Birsa Munda Jayanti 2024 : बिरसा मुंडा की 150वीं जयंती 15 नवंबर को, जानिए क्या है इसे मनाने की खास वजह

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Birsa Munda Jayanti in Hindi

Birsa Munda Jayanti in Hindi 2024 : हर साल 15 नवंबर को बिरसा मुंडा की जयंती मनाई जाती है। भारतीय इतिहास में बिरसा मुंडा एक महानायक के रूप में जाने जाते हैं। बिरसा मुंडा ने भारत के झारखंड में एक महान क्रांतिकारी के रूप में अपनी भूमिका निभाई थी। बिरसा मुंडा ने आदिवासी समाज की दशा और दिशा बदलने का महत्वपूर्ण रूप से कार्य किया था। काले कानून को चुनौती देकर बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस ब्लॉग में बिरसा मुंडा जयंती के बारे में जानकारी दी गई है। इस बारे में अधिक जानने के लिए इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ें। 

बिरसा मुंडा जयंती के बारे में

बिरसा मुंडा जयंती हर साल भारत में मुख्य रूप से झारखंड में 15 नवंबर को मनाई जाती है। बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के उलीहातू गाँव में हुआ था। वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण जनजातीय नेता थे। वे मुंडा समुदाय के एक प्रेरणास्त्रोत माने जाते हैं। बिरसा मुंडा ने अंग्रेजों के अन्याय और जनजातीय लोगों के शोषण के खिलाफ आवाज उठाई थी। उन्होंने जनजातीय समुदाय के अधिकारों के लिए संघर्ष किया। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ उलगुलान नाम से आंदोलन चलाया था। इस आंदोलन का उद्देश्य आदिवासियों की भूमि और संस्कृति की रक्षा करना था। बिरसा मुंडा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय लोगों की भूमिका को एक नई दिशा दी थी। वर्तमान समय में बिरसा मुंडा को आदिवासी समुदाय में भगवान के रूप में भी पूजा जाता है। उनके योगदान को सम्मान देने के लिए 15 नवंबर को उनके जन्मदिवस को राष्ट्रीय स्तर पर जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है।

बिरसा मुंडा जयंती का इतिहास – History of Birsa Munda Jayanti in Hindi

बिरसा मुंडा जयंती, बिरसा मुंडा की विरासत और भारत के आदिवासी स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भूमिका का सम्मान करने के लिए शुरू हुआ था। यह झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में बिरसा मुंडा को मुख्य रूप से याद किया जाता है। साल 2021 में, भारत सरकार ने 15 नवंबर, बिरसा मुंडा की जयंती को भारत की विरासत में आदिवासी समुदायों के योगदान और स्वतंत्रता संग्राम में बिरसा मुंडा जैसे नेताओं की भूमिका का सम्मान करने के लिए जनजातीय गौरव दिवस के रूप में घोषित किया था। तभी से 15 नवंबर के दिन हर साल बिरसा मुंडा जयंती मनाई जाती है। इसका उद्देश्य बिरसा मुंडा के प्रभाव पर राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करना और पूरे भारत में उनकी विरासत का व्यापक रूप से जश्न मनाना था।

बिरसा मुंडा जयंती कब मनाई जाती है? 

बिरसा मुंडा जयंती हर साल 15 नवंबर को मनाई जाती है। इस दिन को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में भी जाना जाता है। यह दिन महान आदिवासी नेता और स्वतंत्रता संग्राम के प्रेरणास्त्रोत बिरसा मुंडा के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है। 

बिरसा मुंडा जयंती का महत्व – Importance of Birsa Munda Jayanti in Hindi

बिरसा मुंडा जयंती कई कारणों से महत्वपूर्ण है। यह दिन केवल एक महान नेता का जन्मदिवस ही नहीं है, बल्कि आदिवासी समाज के संघर्ष, आत्मसम्मान, और उनके अधिकारों की रक्षा का प्रतीक भी माना जाता है। बिरसा मुंडा जयंती पूरे देश में आदिवासी समाज के लिए गर्व का दिन है। बिरसा मुंडा ने ब्रिटिश शासन के अन्याय और उनके भूमि पर कब्ज़े के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। उन्होंने आदिवासी समाज में एक नई चेतना पैदा की थी। बिरसा मुंडा द्वारा शुरू किए गए संघर्ष ने आदिवासी लोगों में आत्मसम्मान और एकता का भाव पैदा किया था। 

