संकलित पदों में व्यक्त गोपियों की विरह-विवशता पर प्रकाश डालिए।

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संकलित पदों में व्यक्त गोपियों की विरह-विवशता पर प्रकाश डालिए
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उत्तर: ‘भ्रमरगीत’ में उद्धव द्वारा ज्ञान योग का संदेश देने पर गोपियाँ अपनी गहन विरह-विवशता व्यक्त करती हैं। वे कहती हैं कि उनका मन अब तक कृष्ण के प्रेम में बसा था, पर अब यह प्रेम टूटता नजर आ रहा है। कृष्ण के संदेश ने उनकी विरह की अग्नि को और भड़का दिया है।

गोपियाँ इस ज्ञान योग संदेश को कड़वी ककड़ी के समान अप्रिय और असह्य मानती हैं। वे कृष्ण को एक चतुर राजनीतिज्ञ के रूप में देखती हैं, जिसने अपने मन को बदल लिया है और मथुरा जाते समय उनका प्रेम साथ नहीं लिया।

गोपियाँ अपने मन को वापस पाने की तीव्र इच्छा रखती हैं, क्योंकि उनका प्रेम ही उनका आधार था। वे यह भी कहती हैं कि कृष्ण जो कर रहे हैं, वह एक राजा का धर्म नहीं है, क्योंकि एक राजा को अपनी प्रजा को सताना नहीं चाहिए।

इस प्रकार, पदों में गोपियों की भावुक पीड़ा, कष्ट, असहायता और विरह की गहन विवशता स्पष्ट रूप से झलकती है।

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