मनुष्य के मन में चल रहे विचारों, बातों और भावों की हाइपोथीस जब कलम के द्वारा पन्नों पर शब्दों के द्वारा सामने आती है, तो उसे साहित्य कहते हैं। साहित्य को समाज का दर्पण भी कहा जाता है। जैसा समाज होता है साहित्य भी वैसा ही लिखा जाता है। या फिर हम इसे दूसरे शब्दों में इस तरह से भी कह सकते हैं कि जैसा साहित्य होगा वैसा ही समाज भी हो जाएगा। कहानियाँ, कविताएं, चुटकुले, निबंध, लेख, यात्रा वृतांत, रेखाचित्र यहाँ तक कि फिल्में आदि भी आते हैं। इसके अलावा साहित्य का एक और बहुत ही महत्वपूर्ण अंग होता है साहित्य समीक्षा। किसी विशेष विषय पर वर्तमान विद्वानों की रिसर्च का एनालिसिस होती है। दूसरे शब्दों में एक साहित्य समीक्षा रिसर्चर्स, लेखकों और पाठकों के प्रश्नों के अनुसार वर्तमान साहित्यिक कृति पर विद्वानों की छवि प्रस्तुत करती है।
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साहित्य समीक्षा क्या होती है?
साहित्य समीक्षा क्या होती है इसे जानने से पहले हमें यह पता करना चाहिए कि समीक्षा क्या होती है। समीक्षा को अगर सीधे सीधे शब्दों में कहें तो समीक्षा का अर्थ होता है ध्यान से देखना या जांच करना। किसी रचना अथवा विषय के बारे में ज्ञान प्राप्त करना और प्रत्येक तत्त्व का विवेचन करना समीक्षा है। साहित्य की समीक्षा रिसर्च की प्रक्रिया में एक शुरुआती चरण है। यह सामान्यत: किसी रिसर्च समस्या को ध्यान में रखकर शुरू होता है। यह रिसर्चर्स द्वारा किसी विषय पर किए गए रिसर्च का संक्षिप्त रूप या सारांश होता है। इसके द्वारा रिसर्चर्स की समझ को व्यापक बनाने में मदद मिलती है। पूर्व में लिखा गया साहित्य मौजूदा साहित्य और भविष्य के साहित्य का आईना होता है। यह अतीत के साहित्य के विषय में समझ विकसित करता है जिसका संबंध वर्तमान अध्ययन से होता है।
हिन्दी साहित्य समीक्षा लिखने के लिए कुछ टिप्स जानिए
साहित्य समीक्षा कैसे लिखें जानने के साथ-साथ यह भी जानिए हिन्दी साहित्य समीक्षा को लिखने से संबन्धित कुछ टिप्स क्या-क्या हैं, जो इस प्रकार हैं:
- सीमित दायरे वाला विषय लें : रिसर्च की दुनिया बहुत ही विशाल है और अगर आप कोई बहुत ही बड़ा विषय रिसर्च के लिए उठा लेते हैं, तो उसे पूरा करना वास्तव में एक बहुत ही कठिन और लंबा चलने वाला काम हो जाएगा। इसलिए रिसर्च करने के लिए हमेशा सीमित विषय को ही चुनें और उस हिसाब से उस विषय पर पूरा ध्यान केन्द्रित करके अच्छी तरह से रिसर्च करें।
- पैटर्न और ट्रेंड को ध्यान में रखें : आपको अपने रिसर्च के विषय से जुड़े सभी पैटर्न और ट्रेंड्स के बारे में पूरी जानकारी होनी चाहिए। अगर आप कोई ऐसा विषय चुनते हैं जिसके बारे में लोगों में कोई रुचि ही नहीं है तो आप कोई ऐसा विषय चुन सकते हैं जो पाठकों के बीच टेंडिंग में चल रहा हो।
- नोट्स बनाएँ : किसी भी रिसर्च कार्य में नोट्स बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं। आपको रिसर्च के दौरान कहीं से भी अगर कोई भी महत्वपूर्ण जानकारी मिलती है तो आप उसके बारे में नोट्स जरूर बना लें। ये नोट्स आपके रिसर्च कार्य में बहुत मदद करेंगे।
- धैर्य बनाए रखें : रिसर्च कार्य एक बहुत ही धैर्य वाला काम है। आपको इंटरनेट पर विभिन्न वेबसाइट्स और किताबों को खंगालना पड़ता है। ऐसी स्थिति में किसी भी व्यक्ति का धैर्य टूटना स्वाभाविक है। अत: आप किसी भी स्थिति में अपना धैर्य न खोएँ और अपनी रिसर्च जारी रखें।
