Kadambini Ganguly : भारत की पहली महिला डॉक्टर की प्रेरक कहानी

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Kadambini Ganguly in Hindi

भारत में ब्रिटिश काल, महिलाओं के लिए एक कठिन समय रहा था। उस दौर में महिलाओं को शिक्षा और अधिकारों से वंचित होने के साथ-साथ, सामाजिक बुराइयों का भी सामना करना पड़ता था। घूँघट प्रथा, बाल विवाह, सती प्रथा जैसी कुरीतियों ने महिलाओं के जीवन को नर्क बना दिया था। तब महिलाओं को न तो पढ़ने की आज़ादी थी और न ही बाहर जाकर कोई नौकरी करने की। उन्हें सिर्फ घरेलू कामों तक सीमित रखा जाता था। ब्रिटिश काल के उस अंधकारमय दौर में एक ऐसी महिला भी थी जिन्होंने न सिर्फ़ चूल्हे से उठकर घर की दहलीज को पार किया, बल्कि ब्रिटिश हुकूमत वाले भारत में महिलाओं की स्थिति को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। हम आपको इस ब्लॉग में कादम्बिनी गांगुली (Kadambini Ganguly in Hindi) के जीवन की प्रेरक कहानी से रूबरू कराएंगे।

कौन थीं कादम्बिनी गांगुली?

कादम्बिनी गांगुली का नाम भारतीय इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखा गया है। वह उन अग्रणी महिलाओं में से एक थीं जिन्होंने ब्रिटिश भारत में महिलाओं की स्थिति को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कादम्बिनी ने सामाजिक और सांस्कृतिक रूढ़ियों को तोड़कर चिकित्सा के क्षेत्र में प्रवेश किया। आगे चल कर वर्ष 1886 में उन्होंने भारत की पहली महिला डॉक्टर बनने का गौरव हासिल किया। वह न सिर्फ भारत की पहली महिला डॉक्टर थीं, बल्कि उनका नाम उन महिलाओं में भी शामिल जिन्होंने पूरे दक्षिण एशिया में सबसे पहले पश्चिमी चिकित्सा पद्धति (वेस्टर्न मेडिसिन) की पढ़ाई और ट्रेनिंग की। वहीं सिर्फ चिकित्सा के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि कादम्बिनी ने शिक्षा और सामाजिक सुधारों के क्षेत्र में भी अमूल्य योगदान दिया। उनका साहस और समर्पण हमेशा लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत रहेगा।

शिक्षा और प्रारंभिक जीवन

कादम्बिनी गांगुली का जन्म 18 जुलाई, 1861 को भागलपुर, बिहार में हुआ था। उनके पिता, ब्रजकिशोर बसु, प्रधानाध्यापक  और सामाजिक कार्यकर्ता थे, जिन्होंने अपनी पुत्री को शिक्षा प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित किया। कादम्बिनी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बंगा महिला विद्यालय से पूरी की। यह विद्यालय वर्ष 1878 में बेथून स्कूल में विलय हो गया। वहां कादम्बिनी गांगुली और उनकी सहपाठी चंद्रमुखी बसु, दोनों बेथ्यून कॉलेज की पहली छात्रा थीं जिन्होंने 1883 में फर्स्ट आर्ट्स (FA) परीक्षा उत्तीर्ण की। 

उनकी सफलता से प्रेरित होकर, बेथ्यून कॉलेज ने वर्ष 1883 में अंडरग्रेजुएट कोर्स करने का कदम उठाया। इसके बाद कादम्बिनी गांगुली और चंद्रमुखी बसु पहली दो महिलाएं थी जिन्होंने पूरे ब्रिटिश राज में इस उपलब्धि को हासिल किया। इसके बाद कादम्बिनी ने वर्ष 1886 में एमबीबीएस की डिग्री प्राप्त की, जिससे वे भारत की पहली महिला डॉक्टर बनीं। कादम्बिनी गांगुली केवल भारत की पहली महिला डॉक्टर थीं, बल्कि उन्होंने विदेश में भी चिकित्सा शिक्षा प्राप्त की थी। वर्ष 1892 में, वह ब्रिटेन गईं और वहां जाकर डबलिन, ग्लासगो और एडिनबर्ग से आगे की ट्रेनिंग ली। यह विदेशी ट्रेनिंग उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण थी क्योंकि इससे उन्हें नवीनतम चिकित्सा ज्ञान और तकनीकों से परिचित होने का अवसर मिला। वहां से भारत लौटने के बाद उन्होंने एक प्रतिष्ठित स्त्री रोग विशेषज्ञ के रूप में अपना करियर शुरू किया। उन्होंने कलकत्ता के प्रसिद्ध लेडी डफरिन अस्पताल में काम किया और अपने जीवन का अधिकांश समय यहां मरीजों की सेवा में बिताया।

