(माध्य. शिक्षा बोर्ड, मॉडल पेपर, 2022-23)
उत्तर: सूरदास भक्तिकाल के प्रमुख कृष्ण भक्त एवं सगुण उपासक थे। उनका जन्म सन् 1478 में माना जाता है। जन्मस्थान के बारे में दो मान्यताएँ हैं—एक के अनुसार दिल्ली के निकट सीही ग्राम और दूसरी के अनुसार मथुरा के पास रुनकता या रेणुका क्षेत्र। वे जन्म से अंधे थे।
सूरदास महाप्रभु वल्लभाचार्य के प्रमुख शिष्य थे और पुष्टिमार्गीय अष्टछाप के सबसे प्रसिद्ध कवि थे। वे मथुरा के गऊघाट में श्रीनाथ जी के मंदिर में भजन-कीर्तन करते थे। उनकी प्रमुख रचनाएँ ‘सूरसागर’, ‘सूरसारावली’ और ‘साहित्य लहरी’ हैं, जिनमें ‘सूरसागर’ विशेष रूप से प्रसिद्ध है।
सूरदास की कविता में वात्सल्य, श्रृंगार और भक्ति भाव की प्रधानता है। उन्होंने कृष्ण की बाल लीलाओं, रूप-रंग, संयोग-वियोग और भक्ति का सुंदर चित्रण किया है। उनकी भक्ति सख्य भाव (भगवान के साथ सखा भाव) पर आधारित थी।
सूरदास की भाषा में ब्रज भाषा का परिष्कृत और मधुर रूप दिखाई देता है। उनकी कविता में कोमलता, सरलता, मधुरता और गेयता की विशेषता है। वे रस और अलंकारों के प्रयोग में भी निपुण थे।
सूरदास का देहांत सन् 1583 में पारसौली में हुआ। वे हिंदी साहित्य के रससिद्ध और भक्तिकाल के अनुपम कवि माने जाते हैं।
पढ़ें : महाकवि सूरदास का सम्पूर्ण जीवन परिचय, कृष्णभक्ति शाखा, रचनाएँ
अन्य प्रश्न
- कृष्ण द्वारा भेजा गया योग-संदेश सुन गोपियाँ हताश और कातर क्यों हो उठीं?
- गोपियाँ अब धैर्य क्यों नहीं रख पा रही हैं?
- सूर की भ्रमरगीत परम्परा पर संक्षेप में प्रकाश डालिए
- सु तौ ब्याधि हमकों लै आए यहाँ गोपियों ने ‘व्याधि’ किसे माना है और क्यों?
- “ते क्यों अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए” – गोपियों ने इससे किस पर व्यंग्य किया है?
- “राजधरम तौ यहै” इस कथन के माध्यम से सूरदास ने किस जीवन-सत्य का बोध कराया है?
- सूरदास की भक्ति-भावना पर प्रकाश डालिए।
- अष्टछाप के कवियों का नामोल्लेख कीजिए। इसकी स्थापना का श्रेय किसे दिया जाता है?
- “ऊधो, तुम हौ अति बड़भागी” – इसमें किन लोगों पर व्यंग्य है? सूरदास ने इसके माध्यम से क्या सन्देश दिया है?
- सूरसागर में वर्णित ‘भ्रमरगीत’ का अभिप्राय बताइये।
- संकलित पदों में व्यक्त गोपियों की विरह-विवशता पर प्रकाश डालिए।
- सूरदास के पदों में सरसता एवं भावुकता के साथ वाग्विदग्धता भी है, स्पष्ट कीजिए।
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