भारतीय संविधान की विशेषताएं : भारतीय लोकतंत्र की मजबूती का आधार

1 minute read
भारतीय संविधान की विशेषताएं

भारतीय संविधान विश्व के उन सबसे लंबे और विस्तृत संविधानों में से एक है, जो भारतीय नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों का संरक्षण करता है। इसके साथ ही शासन प्रणाली के संचालन में भी भारतीय संविधान ने अपनी मुख्य भूमिका निभाई है। 26 नवंबर 1949 को ही भारतीय संविधान को अपनाया गया था तभी से इस दिन को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है, जबकि 26 जनवरी 1950 को लागू किया गया था। इसकी मुख्य विशेषताएं ही इसे एक अद्वितीय संविधान बनाती हैं, जिनके बारे में जानकर आप अपने अधिकारों से परिचित हो सकते हैं। UPSC की तैयारी में जुटे अभ्यार्थियों को इस विषय पर विशेष ध्यान देना चाहिए क्योंकि भारतीय संविधान की विशेषताएं और इससे जुड़े प्रश्नों को इस परीक्षा में जरूर पूछा जाता है। इस ब्लॉग में आपको भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं और इनके महत्व को जानने का अवसर मिलेगा, जिसके लिए इस ब्लॉग को अंत तक जरूर पढ़ें।

This Blog Includes:
  1. भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं
  2. भारतीय संविधान की प्रस्तावना की विशेषताएं
  3. मौलिक अधिकार तथा कर्त्तव्य की विशेषताएं
    1. मौलिक अधिकार
    2. मौलिक कर्त्तव्य
  4. नीति निर्देशक सिद्धांत की विशेषताएं
  5. भारतीय संविधान में संसदीय प्रणाली की विशेषताएं
  6. भारतीय संविधान में संविधान संशोधन प्रक्रिया की विशेषताएं
  7. न्यायिक पुनर्विलो एवं मूल संरचना सिद्धांत की विशेषताएं
  8. संघ सरकार के प्रधान अंग की विशेषताएं
    1. विधायिका की विशेषताएं
    2. कार्यपालिका की विशेषताएं
    3. न्यायपालिका की विशेषताएं
  9. राज्य सरकार के प्रधान अंग की विशेषताएं
    1. राज्यपाल
    2. मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद
    3. विधानमंडल
    4. विधायी प्रक्रियाएं
  10. FAQs

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं आपको आपके अधिकारों और कर्तव्यों का संरक्षण करने का प्रयास करती हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं;

  • भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषता यह है कि यह विश्व का सबसे लंबा लिखित संविधान है।
  • भारतीय संविधान में 395 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियां और 22 भाग शामिल हैं, वर्तमान समय में विभिन्न संशोधनों के साथ इसे और भी विस्तृत रूप प्रदान किया जा चुका है।
  • भारतीय संविधान इसलिए भी इतना विस्तृत है क्योंकि इसमें भारत की विविधता और सभी क्षेत्रों के नागरिकों की आवश्यकताओं को समान रूप से स्थान मिला है।
  • भारतीय संविधान भारत के हर नागरिक के मौलिक अधिकारों की पैरवी करता है और सभी को आगे बढ़ने के लिए समान अवसर प्रदान करता है।
  • मौलिक अधिकारों के साथ-साथ भारतीय संविधान में मौलिक कर्तव्यों पर भी विशेष ध्यान दिया गया है अथवा विशेष स्थान दिया गया है। ये मौलिक कर्तव्य ही नागरिकों को उनके राष्ट्र के प्रति उनके दायित्वों को याद दिलाने में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
  • भारतीय संविधान एकात्मक झुकाव के साथ संघीय ढाँचे को मजबूती प्रदान करता है, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों के बीच शक्तियों का विभाजन किया गया है। इनमें कभी टकराव की स्थिति उत्पन्न न हो इसका भी संविधान में विशेष ध्यान रखा गया है।
  • भारतीय संविधान में संसदीय प्रणाली को भी विशेष स्थान दिया गया है, जिसमें कार्यपालिका (सरकार) विधायिका (संसद) के प्रति उत्तरदायी होती है। आसान भाषा में समझें तो इस बिंदु के अनुसार प्रधानमंत्री और उनकी परिषद राज्य के वास्तविक प्रमुख होते हैं, जबकि राष्ट्रपति को संवैधानिक प्रमुख का दर्जा प्राप्त होता है।
  • न्यायपालिका को निष्पक्ष निर्णय लेने में किसी प्रकार के अवरोध का सामना न करना पड़े इसके लिए भारतीय संविधान में न्यायपालिका को कार्यपालिका और विधायिका यानि कि सरकार और संसद से स्वतंत्र रखा गया है।
  • भारतीय संविधान में संशोधन प्रक्रिया लचीली भी है और कठोर भी, जो संविधान को समय के अनुसार ढलने में मदद करती है।
  • भारतीय संविधान में राष्ट्रीय एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने के साथ-साथ, बदलते समय और परिस्थितियों के अनुसार संवैधानिक संसोधन की भी व्यवस्था की गई है।

