“रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय, टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।।” पंक्तियों के रचियता रहीम, जिन्हें अब्दुर्रहीम ख़ान-ए-ख़ाना के नाम से जाना जाता है, मुग़ल बादशाह अकबर के दरबार के प्रसिद्ध नवरत्नों में से एक थे। वे न केवल महान योद्धा थे, बल्कि एक संवेदनशील कवि और विचारक भी थे। रहीम के दोहे अपनी सरल भाषा, गहन नीतियों और जीवन के सच्चे अनुभवों के लिए प्रसिद्ध हैं। उनके दोहे प्रेम, विनम्रता, मानवीय संबंधों और नैतिकता का संदेश देते हैं।
हिंदी साहित्य में दोहे का विशेष स्थान है क्योंकि यह छोटी पंक्तियों में गहरी बात कहने की कला है। उन्होंने इसी शैली को नई ऊंचाई दी, जिससे उनके दोहे आज भी छात्रों को जीवन में नैतिक मूल्य अपनाने और संतुलित दृष्टिकोण विकसित करने की प्रेरणा देते हैं। इस लेख में रहीम के दोहे अर्थ सहित दिए गए हैं।
रहीमदास के बारे में
भक्तिकाल के प्रमुख कवि अब्दुर्रहीम ख़ान-ए-ख़ाना को हम रहीम के नाम से जानते हैं। उनका जन्म लगभग 1556 ई. में लाहौर में हुआ था। उनके पिता बैरम ख़ान बादशाह अकबर के नवरत्नों में से एक थे। पिता की मृत्यु के बाद अकबर ने रहीम का पालन-पोषण और संरक्षण किया। रहीम ने अरबी, फ़ारसी, तुर्की, संस्कृत और ब्रजभाषा में शिक्षा प्राप्त की तथा विविध भाषाओं में काव्य रचनाएँ कीं।
वे युद्धकला में भी दक्ष थे और अकबर ने उन्हें गुजरात का सूबेदार नियुक्त कर ‘ख़ानख़ाना’ की उपाधि दी। हालांकि जहांगीर के शासनकाल में उन्हें कारावास भी झेलना पड़ा, किंतु बाद में सम्मान सहित पुनः स्थान मिला। उन्होंने अनेक युद्ध लड़े और उत्कृष्ट काव्य रचनाएँ कीं। रहीम का निधन 1626 ई. में हुआ और उनका मकबरा निज़ामुद्दीन, दिल्ली में स्थित है।
रहीम के 50 दोहे अर्थ सहित
यहां रहीमदास जी के प्रसिद्ध दोहे अर्थ सहित दिए गए हैं:-
1. रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।।
अर्थ: रहीम कहते हैं कि प्रेम का नाता नाज़ुक होता है. इसे झटका देकर तोड़ना उचित नहीं होता। यदि यह प्रेम का धागा एक बार टूट जाता है तो फिर इसे मिलाना कठिन होता है और यदि मिल भी जाए तो टूटे हुए धागों के बीच में गाँठ पड़ जाती है।
2. दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे होय।।
अर्थ : दुःख में सभी लोग भगवान को याद करते हैं। सुख में कोई नहीं करता, अगर सुख में भी याद करते तो दुःख होता ही नहीं।
3. रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिए डारि।
जहां काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।।
अर्थ: बड़ों को देखकर छोटों को भगा नहीं देना चाहिए। क्योंकि जहां छोटे का काम होता है वहां बड़ा कुछ नहीं कर सकता। जैसे कि सुई के काम को तलवार नहीं कर सकती।
4. रहिमन अंसुवा नयन ढरि, जिय दुःख प्रगट करेइ,
जाहि निकारौ गेह ते, कस न भेद कहि देइ।।
अर्थ: रहीम कहते हैं की आंसू नयनों से बहकर मन का दुःख प्रकट कर देते हैं। सत्य ही है कि जिसे घर से निकाला जाएगा वह घर का भेद दूसरों से कह ही देगा।
5. जैसी परे सो सहि रहे, कहि रहीम यह देह,
धरती ही पर परत है, सीत घाम औ मेह।।
