अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस : बेटियां बोझ नहीं है…कविता का भावार्थ और अन्य कविता

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बेटियां बोझ नहीं है कविता

हर साल 11 अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस के रूप में मनाया जाता है। बालिका दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य लड़कियों के अधिकारों और उनके महत्व के प्रति जागरूकता फैलाना है। भारत में, लड़कियों को अक्सर लड़कों की तुलना में कम अधिकार और अवसर दिए जाते हैं। उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और सुरक्षा तक पहुंच से वंचित किया जाता है। कई बार हम देखते हैं कि समाज में बेटियों को बोझ समझा जाता है, जिसके बारे में नीचे दी गई कविता के माध्यम से लिखा गया है। इस मान्यता का विरोध करते हुए इस ब्लॉग में आपको “बेटियां बोझ नहीं है कविता” और इसके भावार्थ को पढ़ने का अवसर मिलेगा।

बेटियां बोझ नहीं है कविता

लक्ष्मी बनकर जो जन्म ले,
वो बेटियां बोझ नहीं होती।
घर के आंगन में जब वो खिलखिलाती रहे,
तो वहां सोने-चांदी की भी जरूरत नहीं होती।

रास्ते में अगर सहेलियों के साथ हंसे,
तो वो घर का बोझ नहीं होती।
माँ-बाप के काम में हाथ बांटती हैं,
ये बेटियां बोझ नहीं होती।

दो घरों में चराग जलाती हैं,
ये बेटियां बोझ नहीं होती।
यह माँ का भी फ़र्ज़ निभाती हैं,
ये बेटियां बोझ नहीं होती।

सभी में कमाल दिखाती हैं,
हर क्षेत्र में सबको हराती हैं।
हँसते-हँसते सह जाती हैं,
दुःख के घूंट को हँसकर पी जाती हैं।

कभी हार नही मानती हैं,
बस आगे ही बढ़ना ये जानती हैं।
अपने फ़र्ज़ को पहचानती हैं,
दौड़कर पानी लाती हैं।

वही जीवन में संस्कार समझाती हैं,
ये बेटियां बोझ नहीं होती।

– अज्ञात 

बेटियां बोझ नहीं है कविता भावार्थ

इस कविता में बेटियों को बोझ नहीं, बल्कि एक वरदान के रूप में बताया गया है। बेटियां घर का बोझ नहीं बल्कि खुशियों का स्रोत होती हैं। वे माँ-बाप का साथ देती हैं, घर की देखभाल करती हैं, और समाज में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसलिए, हमें बेटियों को सम्मान देना चाहिए और उन्हें एक समान अवसर प्रदान करने चाहिए। ये कविता समाज में बेटियों के प्रति पारंपरिक दृष्टिकोण को बदलने का प्रयास करती है।

यह भी पढ़ें – बालिका दिवस क्यों मनाया जाता है

बेटियां बोझ नहीं है पर अन्य कविता

बेटियां बोझ नहीं है कविता में कुछ अन्य कविताएं भी हैं, जिनके माध्यम से बेटियों के लिए समान अधिकारों की बात की जा सकती है। इसके साथ समाज में बेटियों के प्रति दृष्टिकोण को भी बदला जा सकता है, जो कुछ इस प्रकार हैं;

मुझको मेरा हक दो

मुझको मेरा हक दो पापा,
बहुत कुछ कर दिखलाऊँगी !
लेने दो खुली हवा में सांसे,
बेटे से ज्यादा फर्ज निभाऊंगी !!

उड़ने दो किसी पतंग के जैसी,
आसमान को छुकर आउंगी !!
क्यों डरते हो हैवानी दुनिया से
अकेली सब पर भारी पड़ जाउंगी !!

माना डगर कठिन बहुत है,
मंजिल तक फिर भी जाउंगी !
मुझ पर करो भरोस तुम,
कभी न दुःख पहुँचाऊँगी !!

करो हौसले मेरे बुलंद तुम,
अधूरे सपने पूरे कर दिखलाऊँगी !
मत आंको कम मेरी ताकत,
संतान का हर फर्ज निभाऊंगी !!

समझा देना मात मेरी को,
जिसने नारी का हर दुःख झेला है!
रखे हौसला अब दिन दूर नही,
जब तुम दोनों का सम्मान बढ़ाउंगी !!

आएगा कभी वक़्त बुरा भी,
हर सुख दुःख में साथ निभाऊंगी !
नहीं बनूँगी कमजोर कड़ी मैं,
अपने घर की ताकत बन जाउंगी !!

शान हूँ अपने बाबुल की,
कभी न नीचा दिखलाऊँगी !
खेले अगर कोई मेरी आन से,
रूप दुर्गा चंडी का भर जाउंगी!!

मुझको मेरा हक दो पापा,
बहुत कुछ कर दिखलाऊँगी!
लेने दो खुली हवा में सांसे,
बेटे से ज्यादा फर्ज निभाऊंगी !!

– डी. के. निवातियाँ

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FAQs 

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस क्या है?

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस एक विशेष दिन है जो महिला और लड़कियों के अधिकारों को प्रमोट करने और सुरक्षित और स्वास्थ्य जीवन की स्थापना करने के लिए समर्पित है। यह दिन गर्व से मनाया जाता है और लड़कियों के शिक्षा, स्वास्थ्य, सुरक्षा और भविष्य के विकास की महत्वपूर्ण चुनौतियों को उजागर करता है।

यह दिन क्यों मनाया जाता है?

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस का उद्देश्य लड़कियों के अधिकारों की प्रमोट करना है, और उन्हें बेहतर जीवन के लिए संरक्षित और समर्थ बनाने के लिए समर्थन प्रदान करना है। यह दिन एकाधिक अंगों से जुड़े मुद्दों पर ध्यान देने का मौका प्रदान करता है। 

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस किस दिन मनाया जाता है?

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस हर साल 11 अक्टूबर को मनाया जाता है।

आशा है कि इस ब्लाॅग में आपको बेटियां बोझ नहीं है कविता का भावार्थ और इसके साथ अन्य कविता को भी पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ होगा। इसी तरह के अन्य ट्रेंडिंग इवेंट्स आर्टिकल्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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