Essay On Kabir Das in Hindi: बचपन से लेकर अभी तक हम सबने कबीर दास के कई दोहों सुना है। स्कूलों में भी कबीर दास ने दोहे के बारे में हम सभी से पूछा जाता था। आज भी स्कूलों में छात्रों को कबीर के दोहे या उन पर निबंध लिखने को आ जाता है। ऐसे में बच्चों को कई बार समझ नहीं आता की वे कैसे इस की शुरुआत करें और इस निबंध में क्या क्या लिखें। तो हम आज इस ब्लॉग के माध्यम से आपको बताएंगे की निबंध की शुरुआत कैसे की जाती है। तो चलिए जानते हैं कबीर दास पर निबंध (Essay On Kabir Das in Hindi) से उनके पूरे जीवन के बारे में कुछ खास तथ्य।
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संत कबीर दास पर 100 शब्दों में निबंध
कबीर दास की 644वीं जयंती के अवसर पर 24 जून 2021 को संत कबीर दास जयंती मनाई गई। कबीर दास एक भारतीय कवि और संत थे, जिन्होंने अपने आध्यात्मिक, विश्वासों, नैतिकता और कविताओं से लाखों लोगों को प्रभावित किया। संत कबीर दास जी का जन्म 1440 में ज्येष्ठ माह की पूर्णिमा को हुआ था। उनके अनुयायी प्रत्येक वर्ष मई या जून में उनकी जयंती को संत गुरु कबीर जयंती के रूप में मनाते हैं। कुछ लोग कबीरदास जयंती को कबीर प्रकट दिवस भी कहते हैं। कहा जाता हैं की उनका पालन-पोषण जुलाहा या बुनकरों के परिवार में हुआ था।
संत कबीर दास पर 200 शब्दों में निबंध
कबीर दास के जीवन के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी के लिए यहां पढ़ें –
नाम | संत कबीर दास |
जन्म स्थान | वाराणसी, उत्तर प्रदेश |
पिता का नाम | नीरू |
माता का नाम | नीमा |
पत्नी का नाम | लोई |
संतान | कमाल (पुत्र), कमाली (पुत्री) |
शिक्षा | निरक्षर |
मुख्य रचनाएं | साखी, सबद, रमैनी |
काल | भक्तिकाल |
शाखा | ज्ञानमार्गी शाखा |
भाषा | अवधी, सुधक्कड़ी, पंचमेल खिचड़ी भाषा |
कबीर दास का जन्म कब हुआ, यह ठीक ज्ञात नहीं है। लेकिन माना जाता है कि कबीर का जन्म 14वीं-15वीं शताब्दी में काशी (वाराणसी) में हुआ था। कहा जाता है की कबीर का पालन-पोषण नीरू एवं नीमा नामक एक जुलाहा दंपति ने किया। कबीर के गुरु का नाम ‘संत स्वामी रामानंद’ था और उनका विवाह ‘लोई’ से हुआ था। कबीर दास के दो संतान हुई जिनका नाम ‘कमाल’ और ‘कमाली’ था। कबीर दास का संबंध भक्तिकाल की निर्गुण शाखा “ज्ञानमर्गी उपशाखा” से था। इनकी रचनाओं और गंभीर विचारों ने भक्तिकाल आंदोलन को गहरे स्तर तक प्रभावित किया था। इन्होनें कई रचनाएं लिखी हैं।
कबीर दास पढ़ें लिखे न होते हुए भी काव्य रचनाएं प्रस्तुत की वह अत्यन्त विस्मयकारी है ये भक्तिकाल के कवि थे। अपनी रचनाओं में इन्होंने सत्य, प्रेम, पवित्रता, सत्संग, इन्द्रिय-निग्रह, सदाचार, गुरु महिमा, ईश्वर भक्ति आदि पर अधिक बल दिया था।
संत कबीर दास पर 500 शब्दों में निबंध
संत कबीर दास पर 500 शब्दों में निबंध (Essay On Kabir Das in Hindi) इस प्रकार हैं –
प्रस्तावना
संत कबीर दास महान कवियों में से एक थे। कबीर दास का पालन-पोषण जोलाहास दंपत्ति ने किया था। उनकी माता का नाम नीमा और पिता का नाम नीरू था। संत कबीर दास ने आध्यात्मिक विकास में पुनर्जागरण किया। संत कबीर दास भारत के महान संत है और उनका न केवल हिंदू बल्कि इस्लाम और सिख धर्म भी सम्मान करते हैं। 15वीं सदी के भारतीय रहस्यवादी कवि थे, जिनकी रचनाओं ने भक्ति आंदोलन को प्रभावित किया।
