‘प्रेमचंद के फटे जूते’ हिंदी साहित्य के विख्यात रचनाकार हरिशंकर परसाई का प्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य निबंध है। हास्य-व्यंग्य के लिए चीजों को अनुपात से ज्यादा बढ़ा-चढ़ाकर दिखलाने की परिपाटी पुरानी है और यह कहानी भी उसका अनुपालन करती है। इसलिए इसकी घटनाएँ अतिशयोक्तिपूर्ण और अविश्वसनीय लगने लगती हैं। विश्वसनीयता ऐसी रचनाओं के मूल्यांकन की कसौटी नहीं हो सकती। प्रस्तुत पाठ यह स्पष्ट करता है तो चलिए पढ़ते हैं प्रेमचंद के फटे जूते के बारे में।
This Blog Includes:
प्रेमचंद का जीवन परिचय
हरिशंकर परसाई का जन्म मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जनपद में इटारसी के निकट स्थित जमानी नामक ग्राम में 22 अगस्त 1924 ई. को हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा से स्नातक तक की शिक्षा मध्य प्रदेश में हुई। तदुपरान्त इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से एम.ए. हिन्दी की परीक्षा उत्तीर्ण की। इनके पश्चात् कुछ वर्षों तक इन्होंने अध्यापन-कार्य किया। इन्होंने बाल्यावस्था से ही कला एवं साहित्य में रुचि लेना प्रारम्भ कर दिया था। वे अध्यापन के साथ-साथ साहित्य-सृजन भी करते रहे। दोनो कार्य साथ-साथ न चलने के कारण अध्यापन-कार्य छोड़कर साहित्य-साधना को ही इन्होंने अपने जीवन का लक्ष्य बना लिया ।
इन्होंने जबलपुर में ‘वसुधा’ नामक पत्रिका के सम्पादन एवं प्रकाशन का कार्य प्रारम्भ किया, लेकिन पर्याप्त धन के अभाव के कारण यह बन्द करना पड़ा। इनके निबन्ध और व्यंग्य समसामयिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकशित होते रहते थे, लेकिन इन्होंने नियमित रूप से ‘धर्मयुग’ और साप्ताहिक ‘हिन्दुस्तान‘ के लिए अपनी रचनाएँ लिखीं। 10 अगस्त 1995 ई. को इनका स्वर्गवास हो गया। हिन्दी गद्य-साहित्य के व्यंग्यकारों में हरिशंकर परसाई अग्रणी थे। इनके व्यंग्य-विषय समाजिक एवं राजनीतिक रहे। व्यंग्य के अतिरिक्त इन्होंने साहित्य की अन्य विधाओं पर भी अपनी लेखनी चलाई थी, परन्तु इनकी प्रसिद्धि व्यंग्याकार के रूप में ही हुई।
यह भी पढ़ें – उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद का संपूर्ण जीवन परिचय
प्रेमचंद के फटे जूते पाठ के शब्दार्थ
- पोशाक – परिधान, पहनने का कपड़ा
- लहुलूहान – खून से लथपथ
- उपहास – खिल्ली उड़ाना, मजाक करना
- क्लेश – दुख, पीड़ा, संताप
- तगादा – तकाज़ा
- पन्हैया – देशी जूतियाँ
- बिसरना – भूल जाना
- इशारा – संकेत करना
- आग्रह – निवेदन या विनती करना
- नेम – नियम
- बंद – फीता
- बेतरतीब – अव्यवस्थित
- बरकाकर – बचाकर
- विचित्र – अजीब
- न्योछावर – समर्पित करना, कुर्बान करना
हरिशंकर परसाई की रचनाएँ/कृतियॉं
परसाई जी की प्रमुख कृतियाँ नीचे दी गई है:
कहानी-संग्रह– हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे
उपन्यास– रानी नागफनी की कहानी तट की खोज
निबंध-संग्रह– तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बईमान की परत, पगडंडियों का जमाना, सदाचार ताबीज, शिकायत मुझे भी हे, और अन्त में, तिरछी रेखाऍं, ठिठुरता गणतन्त्र, विकलांग श्रद्धा का दौर, मेरी श्रेष्ठ वंयग्य रचनाऍं।
