Ramakrishna Paramahamsa Jayanti in Hindi 2025: एक आध्यात्मिक प्रकाश पुंज जिन्होंने भक्ति और साधना का संदेश दिया 

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Ramakrishna Paramahamsa Jayanti in Hindi 2025

Ramakrishna Paramahamsa Jayanti in Hindi 2025: रामकृष्ण परमहंस जयंती 1 मार्च 2025 को मनाई जाएगी। यह तिथि हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार फाल्गुन महीने में शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि से मेल खाती है। अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से परमहंस जी का जन्म 18 फरवरी 1836 को पश्चिम बंगाल के कामारपुकुर में हुआ था। उनकी जयंती हर साल मनाई जाती है, जिसकी तिथि चंद्र कैलेंडर के आधार पर बदलती रहती है। भारत में कई महान सन्यासी हुए हैं जिनमें रामकृष्ण परमहंस प्रमुख संन्यासी हैं। इस ब्लॉग में रामकृष्ण परमहंस (Ramakrishna Paramahamsa Jayanti in Hindi 2025) जयंती के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है।

रामकृष्ण परमहंस का जीवन परिचय

श्री रामकृष्ण परमहंस भारत में हुए महान संयासियों में से एक थे। उनका जन्म 18 फरवरी 1836 को पश्चिम बंगाल के कामारपुकुर में हुआ था। उनके पिता का नाम खुदीराम चट्टोपाध्याय और माता का नाम चंद्रमणि देवी था। रामकृष्ण परमहंस का मूल नाम ‘गदाधर चट्टोपाध्याय’ था और वह अपने माता-पिता की चौथी संतान थे। 

ऐसा कहा जाता है कि बचपन में ही उन्हें प्रथम बार आध्यात्मिक अनुभव हुआ था। इसके बाद से ही उनका खिंचाव आध्यात्मिक अध्ययन में लगने लगा। धीरे धीरे उनके मन में वैराग्य उत्पन्न होने लगा। 16 वर्ष की अल्पायु में उनके भाई उन्हें पुरोहित बनाने के लिए कोलकाता लेकर आ गए। वे दक्षिणेशवर काली मंदिर के मुख्य पुजारी बन गए और श्रीरामकृष्ण परमहंस उनकी धार्मिक कार्यों में सहायता करने लगे। 

रामकृष्ण परमहंस जब 23 वर्ष के थे उसी दौरान उनका विवाह उनके निकट के ही गांव जयरामबती की कन्या ‘शारदामणि मुखोपाध्याय’ से करा दिया गया। विवाह के समय शारदामणि की आयु मात्र पांच या छ: वर्ष की थी और उनके बीच 17 वर्ष का अंतर था। वहीं विवाह से अप्रभावित रामकृष्ण जी के संन्यासी बन जाने के बाद उन्होंने भी आध्यात्म का रास्ता चुन लिया और वह भी संपूर्ण जीवन ईश्वर की भक्ति में लीन रही।

श्रीरामकृष्ण परमहंस का देहवसान 50 वर्ष की अल्पायु में गले के कैंसर के कारण हो गया था। जब उन्हें पता चला कि उन्हें गले का कैंसर हो गया है तो वे इस बात को सुनकर ज़रा भी घबराए नहीं। उन्होंने इसके लिए कोई उपचार नहीं कराया और वे दिन रात समाधि में लीन रहने लगे। 16 अगस्त 1886 के दिन वे पंचतत्व में विलीन हो गए। 

रामकृष्ण परमहंस जयंती 2025 कब मनाई जाती है?

2025 में रामकृष्ण परमहंस जयंती Ramakrishna Paramahamsa Jayanti in Hindi 2025) 1 मार्च को मनाई जाएगी। हिन्दू कैलेंडर के अनुसार रामकृष्ण परमहंस का जन्म फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीय तिथि को हुआ था। 

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रामकृष्ण परमहंस जयंती का महत्व

रामकृष्ण परमहंस जयन्ती (Ramakrishna Paramahamsa Jayanti in Hindi 2025) का महत्व इस प्रकार है:

  • रामकृष्ण परमहंस जयंती के माध्यम से लोगों को रामकृष्ण परमहंस के विचारों के बारे में पता चलता है।  
  • रामकृष्ण परमहंस जयंती के माधयम से लोग रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं से अवगत होते हैं।  
  • रामकृष्ण परमहंस जयंती के के कारण लोग रामकृष्ण परमहंस के द्वारा बताए गए आध्यात्म के रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित होते हैं।  
  • रामकृष्ण परमहंस जयंती पर लोग श्रीरामकृष्ण परमहंस मिशन से जुड़ते हैं और समाज कल्याण के कार्य करते हैं जिससे समाज का भला होता है।

रामकृष्ण परमहंस जयंती क्यों मनाते है?

