अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर कविता: पढ़िये अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर लिखी ऐसी कविताएं, जो समाज को बेटियों के अधिकारों के प्रति जागरूक करेंगी

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अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर कविता

कविताएं समाज का आईना होती हैं, जो कि समाज में व्याप्त हर प्रकार की कुरीतियों का नाश करती हैं। कविताएं ही समाज की प्रेरणा बनती हैं, जिनकी सहायता से समाज प्रेरणा पाता है। जब-जब मानव अपने कर्तव्यों को भूल जाता है, तब-तब कविताएं उसको अपनी जिम्मेदारियों का एहसास कराती हैं। जब-जब सभ्य समाज कहीं नींद गहरी सो जाता है, तब-तब कविताएं समाज की सोई चेतना को जगाती हैं। जब-जब जग में कहीं अधिकारों का हनन और मानवता का शोषण होता है, तब-तब कविताएं मानव को साहस से लड़ना सिखाती हैं। अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर कविता के माध्यम से आप बेटियों के सम्मान और अधिकारों के संरक्षण पर लिखी कविताओं को पढ़ पाएंगे।

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर कविता लिखने या पढ़ने से पहले आपको अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस (International Day of the Girl Child) के बारे में पता होना चाहिए। यह एक विशेष दिन है, जो कि प्रत्येक वर्ष 11 अक्टूबर को मनाया जाता है। इस दिन का मुख्य उद्देश्य बालिकाओं (लड़कियों) के अधिकारों और समृद्धि का प्रोत्साहन करना तथा उनकी समस्याओं के प्रति समाज में जागरूकता फैलाना है। इस दिन को मनाने के लिए विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों द्वारा विशेष कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य समाज में बच्चियों की समस्याओं के प्रति चर्चा स्थापित करना होता है।

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर कविता

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर कविता के माध्यम से आप बेटियों के अधिकारों के लिए एक सार्थक कदम उठा सकते हैं। अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर कविता निम्नलिखित हैं, जिन्हें आप अपने दोस्तों के साथ भी साझा कर सकते हैं;

बेटियां

“परिवार का मान होती हैं, सभ्यताओं का श्रृंगार होती हैं
बेटियां होती हैं पाग बापू की, नकारात्मकता का प्रतिकार होती हैं

शक्ति का प्रतीक बनकर, जीवन भर पीड़ाओं में पलकर
संघर्षों की फुलवाड़ी में महकती है बेटियां
आशाओं की किरण बनकर, परिश्रम की भट्टी में तपकर
सूर्य की किरणों सा चमकती हैं बेटियां

साहस भरा प्रकाश होती हैं, जीत का विश्वास होती हैं
बेटियां होती हैं सृष्टि की सृजनकर्ता भी, सुख का आभास होती हैं

खुद पर उठने वाले हर सवाल को सहकर
निज जीवन में उठने वाले तमस को अलविदा कहकर
अग्नि के स्वरुप सी पवित्रता धारण करती हैं बेटियां
अविरल नदियों की कलकल धाराओं में बहकर
कुरीतियों के तीव्र तूफानों से सीधा उलझकर
समाज को सद्मार्ग दिखाने में प्रयासरत रहती हैं बेटियां…”
-मयंक विश्नोई

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर कविता

बहुत प्यारी होती हैं बेटियां

बहुत प्यारी होती हैं बेटियाँ,
ओस की बूँद सी होती हैं ये,
पापा की आँखों की प्यारी,
माँ की दुलारी होती हैं बेटियाँ।

बेटा करेगा रोशन एक ही कुल को,
पर बेटियाँ करेंगी रोशन दो कुलों को,
बेटा अगर हीरा होता है तो,
बेटियाँ भी सच्ची मोती होती हैं।

काँटों की राह पर चलती हैं ख़ुद तो,
पर औरों के लिये फूल बोती हैं हमेशा,
ना कभी उफ़ तक करती हैं ये,
बस हर काम करने को तत्पर रहती हैं बेटियाँ।

विधि का विधान तो देखो,
दुनिया ने क्या रस्म बनाई,
बेटा पास रहता और दूर जाती हैं बेटियाँ,
मुट्ठी में भरे नीर सी होती हैं बेटियाँ।
बहुत प्यारी होती हैं बेटियाँ…”
-नूतन गर्ग

