गणतंत्र दिवस पर ग़ज़ल पढ़कर आप इस दिन को बड़ी ही धूमधाम से मना सकते हैं। बता दें कि गणतंत्रता दिवस का महापर्व स्वतंत्र भारत के नागरिकों के अधिकारों के संरक्षण का प्रतीक है। गणतंत्र दिवस के इतिहास पर प्रकाश डाला जाए तो आप जानेंगे कि 26 जनवरी 1950 को भारतीय नागरिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए संविधान को लागू किया गया था। इसी दिन विधि विधान के साथ भारत ने स्वयं को गणराज्य घोषित किया था। इसी उपलक्ष्य में हर वर्ष देशभक्ति की भावना के साथ-साथ गणतंत्रता दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष भारत अपना 76वां गणतंत्र दिवस मना रहा है, जिसे पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाया जायेगा। इस लेख में आपके लिए गणतंत्र दिवस पर ग़ज़ल दी गई हैं, जो आपके जीवन में राष्ट्रवाद का बीजारोपण करेंगी। इन्हें पढ़ने के लिए आपको इस लेख को अंत तक पढ़ना पड़ेगा।
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गणतंत्र दिवस पर ग़ज़ल
गणतंत्र दिवस पर ग़ज़ल पढ़कर आप देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत हो पाएंगे, जिसके बाद आप अपने सपनों को साकार करने के लिए साहस जुटा सकेंगे, जो निम्नलिखित है;
भारत भाग्य विधाता है
“सपनों को साकार करता, साहस का पर्याय कहलाता है
निरंतर आगे बढ़ने वाला, भारत भाग्य विधाता है
ज़ख्मों को खुद पर सहकर भी, जो हताश नहीं रह पाता है
आशाओं का आयाम नया है, भारत भाग्य विधाता है
आज़ादी के अनमोल रत्न से, जो बहुमूल्य बन जाता है
तिनका-तिनका इसका मणि है, भारत भाग्य विधाता है
अध्यात्म केंद्र बन पृथ्वी का, जग को राह दिखाता है
मर्यादा का पाठ पढ़ाता, भारत भाग्य विधाता है
वीरों की जननी है भारत, यही सच्चा सुखदाता है
वीरता को परिभाषित करता, भारत भाग्य विधाता है
शास्वत है ज्ञान इसका, इतिहास यही दोहराता है
ममता की मूर्त है बनता, भारत भाग्य विधाता है
लोकहित में हो कर समर्पित, जन-जन की बात सुनाता है
लोकतंत्र की है परिभाषा, भारत भाग्य विधाता है…”
-मयंक विश्नोई
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सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है
ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तिरे ऊपर निसार
ले तिरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है
वाए क़िस्मत पाँव की ऐ ज़ोफ़ कुछ चलती नहीं
कारवाँ अपना अभी तक पहली ही मंज़िल में है
रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत रह न जाना राह में
लज़्ज़त-ए-सहरा-नवर्दी दूरी-ए-मंज़िल में है
शौक़ से राह-ए-मोहब्बत की मुसीबत झेल ले
इक ख़ुशी का राज़ पिन्हाँ जादा-ए-मंज़िल में है
आज फिर मक़्तल में क़ातिल कह रहा है बार बार
आएँ वो शौक़-ए-शहादत जिन के जिन के दिल में है
मरने वालो आओ अब गर्दन कटाओ शौक़ से
ये ग़नीमत वक़्त है ख़ंजर कफ़-ए-क़ातिल में है
