विद्यार्थी जीवन में हर विद्यार्थी कक्षा 12 में हिंदी विषय से Bhaktin पाठ को अवश्य पढ़ता है, जिससे परीक्षा में भी प्रश्न पूछे जाते हैं। भक्तिन कक्षा 12 NCERT गाइड में आप महत्वपूर्ण विषयों में से एक हिंदी के भक्तिन पाठ की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं, जिसे एक लोकप्रिय लेखिका महादेवी वर्मा द्वारा लिखा गया है। महादेवी वर्मा जी की कालजेयी रचनाओं में से एक भक्तिन ने भारत के युवाओं को बाल्यकाल में ही साहित्य से परिचित करवाने का कार्य किया है। इस ब्लॉग के माध्यम से महदेवी वर्मा के जीवन परिचय, उनके द्वारा लिखित Bhaktin पाठ के सारांश, कठिन शब्द, MCQ और प्रश्न-उत्तर से आपका आमना-सामना होगा। यह ब्लॉग आपको Bhaktin के बारे में संपूर्ण जानकारी देगा।
पाठ का नाम | Bhaktin |
कक्षा | कक्षा 12 |
खंड | हिंदी आरोह |
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लेखिका परिचय
लोकप्रिय श्रीमती महादेवी वर्मा का जन्म फ़रुखाबाद, उत्तर प्रदेश में 26 मार्च 1907 में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर के मिशन स्कूल में हुई थी। नौ वर्ष की आयु में इनका विवाह हो गया था, उसके बाद भी इनका अध्ययन चलता रहा। 1932 में इन्होंने इलाहाबाद से संस्कृत में MA की परीक्षा उत्तीर्ण कीं और प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना करके उसकी प्रधानाचार्या के रूप में कार्य करने लगीं।
मासिक पत्रिका ‘चाँद’ का भी इन्होंने कुछ समय तक संपादन-कार्य किया। इन्हें वर्ष 1952 में उत्तर प्रदेश की विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया। वर्ष 1954 में यह साहित्य अकादमी की संस्थापक सदस्या बनीं। वर्ष 1960 में इन्हें प्रयाग महिला विद्यापीठ का कुलपति बनाया गया। इनके व्यापक शैक्षिक, साहित्यिक और सामाजिक कार्यों के लिए भारत सरकार ने वर्ष 1956 में इन्हें पद्मभूषण से सम्मानित किया। वर्ष 1983 में ‘यामा’ कृति पर इन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने भी इन्हें ‘भारत-भारती’ पुरस्कार से सम्मानित किया। वहीँ वर्ष 1987 में इनकी मृत्यु हो गई। इन्होंने Bhaktin के जैसी अनेकों रचनाएं की थीं।
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पाठ प्रतिपाद्य व सारांश
Bhaktin के लिए पाठ प्रतिपाद्य व सारांश कुछ इस प्रकार है-
प्रतिपाद्य
