस तरह आज़ाद भारत के स्वर्ण पदक जीतने वाले पहली ख़िलाड़ी बने। साल 1958 टोक्यों ओलंपिक में इन्ही श्रेणी में स्वर्ण पदक जीता और कीर्तिमान स्थापितं किया, इसके फलस्वरूप उन्हें कमीशंड ऑफिरसर के तौर पर प्रमोशन दिया गया और कुछ समय बाद पंजाब में शिक्षा विभाग में खेल निदेशक के में चयनित किया। मिल्खा सिंह ने साल 1960 में रोम ओलिंपिक में 400 मीटर रेस में भाग लिया , इसमें वो अपनी लाल टोपी की वजह से काफ़ी प्रसिद्ध हुए लोग हेरान थे की टोपी पहन कर कोई इतना तेज़ कैसे भाग सकता है।1962 जकार्ता में भी विजेता रहे।
नेहरु ने उन्हें पाकिस्तान जाने की सलाह दी थी-
उनकी कहानी 1960 भारत पाक प्रतियोगिता के बिना अधूरी है।उन्हें अब्दुल खालिद सबसे तेज़ पाकिस्तानी धावक के साथ प्रतिस्पर्धा में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया, लेकिन भारत पाक बटंँवारे की बुरी यादे उनके मन में कही न कही जिंदा थी और उन्होनें भाग लेने से मना कर दिया लेकिन उस समय के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल लाल नेहरु के कहने पर उन्होंने रेस में हिस्सा लिया और उसे जीता भी। पाकिस्तान के तत्कालिम प्रधानमंत्री अयूब खान ने उनकी तारीफ़ करते हुए कहा -“आज तुम दौड़े नहीं, उड़े थे ।”इसके बाद उन्हें “फ्लाइंग सिख” कहा जाने लगा।
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मिल्खा सिंह की उपलब्धियां और कीर्तिमान
मिल्खा सिंह की उपलब्धियां
1957 में 400 मीटर की रेस 47.5 सेकंडमें खत्म करके नया कीर्तिमान अपने नाम दर्ज कराया।भारत सरकार द्वारा 1959 में अद्भुत् प्रतिभा के मालिक और भारत का नाम रोशन करबे के लिए पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया, उसी वर्ष हेल्म्स अवार्ड से भी सम्मानित किया गया जिसे वर्ल्ड ट्रॉफी के नाम से भी जाना जाता है। मिल्खा सिंह ने अपने करियर में 80 में से 77 रेस जीती उन्हें रोम ओलंपिक न जीतने पर अफ़सोस ज़रूर रहा। उन्होंने कहा था “’ये सब दिखाने की चीजें नहीं हैं, मैं जिन अनुभवों से गुजरा हूं उन्हें देखते हुए वे मुझे अब भारत रत्न भी दे दें तो मेरे लिए उसका कोई महत्व नहीं है।”2001 में अर्जुन पुरस्कार दिया गया। उन्होंने इसे ठुकरा दिया था।साल 2013 में अपने जीवन पर आधारित एक पुस्तक ‘द रेस ऑफ माइ लाइफ’ लिखी थी, जिस पर साल 2014 में ‘भाग मिल्खा भाग’ के नाम से एक फिल्म भी बन चुकी है । इस फ़िल्म को लोगो द्वारा काफी सरहाया गया ।
वह ओलम्पिक रिकॉर्ड बनाने वाले अकेले भारतीय धावक हैं । उनके बेटे जीव मिल्खा सिंह ने उनके बारे में सच ही कहा है- “मिल्खा सिंह कई पीढ़ियों में एक बार ही पैदा होता है ।” अब वो हमरे बीच में नही रहे है लेकिन वो अपनी ऐसी छाप छोड़ गए है हर किसी के दिल में सदैव जीवित रहेगें भारत को अपने इस अभूतपूर्व धावक पर सदा गर्व रहेगा ।
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