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर कविता

बेटी को ही मेहमान न समझा जाए

दिल के बहलाने का सामान न समझा जाए
मुझ को अब इतना भी आसान न समझा जाए
मैं भी दुनिया की तरह जीने का हक़ माँगती हूँ
इस को ग़द्दारी का एलान न समझा जाए
अब तो बेटे भी चले जाते हैं हो कर रुख़्सत
सिर्फ़ बेटी को ही मेहमान न समझा जाए…”
-रेहाना रूही

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर कविता

स्त्रियाँ

पढ़ा गया हमको 
जैसे पढ़ा जाता है काग़ज़ 
बच्चों की फटी कॉपियों का 
चनाजोर गर्म के लिफ़ाफ़े बनाने के पहले! 
देखा गया हमको 
जैसे कि कुफ़्त हो उनींदे 
देखी जाती है कलाई घड़ी 
अलस्सुबह अलार्म बजने के बाद! 
सुना गया हमको 
यों ही उड़ते मन से 
जैसे सुने जाते हैं फ़िल्मी गाने 
सस्ते कैसेटों पर 
ठसाठस्स भरी हुई बस में! 
भोगा गया हमको 
बहुत दूर के रिश्तेदारों के 
दुःख की तरह! 
एक दिन हमने कहा 
हम भी इंसान हैं— 
हमें क़ायदे से पढ़ो एक-एक अक्षर 
जैसे पढ़ा होगा बी.ए. के बाद 
नौकरी का पहला विज्ञापन! 
देखो तो ऐसे 
जैसे कि ठिठुरते हुए देखी जाती है 
बहुत दूर जलती हुई आग! 
सुनो हमें अनहद की तरह 
और समझो जैसे समझी जाती है 
नई-नई सीखी हुई भाषा! 
इतना सुनना था कि अधर में लटकती हुई 
एक अदृश्य टहनी से 
टिड्डियाँ उड़ीं और रंगीन अफ़वाहें 
चीख़ती हुई चीं-चीं 
‘दुश्चरित्र महिलाएँ, दुश्चरित्र 
महिलाएँ— 
किन्हीं सरपरस्तों के दम पर फूलीं-फैलीं 
अगरधत्त जंगली लताएँ! 
खाती-पीती, सुख से ऊबी 
और बेकार बेचैन, आवारा महिलाओं का ही 
शग़ल हैं ये कहानियाँ और कविताएँ…। 
फिर ये उन्होंने थोड़े ही लिखी हैं 
(कनखियाँ, इशारे, फिर कनखी) 
बाक़ी कहानी बस कनखी है। 
हे परमपिताओ, 
परमपुरुषो— 
बख़्शो, बख़्शो, अब हमें बख़्शो!
-अनामिका

पिकासो की पुत्रियाँ

कठोर हैं तुम्हारे कुचों के 
मौन मंजीर, 
ओ पिकासों की पुत्रियो! 
सुडौल हैं तुम्हारे नितंब के 
दोनों कूल, 
ओ पिकासी की पुत्रियो! 
निर्भीक हैं 
चरणों तक गईं 
कदली—खंभों-सी प्रवाहित 
कुमारीत्व की दोनों 
नदियाँ, 
ओ पिकासो की पुत्रियो!
-केदारनाथ अग्रवाल

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर कविता

प्रेम करती बेटियाँ

“आज भी बेटियाँ कितना प्रेम करती हैं पिताओं से 
वही जो बीच जीवन के उन्हें बेघर करते हैं 
धकेलते हैं जो उन्हें निर्धनता के अगम अंधकार में 
कितनी अजीब बात है 
जिनके सामने झुकी रहती है सबसे ज़्यादा गर्दन 
वही उतार लेते हैं सिर…”
-सविता सिंह

