उत्तर प्रदेश की मिट्टी ने भारत बहुत सी वीरांगनाएं दी हैंI एक झांसी की रानी लक्ष्मीबाई के बारे में तो विश्व जानता ही है और दूसरी हैं रानी दुर्गावतीI रानी दुर्गावती भारत की वह बहादुर बेटी थीं, जिन्होंने मुगलों से लड़ते लड़ते अपने प्राणों का बलिदान दे दिया लेकिन मुगलों के सामने हार नहीं मानीI उनकी वीरता और युद्ध कौशल का ऐसा प्रभाव था कि मुग़ल उनके नाम से ही काँप जाते थेI युद्धभूमि में उनके अदम्य साहस और बलिदान को याद रखने के लिए प्रत्येक वर्ष उनकी शहादत के दिन को रानी दुर्गावती बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता हैI
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रानी लक्ष्मीबाई से मिलती जुलती है रानी दुर्गावती की कहानी
रानी लक्ष्मीबाई के जीवन और रानी दुर्गावती के जीवन में काफी समनताएँ हैंI रानी लक्ष्मीबाई की तरह ही रानी दुर्गावती भी अपने पिता की इकलौती संतान थींI वे राजा ‘कीर्तिसिंह चंदेल’ की एकमात्र संतान थीं। उनके पिता ने उनकी परवरिश एक राजकुमार की तरह ही की थी और एक राजकुमार की भांति ही उन्हें शस्त्र और शास्त्र दोनों की शिक्षा दिलाई थीI रानी लक्ष्मीबाई की तरह ही रानी दुर्गावती को भी बचपन से ही घुड़सवारी, तीरंदाज़ी और तलवारबाज़ी का शौक थाI रानी लक्ष्मीबाई की तरह ही शादी के कुछ सालों बाद ही उनके पति राजा दलपतशाह अपने पीछे एक बेटा छोड़कर परलोक सिधार गएI पति की मृत्यु के बाद रानी दुर्गावती ने अपने पति का राज्य संभाला और उसकी रक्षा के लिए अंग्रेजों से लोहा लिया और युद्धभूमि में लड़ते-लड़ते अपने प्राणों का बलिदान दे दियाI
दुर्गाष्टमी के दिन हुआ जन्म
रानी दुर्गावती जयंती की बात करें तो रानी दुर्गावती का जन्म उत्तर प्रदेश एक महोबा जिले में 5 अक्टूबर सन 1524 को दुर्गाष्टमी में हुआ थाI दुर्गाष्टमी के दिन पैदा होने के कारण उनका नाम दुर्गावती रखा गयाI यह भी एक संयोग ही है कि वे अपने नाम की तरह ही बहदुर और साहसी थींI दुर्गाष्टमी के दिन को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता हैI
क्यों मनाया जाता है रानी दुर्गावती का बलिदान दिवस
मुग़ल सेना से युद्ध करने के दौरान रानी दुर्गावती बुरी तरह से घायल हो गई थींI उनके सेनापति ने उन्हें युद्ध बीच में छोड़कर किसी सुरक्षित स्थान पर चले जाने का आग्रह किया, लेकिन वे लड़ती रहींI जब वे लड़ते लड़ते बहुत अधिक घायल हो गईं और उन्हें ऐसा लगा कि वे अब नहीं बचेंगी तो उन्होंने अपने सैनिक से उन्हें मार देने के लिए कहाI जब सैनिक ऐसा करने से मना कर दिया तो उन्होंने अपनी तलवार को खुद अपने सीने में भोंक दिया और वे शहीद हो गईंI रानी दुर्गावती नहीं चाहती थीं कि मुगलों को वे ज़िंदा मिलेंI उनके इस बलिदान की याद में हर साल उनकी शहादत वाले दिन 24 जून को रानी दुर्गावती का बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता हैI
कैसे मनाया जाता है रानी दुर्गावती का बलिदान दिवस
रानी दुर्गावती के बलिदान दिवस पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं:
- श्रद्धांजलि सभाएं: रानी दुर्गावती की प्रतिमाओं पर माल्यार्पण और पुष्पांजलि अर्पित कर उनके बलिदान को स्मरण किया जाता है।
