राणा कुम्भा: मेवाड़ का एक ऐसा शासक जो कभी युद्ध में नहीं हारा

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Rana Kumbha राणा कुम्भा: मेवाड़ का ऐसा शासक जो किसी भी युद्ध में नहीं हारा

भारत में कई ऐसे वीर और महान शासक एवं योद्धाओं का जन्म हुआ है जिनका नाम इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। अकबर, सम्राट अशोक, चन्द्रगुप्त मौर्य एवं महाराणा प्रताप जैसे कई ऐसे योद्धा थे जिनकी शौर्यगाथाएं जितनी बताई जाएं, उतनी कम है। मध्यकालीन भारत के महानतम शासकों में से एक ऐसे शासक भी रहे हैं जिनकी वीरता के आगे विदेशी शासक भी नतमस्तक थे। यहाँ तक की वह अपने शासन में किसी भी युद्ध में कभी नहीं हारे। आज हम जिस महान योद्धा की हम बात कर रहे हैं, उनका नाम है राणा कुंभा, जिन्हें महाराणा कुंभकर्ण या कुंभकर्ण सिंह के नाम से भी जाना जाता है। राणा कुम्भा के बारे में अधिक जानने के लिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें। 

राणा कुम्भा का जीवन परिचय

महाराणा कुम्भा भारतीय इतिहास का एक सुप्रसिद्ध नाम है। वह भारत के प्रसिद्ध योद्धाओ में से एक थे, जिनका जन्म 1423 ई. में राजस्थान के मेवाड़ में हुआ था। राणा कुम्भा, राणा मोकल के पुत्र थे जो अपने पिता की मृत्यु के बाद, 1433 ई. में मेवाड़ के राजा बने और उन्होंने 1468 ई. तक यानी की लगभग 30 वर्षों तक शासन किया।

अपने शासनकाल के दौरान उन्होंने मातृभूमि की रक्षा कर अपनी वीरता का परिचय दिया। अपने समय में वह एक ऐसे योद्धा थे जो कभी किसी युद्ध मे नहीं हारे। युद्ध के अलावा उन्होंने अनेक दुर्ग और मंदिरों का निर्माण करवाया। उन्होंने अपने किले में इतनी बड़ी दीवार बनाई जो विश्व में दूसरी सबसे बड़ी दीवार कही जाती है। इन सब के अलावा उन्होंने चित्तौड़ में स्थित विश्वविख्यात ‘कीर्ति स्तंभ’ की भी स्थापना करवाई थी। 

नाममहाराणा कुम्भा
उपनामकुंभकर्ण सिंह / महाराणा कुंभकर्ण
माता पितासौभाग्य देवी, राणा मोकल
राजवंशसिसोदिया राजवंश
राज्यभिषेक1433 ई.  
शासनकाल1433 ई. से 1468 ई.  
शासनचित्तोड़
संतानराणा रायमल, उदयसिंह प्रथम
मृत्यु1468  ई.  
अगला शासक उदयसिंह प्रथम ( 1468 ई. – 1473 ई.)

महाराणा कुम्भा के महत्वपूर्ण युद्ध

महाराणा कुम्भा एक बहुत ही कुशल शासक थे जिन्होंने मेवाड़ की आंतरिक और बाहरी कठिनाइयों का सफलतापूर्वक सामना किया और अपनी वीरता और सांस्कृतिक उपलब्धियों द्वारा राज्य का मान बढ़ाया। महाराणा कुम्भा ने अपने शासनकाल में कई सारे युद्ध लड़े और सभी युद्धों में जीत हासिल की। महाराणा के महत्वपूर्ण युद्ध का विवरण नीचे दिया गया है। 

सारंगपुर युद्ध

सारंगपुर युद्ध राणा कुम्भा और ‘सुल्तान महमूद खिलजी’ के बीच 1437 ई. में लड़ा गया था। इस युद्ध की घोषणा राणा कुम्भा द्वारा की गयी। जब राणा कुम्भा ने अपने पिता ‘राणा मोकल’ के हत्यारों में से एक महपा पंवार की मांग की, तो ऐसे में महमूद खिलजी ने हत्यारे को आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया। इसके विरोध में महाराणा कुम्भा ने युद्ध की घोषणा कर खिलजी को राज्य से खदेड़ दिया और इसके बाद मंदसौर और जावरा राज्य को भी जीत लिया। अंत में महमूद खिलजी के क्षमा याचना करने पर राणा कुम्भा ने उन्हें जिंदा  छोड़ा। 

कुम्भलगढ़ पर चढ़ाई  

जीवनदान पाने के बाद भी सुल्तान महमूद खिलजी सुधरा नहीं और उसने राणा कुंभा से बदला लेने का सोचा। ऐसे में उसने ‘कुंभलगढ़ किले’ को अपना निशाना बनाया लेकिन तब भी किले को अपने कब्जे में न ले सका। इस युद्ध में सुल्तान ने राणा कुंभा के सेनापति ‘दीप सिंह’ को मार दिया। इस दौरान राणा कुंभा बूंदी में थे। जब वे वापस चितौड़गढ़ आए तो उन्हें सुल्तान महमूद के इस षड्यंत्र का पता चला। ऐसे में उन्होंने सुल्तान को फिर से खदेड़ दिया और इस बार सुल्तान भाग कर ‘मांडू’ चला गया। 