चिकित्सा क्षेत्र में उनका योगदान

कादम्बिनी जी की विशेषज्ञता के कारण, वे जल्दी ही लोगों के बीच एक प्रिय और सम्मानित डॉक्टर बन गईं। उन्होंने चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने अपना जीवन गरीब और जरूरतमंद मरीजों की सेवा में समर्पित कर दिया, खासकर महिलाओं और बच्चों के लिए। उन्होंने अपनी चिकित्सा ज्ञान और योग्यताओं का प्रयोग करके गर्भवती महिलाओं, बच्चों और महिलाओं की स्वास्थ्य सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने ब्रिटिश भारत में महिलाओं के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच को बढ़ाया। 

समाज सुधार में उनकी भूमिका

कादम्बिनी गांगुली, केवल भारत की पहली महिला डॉक्टर ही नहीं थीं, बल्कि वे एक प्रभावशाली समाज सुधारक भी थीं जिन्होंने 19वीं और 20वीं सदी के दौरान भारतीय समाज में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। महिलाओं के लिए शिक्षा को प्रोत्साहित करना उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण लक्ष्य था। इसके अलावा उन्होंने विधवाओं के पुनर्विवाह का समर्थन किया, जो उस समय में एक सामाजिक कुरीति माना जाता था। उन्होंने बाल विवाह के खिलाफ भी आवाज उठाई। उन्होंने लोगों को इसके हानिकारक प्रभावों के बारे में शिक्षित किया और सरकार से इस प्रथा पर पाबंदी लगाने की मांग की। कादम्बिनी जी ने सती प्रथा के खिलाफ भी लंबी लड़ाई लड़ी थी।  

निधन और विरासत

कादम्बिनी अपने जीवन के अंतिम दिनों में उच्च रक्तचाप से जूझ रही थी। लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने अपने काम और समाजसेवा को जारी रखा। 3 अक्टूबर 1923 को, कादम्बिनी ने एक मरीज का इलाज किया और एक महत्वपूर्ण सर्जरी भी की। इसके बाद जब वह घर लौटी तो, उनकी हालत काफी बिगड़ गई थी। उसी शाम, 63 वर्ष की उम्र में, उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।

कादम्बिनी गांगुली के बारे में रोचक तथ्य

कादम्बिनी गांगुली (Kadambini Ganguly in Hindi) के बारे में रोचक तथ्य निम्नलिखित है : 

  • कादम्बिनी गांगुली, केवल भारत की ही नहीं, बल्कि पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में स्नातक होने वाली पहली महिलाओं में से एक थीं।
  • वर्ष 1884 में, कादम्बिनी ने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया, उस समय महिलाओं के लिए यह एक असाधारण उपलब्धि थी।
  • कादम्बिनी गांगुली, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़ने वाली पहली महिला थी। 
  • भारत सरकार ने कादम्बिनी गांगुली के सम्मान में 18 जुलाई 1964 को एक डाक टिकट जारी किया था।

FAQs 

कादम्बिनी गांगुली क्यों प्रसिद्ध हैं?

कादम्बिनी गांगुली, भारत की पहली महिला डॉक्टर थीं। वह केवल एक डॉक्टर ही नहीं थीं, बल्कि एक सामाजिक सुधारक भी थीं। कादम्बिनी एक कुशल शिक्षिका भी थीं। इसके अलावा उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए भी काम किया।

कादम्बिनी गांगुली डॉक्टर कब बनी?

कादम्बिनी गांगुली वर्ष 1886 में डॉक्टर बनीं थीं। उन्होंने और आनंदीबाई जोशी दोनों ने 1886 में कॉलेज ऑफ मेडिसिन (वर्तमान में बंगाल मेडिकल कॉलेज) में अपनी डिग्री प्राप्त की।

कादम्बिनी गांगुली की मृत्यु कैसे हुई?

कादम्बिनी अपने जीवन के अंतिम दिनों में उच्च रक्तचाप से जूझ रही थी। लेकिन इसके बावजूद भी उन्होंने अपने काम और समाजसेवा को जारी रखा। 3 अक्टूबर 1923 को, कादम्बिनी ने एक मरीज का इलाज किया और एक महत्वपूर्ण सर्जरी भी की। इसके बाद जब वह घर लौटी तो, उनकी हालत काफी बिगड़ गई थी। उसी शाम, 63 वर्ष की उम्र में, उन्होंने अपनी अंतिम सांस ली।

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