संपादन– वसुधा (पत्रिका)
प्रेमचंद के फटे जूते पाठ का सारांश
- परसाई जी के सामने प्रेमचंद तथा उनकी पत्नी का एक चित्र है। इसमें प्रेमचंद धोती-कुर्ता पहने हैं तथा उनके सिर पर टोपी है। वे बहुत दुबले हैं, चेहरा बैठा हुआ तथा हड्डियाँ उभरी हुई हैं। चित्र को देखने से ही पता चल रहा है कि वे निर्धनता में जी रहे हैं। वे कैनवस के जूते पहने हैं जो बिल्कुल फट चुके हैं, जिसके कारण ढंग से बँध नहीं पा रहे हैं और बाएँ पैर की उँगलियाँ दिख रही हैं। उनकी ऐसी हालत देखकर लेखक को चिंता हो रही हैं कि यदि उनकी ( प्रेमचंद ) फ़ोटो खिंचाते समय ऐसी हालत है तो वास्तविक जीवन में उनकी क्या हालत रही होगी। फिर उन्होंने सोचा कि प्रेमचंद कहीं दो तरह का जीवन जीने वाले व्यक्ति तो नहीं थे। किंतु उन्हें दिखावा पसंद नहीं था, अतः उनकी निजी तथा बाहर की जिंदगी एक-सी ही रही होगी। फ़ोटो में दिख रही तथा वास्तविक स्थिति में कोई अंतर नहीं रहा होगा। तभी तो निश्चितता तथा लापरवाही से फ़ोटो में बैठे हैं। वे ‘ सादा जीवन उच्च विचार ‘ रखने में विश्वास रखते थे। अतः गरीबी से दुखी नहीं थे।
- प्रेमचंद जी के चेहरे पर एक व्यंग्य भरी मुस्कान देखकर लेखक परेशान हैं। वह सोचते हैं कि प्रेमचंद ने फटे जूतों में फ़ोटो खिंचवाने से मना क्यों नहीं किया। फिर लेखक को लगा कि शायद उनकी पत्नी ने जोर दिया होगा, इसलिए उन्होंने फटे जूते में ही फ़ोटो खिंचा लिया होगा। लेखक प्रेमचंद की इस दुर्दशा पर रोना चाहते हैं किंतु उनकी आँखों के दर्द भरे व्यंग्य ने उन्हें रोने से रोक दिया।
- लेखक सोचते हैं कि लोग फोटो खिंचवाने के लिए तो जूते, कपड़े, यहाँ तक कि बीवी भी माँग लेते हैं, फिर प्रेमचंद ने किसी के जूते क्यों नहीं माँगे। लेखक कहते हैं कि लोग तो इत्र लगाकर फोटो खिचाते है जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।
- लेखक कहते हैं कि मेरा भी तो जूता फट गया है किंतु वह ऊपर से तो ठीक है। मैं पर्दे का पूरी तरह से ध्यान रखता हूँ। मैं अपनी उँगली को बाहर नहीं निकलने देता। मैं इस तरह फटा जूता पहनकर फ़ोटो तो कभी नहीं खिंचवा सकता।
- लेखक प्रेमचंद की व्यंग्य भरी मुस्कान देखकर आश्चर्यचकित हैं। वे सोच रहे हैं कि इस व्यंग्य भरी मुस्कान का आखिर क्या मतलब हो सकता है। क्या उनके साथ कोई हादसा हो गया या होरी का गोदान हो गया? या हल्कू किसान के खेत को नीलगायों ने चर लिया है या माधो ने अपनी पत्नी के कफ़न को बेचकर शराब पी ली है? या महाजन के तगादे से बचने के लिए प्रेमचंद को लंबा चक्कर काटकर घर जाना पड़ा है जिससे उनका जूता घिस गया है? लेखक को याद आता है कि ईश्वर-भक्त संत कवि कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी आने-जाने से घिस गया था।
- अचानक लेखक को समझ आया कि प्रेमचंद का जूता लंबा चक्कर काटने से नहीं फटा होगा बल्कि वे सारे जीवन किसी कठोर वस्तु को ठोकर मारते रहे होंगे। रास्ते में पड़ने वाले टीले से बचकर निकलने के बजाए वे उसे ठोकरें मारते रहे होंगे । उन्हें समझौता करना पसंद नहीं है। जिस प्रकार होरी अपना नेम – धरम नहीं छोड़ पाए , या फिर नेम – धरम उनके लिए मुक्ति का साधन था।
