जानें नोबेल पुरस्कार पाने वाले पहले भारतीय के बारे में!

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Rabindranath Tagore

भारत की महान हस्तियों की बात करें तो Rabindranath Tagore एक ऐसा नाम है जो दिमाग में आता है। अनचाहे बाल और झाड़ीदार दाढ़ी और परोपकारी व्यवहार उस विद्वान की विशेषता है जिसने भारतीय समाज को उतना ही प्रभावित किया है जितना महात्मा गांधी ने किया था। एक बहुरूपिया जिसने चित्रकला में उत्कृष्ट कृतियों का निर्माण किया और कविता में अमिट विरासत भी छोड़ी। एक दार्शनिक, चित्रकार, कवि, मानवतावादी, कहानीकार और एक उपन्यासकार, उनकी प्रतिभा बेमिसाल है। Rabindranath Tagore की शिक्षा स्थिर नहीं रही क्योंकि इससे उनकी साजिश नहीं की लेकिन उनके शिष्य उन्हें गुरुदेव मानते थे । रवींद्रनाथ टैगोर की जीवनी टैगोर शांतिनिकेतन के संरक्षक हैं , उनके पिता द्वारा स्थापित स्कूल। भारत में प्लेटो की अकादमी के समकक्ष के रूप में देखा गया, स्कूल ने उपनिषदिक को संयोजित किया आधुनिक शिक्षा के साथ शिक्षण के सिद्धांत। साहित्य और अन्य क्षेत्रों में उनके योगदान के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध, भारतीय संस्कृति का अंतर्राष्ट्रीयकरण करने में टैगोर की भूमिका ने कई विश्वविद्यालयों को भारतीय संस्कृति और प्रथाओं पर पाठ्यक्रम पेश करना शुरू कर दिया है जो भारत में चिकित्सा और अन्य क्षेत्रों में मूल हैं।

जन्म7 मई 1861
पिताश्री देवेन्द्रनाथ टैगोर
माताश्रीमति शारदा देवी
जन्मस्थानकोलकाता के जोड़ासाकों की ठाकुरबाड़ी
धर्महिन्दू
राष्ट्रीयताभारतीय
भाषाबंगाली, इंग्लिश
उपाधिलेखक और चित्रकार
प्रमुख रचनागीतांजलि
पुरुस्कारनोबोल पुरुस्कार
म्रत्यु7 अगस्त 1941

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Rabindranath Tagore का प्रारंभिक जीवन

8 मई, 1861 को सुधारकों, विचारकों और शिक्षाविदों के एक उच्च शिक्षित परिवार में कोलकाता में जन्मे Rabindranath Tagore के पिता महर्षि देवेंद्रनाथ और मां शारदा देवी ने बचपन से ही उनके प्रयासों में उनका साथ दिया। Rabindranath Tagore अपने तेरह भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। उनके बड़े भाई एक कवि और उनकी बहन एक प्रसिद्ध उपन्यासकार थे, जिससे उन्हें कलकत्ता सहित विभिन्न कवियों और दार्शनिकों के कार्यों को पढ़ने के लिए प्रभावित किया। Rabindranath Tagore की शिक्षा के लिए परिवार के सदस्यों द्वारा कई प्रयास किए गए थे, लेकिन कम उम्र के दौरान, उन्होंने मानव जाति की सेवा और साहित्य पढ़ने में अपने जीवन को समर्पित करने के लिए अपने भीतर का आह्वान किया था। 16 साल की उम्र में, उन्होंने छद्म नाम भानु सिम्हा के तहत अपनी कविताओं का प्रकाशन शुरू किया’। नए भारत की आवाज बनकर, Rabindranath Tagore देश में शैक्षिक मानक को सुधारने में सबसे आगे थे। वह ज्ञान और सीखने के क्षेत्र में तल्लीन थे, जिसने उन्हें पश्चिमी विचारकों के कार्यों का पता लगाने के लिए प्रेरित किया, जिन्होंने उन्हें एक दार्शनिक के रूप में चिह्नित किया।

“प्रसन्न रहना बहुत सरल है, लेकिन सरल होना बहुत कठिन है।”-रबीन्द्रनाथ ठाकुर

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Rabindranath Tagore की शिक्षा

