गोरखनाथ उत्तर भारत के महान पंडित, संस्कृतज्ञ, भारतीय धर्म-दर्शन के गहन अध्येता और प्रकांड चितंक थे। इसके साथ ही वे नाथ संप्रदाय के संस्थापक और नौ नाथों में से एक थे। सर्वप्रथम गोरखनाथ ने नाथपंथ को व्यवस्थित एवं व्यापक रूप प्रदान किया था। वहीं आदिनाथ के रूप में ‘शिव’ ही नाथपंथ के पुरस्कर्ता माने जाते हैं। सर्वप्रथम गोरखनाथ ने ही ‘आचार्य पतंजलि’ के योग दर्शन से ‘हठयोग’ को अपने मत और साहित्य में प्रचारित किया था। गोरखनाथ के गुरु का नाम ‘मत्स्येंद्रनाथ’ था।
गुरु गोरखनाथ की कई रचनाओं को विद्यालयों के साथ-साथ बी.ए. और एम.ए. के पाठ्यक्रमों में भी पढ़ाया जाता है। अनेक शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर शोध कर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। इसके अतिरिक्त, UGC-NET की हिंदी विषय की परीक्षा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के लिए भी गोरखनाथ का जीवन-परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन अत्यंत आवश्यक होता है। इस लेख में गुरु गोरखनाथ का जीवन परिचय और उनकी साहित्यिक रचनाओं की विस्तृत जानकारी दी गई है।
| नाम | गोरखनाथ |
| संप्रदाय | नाथ संप्रदाय |
| गुरु | मत्स्येंद्रनाथ |
| संस्थापक | नाथमठ और मंदिर |
| भाषा | संस्कृत व सधुक्क्ड़ी |
| रचनाएँ | पद, सबदी, नरवै बोध, आत्मबोध, मछिंद्र-गोरख बोध व ज्ञान तिलक आदि। |
| दर्शन | हठयोग |
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गोरखनाथ का परिचय
अन्य प्राचीन कवियों एवं आचार्यों की भाँति महायोगी गोरखनाथ का भी कोई प्रमाणिक जीवन वृत्त अब तक सुलभ नहीं हो सका है। वहीं गोरखनाथ जी के जीवन और रचनाओं के बारे में आलोचकों और इतिहासकारों में मत मतांतर हैं। महापंडित राहुल सांकृत्यायन इनका समय 845 ई. मानते है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल और रामकुमार वर्मा इनका समय 13वीं शताब्दी मानते है। जबकि डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल इनका समय 11वीं शती मानते है। गोरखनाथ जी ‘मत्स्येंद्रनाथ’ के शिष्य माने जाते हैं।
माना जाता है कि कालांतर में गोरखनाथ द्वारा प्रवर्तित नाथ संप्रदाय मुख्य रूप से बारह शाखाओं में विभक्त हुआ, इसीलिए इसे बारहपंथी भी कहा जाता है। हालांकि बाद में और भी पंथ इसमें जुड़ते चले गए। प्रत्येक पंथ किसी न किसी पौराणिक देवता अथवा सिद्ध योगी को अपना आदि प्रवर्तक मानता है।
नाथ संप्रदाय के पंथ
नाथ संप्रदाय के प्रमुख पंथों के नाम इस प्रकार हैं:-
- सत्यनाथ पंथ
- धर्मनाथ पंथ
- राम पंथ
- श्वरी पंथ
- कंथड़ पंथ
- कपिलानी पंथ
- वैराग्य पंथ
- माननाथ पंथ
- ध्वजनाथ पंथ
- गंगानाथ पंथ
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गोरखनाथ का साहित्यिक परिचय
मिश्र बंधुओं के अनुसार गोरखनाथ हिंदी के प्रथम गद्य लेखक थे। गोरखनाथ के नाम से लगभग चालीस रचनाएँ प्राप्त होती हैं, किंतु उनकी प्रामाणिकता संदिग्ध मानी जाती है। इनमें पद, सबदी, नरवै बोध, आत्मबोध, मछिंद्र-गोरख बोध, ज्ञान तिलक और ‘पंचमात्रा’ आदि प्रमुख हैं।
गोरखनाथ ने संस्कृत के अतिरिक्त हिंदी में भी रचनाएँ की हैं। ‘डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल’ ने गोरखनाथ जी के केवल 14 ग्रंथों को प्रमाणिक मानकर ‘गोरखबानी’ के रूप प्रकाशित किया है।
गोरखनाथ की रचनाएँ
गुरु गोरखनाथ की प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं:-
- सबदी
- पद
- शिष्या दर्शन
- प्राण संकली
- नरवै बोध
- आत्मबोध
- अभैमात्रा योग
- पंद्रह तिथि योग
- सप्तवार
- मछिंद्र-गोरख बोध
- रोमावली
- ज्ञानतिलक
- ज्ञान चौतीसा
- पंचमात्रा
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संस्कृत में गोरखनाथ की रचनाएँ
गुरु गोरखनाथ द्वारा रचित संस्कृत ग्रंथों की सूची इस प्रकार है:-
- सिद्ध सिद्धांत पद्धति
- विवेक मार्तंड
- वैराट पुराण
- शक्ति संगम तंत्र
- निरंजन पुराण
- गोरक्षशतक
- योग सिद्धांत पद्धति
- योग चिंतामणि
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FAQs
माना जाता है कि गुरु गोरखनाथ का जन्म उत्तर प्रदेश के जैस में हुआ था।
गुरु गोरखनाथ के गुरु का नाम ‘मत्स्येंद्रनाथ’ था।
गोरखनाथ की भाषा संस्कृत और सधुक्क्ड़ी थी।
गुरु गोरखनाथ ‘नाथ संप्रदाय’ से थे।
गुरु गोरखनाथ को ‘नाथ संप्रदाय’ का प्रवर्तक माना जाता है।
आशा है कि आपको नाथ संप्रदाय के प्रवर्तक गोरखनाथ का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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