यह भी पढ़ें : UPSC वैकल्पिक राजनीति विज्ञान एवं अंतरराष्ट्रीय संबंध (PSIR) विषय का संपूर्ण सिलेबस

भारतीय संविधान की प्रस्तावना की विशेषताएं

भारतीय संविधान की प्रस्तावना की विशेषताएं कुछ इस प्रकार हैं, जिन्हें नीचे दिए गए बिंदुओं के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है –

  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना को ही संविधान की आत्मा का दर्जा प्राप्त है, क्योंकि यह भारतीय गणराज्य के मूल उद्देश्यों और आदर्शों को दर्शाती है।
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक संप्रभु राष्ट्र के रूप में घोषित किया गया है, जिसका अर्थ है कि भारत अपने सभी निर्णयों में स्वतंत्र है और किसी भी बाहरी शक्ति के अधीन नहीं है।
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ही यह भी उल्लेखित है कि हमारा देश राजनीतिक, आर्थिक, और सामाजिक रूप से स्वतंत्र है, साथ ही इसकी प्रस्तावना ही भारत राष्ट्र की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करती है।
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना ही हमें समाज के सभी वर्गों के कल्याण और समानता के लिए काम करने का निर्देश देती है। यह ही राष्ट्र में समाजवादी अर्थव्यवस्था की पैरवी करने और समाजिक अन्याय को समाप्त करने का भी प्रण करती है।
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना ही भारत को लोकतांत्रिक राष्ट्र घोषित करती है, जहाँ लोगों को अपनी सरकार चुनने का अधिकार है। भारतीय संविधान की प्रस्तावना के तहत भारत में जनता द्वारा, जनता के लिए और जनता की सरकार चुनने की व्यवस्था का वर्णन किया गया है।
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में भारत को गणराज्य घोषित किया गया है, जिसका अर्थ है कि राज्य का प्रमुख (राष्ट्रपति) वंशानुगत नहीं होता। भारतीय गणराज्य में सर्वोच्च पद के लिए कोई भी योग्य नागरिक चुना जा सकता है, चाहे उसकी सामाजिक पृष्ठभूमि कुछ भी हो।
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना देश के प्रत्येक नागरिक को न्याय, स्वतंत्रता, समता और बंधुता प्रदान करने का वचन देती है। आसान भाषा में कहें तो ये नागरिकों को समानता और स्वतंत्रता का अनुभव कराती है।

मौलिक अधिकार तथा कर्त्तव्य की विशेषताएं

भारतीय नागरिकों को उनके अधिकारों और जिम्मेदारियों का एहसास कराने के लिए संविधान में मौलिक अधिकार और कर्त्तव्य को विशेष स्थान दिया गया है। मौलिक अधिकार ही भारतियों की स्वतंत्रता और सुरक्षा की गारंटी देते हैं, तो वहीं मौलिक कर्त्तव्य नागरिकों को अपने देश और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को निभाने का निर्देश देते हैं। इनके बारे में विस्तृत जानकारी कुछ इस प्रकार है;