व्यक्तिगत जीवन
संत कबीर दास जी का जन्म काशी में सन् 1398 ई० (संवत् 1455 वि0) में हुआ था ‘कबीर पंथ’ में भी इनका आविर्भाव- काल संवत् 1455 में ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष पूर्णिमा के दिन माना जाता है। इनके जन्म स्थान के सम्बन्ध में तीन मत हैं— काशी, मगहर और आजमगढ़। अनेक प्रमाणों के आधार पर इनका जन्म- स्थान काशी मानना ही उचित है।
संत कबीर दास ने अपने संपूर्ण जीवन में लोकहित के लिए कई उपदेश दिए व समाज में फैली कुरीतियों और आडंबरो का खुलकर विरोध किया। इसके साथ ही उन्हें हिंदी साहित्य के महान कवियों में उच्च स्थान प्राप्त हैं। जिनके अनमोल विचारों को आज भी पढ़ा और उनका अनुसरण किया जाता हैं।
संत कबीर का जन्म सन 1398 ईसवी में एक जुलाहा परिवार में हुआ था उनके पिता का नाम नीरू एवं माता का नाम नीमा था। कबीर के गुरु प्रसिद्ध संत स्वामी रामानंद थे। लोक कथाओं के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि कबीर विवाहित थे। इनकी पत्नी का नाम लोई था। इनकी दो संताने थी एक पुत्र और एक पुत्री। पुत्र का नाम कमाल था और पुत्री का नाम कमाली।
संत कबीरदास की रचनाएं
कबीर की रचनाएँ मुख्यत हिन्दी भाषा में लिखी गईं।
15वीं शताब्दी में जब फ़ारसी और संस्कृत प्रमुख उत्तर भारतीय भाषाएँ थीं, तब उन्होंने बोलचाल की क्षेत्रीय भाषा में लिखना शुरू किया। उनकी कविता हिंदी, खड़ी बोली, पंजाबी, भोजपुरी, उर्दू, फ़ारसी और मारवाड़ी का मिश्रण है। अपने जीवन के अंतिम क्षणों में संत कबीर दास मगहर (उत्तर प्रदेश) शहर चले गये थे। आप नीचे कबीर दास की कुछ प्रसिद्ध रचनाएं देख सकते हैं।
रचना | अर्थ | प्रयुक्त छंद | भाषा |
साखी | साक्षी | दोहा | राजस्थानी पंजाबी मिली खड़ी बोली |
सबद | शब्द | गेय पद | ब्रजभाषा और पूर्वी बोली |
रमैनी | रामायण | चौपाई और दोहा | ब्रजभाषा और पूर्वी बोली |
कबीर दास के दोहे
यहाँ आपके लिए संत कबीर दास निबंध के साथ-साथ, कबीर दास के दोहे भी दिए गए हैं, जिन्हें आप नीचे देख सकते हैं :-
- गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय, बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताय।
- पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
- माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।
- जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान, मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
- जग में बैरी कोई नहीं, जो मन शीतल होय, यह आपा तो डाल दे, दया करे सब कोय।
- साईं इतना दीजिए, जा में कुटुंब समाय, मैं भी भूखा न रहूं, साधु ना भूखा जाय।
- तन को जोगी सब करें, मन को बिरला कोई, सब सिद्धि सहजे पाइए, जे मन जोगी होइ।
- माया मुई न मन मुआ, मरी मरी गया सरीर, आसा त्रिसना न मुई, यों कही गए कबीर।
- बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर, पंछी को छाया नहीं फल लागे अति दूर।
- जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही, सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही।
- “माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे । एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे।”
- “पाथर पूजे हरी मिले, तो मै पूजू पहाड़ ! घर की चक्की कोई न पूजे, जाको पीस खाए संसार !!”