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर कविता

बेटियाँ

बेटी का जन्म होने पर 
छत पर जाकर 
नहीं बजाई जाती काँसे की थाली 
बेटी का जन्म होने पर 
घर के बुज़ुर्ग के चेहरे पर 
और बढ़ जाती हैं चिंता की रेखाएँ 
बेटियाँ तो यूँ ही 
बढ़ जाती हैं रूँख-सी 
बिन सींचे ही 
लंबी हो जाती हैं ताड़-सी 
फैला लेती हैं जड़े पूरे परिवार में 
बेटे तो होते हैं कुलदीपक 
नाम रोशन करते ही रहते हैं 
बेटियाँ होती हैं घर की इज़्ज़त 
दबी-ढकी ही अच्छी लगती हैं 
बेटियों का हँसना 
बेटियों का बोलना 
बेटियों का खाना 
अच्छा नहीं लगता 
बेटियाँ तो अच्छी लगती हैं 
खाना बनातीं बर्तन माँजतीं 
कपड़ें धोतीं पानी भरतीं 
भाइयों की डाँट सुनतीं 
ससुराल जाने के बाद 
माँओं को बड़ी 
याद आती हैं बेटियाँ 
माँ सोचती और महसूस करती है 
जैसे बिछड़ गई हो 
उसकी कोई सहेली 
घर के सारे सुख-दुख 
किससे कहे वह 
बेटे तो आते हैं मेहमान से 
उन्हें क्या मालूम माँ क्या सोचती है 
बेटियाँ ससुराल जाकर भी 
अलग नहीं होतीं जड़ों से 
लौट-लौट आती हैं सहेजने 
तुलसी का बिरवा 
जमा जाती हैं माँ का बक्सा 
टाँक जाती हैं 
पिता की क़मीज़ पर बटन 
बेटे का जन्म होने पर 
छत पर जाकर 
काँसे की थाली बजाती हैं बेटियाँ…”
-गोविंद माथुर

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर कुछ लघु कविताएं

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर कविता के माध्यम से आप कम शब्दों में बेटियों के हक़ की पैरवी करने वाली कविताओं को पढ़ सकते हैं, जो कि निम्नलिखित हैं;

“कहा मेरी बेटी ने
‘ऐसे नहीं होते कवि’
कहा मेरी बेटी ने…”
-प्रयाग शुक्ल

“एक ख़ूबसूरत बेटी का पिता
वैसा दबाव नहीं होता, जैसा होता है
मेरी बेटी जैसी ख़ूबसूरत लड़कियों पर…”
-पवन करण

“मेरी बेटी रोज़ सुबह उठती है
और नियम से अपनी गुल्लक में डालती है सिक्के…”
-ज्योति चावला

“ओ मेरी मृत्यु!
उसे दिलासा नहीं दिया।
अभी मेरी बेटी बच्ची ही है—नन्ही-सी…”
-सपना भट्ट

“हज़ार द्वारी कविताएँ
वह मेरी बेटी नहीं
मेरी कविता थी…”
-पंखुरी सिन्हा

“रीतिकाल पढ़ते हुए
इक्कीसवीं सदी में
पैदा हुई मेरी बेटी!
-अनामिका

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाये जाने के उद्देश्य

अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर कविता पढ़ने से पहले आपको अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस मनाये जाने के उद्देश्यों के बारे में जान लेना चाहिए, जो कि आप निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं;

  1. अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस का एक मुख्य उद्देश्य यह है कि बच्चियों को शिक्षा के क्षेत्र में समान अधिकार और अवसर प्रदान किए जाने चाहिए।
  2. अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के माध्यम से, समाज बच्चियों की भूमिका को महत्वपूर्ण मानता है और उनके समर्पण को समर्थन प्रदान करता है।
  3. अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के माध्यम से, लोग बच्चियों की सुरक्षा के प्रति जागरूक होते हैं और उनके लिए सुरक्षित माहौल बनाने के लिए कदम उठाते हैं।
  4. अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस का एक मुख्य उद्देश्य यह है कि बेटियों के प्रति माता-पिता, शिक्षक, समाज, और सरकार बच्चियों के प्रति अपना समर्पण दिखाते हुए, उन्हें उनके सपनों को पूरा करने में सहायता प्रदान करें।
  5. अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस के माध्यम से, समाज में लड़कियों के अधिकारों और मौकों की ओर ध्यान आकर्षित किया जाता है, जो समाज में सामाजिक समानता की दिशा में महत्वपूर्ण है।

आशा है कि अंतरराष्ट्रीय बालिका दिवस पर कविता के माध्यम से आप बेटियों पर आधारित कविताएं पढ़ पाएं होंगे, जो कि आपको सदा प्रेरित करती रहेंगी। साथ ही यह ब्लॉग आपको इंट्रस्टिंग और इंफॉर्मेटिव भी लगा होगा, इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

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