माने-ए-इज़हार तुम को है हया, हम को अदब
कुछ तुम्हारे दिल के अंदर कुछ हमारे दिल में है
मय-कदा सुनसान ख़ुम उल्टे पड़े हैं जाम चूर
सर-निगूँ बैठा है साक़ी जो तिरी महफ़िल में है
वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ
हम अभी से क्यूँ बताएँ क्या हमारे दिल में है
अब न अगले वलवले हैं और न वो अरमाँ की भीड़
सिर्फ़ मिट जाने की इक हसरत दिल-ए-'बिस्मिल' में है
-बिस्मिल अज़ीमाबादी
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वतन की सर-ज़मीं से इश्क़ ओ उल्फ़त हम भी रखते हैं
वतन की सर-ज़मीं से इश्क़ ओ उल्फ़त हम भी रखते हैं
खटकती जो रहे दिल में वो हसरत हम भी रखते हैं
ज़रूरत हो तो मर मिटने की हिम्मत हम भी रखते हैं
ये जुरअत ये शुजाअत ये बसालत हम भी रखते हैं
ज़माने को हिला देने के दावे बाँधने वालो
ज़माने को हिला देने की ताक़त हम भी रखते हैं
बला से हो अगर सारा जहाँ उन की हिमायत पर
ख़ुदा-ए-हर-दो-आलम की हिमायत हम भी रखते हैं
बहार-ए-गुलशन-ए-उम्मीद भी सैराब हो जाए
करम की आरज़ू ऐ अब्र-ए-रहमत हम भी रखते हैं
गिला ना-मेहरबानी का तो सब से सुन लिया तुम ने
तुम्हारी मेहरबानी की शिकायत हम भी रखते हैं
भलाई ये कि आज़ादी से उल्फ़त तुम भी रखते हो
बुराई ये कि आज़ादी से उल्फ़त हम भी रखते हैं
हमारा नाम भी शायद गुनहगारों में शामिल हो
जनाब-ए-'जोश' से साहब सलामत हम भी रखते हैं
-जोश मलसियानी
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26 जनवरी
आओ कि आज ग़ौर करें इस सवाल पर
देखे थे हम ने जो वो हसीं ख़्वाब क्या हुए
दौलत बढ़ी तो मुल्क में इफ़्लास क्यूँ बढ़ा
ख़ुश-हाली-ए-अवाम के अस्बाब क्या हुए
जो अपने साथ साथ चले कू-ए-दार तक
वो दोस्त वो रफ़ीक़ वो अहबाब क्या हुए
क्या मोल लग रहा है शहीदों के ख़ून का
मरते थे जिन पे हम वो सज़ा-याब क्या हुए
बे-कस बरहनगी को कफ़न तक नहीं नसीब
वो व'अदा-हा-ए-अतलस-ओ-किम-ख़्वाब क्या हुए
जम्हूरियत-नवाज़ बशर-दोस्त अम्न-ख़्वाह
ख़ुद को जो ख़ुद दिए थे वो अलक़ाब क्या हुए
मज़हब का रोग आज भी क्यूँ ला-'इलाज है
वो नुस्ख़ा-हा-ए-नादिर-ओ-नायाब क्या हुए
हर कूचा शो'ला-ज़ार है हर शहर क़त्ल-गाह
यक-जेहती-ए-हयात के आदाब क्या हुए
सहरा-ए-तीरगी में भटकती है ज़िंदगी
उभरे थे जो उफ़ुक़ पे वो महताब क्या हुए
मुजरिम हूँ मैं अगर तो गुनहगार तुम भी हो
ऐ रहबरना-ए-क़ौम ख़ता-कार तुम भी हो
-साहिर लुधियानवी
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गणतंत्र दिवस पर नज़्म
गणतंत्र दिवस पर ग़ज़ल के साथ-साथ आपको इस लेख में इस अवसर पर कुछ ख़ास नज़्म भी पढ़ने का अवसर मिलेगा, जो कुछ इस प्रकार हैं –
मेरे प्यारे वतन
मेरे वतन, प्यारे वतन
राहत के गहवारे वतन
हर दिल के उजयारे वतन
हर आँख के तारे वतन
गुल-पोश तेरी वादियाँ
फ़रहत-निशाँ राहत-रसाँ
तेरे चमन-ज़ारों पे है
गुलज़ार-ए-जन्नत का गुमाँ
