आधुनिक हिंदी साहित्य में फणीश्वरनाथ रेणु (Phanishwar Nath Renu) एक विख्यात साहित्यकार के रूप में जाने जाते हैं। उनकी रचनाओं में ग्रामीण जीवन का सुंदर चित्रण देखने को मिलता है, वहीं उनकी रचनाओं को पढ़कर ऐसा लगता है मानों ग्रामीण जीवन के साक्षात दर्शन हो रहे हो। फणीश्वर नाथ रेणु एक लेखक होने के साथ साथ स्वतंत्रता सेनानी भी थे। जिन्होंने अपनी लेखनी के माध्यम से स्वतंत्रता आंदोलन में मुख्य भूमिका निभाई थी। आधुनिक हिंदी साहित्य में अपना विशेष योगदान देने के लिए फणीश्वर नाथ रेणु जी को भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री’ पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका हैं। फणीश्वर नाथ रेणु के उपन्यास और कहानियों के बारे में स्टूडेंट्स को भी पढ़ाया जाता है। इसलिए आज के इस ब्लॉग में हम Phanishwar Nath Renu Ki Kahaniyan जानेंगे।
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Phanishwar Nath Renu Ki Kahaniyan
फणीश्वरनाथ रेणु की कहानिओं की लिस्ट यहाँ दी गई हैं :
संख्या | कहानियां |
1 | अक्ल और भैंस |
2 | तीसरी कसम उर्फ मारे गए गुलफाम |
3 | संवदिया |
4 | लालपान की बेग |
5 | एक आदिम रात्रि की महक |
6 | ठेस |
7 | पहलवान की ढोलक |
8 | पंचलाईट |
9 | नैना जोगिन |
10 | पुरानी कहानी |
11 | रसप्रिया |
12 | कुत्ते की आवाज़ |
13 | ईश्वर रे, मेरे बेचारे…! |
14 | जै गंगा ! |
15 | टौन्टी नैन का खेल |
16 | तीन बिंदियाँ |
17 | न मिटनेवाली भूख |
18 | अतिथि-सत्कार |
19 | अभिनय |
20 | इतिहास, मजहब और आदमी |
21 | उच्चाटन |
22 | एक अकहानी का सुपात्र |
23 | एक रंगबाज गाँव की भूमिका |
24 | कपड़घर |
25 | कलाकार |
26 | कस्बे की लड़की |
27 | काक चरित |
28 | खँडहर |
29 | जलवा |
30 | जड़ाऊ मुखड़ा |
31 | जैव |
32 | तव शुभ नामे |
33 | धर्मक्षेत्रे-कुरुक्षेत्रे |
34 | ना जाने केहि वेष में |
35 | नित्य लीला |
36 | नेपथ्य का अभिनेता |
37 | प्राणों में घुले हुए रंग |
38 | पार्टी का भूत |
39 | बट बाबा |
40 | बीमारों की दुनिया में |
41 | मन का रंग |
42 | रखवाला |
43 | रसूल मिसतिरी |
44 | रेखाएँ |
45 | लफड़ा |
46 | वंडरफुल स्टुडियो |
47 | विकट संकट |
48 | विघटन के क्षण |
49 | संकट |
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FAQs
फणीश्वर नाथ रेणु जी का जन्म 4 मार्च 1921 को गांव औराही हिंगना, जिला पूर्णिया, बिहार में हुआ था।
रेणु जी के पिता का नाम ‘शिलानाथ मंडल’ था।
फणीश्वर नाथ रेणु जी को उनके प्रथम आंचलिक उपान्यास ‘मैला आंचल’ के लिए वर्ष 1970 में भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति श्री वराह गिरि वेंकट गिरि द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
मैला आँचल के बाद ‘परती परिकथा’ रेणु जी का दूसरा आँचलिक उपन्यास था।
फणीश्वर नाथ रेणु जी की मृत्यु 11 अप्रैल 1977 को पटना में हुई थी।
फणीश्वरनाथ रेणु अपनी लेखनी में आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग करते थे। उनकी रचनाओं में मुहावरे और लोकोक्तियों का प्रयोग भी भरपूर प्रयोग देखने को मिलता है।
फणीश्वरनाथ रेणु प्रेमचन्दोत्तर युग के कवि थे।
फणीश्वरनाथ रेणु की प्रसिद्ध कृति वर्ष 1954 में प्रकाशित उनका मशहूर आंचलिक उपन्यास “मैला आँचल” है।
आशा है कि इस ब्लाॅग में आपको Phanishwar Nath Renu Ki Kahaniyan के बारे में पूरी जानकारी मिल गई होगी। इसी तरह के अन्य ट्रेंडिंग आर्टिकल्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।