1980 के दशक में जब देश का खाद्य तेल आयात चिन्ताजनक स्तर पर पहुंच गया तब भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने स्वयं हस्तक्षेप करके तिलहन पर तकनीकी मिशन शुरु कराया। हमारा देश एक कृषि प्रधान देश है तथा सिन्धु सभ्यता से ही हमारे देश में लोग कृषि करते आए है। जिसके प्रमाण भी खुदाई में प्राप्त होते है। जब देश आजाद हुआ था तो अंग्रेज पूरा देश लुट ले गए थे। हमे फिर से अपना भविष्य और किस्मत को तरासने की जरूरत थी। पीली क्रांति के तहत तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के दृष्टि से उत्पादन, प्रोसेसिंग एंड टेक्नोलॉजी मैनेजमेंट का सर्वोत्तम उपयोग करने के उद्देश्य से तिलहन टेक्नोलॉजी मिशन प्रारम्भ किया गया।
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पीली क्रांति (Yellow Revolution)
हरित क्रांति की अगली कड़ी के रूप में यानी हरित क्रांति के द्वितीय चरण में, विकास की योजना बनाई गई, जिसके अन्तर्गत तिलहनों के उत्पादन में वृद्धि लाने के लिए नवीन रणनीति अपनायी गयी । दूसरे शब्दों में, खाद्य तेलों और तिलहन फसलों के उत्पादन के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास की रणनीति को पीली क्रान्ति का नाम दिया गया । हमारे यहाँ तिलहन के अन्तर्गत 9 प्रकार के निम्नलिखित बीज आते हैं –
- सरसों और तोरिया
- सोयाबीन
- सूरजमुखी
- अरण्डी
- अलसी
- कुसुम्ब
- मूँगफली
- तिल
- नाइजर
भारतीय भोजन में प्रति व्यक्ति वसा एवं तेल की वार्षिक उपलब्धता केवल 6 किलोग्राम है, जबकि विश्व की उपलब्धता औसतन 18 किलोग्राम है ।
- भारत में कुल कृषि उत्पादक क्षेत्र में लगभग 10 प्रतिशत क्षेत्र में इसकी खेती की जाती है ।
- देश के कुल कृषि उतपाद का लगभग 10 प्रतिशत भाग तिलहन फसलों से प्राप्त होता है।
- साठ के दशक तक भारत तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भर था ।
- किन्तु सिंचित क्षेत्र में कम प्रतिशत और मौसम की अनिश्चितता के कारण बढ़ती आबादी के साथ देश में तेलों की प्रति व्यक्ति उपलब्धता कम होती गई, जबकि भारत की जलवायु तिलहन उत्पादन के सर्वथा उपयुक्त है ।
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नेशनल एग्रीकल्चर पॉलिसी
केन्द्र सरकार द्वारा 28 जुलाई, 2000 को नई राष्ट्रीय कृषि नीति की घोषणा की गई। यदि हम 21वीं सदी में आने वाली चुनौतियों का सक्षम रूप से सामना करना चाहते हैं, तो कृषि क्षेत्र के विकास कार्यक्रम पर सर्वाधिक ध्यान देना होगा । अतः नई राष्ट्रीय कृषि नीति की घोषणा सही समय पर लिया गया उचित फैसला है ।
पीली क्रांति के प्रमुख बिंदु
पीली क्रांति के प्रमुख बिंदु के बारे में नीचे बताया गया है:
- स्वास्थ्य के संबंध में बढ़ती जागरूकता के कारण देश में कैनोला तेल की मांग में वृद्धि हो रही है।
- वर्ष 2014-15 के दौरान लगभग 56,000 टन कैनोला तेल का आयात करके इसे भारतीय बाज़ारों में बेचा गया था।
- कैनोला तेल की बढ़ती मांग के कारण पंजाब के किसानों को लाभ पहुँच सकता है क्योंकि पंजाब राज्य के विशेष क्षेत्रों में कैनोला (सरसों और रेपसीड) की कृषि की जाती है।
- देश में खाद्य तेल की वार्षिक मांग तकरीबन 22 मिलियन टन है और इसमें प्रतिवर्ष 3 से 4% की वृद्धि हो रही है ।
- भारत को इसकी तेल मांग का केवल 40% ही प्राप्त होता है।
- मांग और आपूर्ति के बीच के इस अंतराल की भरपाई विदेशों से तेल का आयात करके की जाती है।
- वर्ष 2015 -16 के दौरान भारत ने लगभग 16 मिलियन खाद्य तेल का आयात किया था जिसका अनुमानित व्यय 75,000 करोड़ रुपये था ।