- लेखक मानते हैं कि प्रेमचंद की उँगली किसी घृणित वस्तु की ओर संकेत कर रही है, जिसे उन्होंने ठोकरें मार मारकर अपने जूते फाड़ लिए हैं। वे उन लोगों पर मुस्करा रहे हैं जो अपनी उँगली को ढकने के लिए अपने तलवे घिसते रहते हैं।
प्रेमचंद के फटे जूते प्रश्नोत्तर
उत्तर : लेखक ने प्रेमचंद का जो शब्द चित्र हमारे सामने प्रस्तुत किया है उससे उनके व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ सामने आती हैं।
सादा जीवन– प्रेमचंद आडंबर तथा दिखावापूर्ण जीवन से दूर रहते थे। वे गाँधी जी की तरह सादा जीवन जीते थे।
उच्च विचार – प्रेमचंद के विचार बहुत ही उच्च थे। वे सामाजिक बुराइयों से दूर रहे। वे इन बुराइयों से समझौता ना कर सके।
स्वाभिमानी– प्रेमचंद जी दूसरों की वस्तुओं को माँगना उचित नहीं समझते थे। वे अपनी दीन-हीन दशा में संतुष्ट थे। सामाजिक कुरीतियों के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने वाले-प्रेमचंद ने समाज में फैली हुई कुरीतियों के प्रति लोगों को सावधान किया। वे एक स्वस्थ समाज चाहते थे तथा स्वयं भी बुराइयों से कोसों दूर रहने वाले थे।
अपनी स्थिति से संतुष्ट– प्रेमचंद का जीवन हमेशा अभावों में बीता । उन्होंने अपनी स्थिति दूसरों से छिपाकर रखी। वे जैसे भी थे उसी में खुश रहने वाले व्यक्ति थे ।
संघर्षशील– प्रेमचंद जी अपने जीवन में आने वाली मुसीबतों से कभी भी दूर नहीं भागते थे बल्कि वे उनका डटकर सामना करते थे और उसपर विजय पाकर आगे बढ़ते थे।
प्रेमचंद के व्यक्तित्व की विशेषताएँ
● प्रेमचंद का व्यक्तित्व बहुत ही सीधा-सादा था, उनके व्यक्तित्व में दिखावा नहीं था।
● प्रेमचंद एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे। किसी दूसरे व्यक्ति की वस्तु माँगना उनके व्यक्तित्व के खिलाफ़ था।
● इन्हें समझौता करना मंजूर नहीं था।
● वह परिस्थितियों के गुलाम नहीं थे। किसी भी परिस्थितियों का डटकर मुकाबला करना इनके व्यक्तित्व की विशेषता थी।
(क) बाएँ पाँव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अँगुली बाहर निकल आई है।
(ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।
(ग) तुम्हारी यह व्यंग्य मुसकान मेरे हौसले बढ़ाती है।
(घ) जिसे तुम घृणित समझते हो , उसकी तरफ़ अँगूठे से इशारा करते हो?
उत्तर : (ख) लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए ।
(क) जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियाँ न्योछावर होती हैं।
उत्तर : यहाँ पर जूते का आशय समृद्धि से है तथा टोपी मान , मर्यादा तथा इज्जत का प्रतीक है। वैसे तो इज्जत का महत्व सम्पत्ति से अधिक है। परन्तु आज की परिस्थिति में इज्जत को समाज के समृद्ध एवं प्रतिष्ठित लोगों के सामने झुकना पड़ता है।
(ख) तुम परदे का महत्व ही नहीं जानते , हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं।
उत्तर : यहाँ परदे का सम्बन्ध इज्जत है । जहाँ कुछ लोग इज़्ज़त को अपना सर्वस्व मानते हैं तथा उस पर अपना सब कुछ न्योछावर करने को तैयार रहते हैं , वहीं दूसरी ओर समाज में कुछ ऐसे लोग भी हैं जिनके लिए इज़्ज़त महत्वहीन है।
( ग ) जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ़ हाथ की नहीं , पाँव की अँगुली से इशारा करते हो?
