भारत में कई महान सन्यासी हुए हैं। इन्हीं महान सन्यासियों में से एक नाम श्री रामकृष्ण परमहंस का जन्म फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को हुआ था। इस साल यह तिथि 12 मार्च को पड़ रही है। अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से परमहंस जी का जन्म 18 फरवरी 1836 को पश्चिम बंगाल के कामारपुर में हुआ था। उनकी मृत्यु 16 अगस्त 1886 को कोलकाता में हुई थी। यहाँ रामकृष्ण परमहंस जयंती के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है।
श्रीरामकृष्ण परमहंस के बारे में
श्री रामकृष्ण परमहंस भारत में हुए महान संयासियों में से एक थे। उनका जन्म 18 फरवरी 1836 को पश्चिम बंगाल के कामारपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम खुदीराम चट्टोपाध्याय और माता का नाम चंद्रमणि देवी था। बता दें कि रामकृष्ण परमहंस का मूल नाम ‘गदाधर चट्टोपाध्याय’ था और वह अपने माता-पिता की चौथी संतान थे।
ऐसा कहा जाता है कि बचपन में ही उन्हें प्रथम बार आध्यात्मिक अनुभव हुआ था। इसके बाद से ही उनका खिंचाव आध्यात्मिक अध्ययन में लगने लगा। धीरे धीरे उनके मन में वैराग्य उत्पन्न होने लगा। 16 वर्ष की अल्पायु में उनके भाई उन्हें पुरोहित बनाने के लिए कोलकाता लेकर आ गए। वे दक्षिणेशवर काली मंदिर के मुख्य पुजारी बन गए और श्रीरामकृष्ण परमहंस उनकी धार्मिक कार्यों में सहायता करने लगे।
रामकृष्ण परमहंस जब 23 वर्ष के थे उसी दौरान उनका विवाह उनके निकट के ही गांव जयरामबती की कन्या ‘शारदामणि मुखोपाध्याय’ से करा दिया गया। बता दें कि विवाह के समय शारदामणि की आयु मात्र पांच या छ: वर्ष की थी और उनके बीच 17 वर्ष का अंतर था। वहीं विवाह से अप्रभावित रामकृष्ण जी के संन्यासी बन जाने के बाद उन्होंने भी आध्यात्म का रास्ता चुन लिया और वह भी संपूर्ण जीवन ईश्वर की भक्ति में लीन रही।
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रामकृष्ण परमहंस जयंती कब मनाई जाती है?
2024 में रामकृष्ण परमहंस जयंती 12 मार्च को मनाई जाएगी। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार रामकृष्ण परमहंस का जन्म फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को हुआ था।
रामकृष्ण परमहंस जयंती का महत्व
रामकृष्ण परमहंस जयन्ती का महत्व इस प्रकार है:
- रामकृष्ण परमहंस जयंती के माध्यम से लोगों को रामकृष्ण परमहंस के विचारों के बारे में पता चलता है।
- रामकृष्ण परमहंस जयंती के माधयम से लोग रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं से अवगत होते हैं।
- रामकृष्ण परमहंस जयंती के के कारण लोग रामकृष्ण परमहंस के द्वारा बताए गए आध्यात्म के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित होते हैं।
- रामकृष्ण परमहंस जयंती पर लोग श्रीरामकृष्ण परमहंस मिशन से जुड़ते हैं और समाज कल्याण के कार्य करते हैं जिससे समाज का भला होता है।
रामकृष्ण परमहंस जयंती क्यों मनाते हैं?
रामकृष्ण परमहंस जयंती को मनाने के पीछे का उद्देश्य श्री रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं और विचारों को जन जन तक पहुंचाना होता है। रामकृष्ण परमहंस जयन्ती को मनाने के एक अन्य कारण यह भी है कि लोग श्रीरामकृष्ण मिशन के बारे में जानें और अधिक से अधिक लोग श्रीरामकृण परमहंस मिशन से जुड़ सकें और समाजकल्याण के कार्य कर सकें। रामकृष्ण परमहंस जयंती को मनाने की वजह से लोग श्रीरामकृष्ण परमहंस को याद करते हैं और उनकी शिक्षाओं पर चलने का प्रण लेते हैं।
कैसे मनाई जाती है रामकृष्ण परमहंस जयंती?
रामकृष्ण परमहंस जयंती कुछ इस प्रकार से मनाई जाती है-
- रामकृष्ण जयंती के मौके पर भक्त जल्दी उठकर रामकृष्ण परमहंस जी की मूर्ति को स्नान कराते हैं और उन्हें नए कपड़े पहनाते हैं।
- इस दिन अनुयायी श्री रामकृष्ण परमहंस जी की याद में भजन करते हैं और आरती करते हैं।
- इस दिन कई काली मंदिरों श्रीरामकृष्ण परमहंस के प्रवचन भी सुनाए जाते हैं।
- अनुयायी मंदिरों में भंडारे का आयोजन करते हैं और प्रसाद के रूप में लोगों में भोजन वितरित किया जाता है।
श्री रामकृष्ण परमहंस की मृत्य
श्रीरामकृष्ण परमहंस का देहवसान 50 वर्ष की अल्पायु में गले के कैंसर के कारण हो गया था। जब उन्हें पता चला कि उन्हें गले का कैंसर हो गया है तो वे इस बात को सुनकर ज़रा भी घबराए नहीं। उन्होंने इसके लिए कोई उचार नहीं कराया और वे दिन रात समाधि में लीन रहने लगे। 16 अगस्त 1886 के दिन वे पंचतत्व में विलीन हो गए।
FAQs
रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को हुआ था और उनकी मृत्यु 16 अगस्त 1886 को हुई थी।
रामकृष्ण परमहंस काली मां की पूजा करते थे।
श्रीरामकृष्ण परमहसं के पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए कोसीपोर बर्निंग घाट – जिसे रतनबाबुर घाट के नाम से जाना जाता है ले जाया गया था।
आशा है कि आपको रामकृष्ण परमहंस जयंती की जानकारी मिली होगी जो आपके सामान्य ज्ञान को बढ़ाने का काम करेगी। इसी प्रकार के अन्य ट्रेंडिंग इवेंट्स पर ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बनें रहें।