Om Prakash Valmiki: ओमप्रकाश वाल्मीकि हिंदी दलित साहित्य के प्रतिनिधि रचनाकारों में से एक माने जाते हैं। जिनकी रचनाओं में दलित जीवन का दुःख-सुख, उपेक्षाएँ, त्रासदी, शोषण व अत्याचार का संजीव चित्रण देखने को मिलता हैं। ओमप्रकाश वाल्मीकि जी का अधिकांश साहित्य दलित जीवन से संबंधित था। वहीं हिंदी दलित साहित्य के विकास में ओमप्रकाश वाल्मीकि जी की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। हिंदी दलित साहित्य में अपना विशेष योगदान देने के लिए उन्हें ‘डॉ.अंबेडकर सम्मान’, ‘कथाक्रम सम्मान’, ‘न्यू इंडिया बुक पुरस्कार’ व अन्य कई पुरस्कारों व सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका हैं।
ओमप्रकाश वाल्मीकि जी ने हिंदी साहित्य की गद्य और पद की दोनों विधाओं में साहित्य का सृजन किया है। बता दें कि उनकी कई रचनाएँ जिनमें ‘सदियों का संताप’ (काव्य-संग्रह), ‘सलाम’ और ‘घुसपैठिए’ (कहानी-संग्रह) व ‘जूठन’ (आत्मकथा) आदि को स्कूल के साथ ही बी.ए. और एम.ए. के सिलेबस में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता हैं। वहीं बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएच.डी. की डिग्री प्राप्त की हैं
इसके साथ ही UGC/NET में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए भी ओमप्रकाश वाल्मीकि का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है। आइए अब हम प्रसिद्ध कवि-गद्यकार ‘ओमप्रकाश वाल्मीकि’ जी (Om Prakash Valmiki) का संपूर्ण जीवन परिचय और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
नाम | ओमप्रकाश वाल्मीकि (Om Prakash Valmiki) |
जन्म | 30 जून, 1950 |
जन्म स्थान | बरला गांव, मुजफ्फरनगर, उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | श्री छोटनलाल |
माता का नाम | श्रीमती मुकुंदी |
शिक्षा | एम.ए (हिंदी साहित्य) |
पेशा | लेखक, अभिनेता, निर्देशक, ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में एक अधिकारी। |
भाषा | हिंदी |
विधाएँ | काव्य, कहानी, आत्मकथा, आलोचना |
काव्य-संग्रह | सदियों का संताप, बस बहुत हो चुका, अब और नहीं आदि। |
कहानी-संग्रह | सलाम, घुसपैठिए, छतरी आदि। |
आत्मकथा | जूठन |
आलोचना | दलित साहित्य का सौंदर्य शास्त्र, सफाई देवता, मुख्यधारा और दलित साहित्य। |
साहित्य काल | आधुनिक काल |
पुरस्कार एवं सम्मान | ‘डॉ.अंबेडकर सम्मान’, ‘कथाक्रम सम्मान’, ‘न्यू इंडिया बुक पुरस्कार’ आदि। |
निधन | 17 नवंबर, 2013 |
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ओमप्रकाश वाल्मीकि का प्रारंभिक जीवन
हिंदी दलित साहित्य के पुरोधा ओमप्रकाश वाल्मीकि जी का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के बरला गांव में हुआ था। उनकी जन्मतिथि के संदर्भ में बता दें कि जब उनके पिता ‘श्री छोटनलाल’ स्कूल में उनका दाखिला कराने गए तो उस समय उन्हें अपने पुत्र की जन्म तिथि याद नहीं थी। इसलिए एक अनुमान के अनुसार उन्होंने 30 जून, 1950 को उनकी जन्मतिथि विद्यालय के मास्टर जी को बता दी। जिसे स्कूल के रिकॉर्ड में दर्ज किया गया और इस तरह यह ओमप्रकाश वाल्मीकि जी की जन्म तिथि बन गयी। जिसके बाद उन्होंने भी बाद में इसमें कोई बदलाव नहीं किया।
ओमप्रकाश वाल्मीकि एक सयुंक्त परिवार में रहते थे जहाँ उनके माता- पिता के साथ साथ पांच भाई, एक बहन, दो चाचा व एक ताऊ रहते थे। उनकी माता का नाम ‘मुकुंदी’ था जो कि एक गृहणी थीं।
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संघर्षमय बीता बचपन
