लाल बहादुर शास्त्री भारत के ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने भारतीय चेतना को जगाने के लिए और कठिन समय में समाज को सशक्त करने के लिए अपना बहुमूल्य नेतृत्व दिया। जय जवान-जय किसान का नारा देने वाले शास्त्री जी की जयंती का उत्सव 2 अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन ही मनाया जाता है। शास्त्री जी को उनकी सादगी, सरलता, ईमानदारी और बेबाकी के लिए जाना जाता है। शास्त्री जी वर्ष 1964 से 1966 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे और उन्होंने अपने इस कालखंड में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए। इस ब्लॉग में, भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री पर खूबसूरत और प्रेरक शायरी दी गई हैं, जो आप अपनों के साथ शेयर कर पाएंगे।
लाल बहादुर शास्त्री पर शायरी
लाल बहादुर शास्त्री पर शायरी कुछ इस प्रकार हैं, जिन्हें आप अपने मित्रों, परिजनों और शुभचिंतकों को साझा कर पाएंगे –
“साहस और धैर्य की परिभाषा है
शास्त्री जी का जीवन सादगी की भाषा है…”
– मयंक विश्नोई
“भारतीय राजनीति में वो ध्रुव तारा समान थे
शास्त्री जी सही मायनों में एक सच्चे इंसान थे…”
– मयंक विश्नोई
“शास्त्री जी सही मायनों में सरलता का पर्याय थे
शास्त्री जी भारतीय राजनीति का अद्भुत अध्याय थे…”
– मयंक विश्नोई
“मातृभूमि को समर्पित थी जिनकी पहचान
उन्हीं शास्त्री जी का आओ करे हम सम्मान…”
– मयंक विश्नोई
“उनके अटल निर्णयों ने ही बड़े-बड़ों को चौकाया था
जय जवान-जय किसान का नारा उन्होंने ही लगाया था…”
– मयंक विश्नोई
“निज कर्मों से जिस नेता ने समाज को जगाया है
उसी नेता ने वसुधा पर अतुलित यश कमाया है…”
– मयंक विश्नोई
“शास्त्री जी के विचारों को ज्यों ही समाज अपनाएगा
त्यों ही अपना भारत अपनी खोई ख्याति पाएगा…”
– मयंक विश्नोई
“शास्त्री जी के आदर्शों को अब हमें अपनाना है
अपने भारत को अब हमें स्वर्णिम भारत बनाना है…”
– मयंक विश्नोई
“शास्त्री जी का देखा हर सपना होगा साकार
शास्त्री जी के आदर्शों को अपनाएगा संसार…”
– मयंक विश्नोई
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लाल बहादुर शास्त्री पर शेर
लाल बहादुर शास्त्री पर शेर पढ़कर आप उनके आदर्शों के बारे में जान पाएंगे, साथ ही ये शेर आपको शास्त्री जी की जीवन गाथा भी सुनाएंगे। लाल बहादुर शास्त्री पर शेर कुछ इस प्रकार हैं –
“शास्त्री जयंती पर हम सभी करें उनका सम्मान
शास्त्री जी के आदर्शों को अपनाकर ही बनेगी हमारी पहचान…”
– मयंक विश्नोई
“सादगी और सरलता से सुशोभित था जिनका व्यवहार
उन्हीं शास्त्री जी के आदर्शों का अपनाएगा अब संसार…”
– मयंक विश्नोई
“भारत भूमि का था जिन्होंने सदा मान बढ़ाया
उन्हीं शास्त्री जी ने था युवाओं को स्वाभिमानी बनाया…”
– मयंक विश्नोई
“शास्त्री जी के विचारों को आत्मसात करेंगे हम
शास्त्री जी के आदर्शों को अपनाकर रहेंगे हम…”
– मयंक विश्नोई