उत्तर : प्रेमचंद गलत वस्तु या व्यक्ति को इस लायक नहीं समझते थे कि उनके लिए अपने हाथ का प्रयोग करके हाथ के महत्व को कम करें बल्कि ऐसे गलत व्यक्ति या वस्तु को पैर से सम्बोधित करना ही उसके महत्व के अनुसार उचित है।
उत्तर : पहले लेखक प्रेमचंद के साधारण व्यक्तित्व को परिभाषित करना चाहते हैं कि ख़ास समय में ये इतने साधारण हैं तो साधारण मौकों पर ये इससे भी अधिक साधारण होते होंगे । परन्तु फिर बाद में लेखक को ऐसा लगता है कि प्रेमचंद का व्यक्तित्व दिखावे की दुनिया से बिल्कुल अलग है क्योंकि वे जैसे भीतर हैं वैसे ही बाहर भी हैं।
उत्तर : लेखक एक स्पष्ट वक्ता है । यहाँ बात को व्यंग के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। प्रेमचंद के व्यक्तित्व की विशेषताओं को व्यक्त करने के लिए जिन उदाहरणों का प्रयोग किया गया है , वे व्यंग को ओर भी आकर्षक बनाते हैं । कड़वी से कड़वी बातों को अत्यंत सरलता से व्यक्त किया है । यहाँ अप्रत्यक्ष रुप से समाज के दोषों पर व्यंग किया गया है।
उत्तर : पाठ में ‘टीले’ शब्द का प्रयोग मार्ग की बाधा के रुप में किया गया है । प्रेमचंद ने अपनी लेखनी के द्वारा समाज की बुराईयों को प्रस्तुत करने का प्रयास किया । ऐसा करने के लिए उन्हें बहुत सारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ा ।
उत्तर : महावीर प्रसाद द्विवेदी एक प्रसिद्ध रचनाकार हैं। जीवन भर इन्होंने ‘सरस्वती’ पत्रिका की उपासना की। इसी कारण लक्ष्मी इनसे रूठी रही। अरे भाई ! अगर थोड़ी सी पूजा लक्ष्मी जी कर तो क्या सरस्वती रुष्ट हो जाती। आपके अन्य मित्रों ने तो सफलता की सीढ़ी पार कर ली परन्तु इस दौर में आप थोड़े पीछे रह गए। अगर थोड़ा मन लगाकर चलते तो अकेले नहीं रह जाते।
उत्तर : पहले वेशभूषा का प्रयोग शरीर ढ़कने के उद्देश्य से किया जाता था । परिवर्तन समाज का नियम है । इसलिए समय के बदलते रूप ने वेश – भूषा की परिभाषा को बदल दिया है । आज की स्थिति ऐसी हो गई है कि लोग फैशन के लिए इसका प्रयोग कर रहे हैं और समय के परिवर्तन के साथ अगर कोई स्वयं को न बदले तो समाज में उसकी प्रतिष्ठा नहीं बनती । स्वयं को समाज में प्रतिष्ठित करने के लिए लोग अपनी आर्थिक क्षमता से बाहर जाकर वेश भूषा का चुनाव करते हैं । आज वेश – भूषा केवल व्यक्ति की ज़रुरत न होकर उसके व्यक्तित्व का एक अभिन्न अंग बन चुका है ।
उत्तर: (1) अँगुली का इशारा– (कुछ बताने की कोशिश)
मैं तुम्हारी अँगुली का इशारा खूब समझता हूँ।
(2) व्यंग्य-मुस्कान- (मज़ाक उड़ाना)
तुम अपनी व्यंग भरी मुस्कान से मेरी तरफ़ मत देखो।
(3) बाजू से निकलना– (कठिनाईयों का सामना न करना)
इस कठिन परिस्थिति में तुमने मेरा साथ छोड़कर बाजू से निकलना सही समझा।
(4) रास्ते पर खड़ा होना – (बाधा पड़ना)
तुम मेरी सफलता के रास्ते पर खड़े हो।
उत्तर : लेखक ने प्रेमचंद की विशेषताओं को प्रस्तुत करने के लिए कुछ शब्दों का प्रयोग किया है। वे इस प्रकार हैं –
(1) महान कथाकार
(2) उपन्यास-सम्राट
(3) युग-प्रवर्तक
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
उत्तर : फोटो में प्रेमचंद अत्यंत साधारण-सी वेषभूषा में नजर आ रहे थे। उनके साथ में उनकी पत्नी थी। वे कुर्ता-धोती पहने, सिर पर टोपी लगाए थे। पाँवों में कैनवस के बेतरतीब बंद वाले जूते थे, जिनकी लोहे की पतरी गायब थी। उन्हें किसी तरह बाँध लिया गया था। बाएँ पैर के फटे जूते से उनके पैर की उँगली दिख रही थी।