रामकृष्ण परमहंस जयंती (Ramakrishna Paramahamsa Jayanti in Hindi 2025) को मनाने के पीछे का उद्देश्य श्री रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं और विचारों को जन जन तक पहुंचाना होता है। रामकृष्ण परमहंस  जयन्ती को मनाने के एक अन्य कारण यह भी है कि लोग श्रीरामकृष्ण मिशन के बारे में जानें और अधिक से अधिक लोग श्रीरामकृण परमहंस मिशन से जुड़ सकें और समाजकल्याण के कार्य कर सकें। रामकृष्ण परमहंस जयंती को मनाने की वजह से लोग श्रीरामकृष्ण परमहंस को याद करते हैं और उनकी शिक्षाओं पर चलने का प्रण लेते हैं।

रामकृष्ण परमहंस का आध्यात्मिक दर्शन और शिक्षाएं 

रामकृष्ण परमहंस भारत के महान संत और आध्यात्मिक गुरु थे। उन्होंने अद्वैत वेदांत, भक्ति और तंत्र साधना के माध्यम से ईश्वर को प्राप्त करने का मार्ग दिखाया। उनकी शिक्षाएं न केवल धार्मिक सहिष्णुता पर आधारित थीं, बल्कि उन्होंने सभी धर्मों की एकता को भी स्पष्ट रूप से समझाया था। रामकृष्ण परमहंस ने सभी धर्मों को समान माना और यह सिखाया कि सभी मार्ग ईश्वर तक पहुँचने के अलग-अलग तरीके हैं। उन्होंने हिंदू, इस्लाम और ईसाई धर्म की साधनाएँ कीं और अनुभव किया कि सभी धर्म ईश्वर की ओर ले जाते हैं। उन्होंने अद्वैत वेदांत को आत्मसात किया, लेकिन भक्ति को भी उतना ही महत्वपूर्ण माना। उनका मानना था कि साकार और निराकार दोनों रूपों में ईश्वर को प्राप्त किया जा सकता है। रामकृष्ण परमहंस ने लोगों को सिखाया कि हर व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक यात्रा में अलग-अलग रास्ता चुन सकता है, लेकिन गंतव्य एक ही है, ईश्वर। उन्होंने मां काली को सर्वशक्तिमान ईश्वर का सजीव रूप माना था और उनकी भक्ति में लीन रहते थे। उनका जीवन काली माता की भक्ति, साधना और अनन्य समर्पण का उदाहरण है। उन्होंने कहा था कि गुरु ही मार्गदर्शक होते हैं और बिना उनकी कृपा के ईश्वर की प्राप्ति संभव नहीं है। वे कहते थे कि सभी धर्म सच्चे हैं, सभी मार्ग ईश्वर तक ले जाते हैं।

रामकृष्ण परमहंस का जीवन परिचय – Ramakrishna Paramahansa Ka Jivan Parichay

वर्तमान आधुनिक युग में रामकृष्ण परमहंस की शिक्षाओं की प्रासंगिकता 

रामकृष्ण परमहंस के विचार प्रेम, भक्ति और आध्यात्मिक जागरूकता पर आधारित थे। वे आज के व्यस्त जीवन में भी लोगों का मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। जिस प्रकार आज के युग में धार्मिक मतभेद और असहिष्णुता बढ़ रही है। रामकृष्ण परमहंस ने सभी धर्मों की समानता को स्वीकार करते हुए सिखाया था कि सभी पथ ईश्वर तक पहुँचने के विभिन्न मार्ग हैं। उनके द्वारा दी गई यह शिक्षा आज भी सांप्रदायिक सौहार्द और शांति स्थापित करने में सहायक हो सकती है। जैसा कि आप सभी जानते हैं आधुनिक जीवन तनाव और चिंता से भरा हुआ है। मानसिक शांति के लिए उनकी भक्ति और साधना पर आधारित शिक्षाएँ हमारे लिए अत्यंत उपयोगी हैं। आज का समाज भौतिक सुख-सुविधाओं में उलझा हुआ है, लेकिन वास्तविक संतोष की प्राप्ति आत्मज्ञान से ही होती है। रामकृष्ण परमहंस ने सिखाया कि जीवन का अंतिम लक्ष्य ईश्वर की अनुभूति और आत्मज्ञान है। उन्होंने अहंकार और स्वार्थ का त्याग और गुरु के मार्गदर्शन की आवश्यकता को अहम बताया जो आज भी उतने ही महत्वपूर्ण हैं जितने पहले थे। 

रामकृष्ण परमहंस जयंती कैसे मनाते हैं?