मौलिक अधिकार

भारतीय संविधान के भाग III में मौलिक अधिकारों के बारे में उल्लेख मिलता है, ये अधिकार भारतीय नागरिकों को एक स्वतंत्र और समान जीवन जीने का अधिकार प्रदान करते हैं। मौलिक अधिकारों के बारे में संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 के तहत वर्णन किया गया है, जिन्हें नीचे दी गई तालिका के माध्यम से समझा जा सकता है :

मौलिक अधिकारअनुच्छेद
समानता का अधिकारअनुच्छेद 14 से 18 के अंतर्गत सभी नागरिकों को कानून के समक्ष समानता प्राप्त है, जिसमें जाति, धर्म, लिंग, जन्म स्थान, भाषा आदि के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध लगाया गया है।
स्वतंत्रता का अधिकारअनुच्छेद 19 से 22 के अंतर्गत नागरिकों को भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण एकत्रित होने का अधिकार, संघ बनाने का अधिकार, किसी भी व्यवसाय, व्यापार, या रोजगार चुनने का अधिकार आदि प्रदान करता है।
शोषण के विरुद्ध अधिकारअनुच्छेद 23 और 24 के अंतर्गत मानव तस्करी, जबरन श्रम और बच्चों से बाल श्रम कराना अपराध घोषित किया गया है।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकारअनुच्छेद 25 से 28 के अंतर्गत हर नागरिक को अपने धर्म का पालन, प्रचार और धार्मिक उपासना करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है।
संस्कृति और शिक्षा का अधिकारअनुच्छेद 29 और 30 के तहत किसी भी नागरिक या अल्पसंख्यक समुदाय को अपनी भाषा, लिपि, संस्कृति और शिक्षा की रक्षा का अधिकार प्राप्त है।
संवैधानिक उपचारों का अधिकारअनुच्छेद 32 के अंतर्गत किसी भी मौलिक अधिकार के उल्लंघन पर नागरिक सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर सकते हैं। यह अधिकार “मौलिक अधिकारों का रक्षक” कहलाता है।

मौलिक कर्त्तव्य

मौलिक कर्तव्यों को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 के तहत भारतीय संविधान के भाग IV-A में जोड़ा गया था। ये अनुच्छेद 51A के तहत परिभाषित किया गया है, जो भारतीय नागरिकों को उनके कर्तव्यों का बोध कराता है। मौलिक कर्तव्य देश के प्रति नागरिकों की जिम्मेदारी को प्रकट करते हैं, कुछ कुछ प्रमुख मौलिक कर्तव्य निम्नलिखित हैं:

  • राष्ट्र की रक्षा करना।
  • संविधान और उसके आदर्शों का पालन करना।
  • राष्ट्रीय संघर्ष और स्वतंत्रता सेनानियों का सम्मान करना।
  • भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करना।
  • सामाजिक सद्भावना का विकास करना।
  • प्राकृतिक पर्यावरण का संरक्षण करना।
  • वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास।
  • सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा करना।
  • व्यक्तिगत और सामूहिक उत्कर्ष के लिए प्रयास करना।
  • बच्चों को शिक्षा का अवसर देना।

नीति निर्देशक सिद्धांत की विशेषताएं

भारतीय संविधान में नीति-निर्देशक सिद्धांत को भाग IV (अनुच्छेद 36 से 51 तक) में शामिल किया गया है। इन सिद्धांतों का उद्देश्य सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक न्याय प्राप्त करना होता है, ताकि देश के नागरिकों को एक बेहतर जीवन मिल सके साथ ही ये सिद्धांत सरकार को निर्देश देने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से नीति-निर्देशक सिद्धांतों की मुख्य विशेषताएं समझी जा सकती हैं:

  • नीति-निर्देशक सिद्धांत गैर-न्यायिक होता है, ये सरकार के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करते हैं। इसी सिद्धांत के आधार पर नीतियाँ और योजनाएँ बनती हैं।
  • यह सुनिश्चित करने के लिए कि देश में केवल राजनीतिक लोकतंत्र न हो, बल्कि सभी वर्गों को सामाजिक और आर्थिक समानता भी प्राप्त हो। आसान भाषा में समझें तो इस सिद्धांत का प्रयोग सामाजिक न्याय की स्थापना के लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभाता है।
  • नीति-निर्देशक सिद्धांत राज्य के नीति-निर्माण में मार्गदर्शक होते हैं। सरकार अपनी नीतियों को इन सिद्धांतों के अनुसार बनाने और इन्हें लागू करने का प्रमुख कार्य करती है।
  • नीति-निर्देशक सिद्धांत संविधान में समानता और न्याय की भावना को आगे बढ़ाते हैं।
  • भारत को एक कल्याणकारी राज्य में बदलने की दिशा में नीति-निर्देशक सिद्धांत का मार्गदर्शन अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • नीति-निर्देशक सिद्धांत समान काम के लिए समान वेतन की वकालत करते हैं। आसान भाषा में कहा जाए तो ये सिद्धांत श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा, काम की दशा में सुधार, बच्चों के शोषण की समाप्ति और महिला एवं पुरुष को समान वेतन देने की प्रखरता से पैरवी करते हैं।
  • नीति-निर्देशक सिद्धांत ही हर बच्चे के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा को सुनिश्चित करते हैं।
  • नीति-निर्देशक सिद्धांत राज्य में स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार करने और पोषण की व्यवस्था सुनिश्चित करने में अपनी मुख्य भूमिका अदा करते हैं।
  • नीति-निर्देशक सिद्धांत भारत को अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने और अन्य देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने के लिए निर्देशित करते हैं।
  • नीति-निर्देशक सिद्धांत राज्य को पर्यावरण संरक्षण के उपाय करने के लिए प्रेरित करते हैं।

यह भी पढ़ें : यूपीएससी प्रीलिम्स मॉक टेस्ट से परखें अपनी तैयारी

भारतीय संविधान में संसदीय प्रणाली की विशेषताएं

भारतीय संविधान में संसदीय प्रणाली की विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

  • भारतीय संसदीय प्रणाली में लोकतंत्र के सिद्धांतों का पालन होता है, जिसमें जनता द्वारा अपने प्रतिनिधियों को चुना जाता है। जनता के विकास के लिए चुने गए प्रतिनिधि कई चर्चाओं के बाद मिलकर संसद में ही कानून बनाते हैं।
  • संसदीय प्रणाली में कार्यपालिका (सरकार) विधायिका (संसद) के प्रति उत्तरदायी होती है। आसान भाषा में समझें तो प्रधानमंत्री और उनकी मंत्री-परिषद लोकसभा में बहुमत का समर्थन प्राप्त करते हैं, जिसके बाद वे संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं।
  • संसदीय प्रणाली को द्विसदनीय प्रणाली के आधार पर भी समझा जा सकता है, जो भारतीय संसद के दो सदनों की ओर इशारा करता है। दोनों सदनों में एक लोकसभा (निम्न सदन) और दूसरी राज्यसभा (उच्च सदन) होती है। लोकसभा के सदस्य प्रत्यक्ष चुनाव द्वारा चुने जाते हैं, जबकि राज्यसभा सदस्यों का चयन राज्यों की विधानसभाओं द्वारा किया जाता है।
  • संसदीय प्रणाली में कार्यकारी प्रमुख के रूप में प्रधानमंत्री होते हैं, जो संसद के प्रति उत्तरदायी होते हैं। वैसे तो राष्ट्रपति संविधान के अनुसार राज्य के प्रमुख के रूप में अपनी भूमिका निभाते हैं, लेकिन उनके पास कार्यपालिका की वास्तविक शक्तियाँ नहीं होतीं।
  • संसदीय प्रणाली में विपक्ष की भूमिका भी महत्वपूर्ण मानी जाती है क्योंकि विपक्ष सरकार की नीतियों की आलोचना करता है और देश के सामने विभिन्न मुद्दों को उठाता है। संसदीय प्रणाली में विपक्ष की भूमिका एक सशक्त लोकतंत्र और स्वस्थ प्रशासन को सुनिश्चित करती है।
  • संसदीय प्रणाली में अविश्वास प्रस्ताव के भी बड़े मायने होते हैं क्योंकि इसके माध्यम से यह जाँचा जाता है कि क्या सरकार सदन का विश्वास बनाए रखने में सक्षम है या नहीं।