उत्तर : इस वाक्य के द्वारा लेखक ने समाज में व्याप्त दिखावे और फैशन पर व्यंग्य किया है। लोग अपनी फोटो खिचाते समय दूसरों से कपड़े, टाई, जूते आदि उधार लेते हैं। बाल सेट कराते हैं ताकि उनकी फोटो सुंदर आए। वे अपनी फोटो खिचाते समय अपने बैठने का ढंग, मुख, मुद्रा आदि का विशेष ध्यान रखते हैं, जिससे उनकी फोटो अच्छी आए।
उत्तर : प्रेमचंद स्वभाव से सहज तथा सरल थे। वे अपनी गरीबी की स्थिति में खुशी-खुशी जीना सीख गए थे। वे अपनी वे स्थिति को छिपाना नहीं जानते थे। वे यथार्थ को स्वीकार करने वाले थे, इसलिए जैसे थे, वैसे ही दिखते थे। उन्होंने फटे जूतों के साथ फोटो खिचा ली पर लेखक को उस स्थिति में हीनता और कमी नजर आती है। वह इसे छिपाना चाहता है, इसलिए इस दशा में फोटो न खिंचा पाता।
उत्तर : रास्ते में पड़ने वाले टीले के विषय में प्रेमचंद और लेखक के दृष्टिकोण में मुख्य अंतर यह था कि प्रेमचंद उस टीले को हटाने के लिए उस पर ठोकर मारते रहे। भले ही ऐसा करते हुए उनका जूता फट गया पर लेखक उस टीले से बचकर निकल जाने वालों में था। अर्थात् प्रेमचंद सामाजिक कुरीतियों से लड़ने वालों में थे जबकि लेखक उनसे समझौता करने वालों में था।
उत्तर : इस पाठ में प्रेमचंद और होरी दोनों की एक ही कमजोरी की ओर संकेत किया गया है। वह कमजोरी है नेम-धरम का पक्का होना। दोनों ने कभी भी धर्म के नियमों का उल्लंघन नहीं किया। वे अपने मूल्यों से कभी नहीं भटके। अपनी-अपनी मर्यादाओं की रक्षा के लिए वे दोनों आजीवन मुसीबतें झेलते रहे।
उत्तर : प्रेमचंद अत्यंत सादा जीवन जीने में विश्वास रखते थे। वे बनाव शृंगार और आडंबर से कोसों दूर रहते थे। उन्होंने फोटो खिंचवाने जैसे विशिष्ट मौके पर भी बनावटी वेशभूषा धारण करने का प्रयास नहीं किया। इससे आज के युवा जो फैशनपरस्ती और बनावटी जीवन जीने के लिए निकृष्ट कार्य करने से भी परहेज नहीं करते हैं, को आडंबरहीन एवं साधारण जीवन जीने की सीख लेनी चाहिए।
उत्तर : होरी ने आजीवन नेम-धरम का पालन किया। वह नेम-धरम का पक्का था। उसने कभी मर्यादा एवं नैतिकता का साथ नहीं छोड़ा। इन्हीं नियमों और धर्म की आड़ में समाज ने उस पर अत्याचार किए, वहिष्कृत किया, पर वह नेम-धरम के कारण मानवीय मूल्य न त्याग सका और आजीवन गरीबी की मार झेलता रहा। इस प्रकार नेम-धरम उसके लिए बंधन बन गए थे।
लघु उत्तरीय प्रश्न
उत्तर : लेखक प्रेमचंद की वेषभूषा और जूते देखकर इसलिए रो पड़ना चाहता है क्योंकि इतना महान लेखक होने के बाद भी प्रेमचंद बदहाली की स्थिति से गुजर रहे थे। उसके पास विशेष अवसर पर भी पहनने के लिए अच्छे कपड़े और जूते न थे। लेखक उनकी स्थिति से उत्पन्न दुख को अपने भीतर तक महसूस कर रो देना चाहता है।
उत्तर : लेखक की नजर प्रेमचंद के जूतों पर इसलिए अटक गई क्योंकि महान कथाकार, युग प्रवर्तक आदि नामों से जाना जाने वाले लेखक के पास ढंग के जूते भी नहीं हैं। जूतों के फीते बेतरतीब बँधे हैं। उनकी पतरियाँ निकल चुकी हैं। वे जैसे-तैसे बँधे हैं। बाएँ पैर का जूता फटने से उँगली बाहर निकल आई है। ये जूते लेखक की बदहाली बयाँ कर रहे हैं।