बिरसा मुंडा ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनके उलगुलान यानी महाविद्रोह ने अंग्रेजों के शोषणकारी नीतियों के खिलाफ आदिवासी समाज को एकजुट किया था। यह जयंती उन सभी लोगों को याद करने का अवसर है, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपने जीवन का बलिदान दिया था।

बिरसा मुंडा की जयंती सामाजिक न्याय, समानता और अधिकारों की रक्षा के महत्व को भी दर्शाती है। बिरसा मुंडा का जीवन यह संदेश देता है कि किसी भी समुदाय को उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। उनके जीवन से प्रेरणा लेते हुए, यह दिन समाज में समानता और न्याय को बनाए रखने की प्रेरणा देता है।

बिरसा मुंडा जयंती क्यों मनाई जाती हैं?

देशभर में सरकार और लोगों के द्वारा बिरसा मुंडा जयंती को मनाने का मुख्य उद्देश्य बिरसा मुंडा के योगदान, संघर्ष और बलिदान को सम्मान देना है। इस दिन उनके आदर्शों को समाज में प्रचारित किया जाता है। बिरसा मुंडा आदिवासी समाज के एक महान नेता थे। उन्होंने ब्रिटिश शासन के अन्याय और शोषण के खिलाफ आदिवासी समुदाय को संगठित किया था। बिरसा मुंडा ने अपने जीवन में आदिवासी समाज के अधिकारों और उनकी भूमि की रक्षा के लिए संघर्ष किया। उनकी जयंती मनाकर उनके आदिवासी समाज के अधिकारों और उनके संरक्षण के लिए किए गए संघर्षों को याद किया जाता है। बिरसा मुंडा जयंती उनके स्वतंत्रता संग्राम में दिए गए योगदान और बलिदान को सम्मानित करने का भी दिन होता है। उनकी जयंती को मनाकर आदिवासी समाज की सांस्कृतिक धरोहर और उनके विशेष अधिकारों की रक्षा का संदेश दिया जाता है। यह दिन उनकी सांस्कृतिक पहचान के महत्व को समझने और उसे सम्मान देने का अवसर माना है। बिरसा मुंडा जयंती पर उनके आदर्शों को युवाओं में प्रेरित करने का कार्य किया जाता है।

बिरसा मुंडा जयंती कैसे मनाते हैं?

बिरसा मुंडा जयंती पर विभिन्न आयोजन और गतिविधियाँ की जाती हैं। यह दिन विशेष रूप से झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, और अन्य आदिवासी बहुल क्षेत्रों में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। बिरसा मुंडा जयंती (Activities of Birsa Munda Jayanti in Hindi) निम्न प्रकार से मनाई जाती है –

  • बिरसा मुंडा जयंती के दिन उनकी प्रतिमाओं और स्मारकों पर श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। लोग उनकी प्रतिमाओं पर फूल-मालाएँ चढ़ाकर उनका सम्मान करते हैं। 
  • इस दिन आदिवासी नृत्य, गीत, और नाटक का आयोजन किया जाता है। इनमें आदिवासी समाज की परंपराओं, संस्कृति, और विरासत को प्रदर्शित किया जाता है। ये कार्यक्रम बिरसा मुंडा के जीवन और उनके संघर्षों को जन-जन तक पहुँचाने का माध्यम होते हैं।
  • झारखंड और अन्य आदिवासी क्षेत्रों में बिरसा मुंडा जयंती पर रैलियाँ और जुलूस निकाले जाते हैं। इन रैलियों में लोग बिरसा मुंडा के चित्रों और नारों के साथ शामिल होते हैं। 
  • बिरसा मुंडा जयंती पर कई स्कूलों और कॉलेजों में बिरसा मुंडा के जीवन पर आधारित निबंध प्रतियोगिताएँ, भाषण, और क्विज़ आयोजित किए जाते हैं। इससे विद्यार्थियों को उनके योगदान के बारे में बताया जाता है।
  •  2021 में भारत सरकार द्वारा बिरसा मुंडा की जयंती को जनजातीय गौरव दिवस घोषित किया था। इस दिन सरकारी और गैर-सरकारी स्तर पर कई कार्यक्रम आयोजित होते हैं। इन कार्यक्रमों में आदिवासी समाज की महत्ता, उनकी समस्याओं और उनके योगदान पर चर्चा की जाती है।
  • बिरसा मुंडा जयंती पर कई स्थानों पर आदिवासी समुदाय अपने रीति-रिवाजों के अनुसार पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान भी करते हैं। 
  • कई राज्यों की सरकारें इस दिन आदिवासी समाज के लोगों का सम्मान करती हैं। सरकार उनके कल्याण के लिए नई योजनाएँ भी शुरू करती है