“शास्त्री जी का देखा हुआ हर सपना पूरा करेंगे हम
मातृभूमि के प्रति समर्पित होकर निज जीवन जिएंगे हम…”
– मयंक विश्नोई
“शास्त्री जी के आदर्शों पर चलकर
हम भारत को समृद्ध राष्ट्र बनाएँगे…”
– मयंक विश्नोई
“शास्त्री जी का व्यक्तित्व हमें जीवन जीना सिखाता है
शास्त्री जी का जीवन हमें सच्चाई का मार्ग दिखाता है…”
– मयंक विश्नोई
“शास्त्री जी की जयंती पर अब उत्सव मनाए ये दुनिया
अन्याय के विरुद्ध न्याय की आवाज उठाए ये दुनिया…”
– मयंक विश्नोई
“सफलता का शीर्ष हो और यश को सदा विस्तार मिले
शास्त्री जी के आदर्शों को सम्मान अब अपार मिले…”
– मयंक विश्नोई
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लाल बहादुर शास्त्री पर गजलें
लाल बहादुर शास्त्री पर गजलें कुछ इस प्रकार हैं –
श्री लाल बहादुर शास्त्री वज़ीर-ए-आज़म हिन्द
ऐ बहादुर-लाल ऐ भारत सुपूत
तू था अम्न-ओ-आश्ती का पासदार
अम्न की ख़ातिर गया था ताशक़ंद
तू ने कर दी जान भी उस पर निसार
अम्न-ओ-सुल्ह-ओ-जंग में यकता था तू
भारती तहज़ीब का आईना-दार
पैकर-ए-इज्ज़-ओ-ख़ुलूस-ओ-सादगी
तू था तहज़ीब-ओ-तमद्दुन का निखार
तू ने यक-जिहती अता की क़ौम को
एकता का दान भारत को दिया
सर हुआ ऊँचा हमारा हर जगह
तू ने वो सम्मान भारत को दिया
अज़्म तेरा आहनी दीवार था
सालमियत मुल्क की थी तेरी जान
शान-ए-मुल्क-ओ-क़ौम थी पेश-ए-नज़र
तुझ को अपनी जान से बढ़ कर थी आन
हो गई गुल शम्अ’ दे कर रौशनी
ताक़तें अम्न-ओ-अमाँ की डट गईं
ज़िंदगी के साथ वाबस्ता है मौत
ये हक़ीक़त है मगर कितनी अजीब
हम को ये एहसास होता ही नहीं
ज़िंदगी से मौत है उतनी क़रीब
ज़ुल्मत-ए-शब से सहर की दिलकशी
यास से उम्मीद का रौशन है नाम
मौत के रोके भी रुक सकता नहीं
ज़िंदगी का कारवाँ तेज़-गाम
हिन्द है इस क़ाफ़िले का रहनुमा
कारवाँ-सालार मीर-ए-कारवाँ
अम्न-ए-आलम का अलम-बरदार है
अम्न-परवर सुल्ह-जू हिन्दोस्ताँ
-तालिब चकवाली
लाल-बहादुर-शास्त्री
शहीद-ए-क़ौम है कोई कोई शहीद-ए-वतन
बजा है तुझ को कहूँ मैं अगर शहीद-ए-वतन
तलाश-ए-अम्न में दिल्ली से ताशक़ंद गया
किसे ख़बर थी कि बाँधे हुआ था सर से कफ़न
पयाम-ए-अम्न दिया जारहान-ए-आलम को
गया सँवार के दुनिया की ज़िंदगी का चलन
किसे मजाल तिरी बात कोई काट सके
दलील तेरी मोअस्सिर तो पुर असर है सुख़न
मिठास बात में ऐसी कि राम अहल-ए-जहाँ
तिरी ज़बान थी क़ंद-ओ-नबात का मख़्ज़न
थी उस्तुवार मोहब्बत तेरी दोस्ती की असास
फ़ज़ा-ए-दहर में कोई न था तिरा दुश्मन
तू एक बंदा-ए-दरवेश था फ़क़ीर-मनश
चला गया जो ज़माने से झाड़ कर दामन
तिरे ख़ुलूस का क़ाइल है सद्र-ए-पाकिस्तताँ
कहाँ से सीखा था तू ने ये गुफ़्तुगू का फ़न
ज़माने-भर में हुआ हर तरफ़ तिरा मातम
मुहीत सारे जहाँ को हुए हैं रंज-ओ-मेहन
क़ुबूल हम को किए तू ने जिस क़दर पैमाँ
है तेरी रूह हमारे दिलों पे साया-फ़गन
है शर्क़-ओ-ग़र्ब में क़ाइल हर एक शख़्स तिरा
वज़ीफ़ा-ख़्वाँ-ओ-सना-गर तिरे शुमाल-ओ-दकन
-अर्श मलसियानी
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