उत्तर : प्रेमचंद के फटे जूते पाठ के द्वारा परसाई जी ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी के साथ एक रचनाकार की बारीक सामाजिक दृष्टि का विवेचन करते हुए आज के दिखावे की प्रवृत्ति एवं अवसरवादिता पर व्यंग्य किया है।
उत्तर : (1) प्रेमचंद का व्यक्तित्व बहुत ही सीधा-सादा था, उनके व्यक्तित्व में दिखावा नहीं था।
(2) प्रेमचंद एक स्वाभिमानी व्यक्ति थे। किसी और की वस्तु माँगना उनके व्यक्तित्व के खिलाफ़ था।
(3) इन्हें समझौता करना मंजूर नहीं था।
उत्तर : प्रेमचंद के फटे जूते रचना में जूते समृद्धि का प्रतीक है।
लेखक प्रेमचंद की इस दुर्दशा पर रोना चाहते हैं किंतु उनकी आँखों के दर्द भरे व्यंग्य ने उन्हें रोने से रोक दिया। लेखक सोचते हैं कि लोग फोटो खिंचवाने के लिए तो जूते, कपड़े, यहाँ तक कि बीवी भी माँग लेते हैं, फिर प्रेमचंद ने किसी के जूते क्यों नहीं माँगे।
प्रेमचंद के फटे जूते पाठ के माध्यम से लेखक ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व की सादगी का वर्णन करते हुए लेखकों की दयनीय आर्थिक स्थिति पर कटाक्ष किया है। प्रेमचंद युग-प्रवर्तक कथाकार एवं उपन्यास-सम्राट् कहे जाते हैं परंतु उन्हें फटे जूते पहन कर अपना जीवन व्यतीत करना पड़ा।
उनके द्वारा फोटो का महत्व समझाने की बात भी आकर्षित करती है। आज लोग उधार माँगकर अपने जीवन के अहम् कार्यों को आगे पहुँचाते हैं। लोग इत्र लगाकर खुशबूदार फोटो खिंचवाना चाहते हैं। लेखक द्वारा दिखावे में विश्वास रखने की बात भी आकर्षित करती है।
प्रेमचंद के फटे जूते पाठ के लेखक द्वारा जूते फटने का कारण समाज का पाखंड और समाज विडंबना को बताया जिसके कारण प्रेमचंद जैसे महान लेखक को अभावग्रस्त जीवन व्यतीत करना पड़ा और वह अपने लिए ढंग के जूते तक नहीं खरीद पाए।
सभी नदियाँ पहाड़ थोड़े ही फोड़ती हैं, कोई रास्ता बदलकर, घूमकर भी तो चली जाती हैं। कोई चीज जो परम-पर-परम सदियों से जम गई है, उससे शायद तुमने ठोकर मार-मारकर अपना जूता फाड़ लिया। टीलों से समझौता भी हो जाता है।
प्रेमचंद का एक चित्र मेरे सामने है, पत्नी के साथ फोटो खिंचा रहे हैं। सिर पर किसी मोटे कपड़े की टोपी, कुरता और धोती पहने हैं। कनपटी चिपकी है, गालों की हड्डियाँ उभर आई हैं, पर घनी मूँछें चेहरे को भरा-भरा बतलाती हैं। पाँवों में केनवस के जूते हैं, जिनके बंद बेतरतीब बँधे हैं।
जीवन में समझौते न कर पाना
अशिक्षित होना
निर्धन होना
कमजोर होना
प्रेमचंद के मुस्कुराने में लेखक को यह व्यंग्य नज़र आता है कि मानो प्रेमचंद उनसे कह रहे हों कि मैंने भले ही चट्टानों से टकराकर अपना जूता फाड़ लिया हो पर मेरे पैर तो सुरक्षित हैं और चट्टानों से बचकर निकलने वाले तुम लोगों के जूते भले ही ठीक हों पर तलवे घिसने के कारण तुम्हारा पंजा सुरक्षित नहीं है और लहूलुहान हो रहा है।
1-बाएं पांव का जूता ठीक है मगर दाहिने जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से पैर की उंगली बाहर निकल आई है।
2-लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिंचवाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए।
प्रेमचंद की पहली प्रकाशित कहानी “दुनिया का सबसे अनमोल रतन ” (“दुनिया में सबसे कीमती गहना”) थी, जो 1907 में जमाना में छपी थी।