Bhaktin ‘स्मृति की रेखाएँ’ में संकलित है। इसमें लेखिका ने अपनी सेविका भक्तिन के अतीत और वर्तमान का परिचय देते हुए उसके व्यक्तित्व का दिलचस्प खाका खींचा है। महादेवी के घर में काम शुरू करने से पहले उसने कैसे एक संघर्षशील, स्वाभिमानी और कर्मठ जीवन जिया, कैसे पितृसत्तात्मक मान्यताओं और छल-छद्म भरे समाज में अपने और अपनी बेटियों के हक की लड़ाई लड़ती रही और हारकर कैसे ज़िंदगी की राह पूरी तरह बदल लेने के निर्णय तक पहुँची। साथ ही, भक्तिन लेखिका के जीवन में आकर छा जाने वाली एक ऐसी परिस्थिति के रूप में दिखाई पड़ती है, जिसके कारण लेखिका के व्यक्तित्व के कई अनछुए आयाम उद्घाटित होते हैं। इसी कारण अपने व्यक्तित्व का जरूरी अंश मानकर वे भक्तिन को खोना नहीं चाहतीं।
सारांश
- लेखिका कहती है कि Bhaktin का कद छोटा व शरीर दुबला था। उसके होंठ पतले थे। वह गले में कंठी-माला पहनती थी। उसका नाम लक्ष्मी था, परंतु उसने लेखिका से यह नाम प्रयोग न करने की प्रार्थना की। उसकी कंठी-माला को देखकर लेखिका ने उसका नाम Bhaktin रख दिया। सेवा-धर्म में वह हनुमान से मुकाबला करती थी।
- उसके अतीत के बारे में यही पता चलता है कि वह ऐतिहासिक झूसी के गाँव के प्रसिद्ध अहीर की इकलौती बेटी थी। उसका लालन-पालन उसकी सौतेली माँ ने किया। पाँच वर्ष की उम्र में इसका विवाह हैंडिया गाँव के एक गोपालक के पुत्र के साथ कर दिया गया था। नौ वर्ष की उम्र में गौना हो गया। भक्तिन की सौतेली माँ ने उसके पिता की मृत्यु का समाचार देर से भेजा।
- सास ने रोने पीटने के अपशकुन से बचने के लिए उसे पीहर यह कहकर भेज दिया कि वह बहुत दिनों से गई नहीं है। मायके जाने पर सौतेली माँ के दुव्र्यवहार तथा पिता की मृत्यु से व्यथित होकर वह बिना पानी पिए ही घर वापस चली आई। घर आकर सास को खरी-खोटी सुनाई तथा पति के ऊपर गहने फेंककर अपनी व्यथा व्यक्त की।
- Bhaktin को जीवन के दूसरे भाग में भी सुख नहीं मिला। उसके लगातार तीन लड़कियाँ पैदा हुई तो सास व जेठानियों ने उसकी उपेक्षा करनी शुरू कर दी। इसका कारण यह था कि सास के तीन कमाऊ बेटे थे तथा जेठानियों के काले-काले पुत्र थे। जेठानियाँ बैठकर खातीं तथा घर का सारा काम-चक्की चलाना, कूटना, पीसना, खाना बनाना आदि कार्य-भक्तिन करती। छोटी लड़कियाँ गोबर उठातीं तथा कंडे थापती थीं। खाने के मामले में भी भेदभाव था।
- जेठानियाँ और उनके लड़कों को भात पर सफेद राब, दूध व मलाई मिलती तथा भक्तिन को काले गुड़ की डली, मट्ठा तथा लड़कियों को चने-बाजरे की घुघरी मिलती थी। इस पूरे प्रकरण में भक्तिन के पति का व्यवहार अच्छा था। उसे अपनी पत्नी पर विश्वास था।
- पति-प्रेम के बल पर ही वह अलग हो गई। अलग होते समय अपने ज्ञान के कारण उसे गाय-भैंस, खेत, खलिहान, अमराई के पेड़ आदि ठीक-ठाक मिल गए। पति ने बड़ी लड़की का विवाह धूमधाम से किया। इसके बाद वह दो कन्याओं को छोड़कर चल बसा। इस समय भक्तिन मात्र 29 वर्ष की थी। उसकी संपत्ति देखकर परिवार वालों के मुँह में पानी आ गया। उन्होंने दूसरे विवाह का प्रस्ताव किया तो Bhaktin ने मना कर दिया। उसने बाल कटवा दिए तथा गुरु से मंत्र लेकर कंठी बाँध ली।
