Abroo Shah Mubarak Shayari : आबरू शाह मुबारक के चुनिंदा शेर, शायरी और गजल

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Abroo Shah Mubarak Shayari

आबरू शाह मुबारक 18वीं सदी के एक प्रतिष्ठित उर्दू कवि का दर्जा प्राप्त है। आबरू शाह मुबारक ने अपनी रचनाओं में रहस्यवाद, प्रेम और जीवन के विभिन्न पहलुओं का बखूबी चित्रण किया है। वर्ष 1967 में उनका सबसे प्रसिद्ध संग्रह “दीवान-ए-आबरू” प्रकाशित हुआ था। आबरू शाह मुबारक के शेर, शायरी और गजलें पढ़कर साहित्य की सुंदरता का अनुभव करने के साथ-साथ, विद्यार्थियों को उर्दू साहित्य के इतिहास के बारे में भी जानने का अवसर मिलेगा। इस ब्लॉग के माध्यम से आप कुछ चुनिंदा Abroo Shah Mubarak Shayari पढ़ पाएंगे, जो आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का सफल प्रयास करेंगी।

आबरू शाह मुबारक का जीवन परिचय

आबरू शाह मुबारक को उत्तर भारत का पहला साहब-ए-दीवान शायर कहा जाता है, उत्तर भारत में शायरी की असल ज़बान फ़ारसी थी। आबरू एक ऐसे शायर थे जिन्होंने फ़ारसी और बृज दोनों भाषाओं के महत्व को समझा और इसके प्रभाव को स्वीकार किया। साथ ही उन्होंने अपने दौर के मिज़ाज को पूरी तरह अपनाया।

आबरू का जन्म 1683 ई. में मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ थे। इतिहास पर प्रकाश डाला जाए तो आप जानेंगे कि लगभग 1706 ई. के आस-पास आबरू दिल्ली आकर शाही मुलाज़मत से जुड़ गए। 20 दिसंबर 1733 को दिल्ली में आबरू का निधन हुआ था।

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आबरू शाह मुबारक की शायरी – Abroo Shah Mubarak Shayari

आबरू शाह मुबारक की शायरी पढ़कर युवाओं में साहित्य को लेकर एक समझ पैदा होगी, जो उन्हें उर्दू साहित्य की खूबसूरती से रूबरू कराएगी, जो इस प्रकार है:

“आज यारों को मुबारक हो कि सुब्ह-ए-ईद है 
 राग है मय है चमन है दिलरुबा है दीद है…”
 -आबरू शाह मुबारक

“तुम्हारे लोग कहते हैं कमर है 
 कहाँ है किस तरह की है किधर है…”
 -आबरू शाह मुबारक

“क़ौल ‘आबरू’ का था कि न जाऊँगा उस गली 
 हो कर के बे-क़रार देखो आज फिर गया…”
 -आबरू शाह मुबारक

“तुम नज़र क्यूँ चुराए जाते हो 
 जब तुम्हें हम सलाम करते हैं…”
 -आबरू शाह मुबारक

Abroo Shah Mubarak Shayari

“जलता है अब तलक तिरी ज़ुल्फ़ों के रश्क से 
 हर-चंद हो गया है चमन का चराग़ गुल…”
 -आबरू शाह मुबारक

“बोसाँ लबाँ सीं देने कहा कह के फिर गया 
 प्याला भरा शराब का अफ़्सोस गिर गया…”
-आबरू शाह मुबारक

“अफ़्सोस है कि बख़्त हमारा उलट गया 
 आता तो था पे देख के हम कूँ पलट गया…”
-आबरू शाह मुबारक

“ख़ुदावंदा करम कर फ़ज़्ल कर अहवाल पर मेरे 
 नज़र कर आप पर मत कर नज़र अफ़आल पर मेरे…”
-आबरू शाह मुबारक

“क्या सबब तेरे बदन के गर्म होने का सजन 
 आशिक़ों में कौन जलता था गले किस के लगा…”
-आबरू शाह मुबारक

“मुफ़्लिसी सीं अब ज़माने का रहा कुछ हाल नईं 
 आसमाँ चर्ख़ी के जूँ फिरता है लेकिन माल नईं…”
-आबरू शाह मुबारक

