जैसलमेर के साके : जानिए जैसलमेर में कितने साके हुए थे

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जैसलमेर के साके

 साका एक प्रकार का जौहर ही होता है। किसी भी हमले की आशंका को देखते हुए जब रानियां और राज परिवार की औरतें जलती हुई आग के कुँए में कूदकर स्वयं के प्राण त्याग देती थीं। ऐसा वे शत्रु से अपने सम्मान की रक्षा के लिए करती थीं। यहाँ जैसलमेर के साके के बारे में बताया जा रहा है।  

साका क्या होता है? 

साका राजस्थान की एक प्रसिद्ध प्रथा है, जिसमें महिलाओं को जौहर की ज्वाला में कूदने का निश्चय करते देख पुरुष केसरिया वस्त्र धारण कर मरने मारने के निश्चय के साथ दुश्मन सेना पर टूट पड़ते थे।

जैसलमेर के साके 

जैसलमेर में  कुल तीन साके हुए हैं।  

जैसलमेर के साके का विवरण 

यहाँ जैसलमेर के साके के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है : 

पहला साका 

 जैसलमेर का पहला साका 1294 ईस्वीं में हुआ था। इस समय जैसलमेर पर राजा महारावल मूलराज जेतसिंह का राज था। खिलजी की सेना ने उनके राज्य पर हमला किया तो जैसलमेर के मर्द केसरिया बाना पहनकर युद्ध भूमि में उतर गए। दूसरी ओर 22 हज़ार राजपूत वीरांगनाओं ने आग में  कूदकर जौहर कर लिया। यह शाका लगभग 12 साल तक चला था।  

दूसरा साका 

दूसरा शाका 1315 ईसवीं में हुआ। इस समय दूदा तिलोक सिंह जैसलमेर के राजा थे। फिरोज तुगलक का हमला हुआ। शाके की तैयारी हुई, क्षत्राणियों ने जौहर किया और वीर सैनिक अंतिम सांस तक लड़ते रहे। 

तीसरा साका 

जैसलमेर का तीसरा साका 1550 ईस्वी में हुआ था। उस समय जैसलमेर पर राजा लूणकरण का शासन था। लूणकरण का एक अफगानी मित्र था अमीर अली पठान। वह जैसलमेर आया और उसके ठहरने की व्यवस्था हुई। पठान को पता चला कि दुर्ग में कुछ एक सैनिक, राजा खुद व उसकी रानियां हैं तो उसने राजा से कहा कि उसकी बेगमें यहां की रानियों से मिलना चाहती हैं। राजा लूणकरण ने अपनी रानियों को डोली बैठाकर अमीर अली पठान की बेगमों से मिलने के लिए भेज दिया।  डोली में कुछ सैनिक भी गुप्त रूप से बैठे हुए थे। किन्तु रास्ते में यह भेद खुल गया। रास्ते में जौहर की कोई संभावना न देख, सैनिकों ने सभी स्त्रियों और रानियों को खुद ही अपनी तलवार से मार दिया।  

उम्मीद है कि इस ब्लॉग में आपको जैसलमेर के साके के बारे में जानकारी मिल गयी होगी। ऐसे ही अन्य रोचक और महत्वपूर्ण ब्लॉग पढ़ने के लिए बने रहिये Leverage Edu के साथ बने रहिए।

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