30+ Kabir Ke Dohe in Hindi : कबीर के दोहे जो देंगे आपको एक नई सीख

1 minute read
Kabir Ke Dohe in Hindi

Kabir Das ji ke Dohe : “बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय।” यह प्रेरणादायक दोहा तो आपने सुना ही होगा यह दोहा है कबीरदास जी का, जिनका जन्म 15वीं शताब्दी सावंत 1455 राम तारा काशी में माना जाता है। कबीर दास, भारतीय भक्ति आंदोलन के प्रमुख संत, कवि और समाज सुधारक थे। उनकी रचनाएँ, विशेषकर उनके दोहे, आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी वे सदियों पहले थीं। कबीर के दोहे (Kabir Das ke Dohe) सरल भाषा में गहरी और गंभीर बातें कह जाते हैं, जो मानव जीवन के विविध पहलुओं को दर्शाते हैं। उनके दोहे हमें सच्चाई, प्रेम, धर्म और समाज की बुराइयों से लड़ने की प्रेरणा देते हैं। वे अपने समय के सामाजिक और धार्मिक विडंबनाओं का सजीव चित्रण करते हैं और हमें आत्मज्ञान की ओर अग्रसर करते हैं। उनके दोहे न केवल साहित्यिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे जीवन के मार्गदर्शन के रूप में भी अमूल्य हैं। इस ब्लॉग में कबीर के कुछ प्रसिद्ध दोहों (Kabir Ke Dohe in Hindi) का संग्रह दिया गया है।

कबीर दास के मशहूर दोहे

कबीर दास के कुछ मशहूर दोहे (Kabir Das ji ke Dohe) इस प्रकार हैं –

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।


लाडू लावन लापसी, पूजा चढ़े अपार,
पूजी पुजारी ले गया, मूरत के मुह छार ।।


पाथर पूजे हरी मिले, तो मै पूजू पहाड़ ।
घर की चक्की कोई न पूजे, जाको पीस खाए संसार ।।


जो तूं ब्राह्मण, ब्राह्मणी का जाया ।
आन बाट काहे नहीं आया ।।


माटी का एक नाग बनाके, पुजे लोग लुगाया ।
जिंदा नाग जब घर मे निकले, ले लाठी धमकाया ।।


माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।।


काल करे सो आज कर, आज करे सो अब।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ।।


ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग।
तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग।।


जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए ।
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए ।।


गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय ।।

कबीर के दोहे

कबीर दास के 20 दोहे – 20 Kabir Ke Dohe in Hindi

कबीर दास के 20 दोहे (20 Kabir Ke Dohe in Hindi) नीचे दिए गए हैं –

सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज। सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ।।


ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये। औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।।


ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये। औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।।


बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर ।।


बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय। जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ।।


दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय। जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ।।


चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये। दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए ।।


मलिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार। फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार ।।


जाती न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान। मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान ।।


 तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार। सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार ।।


नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए। मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ।।


कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी। एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ।।


जिनके नौबति बाजती, मैंगल बंधते बारि। एकै हरि के नाव बिन, गए जनम सब हारि ।।


मैं-मैं बड़ी बलाइ है, सकै तो निकसो भाजि। कब लग राखौ हे सखी, रूई लपेटी आगि ।।


उजला कपड़ा पहरि करि, पान सुपारी खाहिं। एकै हरि के नाव बिन, बाँधे जमपुरि जाहिं ।।


कहा कियौ हम आइ करि, कहा कहैंगे जाइ। इत के भये न उत के, चाले मूल गंवाइ ।।


‘कबीर’ नौबत आपणी, दिन दस लेहु बजाइ। ए पुर पाटन, ए गली, बहुरि न देखै आइ ।।


पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार। याते ये चक्की भली, पीस खाय संसार ।।


गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पाँय। बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो मिलाय ।।


निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें। बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए ।।