ईदगाह
जुलूस
दो बैलों की कथा
रामलीला
बड़े भाई साहब
नशा
लाग-डाँट
आत्माराम आदि।
वैसे तो मुंशी प्रेमचंद जी को उनकी अलग लेखन-शैली और महान कृतियों की वजह से खूब सराहना मिली लेकिन, मुंशी प्रेम चंद जी की कुछ मशहूर उपन्यासों में गोदान, गबन, सेवासदन, रंगभूमि प्रेमाश्रय, कर्मभूमि, कायाकल्प आदि हैं।
प्रेमचंद ने धनपत राय श्रीवास्तव का छद्म नाम प्रेम चंद भी लिखा (जन्म 31 जुलाई, 1880, लमती, वाराणसी के पास, भारत – 8 अक्टूबर, 1936, वाराणसी में मृत्यु हो गई), हिंदी और उर्दू में उपन्यासों और लघु कथाओं के भारतीय लेखक जिन्होंने अग्रणी भूमिका निभाई भारतीय विषयों को पश्चिमी साहित्यिक शैलियों के अनुकूल बनाना।
प्रेमचंद की कहानियों में सेवासदन, गबन, कर्मभूमि, प्रेमाश्रम, गोदान, रंगभूमि व निर्मला जैसे कई उपन्यास लोकप्रिय हैं। इसके अलावा कफन, पंच परमेश्वर, पूस की रात, बड़े घर की बेटी, दो बैलों की कथा और बूढ़ी काकी जैसी 300 से अधिक कहानियां भी चर्चित हैं।
लेखक परसाई द्वारा लिखित पाठ ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ में प्रेमचंद जैसे महान साहित्यकार, जिसे ‘युग प्रवर्तक’, ‘महान कथाकार’, ‘उपन्यास सम्राट’ आदि के रूप में जाना जाता है, की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी न थी। उनकी फटे जूते से अँगुली बाहर निकल आई थी। कुछ ऐसी समान स्थिति लेखक परसाई के जूते की भी थी।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
उत्तर : ‘प्रेमचंद के फटे जूते’ पाठ में लेखक द्वारा उनके जूते फटने का निम्नलिखित कारण बताए गए हैं-
प्रेमचंद के जूते फटने के कारण बनिया द्वारा दिया गया उधार के सामान का वह पैसा है, जिसके तकादे से बचने के लिए प्रेमचंद दूर का चक्कर लगाकर घर जाते थे। उन्होंने किसी ऐसी चीज जो परत-दर-परत सदियों से जम गई थी, उस पर ठोकर मारकर अपना जूता फाड़ लिया था। शायद प्रेमचंद ने अपने रास्ते में पड़ने वाले किसी टीले पर अपना जूता आजमाया हो, जिसकी ठोकर से उनका जूता फट गया हो।
उत्तर : लेखक ने प्रेमचंद को साहित्यिक पुरखा इसलिए कहा है क्योंकि प्रेमचंद अपने समय के लेखकों में ही नहीं बल्कि संपूर्ण हिंदी साहित्य में सर्वोच्च स्थान रखते थे। वे यथार्थवादी लेखक थे। उन्होंने अपने आसपास, देश, काल तथा समाज की स्थिति का सच्चा तथा वास्तविक चित्रण अपने लेखन में किया है। उनका लेखन इतनी उच्चकोटि का होता था कि बहुत अच्छा लिखने वाले की तुलना उनसे की जाती थी। उन्होंने जिन विषयों पर लेखनी चलाई उनकी प्रासंगिकता आज भी उतनी ही है। वे दूरद्वष्टा भी थे, जिन्हें तत्कालीन राजनैतिक, सामाजिक तथा आर्थिक परिस्थितियों का अच्छा ज्ञान था।
उत्तर : प्रेमचंद के दाहिने पैर का जूता ठीक है पर बाएँ पैर के जूते में ऊपर छेद हो गया है, जिससे उँगुली बाहर निकल आई है। उनके फीते बेतरतीब बँधे हैं। उनकी पतरी निकल चुकी है इसके विपरीत लेखक का जूता ऊपर से तो ठीक है पर अंगूठे के नीचे का तला घिस गया है, जिससे उनका अँगूठा घिसकर लहूलुहान हो जाता है। इस तरह पूरा तला घिस जाएगा और उनका पूरा पंजा छिल जाएगा तथा वह चलने में असमर्थ हो जाएगा। इसके अलावा प्रेमचंद का पंजा सुरक्षित है पर लेखक का नहीं।