हर शाख़ फूलों की छड़ी
हर नख़्ल-ए-तूबा है यहाँ
कौसर के चश्मे जा-ब-जा
तसनीम हर आब-ए-रवाँ
हर बर्ग रूह-ए-ताज़गी
हर फूल जान-ए-गुल्सिताँ
हर बाग़ बाग़-ए-दिल-कशी
हर बाग़ बाग़-ए-बे-ख़िज़ाँ
दिलकश चरागाहें तिरी
ढोरों के जिन में कारवाँ
अंजुम-सिफ़त गुलहा-ए-नौ
हर तख़्ता-ए-गुल आसमाँ
नक़्श-ए-सुरय्या जा-ब-जा
हर हर रविश इक कहकशाँ
तेरी बहारें दाइमी
तेरी बहारें जावेदाँ
तुझ में है रूह-ए-ज़िंदगी
पैहम रवाँ पैहम दवाँ
दरिया वो तेरे तुंद-ख़ू
झीलें वो तेरी बे-कराँ
शाम-ए-अवध के लब पे है
हुस्न-ए-अज़ल की दास्ताँ
कहती है राज़-ए-सरमदी
सुब्ह-ए-बनारस की ज़बाँ
उड़ता है हफ़्त-अफ़्लाक पर
उन कार-ख़ानों का धुआँ
जिन में हैं लाखों मेहनती
सनअत-गरी के पासबाँ
तेरी बनारस की ज़री
रश्क-ए-हरीर-ओ-परनियाँ
बीदर की फ़नकारी में हैं
सनअत की सब बारीकियाँ
अज़्मत तिरे इक़बाल की
तेरे पहाड़ों से अयाँ
दरियाओं का पानी, तरी
तक़्दीस का अंदाज़ा-दाँ
क्या 'भारतेंदु' ने किया
गंगा की लहरों का बयाँ
'इक़बाल' और चकबस्त हैं
अज़्मत के तेरी नग़्मा-ख़्वाँ
'जोश' ओ 'फ़िराक़' ओ 'पंत' हैं
तेरे अदब के तर्जुमाँ
'तुलसी' ओ 'ख़ुसरव' हैं तेरी
तारीफ़ में रत्ब-उल-लिसाँ
गाते हैं नग़्मा मिल के सब
ऊँचा रहे तेरा निशाँ
मेरे वतन, प्यारे वतन
राहत के गहवारे वतन
हर दिल के उजियारे वतन
हर आँख के तारे वतन
तेरे नज़ारों के नगीं
दुनिया की ख़ातम में नहीं
सारे जहाँ में मुंतख़ब
कश्मीर की अर्ज़-ए-हसीं
फ़ितरत का रंगीं मोजज़ा
फ़िरदौस बर-रू-ए-ज़मीं
फ़िरदौस बर-रू-ए-ज़मीं
हाँ हाँ हमीं अस्त ओ हमीं
सरसब्ज़ जिस के दश्त हैं
जिस के जबल हैं सुर्मगीं
मेवे ब-कसरत हैं जहाँ
शीरीं मिसाल-ए-अंग्बीं
हर ज़ाफ़राँ के फूल में
अक्स-ए-जमाल-ए-हूरईं
वो मालवे की चाँदनी
गुम जिस में हों दुनिया-ओ-दीं
इस ख़ित्ता-ए-नैरंग में
हर इक फ़ज़ा हुस्न-आफ़रीं
हर शय में हुस्न-ए-ज़िंदगी
दिलकश मकाँ दिलकश ज़मीं
हर मर्द मर्द-ए-ख़ूब-रू
हर एक औरत नाज़नीं
वो ताज की ख़ुश-पैकरी
हर ज़ाविए से दिल-नशीं
सनअत-गरों के दौर की
इक यादगार-ए-मरमरीं
होती है जो हर शाम को
फ़ैज़-ए-शफ़क़ से अहमरीं
दरिया की मौजों से अलग
या इक बत-ए-नज़्ज़ारा-बीं
या ताएर-ए-नूरी कोई
पर्वाज़ करने के क़रीं
या अहल-ए-दुनिया से अलग
इक आबिद-ए-उज़्लत-गुज़ी
नक़्श-ए-अजंता की क़सम
जचता नहीं अर्ज़ंग-ए-चीं
शान-ए-एलोरा देख कर
झुकती है आज़र की जबीं
चित्तौड़ हो या आगरा
ऐसे नहीं क़िलए कहीं
बुत-गर हो या नक़्क़ाश हो
तू सब की अज़्मत का अमीं
मेरे वतन, प्यारे वतन
राहत के गहवारे वतन
हर दिल के अजियारे वतन
हर आँख के तारे वतन
दिलकश तिरे दश्त ओ चमन
रंगीं तिरे शहर ओ चमन
तेरे जवाँ राना जवाँ
तेरे हसीं गुल पैरहन
इक अंजुमन दुनिया है ये
तू इस में सद्र-ए-अंजुमन
तेरे मुग़न्नी ख़ुश-नवा
शाएर तिरे शीरीं-सुख़न
हर ज़र्रा इक माह-ए-मुबीं
हर ख़ार रश्क-ए-नस्तरीं
ग़ुंचा तिरे सहरा का है
इक नाफ़ा-ए-मुश्क-ए-ख़ुतन
