भवानी प्रसाद मिश्र हिंदी साहित्य में सहज लेखन और सहज व्यक्तित्व के लिए प्रसिद्ध हैं। वे छायावादोत्तर काल (1936-1947) के अग्रणी रचनाकार और गांधीवादी विचारक माने जाते हैं। साथ ही, वे दूसरे तार सप्तक के प्रमुख कवियों में से एक थे। उन्होंने हिंदी साहित्य में गद्य और पद्य दोनों विधाओं में अनुपम कृतियाँ रची हैं। साहित्य जगत में उनके विशेष योगदान को देखते हुए, भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मश्री’ और ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया है। वे उन चुनिंदा साहित्यकारों में से एक थे जिन्होंने साहित्य सृजन के साथ ही भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी अपनी अहम भूमिका निभाई थी। इस लेख में भवानी प्रसाद मिश्र का जीवन परिचय और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है।
| नाम | भवानी प्रसाद मिश्र |
| जन्म | 29 मार्च 1913 |
| जन्म स्थान | टिगरिया गांव, होशंगाबाद जिला, मध्य प्रदेश |
| पिता का नाम | सीताराम मिश्र |
| माता का नाम | गोमती देवी |
| शिक्षा | बी.ए |
| पेशा | लेखक, संपादक, स्वतंत्रता सेनानी |
| भाषा | हिंदी |
| विधाएँ | कविता, निबंध, संस्मरण, बाल साहित्य, अनुवाद |
| साहित्यिक काल | छायावादोत्तर काल |
| काव्य-संग्रह | ‘गीतफ़रोश’, ‘सतपुड़ा के जंगल’, ‘सन्नाटा’, ‘बुनी हुई रस्सी’ व ‘खुशबू के शिलालेख’ आदि। |
| संस्मरण | जिन्होंने मुझे रचा |
| निबंध | कुछ नीति कुछ राजनीति |
| बाल साहित्य | तुकों का खेल |
| संपादन | कल्पना (साप्ताहिक), विचार (साप्ताहिक) |
| पुरस्कार एवं सम्मान | ‘पद्मश्री’, ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘शिखर सम्मान’, व ‘ग़ालिब पुरस्कार’ आदि। |
| निधन | 20 फरवरी 1985 |
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मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में हुआ था जन्म
समादृत कवि और लेखक भवानी प्रसाद मिश्र का जन्म 29 मार्च 1913 को मध्य प्रदेश के होशंगाबाद ज़िले के टिगरिया गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम सीताराम मिश्र और माता का नाम गोमती देवी था। बताया जाता है कि उनके पिता उन्हें घर पर ही रामायण का पाठ कराते थे और कविताएँ सुनाते व याद कराते थे।
बाल्यावस्था से लेखन की शुरुआत
भवानी प्रसाद मिश्र को घर से ही साहित्यिक वातावरण मिला था, इसलिए साहित्य के प्रति उनका विशेष लगाव रहा। उन्होंने बाल्यावस्था से ही लेखन कार्य आरंभ कर दिया था। बी.ए. की पढ़ाई के दौरान उनकी भेंट विख्यात साहित्यकार माखनलाल चतुर्वेदी से हुई, जिनका उन पर गहरा प्रभाव पड़ा। इसके बाद वे राष्ट्रीय जागरण से संबंधित विषयों पर लेखन करने लगे, जो उनकी रचनात्मक पहचान बन गया।
क्यों कहा गया कविता का गांधी?