- उसने दोनों लड़कियों की शादी कर दी और पति के चुने दामाद को घर-जमाई बनाकर रखा। जीवन के तीसरे परिच्छेद में दुर्भाग्य ने उसका पीछा नहीं छोड़ा। उसकी लड़की भी विधवा हो गई। परिवार वालों की दृष्टि उसकी संपत्ति पर थी। उसका जेठ अपनी विधवा बहन के विवाह के लिए अपने तीतर लड़ाने वाले साले को बुला लाया क्योंकि उसका विवाह हो जाने पर सब कुछ उन्हीं के अधिकार में रहता।
- Bhaktin की लड़की ने उसे नापसंद कर दिया। माँ-बेटी मन लगाकर अपनी संपत्ति की देखभाल करने लगीं। एक दिन भक्तिन की अनुपस्थिति में उस तीतरबाज वर ने बेटी की कोठरी में घुसकर भीतर से दरवाजा बंद कर लिया और उसके समर्थक गाँव वालों को बुलाने लगे। लड़की ने उसकी खूब मरम्मत की तो पंच समस्या में पड़ गए। अंत में पंचायत ने कलियुग को इस समस्या का कारण बताया और अपीलहीन फैसला हुआ कि दोनों को पति-पत्नी के रूप में रहना पड़ेगा। यह संबंध सुखकर नहीं था।
- दामाद निश्चित होकर तीतर लड़ाता था, जिसकी वजह से पारिवारिक द्वेष इस कदर बढ़ गया कि लगान अदा करना भी मुश्किल हो गया। लगान न पहुँचने के कारण जमींदार ने भक्तिन को कड़ी धूप में खड़ा कर दिया।
- यह अपमान उसे सहन न हुआ और कमाई के लिए शहर चली आई। जीवन के अंतिम परिच्छेद में, घुटी हुई चाँद, मैली धोती तथा गले में कंठी पहने वह लेखिका के पास नौकरी के लिए पहुँची और उसने रोटी बनाना, दाल बनाना आदि काम जानने का दावा किया। नौकरी मिलने पर उसने अगले दिन स्नान करके लेखिका की धुली धोती भी जल के छींटों से पवित्र करने के बाद पहनी। निकलते सूर्य व पीपल को जल दिया। दो मिनट जप किया और कोयले की मोटी रेखा से चौके की सीमा निर्धारित करके खाना बनाना शुरू किया।
- भक्तिन छूत को मानने वाली थी। लेखिका ने समझौता करना उचित समझा। भोजन के समय भक्तिन ने लेखिका को दाल के साथ मोटी काली चित्तीदार चार रोटियाँ परोसीं तो लेखिका ने टोका। उसने सब्जी न बनाकर दाल बना दी। इस खाने पर प्रश्नवाचक दृष्टि होने पर वह अमचूरण, लाल मिर्च की चटनी या गाँव से लाए गुड़ का प्रस्ताव रखा।
- भक्तिन के लेक्चर के कारण लेखिका रूखी दाल से एक मोटी रोटी खाकर विश्वविद्यालय पहुँची और न्यायसूत्र पढ़ते हुए शहर और देहात के जीवन के अंतर पर विचार करने लगी। गिरते स्वास्थ्य व परिवार वालों की चिंता निवारण के लिए लेखिका ने खाने के लिए अलग व्यवस्था की, किंतु इस देहाती वृद्धा की सरलता से वह इतना प्रभावित हुई कि वह अपनी असुविधाएँ छिपाने लगी। भक्तिन स्वयं को बदल नहीं सकती थी। वह दूसरों को अपने मन के अनुकूल बनाने की इच्छा रखती थी। लेखिका देहाती बन गई, लेकिन भक्तिन को शहर की हवा नहीं लगी। उसने लेखिका को ग्रामीण खाना-खाना सिखा दिया, परंतु स्वयं ‘रसगुल्ला’ भी नहीं खाया।