बिरसा मुंडा जयंती से जुड़े तथ्य 

बिरसा मुंडा जयंती से जुड़े तथ्य (Facts about Birsa Munda Jayanti in Hindi) नीचे दिए गए हैं –

  • बिरसा मुंडा का जन्म 15 नवंबर 1875 को झारखंड के उलीहातू गाँव में हुआ था। उनका वास्तविक नाम वीर बिरसा मुंडा था। वे मुंडा जनजाति के एक सदस्य थे।
  • बिरसा मुंडा को आदिवासी समाज में धरती आबा (पृथ्वी के पिता) के रूप में पूजा जाता है। 
  • बिरसा मुंडा ने 1899-1900 में उलगुलान (महाविद्रोह) का नेतृत्व किया था। यह अंग्रेजों और उनके स्थानीय सहयोगियों के खिलाफ एक जनजातीय विद्रोह था। इस आंदोलन का उद्देश्य आदिवासी भूमि की रक्षा, शोषण की रोकथाम और धर्म परिवर्तन के खिलाफ था।
  • बिरसा मुंडा आदिवासी समुदाय के लिए एक प्रेरणास्त्रोत थे। उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संघर्ष किया और आदिवासी संस्कृति, धर्म और परंपराओं की रक्षा के लिए भी आवाज उठाई। थी। 
  • बिरसा मुंडा की मृत्यु 9 जून 1900 को हुई थी। जब उनकी उम्र केवल 25 वर्ष थी। उनकी मृत्यु के बाद भी उनकी विचारधारा और संघर्ष का प्रभाव आदिवासी समाज पर बना रहा।
  • साल 2021 में भारत सरकार ने 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में घोषित किया था।
  • बिरसा मुंडा ने आदिवासी समाज में आत्मसम्मान और समानता की भावना को जागृत किया था। उनके संघर्ष ने आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए एक राजनीतिक और सांस्कृतिक आंदोलन का रूप लिया।
  • बिरसा मुंडा की याद में झारखंड राज्य में कई स्मारक और प्रतिमाएँ स्थापित की गई हैं। रांची में बिरसा मुंडा समाहरणालय और बिरसा मुंडा एयरपोर्ट उनकी याद में बने प्रमुख स्थान हैं।

FAQs

बिरसा जयंती क्यों मनाई जाती है?

15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है, जिसे आदिवासी गौरव दिवस के रूप में भी जाना जाता है, यह दिवस आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। 1875 में जन्मे बिरसा मुंडा ने स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

बिरसा मुंडा की पुण्यतिथि कब मनाई जाती है?

भारतीय आदिवासी नेता एवं स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा का 9 जून, 1900 को 25 वर्ष की आयु में निधन हो गया। 9 जून, 2024 को उनकी 124वीं पुण्य तिथि मनाई गई।

आदिवासी का पहला भगवान कौन था?

आदिवासी समुदाय में उनके अहम योगदान के कारण बिरसा मुंडा आदिवासियों के भगवान हो गए और उन्हें ‘धरती आबा’ कहा जाने लगा।

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