भारत के शैक्षिक इतिहास में प्रतिष्ठित व्यक्ति होने के नाते, Rabindranath Tagore देश में उस समय प्रचलित शिक्षा प्रणाली से संतुष्ट नहीं थे, जिससे उन्हें इससे अलग कर दिया। एक शिक्षित परिवार में पैदा होने के बावजूद, Rabindranath Tagore ने स्कूल में पढ़ाई नहीं की और घर पर ही शिक्षा प्राप्त की। यद्यपि 1878 में उन्हें औपचारिक स्कूली शिक्षा के लिए इंग्लैंड भेजा गया, लेकिन उन्होंने अपनी पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी।

उनके पिता चाहते थे कि वह एक बैरिस्टर बनें और उनकी भाभी ने उनके पिता की इच्छा का पीछा करने में उनका साथ देने के लिए इंग्लैंड में उनका साथ दिया, लेकिन उन्होंने उन्हें अपने दिल का अनुसरण करने से पीछे नहीं हटाया। बाद में Rabindranath Tagore को यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में दाखिला लिया गया जहां उन्हें लॉ की पढ़ाई करनी थी, लेकिन वह अपने जुनून का पालन करने के लिए दृढ़ थे और उन्होंने अपने दम पर शेक्सपियर के कामों का अध्ययन करना चुना। इंग्लैंड में अपने समय के दौरान, उन्होंने अंग्रेजी, आयरिश और स्कॉटिश साहित्य का अध्ययन किया।

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Rabindranath Tagore का विवाह

1883 में Rabindranath Tagore ने मृणालिनी देवी से शादी की थी। फिर इनके पांच बच्चे हुए। अफसोस की बात है कि उनकी पत्नी का 1902 में निधन हो गया था और बाद में उनकी दो संतान रेणुका (1903 में) और समन्द्रनाथ (1907 में) का भी निधन हो गया था ।

Rabindranath Tagore का करियर

Rabindranath Tagore ने इंग्लैंड से वापस आने के बाद और अपने शादी से लेकर सन 1901 तक पूरा समय सिआलदा ( बांग्लादेश के अंदर स्थित है)  अपने परिवार के साथ बिताया था। उनके बच्चे और  पत्नी भी उनके साथ  वर्ष 1898  रहने लगे थे। Rabindranath Tagore  ने अपने जागीर में बहुत समय तक भ्रमण किया और गरीब लोगों का जीवन बहुत ही करीबी से देखा था। उन्होंने वर्ष  1891 से 1895 तक ग्रामीण आधारित लघु कथाएं लिखी थी।

“सिर्फ तर्क करने वाला दिमाग एक ऐसे चाक़ू की तरह है जिसमे सिर्फ ब्लेड है। यह इसका प्रयोग करने वाले को घायल कर देता है।”-रबीन्द्रनाथ ठाकुर

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Rabindranath Tagore वर्ष 1901 में शांतिनिकेतन चले गए थे, एक आश्रम स्थापित करना चाहते थे। Rabindranath Tagore ने स्कूल , पुस्तकालय और पूजा स्थल का भी निर्माण किया है। उन्होंने बहुत सारे पेड़ और एक सुंदर बगीचा भी बनाया था। उसी स्थान पर उनकी पत्नी और दो बच्चों की भी मौत हो गई थी। सन 1905 मैं उनके पिताजी भी चल बसे थे। फिर इसके बाद उन्हें अपनी विरासत से मिली संपत्ति से मासिक आमदनी साथ ही साथ होने लगी थी और इसके साथ कुछ आमदनी उनके साहित्य की  royalty से भी मिलने लगी थी। 

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Rabindranath Tagore की यात्राएं

Rabindranath Tagore ने सन 1878 से लेकर सन 1932 के दौरान कुल 30 देशों की यात्रा की थी। उनकी यात्राओं का सबसे मुख्य मकसद यह था कि अपनी साहित्यिक रचनाओं को उन सभी तक पहुंचाना था जिन्हें बंगाली भाषा समझ में नहीं आती थी। विलियम बटलर यीटस जो अंग्रेजी के प्रसिद्ध कवि थे उन्होंने गीतांजलि का अंग्रेजी अनुवाद का प्रस्तावना लिखा था। Rabindranath Tagore जी शिलोन ( जो अभी श्रीलंका के अंदर स्थित है ) सन 1932 की अंतिम विदेश यात्रा थी।

