अवतल दर्पण (Concave Mirror): अवतल दर्पण एक विशेष प्रकार का गोलीय दर्पण होता है, जिसकी परावर्तक सतह (जिस सतह से प्रकाश टकराकर वापस आता है) अंदर की ओर धँसी हुई होती है। आप इसे ऐसे समझ सकते हैं जैसे किसी खोखले गोले का अंदरूनी हिस्सा, जिसे काट कर दर्पण बनाया गया हो।
इस दर्पण की सबसे खास बात यह है कि जब प्रकाश की किरणें इस पर पड़ती हैं, तो यह उन्हें एक बिंदु पर इकट्ठा (अभिसारित) कर देता है। इसीलिए इसे अभिसारी दर्पण (Converging Mirror) भी कहा जाता है। अवतल दर्पण वस्तुओं के अलग-अलग तरह के प्रतिबिंब बना सकता है, ये प्रतिबिंब बड़े या छोटे, वास्तविक (जिन्हें पर्दे पर लिया जा सके) या आभासी (जिन्हें पर्दे पर न लिया जा सके), और सीधे या उल्टे हो सकते हैं।
उत्तल दर्पण (Convex Mirror): उत्तल दर्पण भी एक गोलीय दर्पण ही होता है, लेकिन इसकी परावर्तक सतह बाहर की ओर उभरी हुई होती है। इसकी कल्पना आप किसी खोखले गोले के बाहरी हिस्से को काटकर बनाए गए दर्पण के रूप में कर सकते हैं।
अवतल दर्पण के विपरीत, उत्तल दर्पण अपने ऊपर पड़ने वाले प्रकाश को बाहर की ओर फैला देता है। यही कारण है कि इसे अपसारी दर्पण (Diverging Mirror) भी कहा जाता है। उत्तल दर्पण की एक और महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि यह हमेशा छोटा, सीधा और आभासी प्रतिबिंब बनाता है। इसका मतलब है कि इससे बनने वाली छवि को आप किसी पर्दे पर नहीं देख सकते, वह केवल दर्पण के अंदर ही दिखाई देती है।
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