आयुर्वेदिक दिवस कब मनाया जाता है?

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आयुर्वेदिक दिवस कब मनाया जाता है
(A) 23 सितम्बर
(B) 24  सितम्बर
(C) 25 सितम्बर
(D)  30 सितम्बर
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इस प्रश्न का सही उत्तर विकल्प भी 23 सितंबर है। भारत में आयुर्वेद दिवस 23 सितंबर को मनाया जाता है। आयुष मंत्रालय द्वारा यह दिन भगवान धन्वंतरि की जयंती पर राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में घोषित किया गया है।

विस्तार से

23 सितंबर को हर साल राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय ने इस दिन को भगवान धन्वंतरि की जयंती के उपलक्ष्य में आयुर्वेद दिवस के रूप में घोषित किया है। इसका उद्देश्य लोगों को आयुर्वेद के महत्व और लाभों के प्रति जागरूक करना है।

इस दिन लोग आयुर्वेद की उपयोगिता को समझते हैं और दूसरों को भी इसके फायदों के बारे में बताते हैं। आयुर्वेद एक प्राकृतिक चिकित्सा प्रणाली है, जो न केवल उपचार करती है बल्कि बीमारियों से बचाव भी करती है। यह साइड इफेक्ट से मुक्त होती है और हमें एक संतुलित जीवन जीने की दिशा दिखाती है—जैसे कि क्या और कैसे खाना चाहिए, कैसी नींद लेनी चाहिए, कितना सोना चाहिए और कैसा व्यायाम करना चाहिए।

अतिरिक्त जानकारी

आयुर्वेद” दो शब्दों से मिलकर बना है:

  • “आयु” जिसका अर्थ है जीवन
  • “वेद” जिसका अर्थ है ज्ञान

अर्थात् आयुर्वेद का अर्थ है जीवन का ज्ञान।

यह एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति है, जो हजारों वर्षों से चली आ रही है। इसमें शरीर, मन और आत्मा – तीनों के संतुलन पर विशेष ध्यान दिया जाता है। आयुर्वेद के अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में तीन प्रकार की जीवन शक्तियाँ होती हैं – वात, पित्त, और कफ। जब ये संतुलित रहती हैं, तो व्यक्ति स्वस्थ रहता है। जब इनमें असंतुलन आता है, तो शरीर में रोग उत्पन्न होते हैं।

आयुर्वेद मानता है कि प्रकृति, शरीर और मनुष्य आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं। यदि किसी एक में असंतुलन आता है, तो उसका प्रभाव अन्य सभी पर पड़ता है। इसी कारण आयुर्वेदिक चिकित्सा में जड़ी-बूटियों, योग, ध्यान, मालिश और संतुलित आहार जैसी प्राकृतिक विधियों को अपनाया जाता है।

प्राचीन समय के एक महान आयुर्वेदाचार्य मुनि पल्कप्य ने लगभग 1800 साल पहले एक महत्वपूर्ण ग्रंथ लिखा था—”हस्ती आयुर्वेद”। यह ग्रंथ हाथियों की देखभाल और चिकित्सा पर आधारित था, जो दर्शाता है कि आयुर्वेद का ज्ञान मानव के साथ-साथ पशुओं के लिए भी उपयोगी था।

महाभारत काल को आयुर्वेद का स्वर्ण युग माना जाता है। उस समय चिकित्सा का मुख्य आधार आयुर्वेद ही था, और यह अपने चरम पर था।

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