Rabindranath Tagore का साहित्य

लोग Rabindranath Tagore को एक कवि के रूप में ही ज्यादातर जानते हैं परंतु वास्तव में ऐसा बिल्कुल भी नहीं था।कविताओं के साथ-साथ उन्होंने लेख,  लघु कहानियाँ, उपन्यास, यात्रा वृत्तांत,  ड्रामा और हजारों गीत भी लिखे थे।

“फूल की पंखुड़ियों को तोड़ कर आप उसकी सुंदरता को इकठ्ठा नहीं करते।  “- रबीन्द्रनाथ ठाकुर

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Rabindranath Tagore संगीत और कला

Rabindranath Tagore एक महान कवि और  साहित्यकार के साथ एक उत्कृष्ट संगीतकार और पेंटर भी थे। उन्होंने अपने जीवन में लगभग 2230 गीत लिखे थे- इन सभी चीजों को रवींद्र संगीत के नाम से जाना जाता है। या बंगाली संस्कृति का अभिन्न अंग में से एक है। 

  • भारत और बांग्लादेश के राष्ट्रीय गीत भी Rabindranath Tagore  द्वारा ही लिखी गई है।
  • यह राष्ट्रगीत भी रविंद्र संगीत का हिस्सा है।
  • जब Rabindranath Tagore की उम्र लगभग 25 साल की हुई तब उन्होंने और चित्रकला में नीचे दिखाना प्रारंभ किया था।

कैसे मिला टैगोर को नोबेल पुरस्कार

Rabindranath Tagore को उनकी रचना ‘गीतांजलि’ के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था। गीतांजलि मूलत: बांग्ला में लिखी गई थी। जिसके बाद टैगोर ने इन कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद करना शुरू किया। कुछ अनुवादित कविताओं को उन्होंने अपने एक चित्रकार दोस्त विलियम रोथेंसटाइन से साझा किया। विलियम को कविताएं काफी पसंद आईं। उन्होंने ये कविताएं प्रसिद्ध कवि डब्ल्यू. बी. यीट्स को पढ़ने के लिए दी। उन्हें भी ठी वैसे ही ये कविताएं पसंद आईं और वे इन कविताओं को पढ़कर इतने खुश हो गए थे कि उन्होंने गीतांजलि किताब भी पढ़ने के लिए मंगवाई। धीरे-धीरे पश्चिमी साहित्य जगत में गीतांजलि काफी प्रसिद्ध होने लगी। आखिरकार 1913 में उन्हें साहित्य का नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

जब टैगोर ने ठुकराया नाइटहुड जैसा महान सम्मान

टैगोर हमेशा से एक राष्ट्रवादी नेता रहे थे उन्होंने 1919 में जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश नीतियों का विरोध करने के लिए अपना नाइटहुड (Knighthood) सम्मान छोड़ दिया था। आपको बता दें कि उनको यह सम्मान 1915 में उच्च साहित्य के लिए अंग्रेजों ने दिया था।

भारत के अलावा लिखा 2 देशों के लिए राष्ट्र-गान

रबीन्द्रनाथ टैगोर ने भारतीय साहित्य को अप्रतिम योगदान दिया है और अपने देश को राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ दिया है। इसी को देखते हुए महात्मा गांधी ने उन्हें सम्मान देते हुए गुरूदेव की उपाधि दी थी। उनके द्वारा लिखा गया राष्ट्रगान गीत को 24 जनवरी 1950 में संविधान में जगह मिली। भारत के अलावा भी ऐसे दो और देश है जिनके राष्ट्रगान रबीन्द्रनाथ टैगोर ने लिखे हैं।

  • उनमें से एक देश है बांग्लादेश, जिसका राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ उन्होंने लिखा है।
  • श्रीलंका का भी राष्ट्रगान ‘नमो नमो माता’ रबीन्द्रनाथ ठाकुर की ही देन हैं।