भवानी प्रसाद मिश्र एक गांधीवादी विचारक थे। वे युवावस्था से ही गांधी जी के विचारों से अत्यंत प्रभावित थे, इसलिए उन्होंने स्वयं एक विद्यालय खोलकर अध्यापन कार्य किया। उन्होंने गांधी वाङ्मय के हिंदी खंडों का संपादन करके कविता और महात्मा गांधी के बीच एक सेतु की भूमिका निभाई। इसी कारण उन्हें ‘कविता का गांधी’ भी कहा गया है।
भवानी प्रसाद मिश्र का साहित्यिक परिचय
भवानी प्रसाद मिश्र ने हिंदी साहित्य के छायावादोत्तर काल में मुख्य रूप से काव्य का सृजन किया। उनकी कविताओं की विशेषता यह थी कि वे सामान्य बोलचाल की भाषा और गद्य जैसे लगने वाले वाक्य विन्यास को भी कविता का रूप देने में सक्षम थे। यही कारण था कि उनकी कविताएँ लोक जीवन के अत्यंत निकट प्रतीत होती थीं।
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भवानी प्रसाद मिश्र की प्रमुख रचनाएं
छायावादोत्तर काल के प्रतिष्ठित कवि और लेखक भवानी प्रसाद मिश्र की प्रमुख रचनाएं इस प्रकार हैं:-
काव्य-संग्रह
- गीतफ़रोश
- सतपुड़ा के जंगल
- सन्नाटा
- बुनी हुई रस्सी
- खुशबू के शिलालेख
- चकित है दुख
- त्रिकाल संध्या
- व्यक्तिगत
- अनाथ तुम आते हो
- इदं न मम
- शरीर कविता फ़सलें और फूल
- मान सरोवर दिन
- सम्प्रति
निबंध
- कुछ नीति कुछ राजनीति
संस्मरण
- जिन्होंने मुझे रचा
बाल साहित्य
- तुकों के खेल
संपादन
- संपूर्ण गांधी वाङमय
- कल्पना (साप्ताहिक पत्रिका)
- विचार (साप्ताहिक पत्रिका)
- महात्मा गांधी की जय
- समर्पण और साधना
- गगनांचल
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भवानी प्रसाद मिश्र की भाषा शैली
भवानी प्रसाद मिश्र की भाषा अत्यंत प्रवाहपूर्ण, ओजस्वी और सरल है। उनकी कविता हिंदी की सहज लय की कविता मानी जाती है। मिश्र जी अपनी रचनाओं में बहुत ही सरल भाव से गहरी बात कह देते थे, जिससे उनकी अनुभूतिपरकता और आत्मिक गहराई का आभास होता है। उनकी कविताओं में बोलचाल की भाषा और गद्य जैसे वाक्य-विन्यास को भी कविता में ढालने की अद्भुत क्षमता थी। इसी कारण उनकी कविताएँ सहज थीं और जनमानस के अत्यंत निकट मानी जाती थीं।
पुरस्कार एवं सम्मान
भवानी प्रसाद मिश्र को हिंदी साहित्य में विशेष योगदान देने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा कई पुरस्कारों और सम्मानों से पुरस्कृत किया जा चुका है, जो कि इस प्रकार हैं:-
- पद्मश्री
- साहित्य अकादमी पुरस्कार – भवानी प्रसाद मिश्र को ‘बुनी हुई रस्सी’ काव्य-संग्रह के लिए वर्ष 1972 के साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- मध्य प्रदेश शासन का शिखर सम्मान
- ग़ालिब पुरस्कार
नरसिंहपुर में हुआ था निधन
भवानी प्रसाद मिश्र ने हिंदी साहित्य जगत में कई दशकों तक अनुपम काव्य कृतियों का सृजन किया। 20 फरवरी, 1985 को 71 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ। साहित्य जगत में उन्हें आज भी उनकी लोकप्रिय रचनाओं के लिए याद किया जाता है।
FAQs
उनकी प्रमुख रचनाएँ गीतफरोश, अंधेरी कविताएं, बुनी हुई रस्सी, इदं न मम्, गीतफ़रोश, सतपुड़ा के जंगल, फसलें व फूल, मानसरोवर दिल व तूस की आग आदि हैं।
भवानी प्रसाद मिश्र को ‘कविता का गांधी’ कहा गया है।
20 फरवरी 1985 को 71 वर्ष की आयु में उनका निधन हुआ।
आशा है कि आपको हिंदी कविता के लोकधर्मी रचनाकार भवानी प्रसाद मिश्र का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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