अपने परिवार में सबसे छोटी संतान होने के कारण उनके माता-पिता ने उनकी शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया। किंतु उनका शुरूआती जीवन संघर्षमय और कठिनाइयों में बीता। अनपढ़ होने के कारण परिवार के सदस्यों को गांव के उच्च वर्ग के लोगों के घर पर साफ-सफाई, मेहनत मजदूरी व खेती-बाड़ी करके अपना जीवन यापन करना पड़ता था। लेकिन इन कामों के बदले उन्हें मेहनताने के रूप में कुछ पैसे और अनाज के साथ-साथ अपमान और शोषण का भी सामना करना पड़ता था।
ओमप्रकाश वाल्मीकि स्वयं अपनी आत्मकथा में बताते हैं कि – चारों ओर गंदगी भरी होती थी और उससे इतनी दुर्गंध आती थी कि वहां रहना मुश्किल हो जाता था। वहीं तंग गलियों में घूमते जंगली जानवर, नग-धड़ंग बच्चे व रोजमर्रा के आपसी झगड़े के बीच उनका बचपन बीता।
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आर्थिक तंगी से जूझते हुए प्राप्त की शिक्षा
एक दलित परिवार में जन्म होने के कारण ओमप्रकाश वाल्मीकि जी को शिक्षा के दौरान कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। किंतु उन्हें शिक्षित बनाने में उनके परिवार का विशेष योगदान रहा। ओमप्रकाश वाल्मीकि जी ने घर के कार्यों के साथ ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा बरला गाँव में ‘सेवक राम मसीही’ की पाठशला से अक्षर ज्ञान की शुरुआत की। इसके बाद बड़ी मुश्किलों से उनका दाखिला गांव के प्राइमरी विद्यालय में हुआ। बता दें कि ये वो दौर था जब दलित बच्चो को विद्यालय में दाखिला पाना आसान नहीं था। वहीं दलित वर्ग के बच्चे कभी जाति के नाम और तो कभी आर्थिक समस्या के कारण शिक्षा से वंचित रह जाते थे।
प्राइमरी शिक्षा के बाद ओमप्रकाश वाल्मीकि जी की आगे की राह बिल्कुल भी आसान नहीं थी। इसके बाद उन्होंने गांव के ही ‘त्यागी इंटर कॉलेज’ में बड़ी मुश्किल से दाखिला मिला था जिसका बाद में नाम बदलकर ‘बरला इंटर कॉलेज’ रखा गया। आर्थिक तंगी और अनेक समस्याओं से जूझते हुए उन्होंने 10वीं कक्षा की परीक्षा उच्च अंकों के साथ पास की। किंतु जाति-भेद का शिकार होने के कारण 12वीं की कक्षा में फेल हो गए। उसके बाद उन्होंने बरला स्कूल को छोड़ दिया और अपना दाखिला देहरादून के ‘डी.ए.वी कॉलेज’ में करा लिया लेकिन यहाँ भी जातिवाद के दंश ने उनका पीछा न छोड़ा।
अपनी शिक्षा के दौरान ही ओमप्रकाश वाल्मीकि जी ‘महात्मा गांधी’, ‘बी.आर अंबेडकर’ व अन्य रचनाकारों के पुस्तकों का अध्ययन करना शुरू किया जिससे उनके जीवन को एक नई दिशा मिली। 12वीं कक्षा के बाद उन्होंने अपनी आगे की पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी जिसके बाद वह महाराष्ट्र के चंद्रपुर में एक ‘ऑर्डिनेंस फैक्ट्री’ में डिजाइनर के तौर पर कार्य करने लगे। तकरीबन 13 वर्ष के बाद उनका तबादला दोबारा देहरादून में ही हो गया जिसके बाद ओमप्रकाश वाल्मीकि जी ने ‘हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय’ (Hemvati Nandan Bahuguna Garhwal University) से अपनी बी.ए और वर्ष 1992 में एम.ए (हिंदी साहित्य) की डिग्री प्राप्त की।
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वैवाहिक जीवन
ओमप्रकाश वाल्मीकि जी की पत्नी का नाम ‘चंद्रा’ है, जिनसे उनका विवाह 27 दिसंबर 1973 को हुआ था। बता दें कि चंद्रा ओमप्रकाश वाल्मीकि जी की भाभी स्वर्णलता की छोटी बहन थी। वहीं जब उनका विवाह हुआ उस समय वह इंटर की छात्रा थी।
विस्तृत रहा कार्यक्षेत्र