रवीन्द्रनाथ टैगोर के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य

शारीरिक विकास –

रविंद्रनाथ टैगोर के अनुसार शिक्षा का सबसे पहला उद्देश्य है बालकों का शारीरिक विकास करना। बालकों का शारीरिक विकास तभी संभव है जब कि उन्हें सुखद प्राकृतिक वातावरण में स्वतंत्रता पूर्वक खेलने कूदने उठने बैठने का अवसर दिया जाएं। शरीर के विभिन्न अंगों तथा इंद्रियों को प्रशिक्षित किया जाएं। उनका तो यहां तक कहना था कि शारीरिक विकास के लिए अध्ययन भी टैग ना पड़े तो अनुचित नहीं होगा। रवींद्रनाथ टैगोर का कथन है कि,”पेड़ों पर चढ़ने, तालाबों में डुबकी लगाने, फलों को तोड़ने और बिखेरने और प्रकृति माता के साथ नाना प्रकार की शैतानियां करने से बालकों के शारीरिक विकास का मस्तिष्क का आनंद और बचपन के स्वाभाविक आवेगो की संतुष्टि प्राप्त होती है।”

मानसिक या बौद्धिक विकास –

रविंद्र नाथ टैगोर के अनुसार शारीरिक विकास के साथ-साथ शिक्षा का उद्देश्य मानसिक या बौद्धिक विकास भी करना है। वह पुस्तकों से विचार प्राप्त करना मानसिक विकास का केवल एक अंग मानते थे। उन्होंने पुस्तकों की बजाय प्रकृति और जीवन की वास्तविक परिस्थितियों से प्रत्यक्ष रूप से ज्ञान प्राप्त करने पर अधिक बल दिया है। रविंद्र नाथ टैगोर का कथन है,”पुस्तकों की बजाय प्रत्यक्ष रूप से जीवित व्यक्ति को जानने का प्रयास करना शिक्षा है। इससे ना केवल कुछ ज्ञान प्राप्त होता है बल्कि इससे जानने की शक्ति का विकास होता है। यह कक्षा में सोने जाने वाले व्याख्यानो से होना संभव है। यदि हमारे मस्तिष्क के संदेशों और कल्पना को वास्तविकता से पृथक कर दिया जाता है, तो वह निर्बल तथा विकृत हो जाते हैं।”

संवेगात्मक विकास –

बालक के शरीर, मन तथा संवेगो, तीनों का संपूर्ण विकास चाहते थे। अतः उन्होंने शारीरिक तथा मानसिक विकास के साथ-साथ संवेगात्मक विकास पर भी बल दिया है। उनके अनुसार कविता, संगीत, चित्रकला, नृत्य कला इत्यादि के द्वारा बालकों को संवेगात्मक प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए जिससे उनमें सौंदर्य, प्रेम, सहानुभूति इत्यादि स्वस्थ भावनाओं का विकास हो सके।

सामंजस्य की क्षमता का विकास –

रविंद्र नाथ टैगोर का विचार था कि बालको को जीवन की वास्तविक परिस्थितियां, विभिन्न सामाजिक स्थितियों तथा पर्यावरण की जानकारी कराई जाए और उनसे सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता का विकास किया जाए।

“इस समय हमारा ध्यान चाहने वाली प्रथम और महत्वपूर्ण समस्या है हमारी शिक्षा और हमारे जीवन में सामंजस्य स्थापित करने की समस्या।”

सामाजिक विकास –

टैगोर ने प्राकृतिक शिक्षा पर अधिक बल दिया लेकिन उन्होंने बालक के सामाजिक विकास पर भी बल दिया है। उनका कहना था कि बालकों में सामाजिक गुणों का विकास करना शिक्षा का एक अति महत्वपूर्ण उद्देश्य है। तभी वह स्वयं तथा समाज की प्रगति में हाथ बटा सकेंगे।

नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास

टैगोर ने शिक्षा का एक और महत्वपूर्ण उद्देश्य बताया, बालकों का नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास। इस विकास के लिए टैगोर ने अनेक नैतिक तथा आध्यात्मिक मूल्यों तथा आदर्शों को बताया जैसे अनुशासन का मूल्य, शांति और धैर्य का मूल्य, मनुष्य के आंतरिक विकास का मूल्य आदि। अनुशासन के मूल्य से टैगोर का तात्पर्य बालको में आत्म अनुशासन का विकास करना है। शांति और धैर्य के मूल्यों का प्राप्त करना अनुशासन का अंतिम लक्ष्य है। इस मूल्य की प्राप्ति से व्यक्ति में नम्रता की भावना का विकास होता है। आंतरिक विकास के मूल्यों से टैगोर का तात्पर्य है कि आंतरिक स्वतंत्रता एवं आंतरिक शक्ति तथा ज्ञान। मूल्य के महत्व एवं उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए डॉक्टर एच बी मुखर्जी ने लिखा है,-“आंतरिक स्वतंत्रता के इस आदर्श को सब प्रकार की दासता से मुक्ति के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। इसका उद्देश्य मस्तिष्क को पुस्तकिय ज्ञान के आधिपत्य से स्वतंत्र करना है।”