अर्थ: रहीम कहते हैं कि जैसी इस देह पर पड़ती है – सहन करनी चाहिए, क्योंकि इस धरती पर ही सर्दी, गर्मी और वर्षा पड़ती है अर्थात जैसे धरती शीत, धूप और वर्षा सहन करती है, उसी प्रकार शरीर को सुख-दुःख सहन करना चाहिए।

6. बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूर,
पंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर।।
अर्थ : बड़े होने का यह मतलब नहीं है कि उससे किसी का भला हो। जैसे खजूर का पेड़ बहुत बड़ा होता है, लेकिन उसका फल इतना ऊंचा होता है कि उसे तोड़ना मुश्किल होता है।
7. दोनों रहिमन एक से, जों लों बोलत नाहिं।
जान परत हैं काक पिक, रितु बसंत के माहिं।।
अर्थ: कौआ और कोयल रंग में एक समान होते हैं। जब तक ये बोलते नहीं तब तक इनकी पहचान नहीं हो पाती। लेकिन जब वसंत ऋतु आती है तो कोयल की मधुर आवाज से दोनों का अंतर स्पष्ट हो जाता है।
8. समय पाय फल होत है, समय पाय झरी जात।
सदा रहे नहिं एक सी, का रहीम पछितात।।
अर्थ: रहीम कहते हैं कि उपयुक्त समय आने पर वृक्ष में फल लगता है। झड़ने का समय आने पर वह झड़ जाता है। सदा किसी की अवस्था एक जैसी नहीं रहती, इसलिए दुःख के समय पछताना व्यर्थ है।
9. रूठे सुजन मनाइए, जो रूठे सौ बार,
रहिमन फिरि फिरि पोइए, टूटे मुक्ता हार।।
अर्थ: यदि आपका प्रिय सौ बार भी रूठे, तो भी रूठे हुए प्रिय को मनाना चाहिए,क्योंकि यदि मोतियों की माला टूट जाए तो उन मोतियों को बार बार धागे में पिरो लेना चाहिए।
10. निज कर क्रिया रहीम कहि सीधी भावी के हाथ
पांसे अपने हाथ में दांव न अपने हाथ।।
अर्थ: रहीम कहते हैं कि अपने हाथ में तो केवल कर्म करना ही होता है सिद्धि तो भाग्य से ही मिलती है जैसे चौपड़ खेलते समय पांसे तो अपने हाथ में रहते हैं पर दांव क्या आएगा यह अपने हाथ में नहीं होता।
11. बानी ऐसी बोलिये, मन का आपा खोय।
औरन को सीतल करै, आपहु सीतल होय।।
अर्थ : अपने अंदर के अहंकार को निकालकर ऐसी बात करनी चाहिए जिसे सुनकर दुसरों को और खुद को ख़ुशी हो।
12. खीरा सिर ते काटि के, मलियत लौंन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चाहिए यही सजाय।।
अर्थ: खीरे का कडुवापन दूर करने के लिए उसके ऊपरी सिरे को काटने के बाद नमक लगा कर घिसा जाता है। रहीम कहते हैं कि कड़ुवे मुंह वाले के लिए – कटु वचन बोलने वाले के लिए यही सजा ठीक है।
13. रहिमन रीति सराहिए, जो घट गुन सम होय
भीति आप पै डारि के, सबै पियावै तोय।।
अर्थ: रहीम कहते हैं कि उस व्यवहार की सराहना की जानी चाहिए जो घड़े और रस्सी के व्यवहार के समान हो। घडा और रस्सी स्वयं जोखिम उठा कर दूसरों को जल पिलाते हैं जब घडा कुँए में जाता है तो रस्सी के टूटने और घड़े के टूटने का खतरा तो रहता ही है।
14. संपत्ति भरम गंवाई के हाथ रहत कछु नाहिं
ज्यों रहीम ससि रहत है दिवस अकासहि माहिं।।
अर्थ: जिस प्रकार दिन में चंद्रमा आभाहीन हो जाता है उसी प्रकार जो व्यक्ति किसी व्यसन में फंस कर अपना धन गँवा देता है वह निष्प्रभ हो जाता है।
15. माह मास लहि टेसुआ मीन परे थल और
त्यों रहीम जग जानिए, छुटे आपुने ठौर।।
अर्थ: माघ मास आने पर टेसू का वृक्ष और पानी से बाहर जमीन पर आ पड़ी मछली की दशा बदल जाती है। इसी प्रकार संसार में अपने स्थान से छूट जाने पर संसार की अन्य वस्तुओं की दशा भी बदल जाती है। मछली जल से बाहर आकर मर जाती है वैसे ही संसार की अन्य वस्तुओं की भी हालत होती है।

16. रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय।।
अर्थ: रहीम कहते हैं कि अपने मन के दुःख को मन के भीतर छिपा कर ही रखना चाहिए। दूसरे का दुःख सुनकर लोग इठला भले ही लें, उसे बाँट कर कम करने वाला कोई नहीं होता।
17. वरू रहीम कानन भल्यो वास करिय फल भोग
बंधू मध्य धनहीन ह्वै, बसिबो उचित न योग।।
अर्थ: रहीम कहते हैं कि निर्धन होकर बंधु-बांधवों के बीच रहना उचित नहीं है। इससे अच्छा तो यह है कि वन मैं जाकर रहें और फलों का भोजन करें।
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18. पावस देखि रहीम मन, कोइल साधे मौन।
अब दादुर वक्ता भए, हमको पूछे कौन।।
अर्थ: बारिश के मौसम को देखकर कोयल और रहीम के मन ने मौन साध लिया हैं। अब तो मेंढक ही बोलने वाले हैं तो इनकी सुरीली आवाज को कोई नहीं पूछता, इसका अर्थ यह हैं की कुछ अवसर ऐसे आते हैं जब गुणवान को चुप रहना पड़ता हैं। कोई उनका आदर नहीं करता और गुणहीन वाचाल व्यक्तियों का ही बोलबाला हो जाता हैं।
19. रहिमन विपदा हू भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जान परत सब कोय।।
अर्थ: रहीम कहते हैं कि यदि विपत्ति कुछ समय की हो तो वह भी ठीक ही है, क्योंकि विपत्ति में ही सबके विषय में जाना जा सकता है कि संसार में कौन हमारा हितैषी है और कौन नहीं।
20. वे रहीम नर धन्य हैं, पर उपकारी अंग।
बांटन वारे को लगे, ज्यों मेंहदी को रंग।।
अर्थ: रहीम कहते हैं कि वे लोग धन्य हैं जिनका शरीर सदा सबका उपकार करता है। जिस प्रकार मेंहदी बांटने वाले के अंग पर भी मेंहदी का रंग लग जाता है, उसी प्रकार परोपकारी का शरीर भी सुशोभित रहता है।

21. ओछे को सतसंग रहिमन तजहु अंगार ज्यों।
तातो जारै अंग सीरै पै कारौ लगै।।
अर्थ: ओछे मनुष्य का साथ छोड़ देना चाहिए। हर अवस्था में उससे हानि होती है – जैसे अंगार जब तक गर्म रहता है तब तक शरीर को जलाता है और जब ठंडा कोयला हो जाता है तब भी शरीर को काला ही करता है।
22. वृक्ष कबहूँ नहीं फल भखैं, नदी न संचै नीर
परमारथ के कारने, साधुन धरा सरीर।
अर्थ: वृक्ष कभी अपने फल नहीं खाते, नदी जल को कभी अपने लिए संचित नहीं करती, उसी प्रकार सज्जन परोपकार के लिए देह धारण करते हैं।
23. लोहे की न लोहार की, रहिमन कही विचार जा
हनि मारे सीस पै, ताही की तलवार।।
अर्थ: रहीम विचार करके कहते हैं कि तलवार न तो लोहे की कही जाएगी न लोहार की, तलवार उस वीर की कही जाएगी जो वीरता से शत्रु के सर पर मार कर उसके प्राणों का अंत कर देता है।
24. तासों ही कछु पाइए, कीजे जाकी आस
रीते सरवर पर गए, कैसे बुझे पियास।।
अर्थ: जिससे कुछ पा सकें, उससे ही किसी वस्तु की आशा करना उचित है, क्योंकि पानी से रिक्त तालाब से प्यास बुझाने की आशा करना व्यर्थ है।
25. रहिमन नीर पखान, बूड़े पै सीझै नहीं
तैसे मूरख ज्ञान, बूझै पै सूझै नहीं
अर्थ: जिस प्रकार पानी में पड़े रहने पर भी पत्थर नरम नहीं होता, उसी प्रकार मूर्ख व्यक्ति को ज्ञान देने पर भी वह कुछ नहीं समझता।

26. साधु सराहै साधुता, जाती जोखिता जान