- इंटरनेट के अलावा किताबें भी पढ़ें : आप रिसर्च कार्य के लिए केवल इंटरनेट में न घुसे रहें। अपने विषय से जुड़ी अच्छी किताबों के बारे में जानकारी लें और उन्हें खोजकर पढ़ें।
- अन्य लोगों के अनुभव को भी दिमाग में रखें : आज के समय में किसी भी विषय पर लिखी गई समीक्षाएं बहुत ही व्यावहारिक होती हैं। आज के समय में किसी भी साहित्यिक समीक्षा को लिखते समय उसके बारे में दूसरे लोगों की राय का ध्यान रखना बहुत जरूरी है। इसलिए किसी भी विषय के लिए रिसर्च करते समय दूसरे लोगों के अनुभवों को भी दिमाग में रखें।
हिन्दी साहित्य के कुछ प्रमुख समीक्षकों के नाम
साहित्य समीक्षा कैसे लिखें जानने के साथ-साथ यह भी जानिए कि कुछ हिन्दी साहित्य समीक्षकों के नाम क्या-क्या हैं, जो इस प्रकार हैं:
- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
- नंददुलारे वाजपई
- रामविलास
- डॉ. नगेन्द्र
- डॉ. नामवर सिंह
- आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी
हिन्दी साहित्य में समीक्षा का महत्व
समीक्षा एक आम कांसेप्ट है। भविष्य से जुड़े निर्णय और विश्वसनीयता के लिए समीक्षा की जरूरत होती है। रीडर्स को किसी विषय को सुचारु रूप से समझाने के लिए समीक्षा आवश्यक होती है। किसी साहित्यिक रचना की समीक्षा से उसके नाम, लेखक के नाम, प्रकाशन आदि के बारे में पता चलता है। इसके अलावा समीक्षा के बाद पाठकों को किसी रचना के सभी पहलुओं के बारे में विस्तार से जानकारी मिल जाती है। समीक्षा के कारण पाठक किसी साहित्यिक रचना की भाषाशैली, लेखनी और शब्दावली आदि के बारे में विस्तृत रूप से ज्ञान प्राप्त हो जाता है। नीचे दिए जा रहे बिन्दुओं के माध्यम से आपको हिन्दी साहित्य में समीक्षा को समझने में आसानी होगी-
- रीडर को रिसर्च समस्या के संदर्भ में सामान्य ज्ञान विकसित हो जाता है।
- रिसर्च कार्य के लिए रिसर्च फॉर्मेट एवं उपयोगी मेथड्स तथा टेक्नीक्स रिसर्चर्स को स्पष्ट हो जाती हैं।
- साहित्य संबंधी संदेह की स्थितियां स्पष्ट हो जाती हैं।
- रीडर में किसी रचना के संबंध में अभिज्ञान तथा अंतर्दृष्टि विकसित हो जाती हैं।
हिन्दी साहित्य समीक्षा का इतिहास क्या है?
इस ब्लॉग को यहाँ तक पढ़ते हुए आप इतना तो समझ ही चुके होंगे कि किसी साहित्यिक रचना के गुण दोष और रचनात्मक पहलू की गहराई से विवेचना करने को समीक्षा कहते हैं। हिन्दी साहित्य में समीक्षा की शुरुआत भारतेन्दु हरीशचंद के समय से ही शुरू हो गई थी। पंडित बद्रीनाथ चौधरी ने उस समय के लेखकों की रचनाओं की समीक्षा अपने लेखों के द्वारा की है। लाला श्रीनिवास ने भी कुछ नाटकों की समीक्षा की है। इसके उपरांत पंडित हजारी प्रसाद द्विवेदी ने हिन्दी साहित्य की समीक्षा के क्षेत्र में एक अवस्मरणीय काम किया। इसके अलावा पंडित पद्मसिंह शर्मा ने बिहारी की रचनाओं की समीक्षा करते हुए एक बहुत ही अच्छी पुस्तक लिखी।
समीक्षा और समालोचना में अंतर जानिए
समीक्षा और समालोचना के बीच अंतर को समझने के लिए पहले हम इन्हें अलग अलग परिभाषित करेंगे और बाद में निष्कर्ष पर पहुंचेंगे :
समीक्षा : समीक्षा का अर्थ किसी भी रचना का बारीकी से अध्ययन करना है। किसी भी साहित्यिक रचना की बारीकी से जांच करना तथा उसके गुण दोषों की विस्तृत रूप से व्याख्या समीक्षा कहलाती है।