भारतीय संविधान में संविधान संशोधन प्रक्रिया की विशेषताएं

भारतीय संविधान में संविधान संशोधन प्रक्रिया की विशेषताएं कुछ इस प्रकार हैं ;

  • भारतीय संविधान में संशोधन की प्रक्रिया लचीली और कठोर दोनों प्रकार की है।
  • संविधान के कुछ भागों में संशोधन आसान है, जबकि कुछ भागों के लिए कठिन प्रक्रिया अपनाई जाती है। यह संविधान की समय के साथ अनुकूलता बनाए रखने में सहायक होता है।
  • भारतीय संविधान में संविधान संशोधन के लिए मुख्यतः तीन स्तरीय संसोधन प्रक्रिया (साधारण बहुमत से संशोधन, विशेष बहुमत से संशोधन, विशेष बहुमत और राज्य विधानसभाओं की मंजूरी से संसोधन) होती हैं।
  • भारतीय संविधान में संविधान संशोधन प्रक्रिया में संसद मूल संरचना को प्रभावित किए बिना संविधान संशोधन कर सकती है। ये सिद्धांत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य मामले (1973) के निर्णय में स्थापित किया गया था।

न्यायिक पुनर्विलो एवं मूल संरचना सिद्धांत की विशेषताएं

भारतीय न्यायपालिका की एक ऐसी शक्ति होती है, जिसके तहत वह संसद और राज्य विधानसभाओं द्वारा बनाए गए कानूनों और कार्यपालिकीय आदेशों की संवैधानिकता की समीक्षा कर सकती है। इसी को न्यायिक पुनर्विलोकन कहा जाता है। भारतीय संविधान में न्यायिक पुनर्विलोकन की विशेषताएं निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से आसानी से समझी जा सकती हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं –

  • भारतीय संविधान में संवैधानिक सर्वोच्चता की रक्षा करने में न्यायिक पुनर्विलोकन का अहम योगदान होता है।
  • भारतीय संविधान में विधायिका और कार्यपालिका की शक्ति पर नियंत्रण के रूप में भी न्यायिक पुनर्विलोकन का सिद्धांत सहायक साबित होता है।
  • न्यायिक पुनर्विलोकन ही वास्तविकता में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • लोकतंत्र की रक्षा में भी न्यायिक पुनर्विलोकन एक निर्णायक भूमिका निभाता है।
  • संविधान की स्थिरता और लचीलेपन को बनाए रखने में भी न्यायिक पुनर्विलोकन सिद्धांत का प्रयोग किया जाता है।

यह भी पढ़ें : क्या होता है संघवाद?

संघ सरकार के प्रधान अंग की विशेषताएं

भारतीय संविधान में संघ सरकार के तीन प्रमुख अंग “विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका” होते हैं। प्रत्येक अंग की अपनी विशेषताएं और भूमिकाएं होती हैं, जिनका उद्देश्य शासन प्रणाली को सुचारू रूप से चलाने में सहायता प्रदान करना होता है। संघ सरकार के प्रधान अंग की विशेषताएं कुछ इस प्रकार हैं;