उत्तर : इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने साहित्यकार प्रेमचंद की गरीबी एवं खराब स्थिति पर व्यंग्य किया है। प्रेमचंद उच्चकोटि के साहित्यकार थे, जिन्हें टोपी की तरह सिर पर धारण किया जाना था अर्थात् उनका भरपूर सम्मान किया जाना था, पर समाज में टोपी के बजाए जूते की कीमत अधिक आँकी जाती थी। जो सम्मान के पात्र नहीं है उन्हें मानसम्मान दिया जाता है। यहाँ तो स्थिति यह है कि टोपी को जूते के सामने झुकना पड़ता है। प्रेमचंद उच्चकोटि के साहित्यकार होने के बाद भी अपनी मूलभूत आवश्यकताएँ पूरी करने में विवश थे। वे गरीबी में जीवन-यापन कर रहे थे।
MCQs
१. हुसैन सिंह
२. रामचंद्र
३. प्रेमचंद
४. हरिशंकर परसाई
उत्तर: हरिशंकर परसाई।
१. लेखक
२. गायक
३. अध्यापक
४. कोई अन्य
उत्तर: लेखक।
१. दुखों से भरा
२. सुख से भरा
३. अभावों से भरा
४. इनमें से कोई नहीं
उत्तर: अभावों से भरा।
१. 1990 में
२. 1922 में
३. 1893 में
४. 1995 में
उत्तर: 1922 में।
१. समाज की अनेक विषमताओं और बुराइयों पर
२. समाज की गरीबी पर
३. समाज के दिखावटी लोगों पर
४. कोई अन्य
उत्तर: समाज की अनेक विषमताओं और बुराइयों पर।
१. प्रेमचंद फोटो को क्यों खिंचवा रहे हैं?
२. प्रेमचंद फोटो कहां खिंचवा रहे हैं?
३. प्रेमचंद फोटो किसके साथ खिंचवा रहे हैं?
४. प्रेमचंद का जूता घिसने की जगह फट कैसे गया है?
उत्तर: प्रेमचंद का जूता किसने की जगह फट कैसे गया है।
१. स्वयं लेखक के
२. प्रेमचंद जी के
३. इस समाज के
४. इनमें से कोई नहीं
उत्तर: प्रेमचंद जी के।
१. प्रेमचंद बहुत अच्छे इंसान है
२. लोग दिखावटी हैं
३. लोग इत्र लगाकर खुशबूदार फोटो खिंचवाते हैं
४. प्रेमचंद एक गरीब आदमी है
उत्तर: लोग इत्र लगाकर खुशबूदार फोटो खिंचवाते हैं।
१. प्रेमचंद जी का जूता फटा हुआ देखकर
२. उनकी फोटो को देखकर
३. समाज में हो रहे दिखावे को देखकर
४. इनमें से कोई नहीं
उत्तर: प्रेमचंद जी का जूता फटा हुआ देखकर।
१. लेखक जैसे
२. प्रेमचंद जैसे
३. कोई अन्य
४. इनमें से कोई नहीं
उत्तर: प्रेमचंद जैसे।
FAQs
लेखक ने देखा कि ‘युग प्रवर्तक’, ‘उपन्यास सम्राट’ जैसे भारी भरकम विशेषणों से विभूषित साहित्यकार के पास फोटो खिंचवाने के लिए भी अच्छे जूते नहीं होने को बड़ी ‘ट्रेजडी’ कहा है।
अंगुली बाहर नहीं निकलती, पर अंगूठे के नीचे तला फट गया है। अँगूठा जमीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है। पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर ऊँगली बाहर नहीं दिखेगी।
जूते पर टोपिया न्योछावर होने का तात्पर्य यह है कि आज के युग में जूते का कीमत बढ़ गई है। यहां पर जूते को समृद्धि का प्रतीक बताया गया है जबकि टोपी को मान सम्मान और प्रतिष्ठा का प्रतीक बनाया गया है।
गोदान नामक उपन्यास में होरी नामक पात्र था। उस पात्र की तीव्र इच्छा थी कि वह अपने घर में गाय पाले। परन्तु जब वह मरता है, तो उसके गोदान के लिए तक उसकी पत्नी के पास पैसे नहीं होते हैं।
प्रेमचंद के फटे जूते के लेखक का नाम हरिशंकर परसाई है।
टीला रास्ते की रुकावट का प्रतीक है।
आशा हैं कि आपको प्रेमचंद के फटे जूते कक्षा 9 का यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही ज्ञानवर्द्धक और सामान्य ज्ञान से संबंधित ब्लॉग पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।