“मौत प्रकाश को ख़त्म करना नहीं है; ये सिर्फ भोर होने पर दीपक बुझाना है।”- रबीन्द्रनाथ ठाकुर

रवीन्द्रनाथ टैगोर के शैक्षिक दर्शन

  • छात्रों में संगीत, अभिनय एवं चित्रकला की योग्यताओं का विकास किया जाना चाहिये।
  • छात्रों को भारतीय विचारधारा और भारतीय समाज की पृष्ठभूमि का स्पष्ट ज्ञान प्रदान किया जाना चाहिये।
  • छात्रों को उत्तम मानसिक भोजन दिया जाना चाहिये, जिससे उनका विकास विचारों के पर्यावरण में हो।
  • छात्रों को नगर की गन्दगी और अनैतिकता से दूर प्रकृति के घनिष्ठ सम्पर्क में रखकर शिक्षा दी जानी चाहिये।
  • शिक्षा राष्ट्रीय होनी चाहिये और उसे भारत के अतीत एवं भविष्य का पूर्ण ध्यान रखना चाहिये।

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Rabindranath Tagore की प्रमुख रचनाएं

  • गोरा (उपन्यास) -रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • अनमोल भेंट/मुन्ने की वापसी – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • अनाथ – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • अनाधिकार प्रवेश – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • अपरिचिता – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • अवगुंठन – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • अन्तिम प्यार – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • इच्छापूर्ण/इच्छा पूर्ति – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • कवि और कविता – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • कवि का हृदय – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • कंचन – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • काबुलीवाला – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • खोया हुआ मोती – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • गूंगी रबीन्द्रनाथ – टैगोर
  • जीवित और मृत – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • तोता – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • धन की भेंट – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • नई रोशनी – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • पत्नी का पत्र – रबीन्द्र- नाथ टैगोर
  • प्रेम का मूल्य – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • पाषाणी – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • पिंजर – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • भिखारिन – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • यह स्वतन्त्रता/घर वापसी – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • विद्रोही – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • विदा – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • समाज का शिकार – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • सीमान्त – रबीन्द्रनाथ टैगोर
  • पड़ोसिन – रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • संकट तृण का – रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • आधी रात में – रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • अतिथि – रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • एक रात – रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • पोस्टमास्टर – रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • मुसलमानी की कहानी – रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • एक छोटी पुरानी कहानी – रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • गिन्‍नी – रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • संपादक – रवीन्द्रनाथ ठाकुर
  • फूल का मूल्य – रवीन्द्रनाथ ठाकुर

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Rabindranath Tagore का अंतिम समय

Rabindranath Tagore ने अपने जीवन के अंतिम 4 साल पीड़ा और बीमारी में बिताये थे। वर्ष 1937 के अंत में वह अचेत हो गए और बहुत समय तक इसी अवस्था में रहे थे। लगभग तीन साल बाद एक बार फिर ऐसा ही हुआ था। रवींद्रनाथ टैगोर की जीवनी में इस दौरान वह जब कभी भी ठीक होते तो कविताएं लिखते थे और मन को हल्का करते थे । इस दौरान लिखी गयीं कविताएं उनकी बेहतरीन कविताओं में से एक हैं। लम्बी बीमारी के बाद 80 वर्ष की उम्र 7 अगस्त 1941 को Rabindranath Tagore ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया था।

“जो कुछ हमारा है वो हम तक तभी पहुचता है जब हम उसे ग्रहण करने की क्षमता विकसित करते हैं। “- रबीन्द्रनाथ ठाकुर

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Rabindranath Tagore की 10 कविताएँ 

1. Rabindranath Tagore Poems in Hindi 

(मेरा शीश नवा दो – गीतांजलि (काव्य)