Kabir Das ke Dohe

कबीर दास के 10 दोहे – 10 Kabir Ke Dohe

कबीर दास के 10 दोहे (10 Dohe of Kabir) नीचे दिए गए हैं –

पानी केरा बुदबुदा, अस मानस की जात।
देखत ही छुप जाएगा है, ज्यों सारा परभात ।।


जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप ।
जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप ।।


जो घट प्रेम न संचारे, जो घट जान सामान ।
जैसे खाल लुहार की, सांस लेत बिनु प्राण ।।


ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग ।
प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ।।


तन को जोगी सब करे, मन को विरला कोय ।
सहजे सब विधि पाइए, जो मन जोगी होए ।।


प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए ।
राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए ।।


जिन घर साधू न पुजिये, घर की सेवा नाही ।
ते घर मरघट जानिए, भुत बसे तिन माही ।।


साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय ।।


जल में बसे कमोदनी, चंदा बसे आकाश ।
जो है जा को भावना सो ताहि के पास ।।


राम बुलावा भेजिया, दिया कबीरा रोय ।
जो सुख साधू संग में, सो बैकुंठ न होय ।।

कबीर के दोहे

कबीर दास के दोहे अर्थ सहित – Kabir ke Dohe with Meaning

कबीर दास के दोहे अर्थ सहित (Kabir ke Dohe with Meaning) नीचे दिए गए हैं –

यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान ।
शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ।

भावार्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि यह जो शरीर है वह विष से भरा हुआ है और गुरु है वह अमृत के समान है । अगर आपको शीश सर देने के बदले आपको अच्छी गुण मिल रहे हैं तो यह सबसे आसान सा सौदा है।

माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।

भावार्थ – कुमार जो बर्तन बनाता है तब मिट्टी को रोद  करता है उस समय मिट्टी कुमार से बोलती है कि अभी आप मुझे रोद रहे हैं, 1 दिन ऐसा आएगा जब आप इसी मिट्टी में विलीन हो जाओगे और मैं आपको रो दूंगी।

काल करे सो आज कर, आज करे सो अब ।
पल में परलय होएगी, बहुरि करेगा कब ।

भावार्थ – कबीर दास जी हमें यह समझाते हैं कि हम सब के पास समय बहुत ही कम है इसलिए जो काम हम काम कल करने वाले थे उसे आज करो और जो काम आज करने वाले हैं उसे अभी करो क्योंकि पल भर में प्रलय आ जाएगा तो आप अपना काम कब करोगे , इसमें हमें समय के महत्व के बारे में बताते हैं।

ज्यों तिल माहि तेल है, ज्यों चकमक में आग ।
तेरा साईं तुझ ही में है, जाग सके तो जाग ।

भावार्थ – कबीर दास जी हमें यह समझाते हैं  जैसे तेल के अंदर तेल होता है, आग के अंदर रोशनी होती है ठीक उसी प्रकार ईश्वर हमारी अंदर है, उसे ढूंढ सको तो ढूंढ लो।

जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होए ।
यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोए ।

भावार्थ – आपका मन हमेशा शीतल होना चाहिए अगर आपका मन शीतल है तो इस दुनिया में आपका कोई भी दुश्मन नहीं बन सकता।

गुरु गोविंद दोऊ खड़े ,काके लागू पाय ।
बलिहारी गुरु आपने , गोविंद दियो मिलाय ।।

भावार्थ – कबीर दास जी इस दोहे में हमें समझाते हैं अगर उनके सामने गुरु और भगवान को साथ में खड़े करते हैं तो आप किस के चरण स्पर्श करेंगे? वो कहते हैं गुरु ने अपने ज्ञान से उन्हें भगवान से मिलने का रास्ता बताया है तो उनके अनुसार गुरु की महिमा भगवान से भी ऊपर है इसलिए वह गुरु के चरण स्पर्श करना चाहेंगे।

सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज ।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए ।

भावार्थ – कबीर दास जी यह कहते हैं अगर वह पूरी धरती के बराबर इतना बड़ा कागज बना दे और दुनिया की सभी वृक्षों से कलम बना ले और सातों समुद्रों के बराबर सही बना ले तो भी वह गुरु के गुणों को लिखना असंभव है।

ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये ।
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए ।

भावार्थ – कबीर दास जी हमें यह समझाते हैं कि हमेशा ऐसी भाषा बोलने चाहिए जो सामने वाले को सुनने से अच्छा लगे और उन्हें सुख की अनुभूति हो और साथ ही खुद को भी आनंद का अनुभव हो।

ब ड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।

भावार्थ – कबीर दास जी कहते हैं की खजूर का पेड़ बहुत ही बड़ा होता है और वह किसी को छाया भी नहीं देता और साथ में उसके फल भी ऊंचाई पर लगते हैं, ठीक उसी तरह अगर आप किसी का भी भला नहीं कर पा रहे तो ऐसे बड़े होने का कोई भी फायदा नहीं है।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय ।
जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ।

भावार्थ – कबीर दास जी यह कहते हैं की वह सारा जीवन दूसरों की बुराइयां देखने में लगे रहे थे लेकिन जब उन्होंने अपने खुद में जाकर देखा तो उन्हें लगा कि उनसे बुरा इंसान कोई भी नहीं है। वह सबसे  स्वार्थी और बुरे हैं , ठीक उसी तरह दूसरे लोग भी दूसरे के अंदर बुराइयां देखते हैं परंतु खुद के अंदर कभी जाकर नहीं देखते अगर वह खुद के अंदर झांक कर देखे तो उन्हें भी पता चलेगा कि उनसे बुरा इंसान कोई भी नहीं है।

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ।

भावार्थ – कबीर दास जी हमें यह कहते हैं कि इंसान हमेशा दुख में ही भगवान को याद करता है परंतु सुख आने पर भगवान को भूल जाते हैं। परंतु अगर हम ईश्वर को सुख में भी याद करेंगे तो हमें दुख कभी नहीं आएगा।

चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये ।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए ।

भावार्थ – कबीर दास जी जब चलती चक्की को देखता है तब उनकी आंखों में से आंसू निकल आते हैं और कहते हैं कि चक्की के पाटों के बीच कुछ साबुत नहीं बचता।

मलिन आवत देख के, कलियन कहे पुकार ।
फूले फूले चुन लिए, कलि हमारी बार ।

भावार्थ – कबीरदास जी कहते हैं बगीचे में जब कलियां माली को आकर देखती है तब आपस में बातचीत करती है कि माली आज फूल को तोड़ कर ले कर गया फिर कल हमारी भी बारी आएगी।कबीर दास जी यह समझाना चाहते हैं कि आज आप जवान हैं तो कल आप  भी बुड्ढे हो जाओगे , और मिट्टी में भी मिल जाओगे।

जाती न पूछो साधू की, पूछ लीजिये ज्ञान ।
मोल करो तलवार का, पड़ा रहने दो म्यान ।

भावार्थ – कबीर दास जी यह कहते हैं साधु से हमें कभी भी उसकी जाति नहीं पूछनी चाहिए परंतु उनके साथ ज्ञान की बातें करनी चाहिए और उनसे ज्ञान लेना चाहिए। अगर मूल करना है तो तलवार से करो मैं उनको पड़े रहने दो।

 तीरथ गए से एक फल, संत मिले फल चार ।
सतगुरु मिले अनेक फल, कहे कबीर विचार ।

भावार्थ – कबीरदास जी कहते हैं कि तीर्थ करने से हमें एक पुण्य मिलता है परंतु संतों की संगति से हमें पूर्णिया मिलते हैं और अगर हमें सच्चे गुरु पाले तो जीवन में अनेक पुण्य मिलते है।

नहाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाए ।
मीन सदा जल में रहे, धोये बास न जाए ।

भावार्थ – कबीर के दोहे में कबीर दास जी हमें हमें यह कहते हैं कि हम कितना भी ना भूले लेकिन अगर मन साफ नहीं हुआ तो नहाने का कोई भी फायदा नहीं है जैसे मछली हमेशा पानी में ही रहती है परंतु वह साफ नहीं होती हमेशा मछली में से तेज बदबू आती ही रहती है।

कबीर सुता क्या करे, जागी न जपे मुरारी ।
एक दिन तू भी सोवेगा, लम्बे पाँव पसारी ।

भावार्थ – कबीर दास जी हमें या कहते हैं तो हमेशा सोया क्यों रहता है उठकर भगवान को याद कर ईश्वर की भक्ति कर एक दिन ऐसा आएगा जब तू लंबे समय तक सोया ही रह जाएगा।

कबीर के दोहे

कबीर के चेतावनी दोहे – Kabir Das ji ke Chetavani Dohe

कबीर के चेतावनी दोहे (Kabir Ke Chetavani Dohe in Hindi) इस प्रकार हैं –

जिनके नौबति बाजती, मैंगल बंधते बारि ।
एकै हरि के नाव बिन, गए जनम सब हारि ॥

मैं-मैं बड़ी बलाइ है, सकै तो निकसो भाजि ।
कब लग राखौ हे सखी, रूई लपेटी आगि ॥

उजला कपड़ा पहरि करि, पान सुपारी खाहिं ।
एकै हरि के नाव बिन, बाँधे जमपुरि जाहिं ॥

कहा कियौ हम आइ करि, कहा कहैंगे जाइ ।
इत के भये न उत के, चाले मूल गंवाइ ॥

`कबीर’ नौबत आपणी, दिन दस लेहु बजाइ ।
ए पुर पाटन, ए गली, बहुरि न देखै आइ ॥

पाहन पूजे हरि मिलें, तो मैं पूजौं पहार।
याते ये चक्की भली, पीस खाय संसार।।

पाखंड पर कबीर के दोहे – Pakhand Par Kabir Das ke Dohe

पाखंड पर कबीर के दोहे (Pakhand Par Kabir Das ke Dohe) यहां दिए गए हैं –

“लाडू लावन लापसी ,पूजा चढ़े अपार
पूजी पुजारी ले गया,मूरत के मुह छार !!”

“पाथर पूजे हरी मिले, तो मै पूजू पहाड़ !
घर की चक्की कोई न पूजे, जाको पीस खाए संसार !!”

“जो तूं ब्राह्मण , ब्राह्मणी का जाया !
आन बाट काहे नहीं आया !! ”

“माटी का एक नाग बनाके, पुजे लोग लुगाया !
जिंदा नाग जब घर मे निकले, ले लाठी धमकाया !!”

FAQs

कबीर के कुछ लोकप्रिय दोहे (Kabir Das ke Dohe) कौन से हैं?

कबीर के कुछ लोकप्रिय दोहे इस प्रकार हैं:
1. यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान।
2. शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।
3. सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज।
4. सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए।
5. ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये।
6. औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।

कबीर का बीज मंत्र?

मसि कागद छुयो नहीं, कलम गहो नहीं हाथ. वाले कबीर ने यहां भगवान गोस्वामी को जो बीज मंत्र दिया वही बीजक कहलाया है।

कबीर दास जी के गुरु मंत्र क्या है?

कबीर दास जी का गुरु मंत्र ‘राम राम’ ही मेरा गुरुमंत्र है और आप मेरे गुरु हैं।

उम्मीद है, आपको कबीर के दोहे (Kabir Ke Dohe in Hindi) पसंद आए होंगे। हिंदी साहित्य से जुड़े ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बनें रहें।

प्रातिक्रिया दे

Required fields are marked *

*

*

11 comments