- गोष्ठियां और सेमिनार: इतिहासकार और विद्वान रानी दुर्गावती के जीवन, शासन और युद्धों पर चर्चा करते हैं।
- सांस्कृतिक कार्यक्रम: नाटक, नृत्य, और संगीत के माध्यम से रानी दुर्गावती की वीर गाथाओं को प्रस्तुत किया जाता है।
- प्रदर्शनियां: रानी दुर्गावती के जीवन और उनके राज्य से जुड़ी वस्तुओं की प्रदर्शनियां आयोजित की जाती हैं।
- रक्तदान शिविर: रानी दुर्गावती के साहस और बलिदान से प्रेरणा लेकर लोग रक्तदान करते हैं।
- प्रतियोगिताएं: निबंध, चित्रकला और वाद-विवाद जैसी प्रतियोगिताएं आयोजित की जाती हैं, जिसमें छात्र रानी दुर्गावती के जीवन और कार्यों पर अपनी समझ व्यक्त करते हैं।
रानी दुर्गावती की वीरता की कहानी
गोंडवाना राज्य के इस तरह चर्चित होने पर आसपास के राज्य उनसे घृणा करने लगे। ऐसे में वह गोडंवाना राज्य पर आक्रमण करने की तैयारी करने लगे। जब रानी दुर्गावती इस बात से अवगत हुई तब उन्होंने स्वंय ही दुश्मन राज्यों पर आक्रमण करने शुरू कर दिए। उन्होने एक-एक करके बड़ी वीरता के साथ सभी दुश्मनों को पराजित किया और इस तरह रानी दुर्गावती की वीरता और सूझबूझ से गोडंवाना बहुत बडा राज्य बन गया।
ऐसे में जब इस राज्य के वैभव की भनक मुगल सम्राट अकबर को लगी तो अकबर के मन में भी लोभ उत्पन्न हो गया। वह रानी दुर्गावती की वीरता और उनके गुणों की गाथा सुन चुका था और उनसे मिलना चाहता था। उसने सोचा कि रानी को विवश किया जाए लेकिन इससे पहले अकबर भी अपनी बुद्धिमत्ता और वीरता रानी को दिखाना चाहता था। बहुत सोच विचार के बाद अकबर ने रानी को एक बंद पिटारी में उपहार भेजा।
जब दुर्गावती ने वह पिटारी खोला तो देखा उसके अंदर एक चरखा रखा हुआ था। रानी बड़ी बुद्धिमान थी। उन्होने इस उपहार का अर्थ लगाया कि स्त्रियों को घर में बैठकर चरखा चलाना चाहिए। इसके बाद रानी ने भी अपनी ओर से एक सदूक़ में उपहार अकबर के पास भेजा। अकबर ने जब वह संदूक खोलकर देखा तो उसके भीतर रूई धुनने की धन्नी और धुनने के लिए मोटा डंडा था। अकबर के इसका अर्थ लगाया कि तुमहारा काम रूई धुनना और कपडे बुनना है। तुम्हे राज काज से क्या लेना।
यह देख अकबर क्रोधित हो गया और उसने तुरंत अपने सेनापति को गोडंवाना राज्य पर आक्रमण कर दुर्गवती को दरबार में पेश करने का आदेश दे दिया। सेनापति आसफ खां ने अकबर की आज्ञा का पालन किया और बड़ी से बड़ी सेना लेकर गोडंवाना पहुँच गया लेकिन आक्रमण से पहले उन्होंने दुर्गावती को समझाना उचित समझा। आसफ खां ने रानी के पास एक संदेश भेजा, जिसमें लिखा था कि तुम बादशाह की अधीनता स्वीकार कर आगरा चलो। तुम्हारा राज्य तुम्हारे ही पास रहेगा और आगरा में भी तुम्हारा सम्मान किया जाएगा।
इसके बाद रानी दुर्गावती ने आसफ खां को करारा जवाब दिया। उन्होने कहा- “मेरे देश की धरती को कोई भी बेड़ियों में नही बांध सकता। मैं अपने देश की स्वतंत्रा के लिए अंतिम सांस तक युद्ध करूगीं। तुम तो गुलाम हो। तुम अकबर की नौकरी छोड़कर मेरी सेना में आ जाओ। मै तुम्हे अच्छा वेतन दूंगी।” रानी की यह बात सुनकर आसफ खां आगबबूला हो गया और युद्ध शुरू कर दिया। रानी भी बड़ी वीरता के साथ आसफ खां की सेना का मुकाबला करने लगी।