रामकृष्ण परमहंस जयंती  (Ramakrishna Paramahamsa Jayanti in Hindi 2025)  कुछ इस प्रकार से मनाई जाती है:

  • रामकृष्ण जयंती के मौके पर भक्त जल्दी उठकर रामकृष्ण परमहंस जी की मूर्ति को स्नान कराते हैं और उन्हें नए कपड़े पहनाते हैं।  
  • इस दिन अनुयायी श्री रामकृष्ण परमहंस जी की याद में भजन करते हैं और आरती करते हैं।  
  • इस दिन कई काली मंदिरों श्रीरामकृष्ण परमहंस के प्रवचन भी सुनाए जाते हैं।  
  • अनुयायी मंदिरों में भंडारे का आयोजन करते हैं और प्रसाद के रूप में लोगों में भोजन वितरित किया जाता है।

FAQs 

रामकृष्ण परमहंस देव क्यों प्रसिद्ध थे?

रामकृष्ण परमहंस भारत के एक महान संत, आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक थे। इन्होंने सभी धर्मों की एकता पर जोर दिया। उन्हें बचपन से ही विश्वास था कि ईश्वर के दर्शन हो। ते हैं अतः ईश्वर की प्राप्ति के लिए उन्होंने कठोर साधना और भक्ति का जीवन बिताया।

स्वामी विवेकानंद ने रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु क्यों बनाया था?

रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद को अपना शिष्य इसलिए बनाया, क्योंकि उनमें बुद्धि और तर्क करने की बहुत क्षमता थी। जबकि गुरु ने विवेकानंद के हर प्रश्न का समाधान कर उनकी बुद्धि को भक्ति में बदल दिया था, तब से विवेकानंद ने उन्हें अपना गुरु मान लिया था।

रामकृष्ण परमहंस को बचपन में क्या शौक था?

बचपन में, रामकृष्ण (उनके बचपन का नाम गदाधर था) गांव के लोग उसे बहुत प्यार करते थे। बचपन से ही औपचारिक शिक्षा और सांसारिक मामलों के प्रति उसकी गहरी अरुचि थी। हालाँकि, वह एक प्रतिभाशाली लड़का था, और अच्छा गा सकता था और पेंटिंग भी कर सकता था। उसे पवित्र लोगों की सेवा करना और उनके प्रवचन सुनना बहुत पसंद था।

रामकृष्ण मेनन मूलतः कहाँ के रहने वाले थे?

श्री रामकृष्ण का जन्म 18 फरवरी 1836 को कोलकाता से लगभग साठ मील उत्तर पश्चिम में कामारपुकुर गाँव में हुआ था। उनके माता-पिता, क्षुदिराम चट्टोपाध्याय और चंद्रमणि देवी , गरीब थे, लेकिन बहुत पवित्र और सदाचारी थे। एक बच्चे के रूप में, रामकृष्ण (उनके बचपन का नाम गदाधर था) को गाँव के लोग बहुत प्यार करते थे।

रामकृष्ण परमहंस का जन्म और मृत्यु कब हुई थी?

रामकृष्ण परमहंस का जन्म 18 फरवरी 1836 को हुआ था और उनकी मृत्यु 16 अगस्त 1886 को हुई थी। 

रामकृष्ण परमहंस किसकी पूजा करते थे?

रामकृष्ण परमहंस काली मां की पूजा करते थे। 

श्री रामकृष्ण का अंतिम संस्कार कहां हुआ था?

श्रीरामकृष्ण परमहसं के पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए कोसीपोर बर्निंग घाट – जिसे रतनबाबुर घाट के नाम से जाना जाता है ले जाया गया था।

आशा है कि आपको रामकृष्ण परमहंस जयंती  (Ramakrishna Paramahamsa Jayanti in Hindi 2025) की जानकारी मिली होगी जो आपके सामान्य ज्ञान को बढ़ाने का काम करेगी। इसी प्रकार के अन्य ट्रेंडिंग इवेंट्स पर ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बनें रहें।

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