- उसने लेखिका को अपनी भाषा की अनेक दंतकथाएँ कंठस्थ करा दीं, परंतु खुद ‘आँय’ के स्थान पर ‘जी’ कहना नहीं सीखा। भक्तिन में दुर्गुणों का अभाव नहीं था। वह इधर-उधर पड़े पैसों को किसी मटकी में छिपाकर रख देती थी जिसे वह बुरा नहीं मानती थी। पूछने पर वह कहती कि यह उसका अपना घर ठहरा, पैसा-रुपया जो इधर-उधर पड़ा देखा, सँभालकर रख लिया। यह क्या चोरी है! अपनी मालकिन को खुश करने के लिए वह बात को बदल भी देती थी।
- वह अपनी बातों को शास्त्र-सम्मत मानती थी। उसके अपने तर्क थे। लेखिका ने उसे सिर घुटाने से रोका तो उसने ‘तीरथ गए मुँड़ाए सिद्ध।’ कहकर अपना कार्य शास्त्र-सिद्ध बताया। वह स्वयं पढ़ी-लिखी नहीं थी। अब वह हस्ताक्षर करना भी सीखना नहीं चाहती थी। उसका तर्क था कि उसकी मालकिन दिन-रात किताब पढ़ती है। यदि वह भी पढ़ने लगे तो घर के काम कौन करेगा। भक्तिन अपनी मालकिन को असाधारणता का दर्जा देती थी। इसी से वह अपना महत्व साबित कर सकती थी। उत्तर-पुस्तिका के निरीक्षण-कार्य में लेखिका का किसी ने सहयोग नहीं दिया। इसलिए वह कहती फिरती थी कि उसकी मालकिन जैसा कार्य कोई नहीं जानता।
- वह स्वयं सहायता करती थी। कभी उत्तर-पुस्तिकाओं को बाँधकर, कभी अधूरे चित्र को कोने में रखकर, कभी रंग की प्याली धोकर और कभी चटाई को आँचल से झाड़कर वह जो सहायता करती थी उससे भक्तिन का अन्य व्यक्तियों से अधिक बुद्धिमान होना प्रमाणित हो जाता है। लेखिका की किसी पुस्तक के प्रकाशन होने पर उसे प्रसन्नता होती थी। उस कृति में वह अपना सहयोग खोजती थी।
- लेखिका भी उसकी आभारी थी क्योंकि जब वह बार-बार के आग्रह के बाद भी भोजन के लिए न उठकर चित्र बनाती रहती थी, तब भक्तिन कभी दही का शरबत अथवा कभी तुलसी की चाय पिलाकर उसे भूख के कष्ट से बचाती थी।
- भक्तिन में सेवा-भाव था। छात्रावास की रोशनी बुझने पर जब लेखिका के परिवार के सदस्य-हिरनी सोना, कुत्ता बसंत, बिल्ली गोधूलि भी-आराम करने लगते थे, तब भी भक्तिन लेखिका के साथ जागती रहती थी। वह उसे कभी पुस्तक देती, कभी स्याही तो कभी फ़ाइल देती थी। भक्तिन लेखिका के जागने से पहले जागती थी तथा लेखिका के बाद सोती थी। बदरी-केदार के पहाड़ी तंग रास्तों पर वह लेखिका से आगे चलती थी, परंतु गाँव की धूलभरी पगडंडी पर उसके पीछे रहती थी। लेखिका भक्तिन को छाया के समान समझती थी।
- युद्ध के समय लोग डरे हुए थे, उस समय वह बेटी-दामाद के आग्रह पर लेखिका के साथ रहती थी। युद्ध में भारतीय सेना के पलायन की बात सुनकर वह लेखिका को अपने गाँव ले जाना चाहती थी। वहाँ वह लेखिका के लिए हर तरह के प्रबंध करने का आश्वासन देती थी। वह अपनी पूँजी को भी दाँव पर लगाने के लिए तैयार थी। लेखिका का मानना है कि उनके बीच स्वामी-सेवक का संबंध नहीं था।
