उत्तर: ‘भ्रमरगीत’ में उद्धव द्वारा ज्ञान योग का संदेश देने पर गोपियाँ अपनी गहन विरह-विवशता व्यक्त करती हैं। वे कहती हैं कि उनका मन अब तक कृष्ण के प्रेम में बसा था, पर अब यह प्रेम टूटता नजर आ रहा है। कृष्ण के संदेश ने उनकी विरह की अग्नि को और भड़का दिया है।
गोपियाँ इस ज्ञान योग संदेश को कड़वी ककड़ी के समान अप्रिय और असह्य मानती हैं। वे कृष्ण को एक चतुर राजनीतिज्ञ के रूप में देखती हैं, जिसने अपने मन को बदल लिया है और मथुरा जाते समय उनका प्रेम साथ नहीं लिया।
गोपियाँ अपने मन को वापस पाने की तीव्र इच्छा रखती हैं, क्योंकि उनका प्रेम ही उनका आधार था। वे यह भी कहती हैं कि कृष्ण जो कर रहे हैं, वह एक राजा का धर्म नहीं है, क्योंकि एक राजा को अपनी प्रजा को सताना नहीं चाहिए।
इस प्रकार, पदों में गोपियों की भावुक पीड़ा, कष्ट, असहायता और विरह की गहन विवशता स्पष्ट रूप से झलकती है।
अन्य प्रश्न
- कृष्ण द्वारा भेजा गया योग-संदेश सुन गोपियाँ हताश और कातर क्यों हो उठीं?
- गोपियाँ अब धैर्य क्यों नहीं रख पा रही हैं?
- सूर की भ्रमरगीत परम्परा पर संक्षेप में प्रकाश डालिए
- सु तौ ब्याधि हमकों लै आए यहाँ गोपियों ने ‘व्याधि’ किसे माना है और क्यों?
- “ते क्यों अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए” – गोपियों ने इससे किस पर व्यंग्य किया है?
- “राजधरम तौ यहै” इस कथन के माध्यम से सूरदास ने किस जीवन-सत्य का बोध कराया है?
- सूरदास की भक्ति-भावना पर प्रकाश डालिए।
- अष्टछाप के कवियों का नामोल्लेख कीजिए। इसकी स्थापना का श्रेय किसे दिया जाता है?
- “ऊधो, तुम हौ अति बड़भागी” – इसमें किन लोगों पर व्यंग्य है? सूरदास ने इसके माध्यम से क्या सन्देश दिया है?
- सूरसागर में वर्णित ‘भ्रमरगीत’ का अभिप्राय बताइये।
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