- “गुरु गोविंद दोऊ खड़े ,काके लागू पाय । बलिहारी गुरु आपने , गोविंद दियो मिलाय।।”
- “यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान। शीश दियो जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान।”
- “उजला कपड़ा पहरि करि, पान सुपारी खाहिं । एकै हरि के नाव बिन, बाँधे जमपुरि जाहिं॥”
- “निंदक नियेरे राखिये, आँगन कुटी छावायें । बिन पानी साबुन बिना, निर्मल करे सुहाए।”
- “प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए । राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए।”
- “ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोये । औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए।”
- “जिनके नौबति बाजती, मैंगल बंधते बारि । एकै हरि के नाव बिन, गए जनम सब हारि॥”
- “कबीर’ नौबत आपणी, दिन दस लेहु बजाइ । ए पुर पाटन, ए गली, बहुरि न देखै आइ॥”
- “जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप । जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप।”
उपसंहार
अधिकांश विद्वानों का मानना है कि कबीर का निधन सन 1518 ईस्वी में हुआ था और वहीं कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि उन्होंने स्वेच्छा से मगहर में जाकर अपने प्राणों को त्याग दिया था। ऐसा उन्होंने इसलिए किया था ताकि लोगों के मन से अंधविश्वास को हटा सकें लोगों के बीच यह अंधविश्वास था कि मगहर में मरने पर हमें स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती।
संत कबीर दास पर 10 लाइन्स
संत कबीर दास पर 10 लाइन्स कुछ इस प्रकार हैं –
- कबीर दास जी ने सत्य को जानने के लिए सुझाव दिया था, की “मैं” या अहंकार को छोड़ दो।
- कबीरदास ने कई काव्य रचनाएं प्रस्तुत की वह अत्यन्त विस्मयकारी है ये भक्तिकाल के कवि थे।
- कबीर की कविताएँ ब्रज, भोजपुरी और अवधी समेत अलग-अलग बोलियों से लेकर हिंदी में थीं।
- माना जाता है की, कबीरदास जी का जन्म सन 1398 में लहरतारा के निकट काशी (वाराणसी) में हुआ।
- संत कबीरदास का पालन-पोषण नीरू तथा नीमा नामक जुलाहे दम्पति ने किया था।
- कबीरदास का विवाह लोई नामक स्त्री से हुआ, जिनसे उनको दो संताने कमाल और कमाली हुई।
- कबीरदास जी प्रसिद्द वैष्णव संत रामानंद जी को अपना गुरु मानते थे।
- कबीर एक ईश्वर को मानते थे तथा किसी भी प्रकार के कर्मकांड के विरोधी थे।
- कहा जाता है की कबीरदास अपने अंतिम समय में मगहर चले गए थे, जहाँ 1518 ई में उनकी मृत्यु हो गयी।
- कबीर दास जी प्रसिद्द वैष्णव संत रामानंद जी को अपना गुरु मानते थे।
कबीर दास पर निबंध कैसे लिखें?
कबीर दास पर निबंध (Essay On Kabir Das in Hindi) लिखने के लिए निम्नलिखित स्टेप्स को फॉलो करें, जो इस प्रकार हैं –
- निबंध की शुरुआत एक सरल और आकर्षक वाक्य से करें।
- अब पाठक को कबीर दास के जीवन के बारे में बताएं।
- निबंध में यदि आप सही तथ्य और सरकारी आंकड़ों को पेश करते हैं, तो ऐसा करने से आपका निबंध और भी अधिक आकर्षक बन सकता है।
- इसके बाद आप पाठकों का परिचय कबीर दास के प्रमुख कार्यों और उनकी प्रमुख रचनाओं से करवाया जा सकता है।
- अंत में एक अच्छे निष्कर्ष के साथ आप अपने निबंध का समापन कर सकते हैं।
FAQs
संत स्वामी रामानंद जी थे।
मानवसेवा ही संत कबीर का धर्म था।
1518 मगहर में।
गुरु और गोविंद में से गुरु को श्रेष्ठ माना था।
लगभग 25 दोहा लिखे थे।
कबीर दास एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे जिनका जन्म 15वीं शताब्दी में हुआ था। उनका जीवन हिंदू-मुस्लिम एकता और आध्यात्मिक विचारों से जुड़ा था।
कबीर दास ने दोहों के माध्यम से समाज को नैतिक शिक्षा दी, भक्ति आंदोलन को बढ़ावा दिया और अंधविश्वासों व धार्मिक पाखंडों के खिलाफ आवाज उठाई।
उन्होंने सरल, सहज और जन-भाषा में अपनी रचनाएं लिखीं। ब्रज, अवधी और खड़ी बोली का मिश्रण उनकी भाषा की विशेषता है।
उनके दोहे छोटे होते हैं लेकिन उनमें गहरी बात कही जाती है। जीवन, धर्म, समाज और व्यवहार पर आधारित उनके दोहे आज भी प्रेरणादायक हैं।
कबीर दास निर्गुण भक्ति मार्ग के अनुयायी थे। वे ईश्वर को निराकार मानते थे और मूर्ति पूजा के विरोधी थे।
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