- इसका कारण यह था कि वह उसे इच्छा होने पर भी हटा नहीं सकती थी और भक्तिन चले जाने का आदेश पाकर भी हँसकर टाल रही थी। वह उसे नौकर भी नहीं मानती थी। भक्तिन लेखिका के जीवन को घेरे हुए थी। भक्तिन छात्रावास की बालिकाओं के लिए चाय बना देती थी। वह लेखिका के परिचितों व साहित्यिक बंधुओं से भी परिचित थी। वह उनके साथ वैसा ही व्यवहार करती थी जैसा लेखिका करती थी।
- वह उन्हें आकारप्रकार, वेश-भूषा या नाम के अपभ्रंश द्वारा जानती थी। कवियों के प्रति उसके मन में विशेष आदर नहीं था, परंतु दूसरे के दुख से वह कातर हो उठती थी। किसी विद्यार्थी के जेल जाने पर वह व्यथित हो उठती थी। वह कारागार से डरती थी, परंतु लेखिका के जेल जाने पर खुद भी उनके साथ चलने का हठ किया। अपनी मालकिन के साथ जेल जाने के हक के लिए वह बड़े लाट तक से लड़ने को तैयार थी। भक्तिन का अंतिम परिच्छेद चालू है। वह इसे पूरा नहीं करना चाहती।
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कठिन शब्दार्थ
Bhaktin पाठ से लिए गए कुछ कठिन शब्दार्थ नीचे दिए गए हैं-
शब्द | अर्थ |
प्रसिद्द | लोकप्रिय |
गोपालक | गाएं चराने वाला |
अपशकुन | बुरा होना |
पीहर | माँ का घर |
प्रकरण | मामला |
परिच्छेद | पैराग्राफ |
संपत्ति | जायदाद |
अपीलहीन | बिना अपील के |
द्वेष | नफरत |
चित्तीदार | धब्बे वाली |
निवारण | रोक-थाम |
दुर्गुण | बिना किसी गुण के |
निरीक्षण | जांच-पड़ताल |
छात्रावास | गर्ल्स हॉस्टल |
अपब्रंश | पतन |
Bhaktin पाठ से जुड़े MCQs
(क) 6 वर्ष
(ख) 3 वर्ष
(ग) 10 वर्ष
(घ) 9 वर्ष
उत्तर: (घ)
(क) 3
(ख) 2
(ग) 1
(घ) 7
उत्तर: (क)
(क) 20
(ख) 29
(ग) 27
(घ) 40
उत्तर: (ख)
(क) बैल
(ख) मेंढक
(ग) तीतर
(घ) बाज
उत्तर: (ग)
(क) लक्ष्मी
(ख) पार्वती
(ग) स्तुति
(घ) सौम्या
उत्तर: (क)
(क) शिव
(ख) राम
(ग) कृष्ण
(घ) हनुमान
उत्तर: (घ)
A- झालावाड
B- अहमदाबाद
C- झूंसी
D- झांसी
उत्तर– C
A- लम्बा
B- छोटा
C- मझला
D- बहुत लम्बा
उत्तर– B
A- पति के चाचा को
B- पति के मामा को
C- पति की दादा को
D- पति के पापा को
Ans – C
A- शहरी
B- अधिक देहाती
C- अर्ध शहरी
D- इनमे से कोई नहीं
Ans – B
A- धर्म चर्चा
B- लोक चर्चा
C- नीति चर्चा
D- अनीति चर्चा
Ans – B
A- गुरु
B- शिष्य
C- चेली
D- इनमे से कोई नहीं
Ans – A
A- बड़ी
B- छोटी
C- भूरी
D- इनमे से कोई नहीं
Ans – B
A- महादेवी वर्मा को
B- भक्तिन को
C- भक्तिन की सास
D- इनमे से कोई नहीं
Ans – B
A- जेठ जिठौत
B- सास ननंद
C- अजिया ससुर
D- इनमे से कोई नहीं
Ans – A
A- अदरक की
B- तुलसी की
C- दालचीनी की
D- इलायची की
Ans – B
Bhaktin पाठ से जुड़े प्रश्नोत्तर