रहिमन सांचे सूर को बैरी कराइ बखान।।
अर्थ: रहीम कहते हैं कि साधु सज्जनता की, यति योग की प्रशंसा करते हैं; परंतु सच्चे वीर के शौर्य की प्रशंसा उसके शत्रु भी करते हैं।
27. राम न जाते हरिन संग से न रावण साथ
जो रहीम भावी कतहूँ होत आपने हाथ
अर्थ: रहीम का कहना है कि यदि भविष्य पर हमारा बस चलता, तो राम हिरन के पीछे न जाते और सीता का हरण भी न होता। लेकिन होनी पर किसी का बस नहीं चलता- इसलिए ही यह सब घटित हुआ।
28. तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान।।
अर्थ: रहीम कहते हैं कि वृक्ष अपने फल स्वयं नहीं खाते हैं और सरोवर भी अपना पानी स्वयं नहीं पीता है। इसी तरह अच्छे और सज्जन व्यक्ति वो हैं जो दूसरों के कार्य के लिए संपत्ति को संचित करते हैं।
29. रहिमन ओछे नरन सो, बैर भली न प्रीत।
काटे चाटे स्वान के, दोउ भाँती विपरीत।।
अर्थ: गिरे हुए लोगों से न तो दोस्ती अच्छी होती हैं, और न ही दुश्मनी। जैसे कुत्ता चाहे काटे या चाटे दोनों ही अच्छा नहीं होता।
30. एकहि साधै सब सधैए, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहि सींचबोए, फूलहि फलहि अघाय।।
अर्थ: एक को साधने से सब सधते हैं। सब को साधने से सभी के जाने की आशंका रहती है – वैसे ही जैसे किसी पौधे के जड़ मात्र को सींचने से फूल और फल सभी को पानी प्राप्त हो जाता है और उन्हें अलग-अलग सींचने की जरूरत नहीं होती है।

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31. मथत-मथत माखन रहे, दही मही बिलगाय।
‘रहिमन’ सोई मीत है, भीर परे ठहराय।।
अर्थ: सच्चा मित्र वही है, जो विपदा में साथ देता है। वह किस काम का मित्र, जो विपत्ति के समय अलग हो जाता है? मक्खन मथते-मथते रह जाता है, किन्तु मट्ठा दही का साथ छोड़ देता है।
32. रहिमन’ वहां न जाइये, जहां कपट को हेत।
हम तो ढारत ढेकुली, सींचत अपनो खेत।।
अर्थ: ऐसी जगह कभी नहीं जाना चाहिए, जहां छल-कपट से कोई अपना मतलब निकालना चाहे। हम तो बड़ी मेहनत से पानी खींचते हैं कुएं से ढेंकुली द्वारा, और कपटी आदमी बिना मेहनत के ही अपना खेत सींच लेते हैं।
33. छिमा बड़न को चाहिये, छोटन को उतपात।
कह रहीम हरी का घट्यौ, जो भृगु मारी लात।।
अर्थ: उम्र से बड़े लोगों को क्षमा शोभा देती है, और छोटे बच्चों की शरारतें सामान्य मानी जाती हैं। छोटे यदि बदमाशी करें तो बड़े उन्हें क्षमा कर देते हैं, क्योंकि उनकी शरारतें भी छोटी ही होती हैं। जैसे छोटा-सा कीड़ा यदि लात भी मारे, तो उससे कोई नुकसान नहीं होता।
34. बिगरी बात बने नहीं, लाख करो किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।
अर्थ: मनुष्य को सोच समझकर व्यवहार करना चाहिए, क्योंकि किसी कारणवश यदि बात बिगड़ जाती है तो फिर उसे बनाना कठिन होता है, जैसे यदि एकबार दूध फट गया तो लाख कोशिश करने पर भी उसे मथ कर मक्खन नहीं निकाला जा सकेगा।
35. खैर, खून, खाँसी, खुसी, बैर, प्रीति, मदपान।
रहिमन दाबे न दबै, जानत सकल जहान।।
अर्थ: सारा संसार जानता हैं की खैरियत, खून, खांसी, ख़ुशी, दुश्मनी, प्रेम और शराब का नशा छुपाने से नहीं छुपता हैं।

36. जो रहीम ओछो बढै, तौ अति ही इतराय।
प्यादे सों फरजी भयो, टेढ़ों टेढ़ों जाय।।