मेरा शीश नवा दो अपनी
चरण-धूल के तल में।

देव! डुबा दो अहंकार सब
मेरे आँसू-जल में।

अपने को गौरव देने को
अपमानित करता अपने को,

घेर स्वयं को घूम-घूम कर
मरता हूं पल-पल में।

देव! डुबा दो अहंकार सब
मेरे आँसू-जल में।

अपने कामों में न करूं मैं
आत्म-प्रचार प्रभो;

अपनी ही इच्छा मेरे
जीवन में पूर्ण करो।

मुझको अपनी चरम शांति दो
प्राणों में वह परम कांति हो

आप खड़े हो मुझे ओट दें
हृदय-कमल के दल में।

देव! डुबा दो अहंकार सब
मेरे आँसू-जल में।

-रवीन्द्रनाथ टैगोर

2. Rabindranath Tagore Poems in Hindi – (होंगे कामयाब)

होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब एक दिन
मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास

हम होंगे कामयाब एक दिन।
हम चलेंगे साथ-साथ

डाल हाथों में हाथ
हम चलेंगे साथ-साथ, एक दिन

मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास
हम चलेंगे साथ-साथ एक दिन।

3. Rabindranath Tagore Poems in Hindi – (चल तू अकेला!)

तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो तू चल अकेला,
चल अकेला, चल अकेला, चल तू अकेला!
तेरा आह्वान सुन कोई ना आए, तो चल तू अकेला,

जब सबके मुंह पे पाश..
ओरे ओरे ओ अभागी! सबके मुंह पे पाश,

हर कोई मुंह मोड़के बैठे, हर कोई डर जाय!
तब भी तू दिल खोलके, अरे! जोश में आकर,

मनका गाना गूंज तू अकेला!
जब हर कोई वापस जाय..

ओरे ओरे ओ अभागी! हर कोई बापस जाय..
कानन-कूचकी बेला पर सब कोने में छिप जाय…

4. Rabindranath Tagore Poems in Hindi – (नहीं मांगता)

नहीं मांगता, प्रभु, विपत्ति से,
मुझे बचाओ, त्राण करो

विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान, करो।

नहीं मांगता दुःख हटाओ
व्यथित ह्रदय का ताप मिटाओ

दुखों को मैं आप जीत लूँ
ऐसी शक्ति प्रदान करो

विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान,करो।

कोई जब न मदद को आये
मेरी हिम्मत टूट न जाये।

जग जब धोखे पर धोखा दे
और चोट पर चोट लगाये –

अपने मन में हार न मानूं,
ऐसा, नाथ, विधान करो।

विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान,करो।

नहीं माँगता हूँ, प्रभु, मेरी
जीवन नैया पार करो

पार उतर जाऊँ अपने बल
इतना, हे करतार, करो।

नहीं मांगता हाथ बटाओ
मेरे सिर का बोझ घटाओ

आप बोझ अपना संभाल लूँ
ऐसा बल-संचार करो।

विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान,करो।

सुख के दिन में शीश नवाकर
तुमको आराधूँ, करूणाकर।

औ’ विपत्ति के अन्धकार में,
जगत हँसे जब मुझे रुलाकर

तुम पर करने लगूँ न संशय,
यह विनती स्वीकार करो।

विपदा में निर्भीक रहूँ मैं,
इतना, हे भगवान, करो।

5. Rabindranath Tagore Poems in Hindi – (मन जहां डर से परे है)

“मन जहां डर से परे है और सिर जहां ऊंचा है; ज्ञान जहां मुक्त है;
और जहां दुनिया को संकीर्ण घरेलू दीवारों से छोटे छोटे टुकड़ों में बांटा नहीं गया है;

जहां शब्द सच की गहराइयों से निकलते हैं;
जहां थकी हुई प्रयासरत बांहें त्रुटि हीनता की तलाश में हैं;

जहां कारण की स्पष्ट धारा है।।
जो सुनसान रेतीले मृत आदत के वीराने में अपना रास्*ता खो नहीं चुकी है;

जहां मन हमेशा व्*यापक होते विचार और सक्रियता में तुम्हारे जरिए आगे चलता है
और आजादी के स्*वर्ग में पहुंच जाता है ओ पिता मेरे देश को जागृत बनाओ”

Source : Study IQ Education

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