- इसी परिप्रेक्ष्य में भारत के लिये अब खाद्य तेल में आत्मनिर्भरता हासिल करना महत्त्वपूर्ण हो गया है, जिससे इसके वर्तमान घाटे में कमी लाई जा सकेगी और इसकी निरंतर बढ़ती जनसंख्या के लिये खाद्य तेल सुरक्षा को भी सुनिश्चित कराया जा सकेगा ।
- वैज्ञानिकों ने गोभी सरसों (रेपसीड) की अंतर्राष्ट्रीय स्तर की कैनोला किस्म जीएससी-6 (GSC-6) और जीएससी-7 (GSC-7) और सरसों आरएलसी-3 (RLC-3) का भी उत्पादन किया है ।
- ध्यातव्य है कि ये किस्में पूरे देश की केनोला तेल की मांग को पूर्ण करने में समर्थ होंगी ।
- पंजाब में, रेपसीड सरसों को 31,000 हेक्टेयर में बोया गया था जिससे वर्ष 2014-15 के दौरान 38,000 टन से अधिक का उत्पादन हुआ था ।
- व्यापार के दृष्टिकोण से तोरिया, गोभी, सरसों और तारामीरा को रेपसीड की श्रेणी में रखा जाता है, जबकि राया और अफ्रीकन सरसों को सरसों की श्रेणी में रखा जाता है।
- उल्लेखनीय है कि जीएससी-7 में उत्तम उत्पादन क्षमता है ।
- यदि इसे समय पर बोया जाता है तो इससे प्राप्त होने वाला आर्थिक लाभ गेंहूँ के समान ही हो सकता है।
- इसके अतिरिक्त, देश में पीले बीज वाले कैनोला सरसों की पहली भारतीय किस्म (आरएलसी -3) का भी उत्पादन किया गया है।
- पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में ये बीज पर्याप्त मात्र में उपलब्ध हैं और किसान इन्हें कम मूल्य पर ही प्राप्त कर सकते हैं ।
- रबी के मौसम में पंजाब के अधिकांश क्षेत्र में गेंहूँ की फसल उगाई जाती है और किसान बड़े पैमाने की कृषि तकनीकों के कारण किसी भी अन्य फसल को बोने की इच्छा व्यक्त नहीं करते हैं।
- दरअसल, सरसों की खेती में अत्यधिक श्रमिकों (मुख्यतः फसल की कटाई के दौरान) की आवश्यकता होती है।
- कैनोला की कृषि से फसल विविधीकरण को गति मिलेगी जिसकी पंजाब को अतिशीघ्र आवश्यकता है।
- कृषि विशेषज्ञ अब पंजाब में फसल विविधीकरण पर बल दे रहे हैं।
- वे सरकार से जल स्तर में हो रही कमी की जाँच करने तथा चावल की कृषि में कमी लाने का भी अनुरोध कर रहे हैं।
पीली क्रांति के जनक
पीली क्रांति के जनक कौन है, बता दे कि 1980 के दशक में जब देश का खाद्य तेल आयात चिन्ताजनक स्तर पर पहुंच गया तब भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने स्वयं हस्तक्षेप करके तिलहन पर तकनीकी मिशन शुरु कराया।
पीली क्रांति के तहत तिलहन उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त केने की दृष्टि से उत्पादन, प्रसंस्करण और प्रबन्ध प्राद्योगिकी का सर्वोत्तम उपयोग करने के उद्देश्य से तिलहन प्रौद्योगिकी मिशन प्रारम्भ किया गया। ‘पीली क्रांति’ के परिणामस्वरूप ही हमारा देश खाद्य तेलों और तिलहन उत्पादन में महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल कर सका है।
तिलहन उत्पादन कम होने के कारण-
- कुल कृषि भूमि में तिलहनी फसलों का कम क्षेत्रफल ।
- घरेलू बीजों का उपयोग, जिसके कारण तेल की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव ।
- खाद्य एवं उर्वरकों का नगण्य उपयोग ।
- फसल सुरक्षा एवं वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग न किया जाना ।
- मिश्रित फसली खेती में दलहन उत्पादन को प्राथमिकता देना ।
FAQ
पीली क्रांति तिलहन उत्पादन से सम्बन्धित हैं। इसके उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के उद्देश्य से यह योजना प्रारम्भ की गई थी।
सैम पित्रोदा पीली क्रांति के जनक हैं।
तिलहन के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए खाद्य तेल, विशेष रूप से सरसों और तिल के बीज के उत्पादन को बढ़ाने के लिए 1986-1987 पीली क्रांति का आरम्भ किया गया।
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