कंकर हैं तेरे बे-बहा
पत्थर तिरे लाल-ए-यमन
बस्ती से जंगल ख़ूब-तर
बाग़ों से हुस्न अफ़रोज़ बन
वो मोर वो कब्क-ए-दरी
वो चौकड़ी भरते हिरन
रंगीं-अदा वो तितलियाँ
बाँबी में वो नागों के फन
वो शेर जिन के नाम से
लरज़े में आए अहरमन
खेतों की बरकत से अयाँ
फ़ैज़ान-ए-रब्ब-ए-ज़ुल-मिनन
चश्मों के शीरीं आब से
लज़्ज़त-कशाँ काम-ओ-दहन
ताबिंदा तेरा अहद-ए-नौ
रौशन तिरा अहद-ए-कुहन
कितनों ने तुझ पर कर दिया
क़ुर्बान अपना माल धन
कितने शहीदों को मिले
तेरे लिए दार-ओ-रसन
कितनों को तेरा इश्क़ था
कितनों को थी तेरी लगन
तेरे जफ़ा-कश मेहनती
रखते हैं अज़्म-ए-कोहकन
तेरे सिपाही सूरमा
बे-मिस्ल यक्ता-ए-ज़मन
'भीषम' सा जिन में हौसला
'अर्जुन' सा जिन में बाँकपन
आलिम जो फ़ख़्र-ए-इल्म हैं
फ़नकार नाज़ाँ जिन पे फ़न
'राय' ओ 'बोस' ओ 'शेरगिल'
'दिनकर', 'जिगर' 'मैथली-शरण'
'वलाठोल', 'माहिर', भारती
'बच्चन', 'महादेवी', 'सुमन'
'कृष्णन', 'निराला', 'प्रेम-चंद'
'टैगोर' ओ 'आज़ाद' ओ 'रमन'
मेरे वतन, प्यारे वतन
राहत के गहवारे वतन
हर दिल के अजियारे वतन
हर आँख के तारे वतन
खेती तिरी हर इक हरी
दिलकश तिरी ख़ुश-मंज़री
तेरी बिसात-ए-ख़ाक के
ज़र्रे हैं महर-ओ-मुश्तरी
झेलम कावेरी नाग वो
गंगा की वो गंगोत्री
वो नर्बदा की तमकनत
वो शौकत-ए-गोदावरी
पाकीज़गी सरजू की वो
जमुना की वो ख़ुश-गाैहरी
दुल्लर्बा आब-ए-नील-गूँ
कश्मीर की नीलम-परी
दिलकश पपीहे की सदा
कोयल की तानें मद-भरी
तीतर का वो हक़ सिर्रहु
तूती का वो विर्द-ए-हरी
सूफ़ी तिरे हर दौर में
करते रहे पैग़म्बरी
'चिश्ती' ओ 'नानक' से मिली
फ़क़्र-ओ-ग़िना को बरतरी
अदल-ए-जहाँगीरी में थी
मुज़्मर रेआया-पर्वरी
वो नव-रतन जिन से हुई
तहज़ीब-ए-दौर-ए-अकबरी
रखते थे अफ़्ग़ान-ओ-मुग़ल
इक सौलत-ए-अस्कंदरी
रानाओं के इक़बाल की
होती है किस से हम-सरी
सावंत वो योद्धा तिरे
तेरे जियाले वो जरी
नीती विदुर की आज तक
करती है तेरी रहबरी
अब तक है मशहूर-ए-ज़माँ
'चाणक्य' की दानिश-वरी
वयास और विश्वामित्र से
मुनियों की शान-ए-क़ैसरी
पातंजलि ओ साँख से
ऋषियों की हिकमत-पर्वरी
बख़्शे तुझे इनआम-ए-नौ
हर दौर चर्ख़-ए-चम्बरी
ख़ुश-गाैहरी दे आब को
और ख़ाक को ख़ुश-जौहरी
ज़र्रों को महर-अफ़्शानियाँ
क़तरों को दरिया-गुस्तरी
मेरे वतन, प्यारे वतन
राहत के गहवारे वतन
हर दिल के अजियारे वतन
हर आँख के तारे वतन
तू रहबर-ए-नौ-ए-बशर
तू अम्न का पैग़ाम-बर
पाले हैं तू ने गोद में
साहिब-ख़िरद साहिब-ए-नज़र
अफ़ज़ल-तरीं इन सब में है
बापू का नाम-ए-मो'तबर
हर लफ़्ज़ जिस का दिल-नशीं
हर बात जिस की पुर-असर
जिस ने लगाया दहर में
नारा ये बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर
बे-कार हैं तीर-ओ-सिनाँ
बे-सूद हैं तेग़-ओ-तबर
हिंसा का रस्ता झूट है
हक़ है अहिंसा की डगर
दरमाँ है ये हर दर्द का
ये हर मरज़ का चारा-गर
जंगाह-ए-आलम में कोई
इस से नहीं बेहतर सिपर
करता हूँ मैं तेरे लिए
अब ये दुआ-ए-मुख़्तसर