समालोचना : समालोचना में किसी भी रचना के गुण और दोषों को बराबर बराबर तौलकर उसे पाठकों के सामने पेश करना होता है। एक तरह से इसमें भी किसी भी साहित्यिक कृति का अवलोकन ही किया जाता है, लेकिन इसमें लेखक अपनी पसंद के मुताबिक किसी रचना की प्रशंसा न करके उसे ज्यों का त्यों ही पाठकों के सामने प्रस्तुत करता है।
निष्कर्ष : समीक्षा और समालोचना दोनों की परिभाषाओं को पढ़ने के बाद यह निष्कर्ष निकलता है कि समीक्षा का अर्थ है किसी भी रचना की बारीकी से जांच करके उसके गुण दोषों के बारे में बताना। लेकिन इसमें समीक्षक चाहे तो अपनी तरफ से कुछ अधिक आलोचक शब्द या प्रशंसा के कुछ शब्द जोड़ सकता है। समालोचना में यह स्वतंत्रता नहीं होती। इसमें गुण दोष दोनों ही बातों को समान रूप से बताना होता है।
साहित्य समीक्षा को समझने के लिए बेस्ट बुक्स के नाम
साहित्य समीक्षा कैसे लिखें जानने के बाद यह जानिए कि हिन्दी साहित्य समीक्षा पर आधारित कुछ बेहतरीन पुस्तकों कौन-कौन सी हैं, जो इस प्रकार हैं:
बुक | लेखक/प्रकाशन का नाम | यहाँ से खरीदें |
21वीं सदी के हिंदी साहित्य में चित्रित विविध विमर्श | Notion Press | यहाँ से खरीदें |
टेबल 11 एवं 12 – तस्वीर क्या बोले: टेबल 11 एवं 12 में प्रस्तुत रचनाएँ, परिणाम व समीक्षा (तस्वीर क्या बोले – समूह प्रतियोगिता) | प्रतिबिम्ब बड़थ्वाल | यहाँ से खरीदें |
राग दरबारी | श्रीलाल शुक्ल | यहाँ से खरीदें |
साहित्यिक अवलोकन : आलोचना | सुशील कुमार भारद्वाज | यहाँ से खरीदें |
FAQs
एक पुस्तक की समीक्षा करने के लिए समीक्षक में साहित्य का ज्ञान और साहित्य के प्रति रूचि दोनों ही चीजें होनी चाहिए। उसे साहित्य के सभी मौजूदा स्वरूपों और आन्दोलनों की भी जानकारी होनी चाहिए। समकालीन साहित्य में क्या-क्या नए कॉन्सेप्ट्स है, क्या-क्या लिखा जा रहा है यह सब भी उसकी जानकारी में जरूर होना चाहिए।
पुस्तक समीक्षा लिखने का उद्देश्य यह होता है कि इससे पुस्तक के बारे में पाठकों को परिचय दिया जाता है। पुस्तक समीक्षा के माध्यम से समीक्षक पुस्तक या पुस्तक की रचनाओं, लेखक के रचनाकर्म को स्पष्ट करता है। समीक्षक द्वारा पाठक को पुस्तक से परिचय कराया जाता है।
स्टैंडर्ड 4-5 टाइप किए गए पृष्ठ (लगभग 1000-1250 शब्द) हैं। आपको मानक 12 बिंदु फ़ॉन्ट और मानक मार्जिन (प्रत्येक तरफ 1 इंच और पृष्ठ के ऊपर और नीचे एक इंच) का उपयोग करना चाहिए।
पुस्तक समीक्षा प्रारूप में परिचय, मुख्य भाग और निष्कर्ष शामिल हैं। पुस्तक कवर और शीर्षक का वर्णन करें।
एक पुस्तक समीक्षा आम तौर पर 500-750 शब्दों के बीच होते हैं, लेकिन वे लंबे या छोटे हो सकते हैं। एक पुस्तक समीक्षा पाठकों को इस बात की एक झलक देती है कि कोई पुस्तक कैसी है, समीक्षक को यह अच्छी लगी या नहीं, और पुस्तक को खरीदने के बारे में विवरण।
उम्मीद है आपको यह ब्लॉग पढ़ने के बाद साहित्य समीक्षा कैसे लिखें? इस बारे में बहुत सी जानकारियां प्राप्त हुई होगी। यदि आपको हमारा यह ब्लॉग पसंद आया हो तो आप अपने दोस्तों और परिवार के साथ भी यह ब्लॉग जरूर शेयर करें। ऐसे ही अन्य रोचक, ज्ञानवर्धक और आकर्षक ब्लॉग पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।