भक्तिन के संदर्भ में हनुमान जी का उल्लेख इसलिए हुआ है क्योंकि भक्तिन लेखिका महादेवी वर्मा की सेवा उसी नि:स्वार्थ भाव से करती थी, जिस तरह हनुमान जी श्री राम की सेवा नि:स्वार्थ भाव से किया करते थे।
लेखिका ने भक्तिन को इसलिए समझदार माना है क्योंकि भक्तिन अपना असली नाम बताकर उपहास का पात्र नहीं बनना चाहती। उस जैसी दीन महिला का नाम ‘लक्ष्मी’ सुनकर लोगों को हँसने का अवसर मिलेगा।
मायके से घर आकर उसने अपनी सास को खूब खरी-खोटी सुनाई तथा पति के ऊपर गहने फेंक-फेंककर पिता के वियोग की व्यथा व्यक्त की।
भक्तिन ने जीवन के दूसरे परिच्छेद में एक-के-बाद एक तीन कन्याओं को जन्म दिया। इस कारण सास व जेठानियों ने उसकी उपेक्षा शुरू कर दी।
भक्तिन को पशु, जमीन व पेड़ों की सही जानकारी थी। इसी ज्ञान के कारण उसने हर चीज को छाँटकर लिया। उसने पति के साथ मिलकर मेहनत करके जमीन को सोना बना दिया।
नए दामाद के आने से घर में क्लेश बढ़ा। इस कारण खेती-बारी चौपट हो गई। लगान अदा न करने पर जमींदार ने भक्तिन को दिन भर कड़ी धूप में खड़ा रखा। इस अपमान व कमाई के विचार से भक्तिन शहर आई।
छोटी बहू लछमिन थी। उसने तीन लड़कियों को जन्म देकर घर की पुत्र जन्म देने की लीक को तोड़ा था।
जेठानियों ने काक-भुशंडी जैसे काले पुत्रों को जन्म दिया था। इस कार्य के बाद वे पुरखिन पद की दावेदार बन गई थीं।
‘खोटे सिक्कों की टकसाल’ लछमिन को कहा गया है क्योंकि उसने तीन पुत्रियों को जन्म दिया था। भारत में लड़कियों को ‘खोटा सिक्का’ कहा जाता है। उनकी दशा हीन होती है।
भक्तिन को पशु, जमीन व पेड़ों की सही जानकारी थी। इसी ज्ञान के कारण उसने हर चीज को छाँटकर लिया। उसने पति के साथ मिलकर मेहनत करके जमीन को सोना बना दिया।
भक्तिन का दुर्भाग्य यह था कि उसकी बड़ी लड़की किशोरी से युवती बनी ही थी कि उसका पति मर गया। वह असमय विधवा हो गई। दुर्भाग्य को हठी इसलिए कहा गया है क्योंकि बेटी के विधवा होने के दुख से पहले भक्तिन को बचपन से ही माता का बिछोह, अल्पायु में विवाह, विमाता का दंश, पिता की अकाल मृत्यु व असमय पति की मृत्यु जैसे जीवन में अनेक कष्ट सहने पड़े।
तीतरबाज युवक ने अपने पक्ष में कहा कि उसे भक्तिन की बेटी ने ही अंदर बुलाया था, जबकि युवती का कहना था कि उसने जबरदस्त विरोध किया। इसका प्रमाण युवक के मुँह पर छपी उसकी पाँचों उँगलियाँ हैं।
नौकरी मिलने पर भक्तिन दूसरे दिन सबसे पहले नहाई, फिर उसने लेखिका द्वारा दी गई धुली धोती जल के छींटों से पवित्र करके पहनी और उगते सूर्य व पीपल को जल अर्पित किया। फिर उसने दो मिनट तक नाक दबाकर जप किया और कोयले की मोटी रेखा से रसोई घर की सीमा निश्चित की।