अर्थ: जब लोग प्रगति करते हैं तो अक्सर घमंड करने लगते हैं, ठीक वैसे ही जैसे शतरंज में अधिक ताकत मिलने पर खिलाड़ी टेढ़ी-मेढ़ी चालें चलने लगता है।
37. चाह गई चिंता मिटीमनुआ बेपरवाह।
जिनको कुछ नहीं चाहिए, वे साहन के साह।।
अर्थ: जिन लोगों को कुछ नहीं चाहिए वों लोग राजाओं के राजा हैं, क्योकी उन्हें ना तो किसी चीज की चाह हैं, ना ही चिंता और मन तो पूरा बेपरवाह हैं।
38. रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सुन।
पानी गये न ऊबरे, मोटी मानुष चुन।।
अर्थ: इस दोहे में रहीम ने ‘पानी’ शब्द का तीन अर्थों में प्रयोग किया है। पानी का पहला अर्थ मनुष्य के संदर्भ में विनम्रता से है- रहीम कहते हैं कि मनुष्य में सदैव नम्रता होनी चाहिए। ‘पानी’ का दूसरा अर्थ आभा, तेज या चमक से है, जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं रहता। तीसरा अर्थ जल से है, जिसे उन्होंने आटे के उदाहरण से स्पष्ट किया है। रहीम का आशय है कि जैसे आटा पानी के बिना गूंथा नहीं जा सकता और मोती अपनी आभा के बिना मूल्यहीन हो जाता है, उसी प्रकार मनुष्य भी विनम्रता के बिना अपनी महत्ता खो देता है।
39. जो बड़ेन को लघु कहें, नहीं रहीम घटी जाहिं।
गिरधर मुरलीधर कहें, कछु दुःख मानत नाहिं।।
अर्थ: रहीम कहते हैं कि बड़े व्यक्ति को छोटा कह देने से उसकी महानता कम नहीं होती; ठीक वैसे ही जैसे कृष्ण को मुरलीधर कहने से उनके गुणों में कोई कमी नहीं आती।
40. मन मोटी अरु दूध रस, इनकी सहज सुभाय।
फट जाये तो न मिले, कोटिन करो उपाय।।
अर्थ: मन, मोती, फूल, दूध और रस जब तक सहज और सामान्य रहते हैं तो अच्छे लगते हैं लेकिन अगर एक बार वो फट जाएं तो कितने भी उपाय कर लो वो फिर से सहज और सामान्य रूप में नहीं आते।
41. रहिमन चुप हो बैठिये, देखि दिनन के फेर।
जब नाइके दिन आइहैं, बनत न लगिहैं देर।।
अर्थ: इस दोहे में रहीम का अर्थ है कि किसी भी मनुष्य को ख़राब समय आने पर चिंता नहीं करनी चाहिए क्योंकि अच्छा समय आने में देर नहीं लगती और जब अच्छा समय आता हैं तो सभी काम अपने आप होने लगते हैं।
42. जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापे नहीं, लिपटे रहत भुजंग।।
अर्थ: रहीम कहते हैं कि जो अच्छे स्वभाव के मनुष्य होते हैं,उनको बुरी संगति भी बिगाड़ नहीं पाती। जहरीले सांप चंदन के वृक्ष से लिपटे रहने पर भी उस पर कोई जहरीला प्रभाव नहीं डाल पाते।
43. रहिमन वे नर मर गये, जे कछु मांगन जाहि।
उतने पाहिले वे मुये, जिन मुख निकसत नाहि।।
अर्थ: जो इंसान किसी से कुछ मांगने के लिए जाता हैं वो तो मरे हैं ही परंतु उससे पहले ही वे लोग मर जाते हैं जिनके मुह से कुछ भी नहीं निकलता हैं।
44. रहिमन विपदा ही भली, जो थोरे दिन होय।
हित अनहित या जगत में, जानि परत सब कोय।।
अर्थ: संकट आना जरुरी होता हैं क्योकी इसी दौरान ये पता चलता है की संसार में कौन हमारा हित और बुरा सोचता हैं।
45. जे गरिब पर हित करैं, हे रहीम बड।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग।।
अर्थ: जो लोग गरीब का हित करते हैं वो बड़े लोग होते हैं। जैसे सुदामा कहते हैं कृष्ण की दोस्ती भी एक साधना हैं।
46. जो रहीम गति दीप की, कुल कपूत गति सोय,
बारे उजियारो लगे, बढे अँधेरो होय।।