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मोहब्बत पर आबरू शाह मुबारक की शायरी

मोहब्बत पर आबरू शाह मुबारक की शायरियाँ जो आपका मन मोह लेंगी – 

“क्या सबब तेरे बदन के गर्म होने का सजन 
 आशिक़ों में कौन जलता था गले किस के लगा…”
-आबरू शाह मुबारक

“अगर देखे तुम्हारी ज़ुल्फ़ ले डस 
 उलट जावे कलेजा नागनी का…”
-आबरू शाह मुबारक

“यूँ ‘आबरू’ बनावे दिल में हज़ार बातें 
 जब रू-ब-रू हो तेरे गुफ़्तार भूल जावे…”
-आबरू शाह मुबारक

Abroo Shah Mubarak Shayari

“उस वक़्त जान प्यारे हम पावते हैं जी सा 
 लगता है जब बदन से तैरे बदन हमारा…”
-आबरू शाह मुबारक

“दिखाई ख़्वाब में दी थी टुक इक मुँह की झलक हम कूँ 
 नहीं ताक़त अँखियों के खोलने की अब तलक हम कूँ…”
-आबरू शाह मुबारक

“क्यूँ तिरी थोड़ी सी गर्मी सीं पिघल जावे है जाँ 
 क्या तू नें समझा है आशिक़ इस क़दर है मोम का…”
-आबरू शाह मुबारक

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आबरू शाह मुबारक के शेर

आबरू शाह मुबारक के शेर पढ़कर युवाओं को आबरू शाह मुबारक की लेखनी से प्रेरणा मिलेगी। आबरू शाह मुबारक के शेर युवाओं के भीतर सकारात्मकता का संचार करेंगे, जो कुछ इस प्रकार हैं:

“यारो हमारा हाल सजन सीं बयाँ करो 
 ऐसी तरह करो कि उसे मेहरबाँ करो…”
-आबरू शाह मुबारक

“इश्क़ की सफ़ मनीं नमाज़ी सब 
 ‘आबरू’ को इमाम करते हैं…”
-आबरू शाह मुबारक

“ग़म के पीछो रास्त कहते हैं कि शादी होवे है 
 हज़रत-ए-रमज़ां गए तशरीफ़ ले अब ईद है…”
-आबरू शाह मुबारक

“कभी बे-दाम ठहरावें कभी ज़ंजीर करते हैं 
 ये ना-शाएर तिरी ज़ुल्फ़ाँ कूँ क्या क्या नाम धरते हैं…”
-आबरू शाह मुबारक

“ग़म से हम सूख जब हुए लकड़ी 
 दोस्ती का निहाल डाल काट…”
-आबरू शाह मुबारक

“तुम्हारे दिल में क्या ना-मेहरबानी आ गई ज़ालिम 
 कि यूँ फेंका जुदा मुझ से फड़कती मछली को जल सीं…”
-आबरू शाह मुबारक

“अब दीन हुआ ज़माना-साज़ी 
 आफ़ाक़ तमाम दहरिया है…”
-आबरू शाह मुबारक

Abroo Shah Mubarak Shayari

“डर ख़ुदा सीं ख़ूब नईं ये वक़्त-ए-क़त्ल-ए-आम कूँ 
 सुब्ह कूँ खोला न कर इस ज़ुल्फ़-ए-ख़ून-आशाम कूँ…”
-आबरू शाह मुबारक

“दिल कब आवारगी को भूला है 
 ख़ाक अगर हो गया बगूला है…”
-आबरू शाह मुबारक

“तिरे रुख़सारा-ए-सीमीं पे मारा ज़ुल्फ़ ने कुंडल 
 लिया है अज़दहा नीं छीन यारो माल आशिक़ का…”
-आबरू शाह मुबारक

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आबरू शाह मुबारक की दर्द भरी शायरी

आबरू शाह मुबारक की दर्द भरी शायरियाँ कुछ इस प्रकार हैं:

“दूर ख़ामोश बैठा रहता हूँ 
 इस तरह हाल दिल का कहता हूँ…”
-आबरू शाह मुबारक

आबरू शाह मुबारक की दर्द भरी शायरी

“दिल्ली में दर्द-ए-दिल कूँ कोई पूछता नहीं 
 मुझ कूँ क़सम है ख़्वाजा-क़ुतुब के मज़ार की…”
-आबरू शाह मुबारक

“मिल गईं आपस में दो नज़रें इक आलम हो गया 
 जो कि होना था सो कुछ अँखियों में बाहम हो गया…”
-आबरू शाह मुबारक

“आग़ोश सीं सजन के हमन कूँ किया कनार 
 मारुँगा इस रक़ीब कूँ छड़ियों से गोद गोद…”
-आबरू शाह मुबारक

“इश्क़ का तीर दिल में लागा है 
 दर्द जो होवता था भागा है…”
-आबरू शाह मुबारक

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आबरू शाह मुबारक की गजलें

आबरू शाह मुबारक की गजलें आज भी प्रासंगिक बनकर बेबाकी से अपना रुख रखती हैं, जो नीचे दी गई हैं-

आज यारों को मुबारक हो कि सुब्ह-ए-ईद है

आज यारों को मुबारक हो कि सुब्ह-ए-ईद है 
राग है मय है चमन है दिलरुबा है दीद है 
दिल दिवाना हो गया है देख ये सुब्ह-ए-बहार 
रसमसा फूलों बसा आया अंखों में नींद है 
शेर आशिक़ आज के दिन क्यूँ रक़ीबाँ पे न हों 
यार पाया है बग़ल में ख़ाना-ए-ख़ुरशीद है 
ग़म के पीछो रास्त कहते हैं कि शादी होवे है 
हज़रत-ए-रमज़ाँ गए तशरीफ़ ले अब ईद है 
ईद के दिन रोवता है हिज्र सीं रमज़ान के 
बे-नसीब उस शैख़ की देखो अजब फ़हमीद है 
सिल्क उस की नज़्म का क्यूँकर न होवे क़ीमती 
'आबरू' का शेर जो देखा सो मरवारीद है

-आबरू शाह मुबारक

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इश्क़ है इख़्तियार का दुश्मन

इश्क़ है इख़्तियार का दुश्मन 
सब्र ओ होश ओ क़रार का दुश्मन 
दिल तिरी ज़ुल्फ़ देख क्यूँ न डरे 
जाल हो है शिकार का दुश्मन 
साथ अचरज है ज़ुल्फ़ ओ शाने का 
मोर होता है मार का दुश्मन 
दिल-ए-सोज़ाँ कूँ डर है अनझुवाँ सीं 
आब हो है शरार का दुश्मन 
क्या क़यामत है आशिक़ी के रश्क 
यार होता है यार का दुश्मन 
'आबरू' कौन जा के समझावे 
क्यूँ हुआ दोस्त-दार का दुश्मन

-आबरू शाह मुबारक

दिल्ली के बीच हाए अकेले मरेंगे हम

दिल्ली के बीच हाए अकेले मरेंगे हम 
तुम आगरे चले हो सजन क्या करेंगे हम 
यूँ सोहबतों कूँ प्यार की ख़ाली जो कर चले 
ऐ मेहरबान क्यूँकि कहूँ दिन फिरेंगे हम 
जिन जिन को ले चले हो सजन साथ उन समेत 
हाफ़िज़ रहे ख़ुदा के हवाले करेंगे हम 
भूलोगे तुम अगरचे सदा रंग-जी हमें 
तो नाँव बैन-बैन के तुम को धरेंगे हम 
इख़्लास में कता है तुम्हें 'आबरू' अभी 
आए न तुम शिताब तो तुम सीं लड़ेंगे हम

-आबरू शाह मुबारक

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आशा है कि इस ब्लॉग में आपको Abroo Shah Mubarak Shayari पढ़ने का अवसर मिला होगा। Abroo Shah Mubarak Shayari को पढ़कर आप उर्दू साहित्य के क्षेत्र में आबरू शाह मुबारक की भूमिका को जान पाए होंगे। इसी तरह के अन्य ट्रेंडिंग आर्टिकल्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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