जानिए काले मेघा पानी दे पाठ और उससे जुड़े प्रश्नोत्तर

1 minute read
1.0K views
Leverage-Edu-Default-Blog

Kale Megha Pani De को लिखा है महान कवी श्री धर्मवीर भारती जी ने। धर्मवीर जी ने ऐसी कई रचनाएं की हैं जो समाज को आइना दिखाती हैं और यह सवाल करने में बिलकुल पीछे नहीं हटती हैं। Kale Megha Pani De के इस पाठ में आप जानेंगे कि कैसे विज्ञान और अंधविश्वास अपने आप को रेस में हारने नहीं देना चाहते। तर्क सबके पास हैं, मगर अपने-अपने। जानिए क्या रहा आखिर में।

लेखक परिचय

Kale Megha Pani De
Source – काव्यालय

धर्मवीर भारती हिंदी साहित्य के जाने-माने लेखक,कवी थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद जिले में 1926 में हुआ था। उन्होंने कई कविताएं व उपन्यास लिखे जिसमें – सूरज का सातवाँ घोड़ा, ठंडा लोहा, काले मेघा पानी दे आदि शामिल हैं। Kale Megha Pani De पाठ अपने आप में बहुत कुछ कहता है।

काले मेघा पानी दे पाठ का प्रतिपाद्य व सारांश

प्रतिपादय – ‘काले मेघा पानी दे’ पाठ में प्रचलित विश्वास और विज्ञान के अस्तित्व का चित्रण किया गया है। विज्ञान का अपना तर्क है और विश्वास की अपनी क्षमता। इनके महत्व के विषय में पढ़ा-लिखा वर्ग परेशानी में है। लेखक ने इसी दुविधा को लेकर पानी के संदर्भ में धारणा रची है। आषाढ़ का पहला पखवाड़ा (15 दिन), बीत चुका है। ऐसे में खेती व अन्य कार्यों के लिए पानी न हो तो जीवन चलाना मुश्किल हो जाता है। यदि विज्ञान इन चुनौतियों का निबटारा नहीं कर पाता तो भारतीय समाज किसी-न-किसी जुगाड़ में लग जाता है, छल करता है और हर कीमत पर जीवित रहने के लिए अशिक्षा तथा बेबसी के भीतर से उपाय और काट की खोज करता है। 

सारांश – लेखक बताता है कि जब वर्षा की प्रतीक्षा करते-करते लोगों की हालत खराब हो जाती है तब गाँवों में नंग-धडंग बच्चे शोर करते हुए कीचड़ में लोटते हुए गलियों में घूमते हैं। यह दस-बारह वर्ष की आयु के होते हैं तथा सिर्फ़ जाँघिया या लैंगोटी पहनकर ‘गंगा मैया की जय’ बोलकर गलियों में चल पड़ते हैं। इस मंडली को इंदर सेना या मेढक-मंडली कहते हैं। ये पुकार लगाते हैं –

काले मघा पानी द पानी दे, गुड़धानी दे
गगरी फूटी बैल पियासा काले मेधा पानी दे।

जब यह मंडली किसी घर के सामने रुककर ‘पानी’ की पुकार लगाती थी तो घरों में रखे हुए पानी से इन बच्चों को सर से पैर तक तर कर दिया जाता था। गर्मी से कुएं सूख चुके होते थे. नलों में बहुत कम पानी आता था, लू से व्यक्ति बेहोश होने लगते थे। बारिश का कहीं नामोनिशान नहीं होता था। जब पूजा-पाठ आदि काम नहीं आते थे तो इंदर सेना आखिरी उपाय के तौर पर निकलती थी और इंद्र देवता से पानी की माँग करती थी।

लेखक समझ नहीं पाता था कि पानी की कमी के बावजूद लोग इकट्ठा किए पानी को इन पर क्यों फेंकते थे। ऐसे अंधविश्वासों से देश को बहुत नुकसान होता है। अगर यह सेना इंद्र की है तो वह खुद अपने लिए पानी क्यों नहीं माँग लेती? इसी कारण हम अंग्रेजों से पिछड़ गए तथा उनके गुलाम बन गए।लेखक मेढक-मंडली वालों की उम्र का ही था। वह आर्यसमाजी था, कुमार-सुधार सभा का उपमंत्री था और समाजसुधारी था। अपनी जीजी से उसे चिढ़ थी जो उम्र में उसकी माँ से बड़ी थीं। वे सभी रीति-रिवाजों, तीज-त्योहारों, पूजा-पाठों को लेखक के हाथों पूरा करवाती थीं। इन्हीं अंधविश्वासों को लेखक समाप्त करना चाहता था।