अपनी शिक्षा के साथ ही उन्होंने जीवनयापन व आर्थिक तंगी के कारण कई प्रकार के कार्य किए। जहाँ उन्होंने स्थानीय बच्चो को ट्यूशन पढ़ाने, समान ढोने व अन्य कई प्रकार के कार्य किए। जिसके कुछ समय बाद उनका चयन बतौर ‘ऑर्डिनेंस फैक्ट्री’ में एक डिजाइनर के रूप में हुआ। यहाँ कई वर्षों तक कार्य करने के बाद उन्होंने कुछ समय तक भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के ‘उत्पादक विभाग’ (Production Department) में भी अपनी सेवाएं दी। क्या आप जानते हैं कि ओमप्रकाश वाल्मीकि जी एक मंझे हुए अभिनेता और निर्देशक भी थे। जिन्होंने लगभग 60 से अधिक नाटकों में अभिनय व कई नाटकों का निर्देशन किया है।
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मुंशी प्रेमचंद के दलित लेखन का प्रभाव
ओमप्रकाश वाल्मीकि जी (Om Prakash Valmiki) पर उपन्यास सम्राट ‘मुंशी प्रेमचंद’ की रचनाओं में दलित लेखन का गहरा प्रभाव पड़ा। ‘राजभाषा वेबसाइट’ के मुताबिक उनका कहना था कि “प्रेमचंद्र का अध्ययन करना दलित ही नहीं बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए जरूरी है जो साहित्य को जरूरी मानता है” ओमप्रकाश वाल्मीकि ने अपने एक लेख ‘मेरा लिखने का कारण’ में कहा है कि मेरी रचनाओं में हजारों साल की घुटन, अंधेरे में गूंजती चीत्कारें और भीषण यातनाताओं से मुक्ति होने का प्रयास ही नजर आता है।
ओमप्रकाश वाल्मीकि की साहित्यिक रचनाएँ
ओमप्रकाश वाल्मीकि जी (Om Prakash Valmiki) ने आधुनिक हिंदी दलित साहित्य में गद्य और पद्य दोनों ही विधाओं में साहित्य का सृजन किया है। उनकी रचनाओं में दलित वर्ग का संघर्ष, पीड़ितों के दर्द और अत्याचार का संजीव चित्रण देखने को मिलता है। उन्होंने मुख्यत कहानी, कवित, आत्मकथा और आलोचना के माध्यम से कई अनुपम रचनाएँ की हैं, जो कि इस प्रकार हैं:-
कहानी-संग्रह
- सदियों का संताप – वर्ष 1989
- बस बहुत हो चुका – वर्ष 1997
- अब और नहीं – वर्ष 2009
कहानी-संग्रह
- सलाम – वर्ष 2000
- घुसपैठिए – वर्ष 2004
- अम्मा एंड अदर स्टोरीज
आत्मकथा
- जूठन – वर्ष 1997
आलोचना
- दलित साहित्य का सौदर्य शास्त्र – वर्ष 2001
- मुख्यधारा और दलित साहित्य
- सफाई देवता – वर्ष 2009
पुरस्कार एवं सम्मान
ओमप्रकाश वाल्मीकि जी (Om Prakash Valmiki) को आधुनिक हिंदी दलित साहित्य में विशेष योगदान देने के लिए कई पुरस्कारों व सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है, जो कि इस प्रकार हैं:-
- डॉ. अंबेडकर सम्मान – वर्ष 1993
- परिवेश सम्मान – वर्ष 1995
- कथाक्रम सम्मान – वर्ष 2001
- न्यू इंडिया बुक पुरस्कार – वर्ष 2004
- साहित्य भूषण पुरस्कार – वर्ष 2009
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कैंसर के कारण हुआ निधन
ओमप्रकाश वाल्मीकि जी ने अपना संपूर्ण जीवन साहित्य का सृजन किया वहीं एक प्रतिष्ठित लेखक के रूप में हिंदी साहित्य जगत में अपनी एक अलग पहचान बनाई। किंतु कैंसर की घातक बीमारी के कारण उनका 17 नवंबर 2013 को निधन हो गया। लेकिन आधुनिक हिंदी दलित साहित्य में वह अपनी रचनाओं के लिए हमेशा याद किए जाते रहेंगे।
FAQs
ओमप्रकाश वाल्मीकि जी का जन्म उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के बरला गांव में हुआ था।
ओमप्रकाश वाल्मीकि जी की माता का नाम ‘मुकुंदी’ और पिता का नाम ‘छोटनलाल’ था।
उनकी आत्मकथा का नाम जूठन है जिसका प्रकाशन वर्ष 1997 में हुआ था।
बता दें कि यह ओमप्रकाश वाल्मीकि जी का काव्य संग्रह है जिसका प्रकाशन वर्ष 1989 में हुआ था।
ओमप्रकाश वाल्मीकि जी का कैंसर की बीमारी के कारण 17 नवंबर 2013 को निधन हो गया था।
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