रौनक़ पे हों तेरे चमन
सरसब्ज़ हों तेरे शजर
नख़्ल-ए-उमीद-ए-बेहतरी
हर फ़स्ल में हो बारवर
कोशिश हो दुनिया में कोई
ख़ित्ता न हो ज़ेर-ओ-ज़बर
तेरा हर इक बासी रहे
नेको-सिफ़त नेको-सियर
हर ज़न सलीक़ा-मंद हो
हर मर्द हो साहिब-हुनर
जब तक हैं ये अर्ज़ ओ फ़लक
जब तक हैं ये शम्स ओ क़मर
मेरे वतन, प्यारे वतन
राहत के गहवारे वतन
हर दिल के उजयारे वतन
हर आँख के तारे वतन
-अर्श मलसियानी
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प्यारा हिन्दोस्तान
जिस का है सब को ज्ञान यही है
सारे जहाँ की जान यही है
जिस से है अपनी आन यही है
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
हँसता पर्बत हँसमुख झरना
पाँव पसारे गंगा जमुना
गोदी खोले धरती माता
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
एक तो ऊँचा सब से हिमाला
उस पर मेरे देश का झंडा
धरती पर आकाश का धोका
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
पर्बत कितना जम के अड़े हैं
कैसे कैसे भीम खड़े हैं
झरने गिर गिर पाँव पड़े हैं
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
पर्बत ऊँची चोटी वाले
बाँके तिरछे नोक निकाले
'अर्जुन' जैसे बान सँभाले
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
आरती उस की चाँद उतारे
ऊषा उस की माँग सँवारे
सूरज उस पर सब कुछ वारे
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
झूमती गाएँ नाचते पंछी
सारी दुनिया रक़्स-ओ-मस्ती
'कृष्ण' की बंसी हाए रे बंसी
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
जाल बिछाए जाल सँभाले
कमसिन सड़कें माँग निकाले
बाल बिखेरे नद्दी नाले
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
रात की नारी डूब गई है
सुब्ह की देवी जाग चुकी है
पनघट पर इक भीड़ लगी है
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
सुंदर नारी नार सँभाले
घूँघट काढ़े और हटाए
चलते फिरते प्रेम शिवाले
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
धरती की पोशाक नई है
खेती जैसे सब्ज़ परी है
मेहनत अपने बल पे खड़ी है
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
पड़ती बूँदें बजती पायल
धरती जल-थल पंछी घाएल
बोले पपीहा कूके कोयल
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
देश का एक इक नयन कटोरा
सारे जहाँ पर डाले डोरा
अपना जनता अपना एलोरा
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
ताज-महल बे-मिस्ल हसीना
इस में मिला कितनों का पसीना
जब कहीं चमका है ये नगीना
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
अहद-ए-वफ़ा की लाज तो देखो
शाह के दिल पर राज तो देखो
प्रेम के सर पर ताज तो देखो
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
भारत की तक़दीर को देखो
जन्नत की तस्वीर को देखो
आओ ज़रा कश्मीर को देखो
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