अर्थ: दिये के चरित्र जैसा ही कुपुत्र का भी चरित्र होता हैं। दोनों ही पहले तो उजाला करते हैं पर बढ़ने के साथ अंधेरा होता जाता हैं।
47. अंड न बौड़ रहीम कहि, देखि सचिक्कन पान।
हस्ती-ढक्का, कुल्हड़िन, सहैं ते तरुवर आन॥अर्थ47. अंड न बौड़ रहीम कहि, देखि सचिक्कन पान।
हस्ती-ढक्का, कुल्हड़िन, सहैं ते तरुवर आन॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि वृक्ष की सुंदरता उसकी जड़ों या पत्तों से नहीं, बल्कि वह कठिन परिस्थितियों और प्रहारों को कितना सहन करता है, इससे उसकी श्रेष्ठता साबित होती है।
48. बड़े काम ओछो करै, तो न बड़ाई होय।
ज्यों रहीम हनुमंत को, गिरिधर कहे न कोय।।
अर्थ: रहीम कहते हैं कि जब ओछे ध्येय के लिए लोग बड़े काम करते हैं तो उनकी बड़ाई नहीं होती है। जब हनुमान जी ने द्रोणागिरी पर्वत को उठाया था तो उनका नाम ‘गिरिधर’ नहीं पड़ा क्योंकि उन्होंने पर्वत राज को क्षति पहुंचाई थी, पर जब श्री कृष्ण ने पर्वत उठाया तो उनका नाम ‘गिरिधर’ पड़ा क्योंकि उन्होंने सर्व जन की रक्षा हेतु पर्वत को उठाया था।
49. जे सुलगे ते बुझि गये बुझे तो सुलगे नाहि
रहिमन दाहे प्रेम के बुझि बुझि के सुलगाहि।।
अर्थ: आग सुलग कर बुझ जाती है और बुझने पर फिर सुलगती नहीं है। प्रेम की अग्नि बुझ जाने के बाद पुनः सुलग जाती है। भक्त इसी आग में सुलगते हैं ।
50. धनि रहीम गति मीन की जल बिछुरत जिय जाय
जियत कंज तजि अनत वसि कहा भौरे को भाय।।
अर्थ: इस दोहे में बताया गया है कि मछली का प्रेम धन्य है जो जल से बिछड़ते हीं मर जाती है। भौरा का प्रेम छलावा है जो एक फूल का रस ले कर तुरंत दूसरे फूल पर जा बसता है। जो केवल अपने स्वार्थ के लिए प्रेम करता है वह स्वार्थी है।
FAQs
रहीम के सबसे प्रचलित दोहे प्रेम, विनम्रता, और नैतिक जीवन पर आधारित हैं, जैसे “रहिमन धागा प्रेम का” और “बड़े बड़ों को देत हैं”।
रहीमदास भक्ति काल के प्रसिद्ध कवि और समाज सुधारक थे, जो सरल भाषा में जीवन और मानवता के मूल्य गाते थे।
इस दोहे का अर्थ है कि पानी को बचा कर रखिए क्योंकि बिना पानी के सब सुना है, पानी के जाने से मोती अपनी चमक खो देता है, चुना सुख कर बेकार हो जाता है ठीक उसी प्रकार सम्मान के खो जाने से मनुष्य के जीवन का कोई अर्थ नहीं रह जाता है।
आशा है कि इस लेख में दिए गए रहीम के दोहे आपकी परीक्षा की दृष्टि से उपयोगी साबित होंगे। ऐसे ही स्कूल एजुकेशन से संबंधित अन्य लेख पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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अर्पित जी, आपका शुक्रिया। हम जल्द ही अपने ब्लॉग में इस जानकारी को अपडेट करेंगे।
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5 comments
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mujhe rahim ki doho ko padhakr bahut achha lag raha hai.
rahim ke dohe us kaal ki rachana h jab adhunikta utni vyapt nhi thi, lekin in doho ko padhkar aaj ke aadhunik kaal karam me bhi mujhe apne aproch ko sahi disha dene ka margdarshan mila.
thans for your article.
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