लेखक को पुण्य मिलने के लिए वह यह करवाती थीं। जीजी लेखक से इंदर सेना पर पानी फेंकवाने का काम करवाना चाहती थीं। उसने साफ़ मना कर दिया। जीजी ने काँपते हाथों व डगमगाते पाँवों से इंदर सेना पर पानी फेंका। लेखक जीजी से मुँह फुलाए रहा। शाम को उसने जीजी की दी हुई लड्डू-मठरी भी नहीं खाई। पहले उन्होंने गुस्सा दिखाया, फिर उसे गोद में लेकर समझाया कि यह अंधविश्वास नहीं है। यदि हम पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देंगे। यह पानी की बरबादी नहीं है बल्कि यह पानी की बर्बादी है। दान में देने पर ही इच्छित वस्तु मिलती है। ऋषियों ने दान को महान बताया है।

करोड़पति दो-चार रुपये दान में देदे तो वह त्याग नहीं होता। त्याग वह है जो अपनी जरूरत की चीज को जनकल्याण के लिए दे। ऐसे ही दान का फल मिलता है। लेखक जीजी के तर्कों के आगे पस्त हो गया। फिर भी वह जिद पर अड़ा रहा। जीजी ने फिर समझाया कि “तू बहुत पढ़ गया है।” वह अभी भी अनपढ़ है। “किसान भी 120-130 किलो गेहूँ उगाने के लिए 100-150 ग्राम अच्छा गेहूँ बोता है। इसी तरह हम अपने घर का पानी इन पर फेंककर बुवाई करते हैं। इसी से शहर, कस्बा, गाँव पर पानी वाले बादलों की फसल आ जाएगी। हम बीज बनाकर पानी देते हैं, फिर काले मेघा से पानी माँगते हैं।”

ऋषि-मुनियों ने भी यह कहा है कि “पहले खुद दो, तभी देवता चौगुना करके लौटाएँगे।” यह आदमी का ढंग है जिससे सबका ढंग बनता है। ‘यथा राजा तथा प्रजा’ सच है। गाँधी जी महाराज भी यही कहते हैं।” लेखक कहता है कि यह बात पचास साल पुरानी होने के बावजूद आज भी उसके मन पर दर्ज है। अनेक संदर्भों में ये बातें मन को कचोटती हैं कि हम देश के लिए क्या करते हैं? हर क्षेत्र में माँगें बड़ी-बड़ी हैं, पर त्याग का कहीं नाम-निशान नहीं है। आज स्वार्थ एकमात्र लक्ष्य रह गया है। हम भ्रष्टाचार की बातें करते हैं, परंतु खुद अपनी जाँच नहीं करते। काले मेघ उमड़ते हैं, पानी बरसता है, लेकिन बात वही रहती है। यह स्थिति कब बदलेगी, यह कोई नहीं जानता?

कठिन शब्द

Kale megha pani de पाठ के कठिन शब्द इस प्रकार हैं:

  • इंदर सेना – इंद्र के सिपाही
  • काँदी – कीचड़
  • अगवानी – स्वागत
  • जाँधया – कच्छा
  • जयकारा – नारा, उद्घोष
  • छज्जा – दीवार से बाहर निकला हुआ छत का भाग
  • बारजा –छत पर मुँडेर के साथ वाली जगह
  • समवेत – सामूहिक
  • गुड़धानी – गुड में मिलाकर बनाया गया लड्डू
  • धकियाते – धक्का देते
  • दुमहले – दो मंजिलों वाला
  • जेठ – जून का महीना
  • सहेजकर – सँभालकर
  • तर करना – अच्छी तरह भिगो देना
  • लोट लगाना – जमीन में लेटना
  • लथपथ होना – पूरी तरह सराबोर हो जाना
  • बदन – शरीर
  • हाँक – जोर की आवाज
  • मंडली बाँधना – समूह बनाना
  • टेरना – आवाज लगाना
  • भुनना – जलना
  • त्राहिमाम – मुझे बचाओ
  • दसतया – भयंकर गरमी के दस दिन
  • पखवारा – पंद्रह दिन का समय
  • क्षितिज-धरती – आकाश के मिलन का काल्पनिक स्थान
  • खौलता हुआ – उबलता हुआ, बहुत गर्म
  • कथा-विधान – धार्मिक कथाओं का आयोजन
  • निमम – कठोर
  • बरबादी – व्यर्थ में नष्ट करना
  • याखड – ढोंग, दिखावा
  • संस्कार – आदत
  • कायम – स्थापित होना
  • तरकस में तीर रखना – हमले के लिए तैयार होना
  • प्राया बसना – प्रिय होना
  • खान – भंडार। सतिया –स्वास्तिक का निशान
  • यजीरी – गुड़ और गेहूँ के भुने आटे से बना भुरभुरा खाद्य
  • हरछठ – जन्माष्टमी के दो दिन पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला पर्व
  • कुल्ही – मिट्टी का छोटा बर्तन
  • भूजा – भुना हुआ अन्न
  • अरवा चावल – बिना उबाले धान से निकाला चावल
  • मुहफुलाना – नाराजगी व्यक्त करना
  • तमतमान – क्रोध में आना
  • अध्र्य – जल चढ़ाना
  • ढकोसला – दिखावा
  • किला यस्त होना – हारना
  • जिदद यर अड़ना – अपनी बात पर अड़ जाना
  • मदरसा – स्कूल
  • आचरण – व्यवहार
  • दज होना – लिखा होना
  • संदर्भ –प्रसंग
  • कचोटना – बुरा लगना
  • चटखारे लेना – मजे लेना
  • दायरा – सीमा
  • अंग बनना – हिस्सा बनना
  • द्वमाझम – भरपूर, निरंतर