एक इसी कश्मीर का दर्शन
कितनों के दुख दर्द का दर्पन
आस नहाए बरसे जीवन
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
एक तरफ़ बंगाल का जादू
सर से कमर तक गेसू ही गेसू
फैली हुई 'टैगोर' की ख़ुशबू
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
काली बलाएँ सर पर पाले
शाम अवध की डेरा डाले
ऐसे में कौन अपने को सँभाले
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
हुस्न की तस्कीन इश्क़ की ढारस
वाह रे अपनी सुब्ह-ए-बनारस
घाट के पत्थर जैसे पारस
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
मंदिर मस्जिद और शिवाले
मानौता का भार सँभाले
कितने युगों को देखे-भाले
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
फूलों के मुखड़े चूम रहे हैं
काले भँवरे घूम रहे हैं
अम्न के बादल झूम रहे हैं
मेरा निवास स्थान यही है
प्यारा हिन्दोस्तान यही है
-नज़ीर बनारसी
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FAQs
26 जनवरी के दिन मूल रूप से “भारत माता की जय”, “वंदे मातरम”, “जय हिन्द” आदि नारे लगाए जाते हैं।
गणतंत्र दिवस के अवसर पर 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू किया गया था।
पहला गणतंत्र दिवस आज़ाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद जी की उपस्थिति में मनाया गया था।
26 जनवरी 2025 को हम 76वां गणतंत्र दिवस मना रहे हैं।
गणतंत्र दिवस पर भाषण देने के लिए माँ भारती की वंदना, बलिदानों को नमन और पब्लिक रिएक्शन को ध्यान रखते हुए शुरुआत कर सकते हैं।
गणतंत्र दिवस पर ग़ज़ल के प्रमुख विषय निम्नलिखित हो सकते हैं-
भारतीय संविधान और लोकतंत्र।
स्वतंत्रता सेनानियों का योगदान।
राष्ट्रीय एकता और अखंडता।
तिरंगे का महत्व।
भारत की सांस्कृतिक विविधता।
गणतंत्र दिवस पर ग़ज़ल लिखने के लिए प्रेरणा के लिए भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐतिहासिक प्रसंग, संविधान सभा की चर्चा और भारतीय संविधान का निर्माण, राष्ट्रभक्त कवियों की कविताओं से प्राप्त की जा सकती है।
रिपब्लिक डे पर ग़ज़ल का उपयोग स्कूल और कॉलेज के कार्यक्रमों, काव्य गोष्ठियों, सांस्कृतिक आयोजनों, और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर देशभक्ति का संदेश फैलाने के लिए किया जा सकता है।
रिपब्लिक डे पर ग़ज़ल का महत्व इस बात में है कि यह साहित्य और कला के माध्यम से देशभक्ति को व्यक्त करती है। यह युवाओं को प्रेरित करने और भारतीय संविधान के प्रति जागरूकता बढ़ाने का एक सशक्त माध्यम है।
संबंधित आर्टिकल
आशा है कि आपको इस लेख में दी गई गणतंत्र दिवस पर ग़ज़ल पसंद आई होंगी। इसके साथ ही इस दिन पर नज़्म पढ़कर आप इस दिन का जश्न कुछ ख़ास अंदाज़ में मना पाएंगे। इसी तरह के ट्रेंडिंग इवेंट्स से संबंधित ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बनें रहें।