लेखिका को अभी तक भक्तिन की पाक कला का ज्ञान नहीं था। उसे संशय था कि वह उसकी पसंद का खाना बना पाएगी या नहीं। भक्तिन स्वच्छता के नाम पर उसे रसोई में घुसने नहीं दे रही थी। इस कारण लेखिका को लगा कि शायद उसने किसी अनाधिकारी को नियुक्त कर दिया, किंतु अब कोई उपाय न था। अत: वह उसे भूलकर किताब में ध्यान लगाने लगी।
लेखिका ने भक्ति की धार्मिक प्रवृत्ति और पवित्रता को स्वीकार लिया था। उसने भक्तिन द्वारा खींची गई रेखा का उल्लंघन भी नहीं किया। यह देखकर भक्तिन के चेहरे पर प्रसन्नता तथा आत्मतुष्टि के भाव थे।
अनुच्छेद भक्तिन के बारे में है। भक्तिन चोरी के पैसे कहाँ और कैसे रखती है, इसके बारे में पूछे जाने पर वह शास्त्रार्थ की चुनौती दे डालती है।
भक्तिन इस बात में अपनी हीनता मानती है कि वह महादेवी की चित्रकला और कविता लिखने के दौरान किसी प्रकार की सहायता नहीं कर सकती।
सास द्वारा लछमिन को नए कपड़े पहनना, मायके भेजना, नम्र व्यवहार करना-सब कुछ लछमिन के लिए अप्रत्याशित अनुग्रह था। इस ‘अप्रत्यक्ष छल’ को लछमिन न समझ सकी और वह खुशी-खुशी मायके चली गई।
लछमिन तो उत्साह से भरकर पिता के घर आई थी। स्नेही पिता से मिलने की खुशी से उसका मन प्रफुल्लित था। हालांकि जैसे ही उसने जाना कि पिता की मृत्यु भी हो चुकी और उसे सूचित भी नहीं किया गया, उसका मन दुख एवं अवसर से भर गया। कम से कम समय से सूचना लेती होती तो बीमार पिता से मिल तो लेती तो विमाता की सारी चाल वह समझ गई और दुख से शिथिल तथा अपमान से जलती हुई लछमिन पानी भी बिना पिए लौट गई।
यहाँ दंड-विधान की बात लछमिन के संदर्भ में की जा रही है। इसका कारण यह है कि उसने तीन पुत्रियों को जन्म दिया, जबकि जेठानियों के सिर्फ पुत्र थे। अत: उसे दंड देने की बात हो रही थी।
जिठौत भक्तिन की विधवा लड़की के पुनर्विवाह के लिए अपने तीतर लड़ने वाले साले का प्रस्ताव लाया। इस विवाह के बाद भक्तिन की सारी संपत्ति जिठौत के कब्जे में आ जाती। जिठौत के विवाह-प्रस्ताव को भक्तिन की लड़की ने नापसंद कर दिया। बाहर के बहनोई से चचेरे भाइयों को फायदा नहीं मिलता। अत: विवाह-प्रस्ताव असफल हो गया।
पंचायत के फैसले पर Bhaktin व उसकी बेटी खून का घूंट पीकर रह गई। लड़की ने अपमान के कारण होठ काटकर खून निकाल लिया तथा माँ ने क्रोध से जबरदस्ती के दामाद को देखा। इस बेमेल विवाह से उत्पन्न क्लेश के कारण खेत, पशु आदि सब का सर्वनाश हो गया। अंत में लगान अदा करने के पैसे भी न रहे।
FAQs
भक्तिन पाठ को लिखा है भारत की लोकप्रिय लेखिका श्रीमती महादेवी वर्मा जी ने।
भक्तिन की शादी हैंडिया गाँव में हुई थी।
भक्तिन के दामाद को तीतर लड़ाने का शौक़ था।
भक्तिन छात्रावास की बालिकाओं के लिए चाय बना दिया करती थी।
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