कक्षा 12 MCQs

Kale Megha Pani De पाठ के MCQs इस प्रकार हैं:

प्रश्न 1: इंदर सेना या मेंढक-मंडली में कितनी उम्र के किशोर होते हैं?
(क) 6-7
(ख) 8-9
(ग) 10-12
(घ) 14-15 

उत्तर: (ग)

प्रश्न 2: मेंढक-मंडली से आपका क्या तात्पर्य है?
(क) होनहार बच्चे
(ख) शोर-शराबा करते बच्चे
(ग) सीधे-साधे बच्चे
(घ) फिसड्डी बच्चे

उत्तर: (ख)

प्रश्न 3: मेंढक-मंडली लोगों के घरों के बाहर रूककर किस चीज़ की मांग करती थी?
(क) चाय
(ख) दूध
(ग) खाने 
(घ) पानी

उत्तर: (घ)

प्रश्न 4. लेखक समाज की किस कुरीति को खत्म करना चाहता था?
(क) अपराध
(ख) भ्रष्टाचार
(ग) अंधविश्वास
(घ) चोरी-डकैती

उत्तर: (ग)

प्रश्न 5: लोगों की परेशानी का क्या कारण था?
(क) बारिश का न आना
(ख) पैसों की किल्लत
(ग) नौकरी का अभाव
(घ) फसल न उगना

उत्तर: (क)

प्रश्न 6: लेखक बचपन में कुमार-सुधार सभा में किस पद पर था?
(क) सेनापति
(ख) रक्षा मंत्री
(ग) सिपाही
(घ) उपमंत्री

उत्तर: (घ)

प्रश्न 7: मेंढक-मंडलीपानी डालते समय जीजी की क्या हालत थी?
(क) हाथ काँप रहे थे
(ख) गले में दर्द था
(ग) बुखार था
(घ) खुश थीं

उत्तर: (क)

प्रश्न 8: जीजी ने किस महान राजनेता का उदाहरण देकर लेखक को समझाया?
(क) ज्योति बासु
(ख) जवाहरलाल नेहरु
(ग) महात्मा गाँधी
(घ) सरदार वल्लभ भाई पटेल

उत्तर: (घ)

प्रश्न 9: लेखक ने जीजी की दी हुई क्या चीज़ नहीं खाई?
(क) दही
(ख) लड्डू-मठरी
(ग) खीर
(घ) काजू

उत्तर: (ख)

प्रश्न 10: हर क्षेत्र में माँगें बड़ी-बड़ी हैं, पर किस चीज़ का कहीं नाम-निशान नहीं है?
(क) त्याग
(ख) अहमियत
(ग) समय
(घ) सत्य

उत्तर: (क)

काले मेघा पानी दे के लिए प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1: ‘यथा राजा तथा प्रजा’ व ‘यथा प्रजा तथा राजा’ में क्या अंतर है ?
उत्तर:
‘यथा राजा तथा प्रजा’ का अर्थ है-राजा के आचरण के अनुसार ही प्रजा का आचरण होना। ‘यथा प्रजा तथा राजा’ का आशय है-जिस देश की जनता जैसी होती है, वहाँ का राजा वैसा ही होता है।

प्रश्न 2: जीजी ने दान के पक्ष में क्या तर्क दिए?

उत्तर: जीजी ने दान के पक्ष में यह तर्क दिया कि यदि हम इंदर सेना को पानी नहीं देंगे तो इंद्र भगवान हमें पानी कैसे देगा। यह पानी की बरबादी नहीं है। यह बादलों पर अध्र्य चढ़ाना है। जो हम पाना चाहते हैं, उसे पहले दान देना पड़ता है। तभी हमें वह बढ़कर मिलता है। ऋषि-मुनियों ने दान को सबसे ऊँचा स्थान दिया है

प्रश्न 3: मेढ़क-सडली में कैसे लड़के होते थे?