विधायिका की विशेषताएं

विधायिका को संसद कहा जाता है, भारत में मुख्य रूप से दो सदन लोकसभा और राज्य सभा होते हैं। विधायिका की विशेषताएं कुछ इस प्रकार हैं, जिनके माध्यम से आप इस विषय को सरलता से समझ पाएंगे –

  • भारतीय संविधान में विधायिका देश में जनता के विकास के लिए कानून बनाती है, साथ ही यह संविधान के अंतर्गत कानूनों में संशोधन भी करती है।
  • भारतीय संविधान में विधायिका यानि कि संसद को अधिकार प्राप्त होता है कि वह देश की वित्तीय स्थिति को नियंत्रित कर सकती है, साथ ही सरकार के बजट को भी यहीं से मंजूरी मिलती है।
  • भारतीय संविधान में विधायिका ही सरकार के कार्यों की समीक्षा करती है और कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है।

कार्यपालिका की विशेषताएं

कार्यपालिका का प्रमुख कार्य देश का प्रशासनिक संचालन करना होता है, जिसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, और मंत्रीमंडल आदि शामिल होते हैं। आसान भाषा में समझा जाए तो कार्यपालिका को सरकार कहा जाता है। कार्यपालिका की विशेषताएं कुछ इस प्रकार हैं, जिनके माध्यम से आप इस विषय को सरलता से समझ पाएंगे –

  • भारतीय संविधान में कार्यपालिका देश की नीतियों को लागू करने और प्रशासनिक तंत्र का संचालन करने में मुख्य भूमिका निभाती है।
  • भारतीय संविधान में कार्यपालिका यानि कि सरकार की भूमिका विधायिका और न्यायपालिका के साथ समन्वय बनाकर काम करने की है।
  • भारतीय संविधान में कार्यपालिका का मुख्य कार्य नागरिकों के हित में निर्णय लेना और उन्हें प्रभावी ढंग से लागू करना होता है।

न्यायपालिका की विशेषताएं

संघ सरकार की न्यायपालिका स्वतंत्र और निष्पक्ष होती है, जिसका प्रमुख कार्य संविधान की सर्वोच्चता को सुनिश्चित करना होता है। न्यायपालिका की विशेषताएं कुछ इस प्रकार हैं, जिनके माध्यम से आप इस विषय को सरलता से समझ पाएंगे –

  • भारतीय संविधान में न्यायपालिका संविधान और कानूनों की व्याख्या करती है, साथ ही कानून का पालन हो ऐसा सुनिश्चित करती है।
  • भारतीय संविधान में न्यायपालिका विधायिका और कार्यपालिका के कार्यों पर नियंत्रण रखती है और संविधान के उल्लंघन पर उन्हें निरस्त करने का भी अधिकार रखती है।
  • भारतीय संविधान में न्यायपालिका का मुख्य कार्य नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा करना और निष्पक्षता के साथ निर्णय प्रदान करना होता है।

राज्य सरकार के प्रधान अंग की विशेषताएं

भारतीय संविधान में राज्य सरकार का प्रधान अंग विधानपालिका होती है, जो राज्य के कानून निर्माण, सरकार की नीति निर्धारण और प्रशासनिक कार्यों के लिए उत्तरदायी होती है। राज्य सरकार की विधानपालिका की संरचना और कार्यप्रणाली भारतीय संविधान में स्पष्ट रूप से परिभाषित की गई है, इसके प्रमुख अंग और उनकी विशेषताएं निम्नलिखित हैं:

राज्यपाल

  • राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है, जो केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाता है।
  • संविधान के अनुच्छेद 153-162 के अंतर्गत राज्य की कार्यपालिका का सर्वोच्च पदाधिकारी राज्यपाल ही होता है। राज्यपाल के पास ही कार्यपालिका की शक्तियाँ होती हैं।
  • राज्यपाल ही विधेयकों को स्वीकृति देने, मंत्रिपरिषद की नियुक्ति करने, राज्य की विधानमंडल को बुलाने या स्थगित करने का काम करता है।
  • राज्यपाल ही राज्य में आपातकालीन स्थिति लागू करने की सिफारिश भी कर सकता है।

मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद

  • राज्य सरकार के प्रधान अंग में से मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद भी होता है, आसान भाषा में कहा जाए तो राज्य सरकार का वास्तविक कार्यकारी प्रमुख मुख्यमंत्री होता है।
  • मुख्यमंत्री को ही राज्य के विधानमंडल के बहुमत वाले दल के नेता के रूप में नियुक्त किया जाता है।
  • मुख्यमंत्री के साथ मंत्रिपरिषद के सदस्य होते हैं, जिन्हें विभिन्न विभागों के कार्यभार को सँभालने के लिए मंत्रिपरिषद में रखा जाता है।
  • मुख्यमंत्री के नेतृत्व में ही मंत्रिपरिषद राज्य की नीतियों का निर्माण और क्रियान्वयन होता है।
  • मुख्यमंत्री और उनकी मंत्रिपरिषद राज्यपाल के प्रति उत्तरदायी होता है और विधानसभा के प्रति भी जिम्मेदार होती है।

विधानमंडल

  • भारतीय संविधान के तहत राज्य में विधानमंडल के लिए दो प्रकार की संरचना (एकसदनीय और द्विसदनीय) का प्रावधान होता है।
  • एकसदनीय व्यवस्था में अधिकांश राज्यों में केवल एक सदन होता है जिसे विधानसभा कहते हैं।
  • द्विसदनीय व्यवस्था के तहत कुछ बड़े राज्यों में दो सदन (विधानसभा और विधान परिषद) होते हैं।

विधायी प्रक्रियाएं

  • राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों में विधेयक पेश किए जा सकते हैं, जिनमें धन विधेयक और साधारण विधेयक शामिल होते हैं।
  • विधानसभा द्वारा पारित किए गए धन विधेयक पर विधान परिषद में पुनर्विचार का अधिकार नहीं होता, जबकि साधारण विधेयक पर विधान परिषद सुझाव दे सकती है।
  • कोई भी विधेयक तब कानून बनता है जब राज्यपाल की स्वीकृति उस विधेयक को प्राप्त होती है।

यह भी पढ़ें : UPSC EPFO का संपूर्ण सिलेबस, एग्जाम पैटर्न, क्वालीफाइंग मार्क्स और बेस्ट बुक्स

FAQs

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं?

भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं मुख्यतः ये सबसे बड़ा लिखित संविधान है, इसमें केंद्र और राज्य की शक्तियों का विभाजन होता है, इसमें संविधान की सर्वोच्चता को प्राथमिकता दी गई होती है, ये संविधान लचीला और कठोर दोनों ही रूप में होता है, इसमें स्वतंत्र न्यायपालिका और द्विसदनीयता जैसी सामान्य विशेषताएँ भी पाई जाती हैं।

भारतीय संविधान के प्रमुख गुण क्या हैं?

भारतीय संविधान के प्रमुख गुणों में से कुछ प्रमुख ये हैं कि भारतीय संविधान ना सिर्फ सामाजिक बल्कि आर्थिक और राजनीतिक न्याय पर केंद्रित है। ये हर भारतीय नागरिक को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म व उपासना की स्वतंत्रता को भी प्रेरित करती है।

भारतीय संविधान में कितने भाग हैं?

भारतीय संविधान में रचना के समय 22 भाग थे जो कि वर्तमान में कई संसोधन के बाद 25 भागों में विभाजित है।

संविधान का क्या अर्थ है?

भारत के सर्वोच्च कानून को संविधान कहा जाता है, जो कि दुनिया के सबसे बड़े लिखित दस्तावेजों में से एक है।

संविधान के रचयिता कौन थे?

संविधान के रचयिता भारत रत्न बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर थे।

आशा है कि इस ब्लॉग में आपको भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं और इनके महत्व को जानने का अवसर मिला होगा। UPSC परीक्षा से जुड़े ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

प्रातिक्रिया दे

Required fields are marked *

*

*