गागरोन पर आक्रमण 

बार-बार आक्रमण करने पर भी कामयाब न होने के बाद सुल्तान महमूद खिलजी ने अपने आक्रमण करने का तरीका बदल दिया। अब उसने बड़े-बड़े दुर्गों के जगह छोटे-छोटे दुर्गा पर निशाना लगाना शुरू किया और गागरोन पर आक्रमण किया और इस आक्रमण में राणा कुंभा के ‘सेनापति अहिर’ की मृत्यु हो गयी। इस बार सुल्तान कामयाब रहा और उसने दुर्ग को अपने कब्जे में ले लिया। 

मालगढ़ पर आक्रमण 

छोटे-छोटे दुर्गों पर आक्रमण करने की योजना सफल होने के बाद सुल्तान ने मानगढ़ पर हमला किया लेकिन इस बार सुलतान फिर हार के भाग गया। 

अजमेर और मालगढ़ पर एक साथ आक्रमण

बार-बार राणा कुम्भा से पराजित होने के कारण सुल्तान महमूद ने एक नई योजना बनाई और अपने पुत्र ‘गयासुद्दीन’ को रणथम्भौर में आक्रमण करने के लिए भेज खुद ज्वाइन व अजमेर में आक्रमण करने के लिए निकल गया। ताकि राणा कुंभा को चारों तरफ से घेरा जा सके। यह आक्रमण सन 1455 ईसवी में किया गया था लेकिन इस युद्ध में भी सुल्तान महमूद बुरी तरह हार गया। 

जावर युद्ध

राणा कुम्भा से पराजित होने के बाद सुल्तान महमूद बहुत ही शर्मिंदा हो गया जिसके कारण वह जावर पर आक्रमण कर उसे अपने कब्जे में लेने का सोचने लगा जिससे उसकी शक्ति बढ़ जाए। लेकिन इस युद्ध में भी सुल्तान बहुत बुरी तरह हार गया। 

महाराणा कुम्भा द्वारा निर्मित दुर्ग एवं किले

महज 35 वर्ष की आयु में महाराणा कुम्भा के शासन काल में 32 दुर्गों का निर्माण किया गया था। बता दें कि मेवाड़ के कुल 84 दुर्गो में से 32 दुर्गो का निर्माण महाराणा कुम्भा द्वारा किया गया। जिनमें से चित्तौड़गढ़, कुंभलगढ़, अचलगढ़, मचान दुर्ग, भौसठ दुर्ग और बसंतगढ़ महत्वपूर्ण और भव्य हैं।

महाराणा कुम्भा की मृत्यु 

इतिहासकारों के मुताबिक, ऐसे वीर, प्रतापी, विद्वान महाराणा की मृत्यु के पीछे उनके खुद के पुत्र का हाथ था। ऐसा माना जाता है कि महाराणा कुम्भा के पुत्र ‘उदयकरण सिंह’ ने 1468 ई. में एक षड्यंत्र रच कर अपने पिता की हत्या कर दी थी। इतिहासकारों द्वारा ऐसा कहा जाता है कि अपने अंतिम समय में महाराणा कुम्भा उन्माद रोग से पीड़ित थे, इसी के चलते उनके बड़े बेटे उदयकरण ने तलवार से हमला कर महाराणा कुम्भा को मौत के घात उतार दिया और खुद मेवाड़ के सिहांसन पर आसीन हो गया। लेकिन उसका शासनकाल ज्यादा समय तक न चल सका। राजपूतों ने उसका विद्रोह किया, जिसके चलते उसे कुछ ही समय के बाद अपना शासन त्यागना पड़ा।

FAQs

राणा कुम्भा मेवाड़ के शासक कब बने?

महाराणा कुम्भा या महाराणा कुम्भकर्ण सन 1433 ई. में मेवाड़ के शासक बने और उनका शासनकाल 1468 ई. तक चला। 

राणा कुम्भा किसके पुत्र थे?

राणा कुम्भा, महाराणा मोकल के पुत्र थे। उनकी हत्या के बाद राणा कुम्भा गद्दी पर बैठे और अपने पिता के हत्यारों से बदला लिया।

राणा कुम्भा ने किसे हराया था?

राणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूद खिलजी को हराया था। 

राणा कुम्भा ने विजय स्तंभ क्यों बनवाया?

विजय स्तंभ राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में स्थित एक स्तंभ या टॉवर है। राणा कुम्भा ने इसे महमूद खिलजी की लड़ाई में विजय के स्मारक के रूप में बनवाया था।

विजय स्तंभ का दूसरा नाम क्या है?

विजय स्तंभ का दूसरा नाम क्या है?

आशा है कि आपको राणा कुम्भा के बारे में सभी आवश्यक जानकारी मिल गयी होगी। ऐसे ही इतिहास से संबंधित अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें। 

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