उत्तर: मेढक-मंडली में दस-बारह वर्ष से सोलह-अठारह वर्ष के लड़के होते थे। इनका रंग साँवला होता था तथा ये वस्त्र के नाम पर सिर्फ़ एक जाँधिया या कभी-कभी सिर्फ़ लैंगोटी पहनते थे।

प्रश्न 4: कौन कहता है इन्हे इंद्र की सेना ? – इस कथन का व्यग्य स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: इस कथन से लेखक ने इंदर सेना और मेढक-मंडली पर व्यंग्य किया है। ये लोग पानी की बरबादी करते हैं तथा पाखंड फैलाते हैं। यदि ये इंद्र से औरों को पानी दिलवा सकते हैं तो अपने लिए ही क्यों नहीं माँग लेते।

प्रश्न 5:जीजी द्वारा गांधी जी का नाम लेने के पीछे क्या कारण था?

उत्तर: जीजी के लड़के को राष्ट्रीय आंदोलन में भाग लेने के लिए पुलिस की लाठियाँ खानी पड़ी थीं। उसके बाद से जीजी गांधी महाराज की बात करने लगी थीं।

प्रश्न 6: गगरी तथा बैल के उल्लख से लखक क्या कहना चाहता हैं?

उत्तर: गगरी और बैल के माध्यम से लेखक कहना चाहता है कि आज हमारे देश में संसाधनों की कमी नहीं है परंतु भ्रष्टाचार के कारण वे साधन लोगों के पास तक नहीं पहुँच पाते। इससे देश की जनता की जरूरतें पूरी नहीं हो पातीं।

FAQs

काले मेघा पानी दे का प्रतिपाद्य क्या है?

लेखक ने किशोर जीवन के इस संस्मरण में दिखलाया है कि अनावृष्टि से मुक्ति पाने हेतु गाँव के बच्चों की इंदर सेना द्वार-द्वार पानी मांगने जाती है लेकिन लेखक का तर्कशील किशोर मन भीषण सूखे में उसे पानी की निर्मम बर्बादी समझता है। लेखक की जीजी इस कार्य को अंधविश्वास न मानकर लोक आस्था त्याग की भावना कहती है।

जीजी ने नाराज़ लेखक से क्या कहा?

इस तरह मेहनत से इकट्ठा किया गया पानी अंधविश्वास के नाम पर इंदर सेना पर फेंका जाना गलत है। जीजी फिर भी यह कार्य करती है तो वह नाराज हो जाता है। जीजी उसे कहती है कि बादलों से वर्षा लेने के लिए इंदर सेना लोगों से जल का दान कराती है।

इंद्रसेना कब निकलती थी?

जब पूजा-पाठ आदि विफल हो जाती थी तो इंदर सेना अंतिम उपाय के तौर पर निकलती थी और इंद्र देवता से पानी की मांग करती थी।

जीजी के अनुसार दान क्या है?

जीजी के अनुसार दान त्याग से ही किया जाता है परन्तु पर्याप्त धन-सम्पत्ति में से कुछ देना त्याग नहीं, अपनी जरूरत को पीछे रखकर पर हितार्थ कुछ देना त्याग है। जीजी की आस्था, विश्वास, प्रेम की प्रबलता।

जीजी के अनुसार ऋषि मुनियों ने किसका महत्व बताया है?

सब ऋषि-मुनि कह गए हैं कि पहले खुद दो तब देवता दो तुम्हें चौगुना-अठगुना करके लौटाएंगे भइया, यह तो हर आदमी का आचरण है, जिससे सबका आचरण बनता है। यथा राजा तथा प्रजा सिर्फ यही सच नहीं है। सच यह भी है कि यथा प्रजा तथा राजा।

जीजी के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालिए?

लेखक ने जीजी के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई हैं। (क) स्नेहशील जीजी लेखक को अपने बच्चों से भी अधिक प्यार करती थीं। वे सारे अनुष्ठान, कर्मकांड लेखक से करवाती थीं ताकि उसे पुण्य मिलें। (ख) आस्थावती-जीजी आस्थावती नारी थीं।

काले मेघा पानी दे पाठ के लेखक का नाम है?

काले मेघा पानी दे पाठ के लेखक का नाम धर्मवीर भारती है।

हमें उम्मीद हैं कि आपको हमारा Kale Megha Pani De का यह ब्लॉग अच्छा लगा होगा। अगर आप विदेश में पढ़ाई करना चाहते है तो आज ही हमारे Leverage Edu के एक्सपर्ट्स से 1800 572 000 पर कॉल करके 30 मिनट का फ्री सेशन बुक कीजिए।

प्रातिक्रिया दे

Required fields are marked *

*

*

15,000+ students realised their study abroad dream with us. Take the first step today.
Talk to an expert