इस दौरान उनके साथ उनका 18 वर्षीय पुत्र वीरनारायण भी शामिल था। दोनो सेनाओं के बीच भयंकर युद्ध होने लगा परंतु दुर्भाग्यवश नदी में आचानक बाढ़ आ गई और रानी की सेना बाढ में फंस गई। इसका आसफ खां ने लाभ उठाकर फंसी हुई सेना पर आक्रमण कर दिया। इस आक्रमण में रानी के बहुत से सैनिक मारे गए। यहाँ तक की उनके पुत्र वीर नारायण भी घायल हो गए।
रानी दुर्गावती ने घायल वीरनारायण को चौरागढ़ के किले में भेज दिया। उस समय रानी की सेना में केवल 300 सैनिक ही शेष रह गए थे जबकि उधर आसफ खां की सेना की संख्या बहुत अधिक थी। लेकिन फिर भी रानी दुर्गावती ने हार न मानी। वह अपने 300 सैनिको के साथ आसफ खां की सेना पर टूट पड़ी। इस दौरान अचानक एक बाण आकर उनकी दाहिनी आंख में घुस गया। इसके बाद भी रानी दुर्गावती वीरता के साथ युद्ध करती रही।
थोड़ी ही देर बाद एक बाण ओर आया और रानी की दूसरी आंख में घुस गया। अब रानी की दोनो आंखे फूट चुकी थी वह अंधी हो चुकी थी। फिर भी उन्होने हिम्मत नही हारी और दोनो हाथो से तलवार चलाती रही। और आसफ खां की सेना का डटकर सामना करती रही।
युद्धभूमि में लड़ते लड़ते जब रानी दुर्गावती अधमरी हालत में पहुँच गईं और उन्हें लगा कि उनका बच पाना मुश्किल है तो उन्होंने अपने एक सैनिक को उन्हें जान से मार डालने का आदेश दियाI सैनिक ने रानी का आदेश मानने से मना कर दियाI
रानी दुर्गावती नहीं चाहती थीं कि मुगल उन्हें ज़िंदा पकड़ेंI वे किसी भी कीमत पर मुगलों की गुलामी स्वीकार नहीं कर सकती थींI इस कारण से उन्होंने अपनी तलवार को अपने सीने में मारकर ही अपने प्राणों का बलिदान दे दिया और अपनी मातृभूमि के शहीद हो गईंI
रानी दुर्गावती की समाधि
रानी दुर्गावती के शहीदी वाले दिन को बलिदान दिवस के रूप में मनाया जाता हैI हर साल बलिदान दिवस के दिन रानी दुर्गावती की समाधि जो कि बरेला नामक स्थान पर बनी हुई है, पर जाकर लोग पुष्प चढ़ाकर श्रद्धांजली देते हैंI
रानी दुर्गावती के बारे में कुछ ऐतिहासिक तथ्य
- रानी दुर्गावती के बारे में कुछ ऐतिहासिक तथ्य इस प्रकार हैं:
- रानी दुर्गावती जयंती 5 अक्टूबर को मनाई जाती है।
- रानी दुर्गावती के पति राजा दलपत शाह के वीरता के किस्सों के बारे में सुनकर वे काफी प्रभावित थींI उन्होंने उन्हें विवाह के लिए गुप्तपत्र लिखा जिसके बाद उन दोनों ने मंदिर में शादी कर लीI
- अपनी पति की मृत्यु के बाद जब वे गोंडवाना के सिंहासन पर बैठीं थीं, तब उनकी आयु मात्र 17 वर्ष थीI
- रानी दुर्गावती एक कुशल शिकारी थींI उन्होंने एक आदमखोर बाघ को मार गिराया थाI
- रानी दुर्गावती ने मुगल बादशाह अकबर की सेना से लड़ाई की और पहली लड़ाई में उन्हें अपने राज्य से खदेड़ दिया थाI
FAQs
रानी दुर्गावती गोंडवाना क्षेत्र की रानी थीI उन्होंने बहुत अल्पायु में अपने पति की मृत्यु के बाद उनका राज्य संभाल लिया थाI उन्होंने मुगलों को कई बार युद्ध में हराया था और मुगलों से लड़ते हुए शहीद हो गईं थींI
रानी दुर्गावती के पति का नाम राजा दलपत शाह थाI
रानी दुर्गावती का बलिदान दिवस 24 जून को मनाया जाता हैI
5 अक्टूबर
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