Sangharsh Par Kavita: हर व्यक्ति जीवन के किसी न किसी मोड पर संघर्ष जरूर करता है क्योंकि यह हमें मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक रूप से मजबूत बनाता है। संघर्ष के बिना हम अपने सामर्थ्य को नहीं पहचान पाते, और न ही अपने भीतर की शक्ति को जागृत कर पाते हैं। संघर्ष हमें मुश्किलों का सामना करना सिखाता है, जो हमें हमारी असली क्षमता तक पहुँचने के लिए प्रेरित करता है। वहीं संघर्ष न केवल हमारे व्यक्तित्व का विकास करता है, बल्कि यह जीवन में स्थायित्व, संतुलन और सफलता की दिशा में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बताना चाहेंगे समय-समय पर ऐसे कई कवि और लेखक हुए हैं, जिन्होंने “संघर्ष” विषय पर अनुपम काव्य कृतियों का सृजन किया है। इस लेख में, हम संघर्ष पर कविता (Sangharsh Par Kavita) प्रस्तुत कर रहे हैं, जो आपको संघर्ष का महत्व बताएंगी।
संघर्ष पर कविता
संघर्ष पर कविता (Sangharsh Par Kavita) इस प्रकार है:-
कविता का नाम | कवि का नाम |
इस दुनिया को संवारना | भवानीप्रसाद मिश्र |
हम पंछी उन्मुक्त गगन के | शिवमंगल सुमन |
मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ | भगवतीचरण वर्मा |
मामूली जिंदगी जीते हुए | कुँवर नारायण |
बस इतना अब चलना होगा | भगवतीचरण वर्मा |
अरे अब ऐसी कविता लिखो | रघुवीर सहाय |
इस दुनिया को संवारना
इस दुनिया को सँवारना अपनी चिता रचने जैसा है
और बचना इस दुनिया से अपनी चिता से बचने जैसा है
संभव नहीं है बचना चिता से इसलिए इसे रचो
और जब मरो तो इस संतोष से
कि सँवार चुके हैं हम अपनी चिता!
रचनाकार- भवानीप्रसाद मिश्र
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजरबद्ध न गा पाएँगे
कनक-तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाएँगे।
हम बहता जल पीनेवाले
मर जाएँगे भूखे-प्यासे
कहीं भली है कटुक निबोरी
कनक-कटोरी की मैदा से।
स्वर्ण-श्रृंखला के बंधन में
अपनी गति, उड़ान सब भूले
बस सपनों में देख रहे हैं
तरू की फुनगी पर के झूले।
ऐसे थे अरमान कि उड़ते
नील गगन की सीमा पाने
लाल किरण-सी चोंच खोल
चुगते तारक-अनार के दाने।
होती सीमाहीन क्षितिज से
इन पंखों की होड़ा-होड़ी
या तो क्षितिज मिलन बन जाता
या तनती साँसों की डोरी।
नीड़ न दो, चाहे टहनी का
आश्रय छिन्न-भिन्न कर डालो
लेकिन पंख दिए हैं तो
आकुल उड़ान में विघ्न न डालो।
रचनाकार- शिवमंगल सुमन
यह भी पढ़ें – अनुशासन पर लिखी गई लोकप्रिय कविताएं
मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ
मैं कब से ढूँढ़ रहा हूँ
अपने प्रकाश की रेखा
तम के तट पर अंकित है
निःसीम नियति का लेखा
देने वाले को अब तक
मैं देख नहीं पाया हूँ,
पर पल भर सुख भी देखा
फिर पल भर दुख भी देखा ।
किस का आलोक गगन से
रवि शशि उडुगन बिखराते?
किस अंधकार को लेकर
काले बादल घिर आते?
उस चित्रकार को अब तक
मैं देख नहीं पाया हूँ,
पर देखा है चित्रों को
बन-बनकर मिट-मिट जाते।
फिर उठना, फिर गिर पड़ना
आशा है, वहीं निराशा
क्या आदि-अन्त संसृति का
अभिलाषा ही अभिलाषा?
अज्ञात देश से आना,
अज्ञात देश को जाना,
अज्ञात अरे क्या इतनी
है हम सब की परिभाषा?
पल-भर परिचित वन-उपवन,
परिचित है जग का प्रति कन,
फिर पल में वहीं अपरिचित
हम-तुम, सुख-सुषमा, जीवन ।
है क्या रहस्य बनने में?
है कौन सत्य मिटने में?
मेरे प्रकाश दिखला दो
मेरा भूला अपनापन।
रचनाकार- भगवतीचरण वर्मा
यह भी पढ़ें – रिमझिम फुहारों का जादू बिखेरती बारिश पर लिखी लोकप्रिय कविताएं
मामूली जिंदगी जीते हुए
जानता हूँ कि मैं
दुनिया को न लड़ कर बदल नहीं सकता,
उससे जीत ही सकता हूँ
हाँ लड़ते-लड़ते शहीद हो सकता हूँ
और उससे आगे
एक शहीद का मकबरा
या एक अदाकार की तरह मशहूर…
लेकिन शहीद होना
एक बिलकुल फर्क तरह का मामला है
बिलकुल मामूली जिंदगी जीते हुए भी
लोग चुपचाप शहीद होते देखे गए हैं
रचनाकार- कुँवर नारायण
यह भी पढ़ें – पेड़ पर कविताएँ
बस इतना अब चलना होगा
बस इतना अब चलना होगा
फिर अपनी-अपनी राह हमें।
कल ले आई थी खींच, आज
ले चली खींचकर चाह हमें
तुम जान न पाई मुझे, और तुम मेरे लिए पहेली थीं;
पर इसका दुख क्या? मिल न सकी
प्रिय जब अपनी ही थाह हमें ।
तुम मुझे भिखारी समझें थीं
मैंने समझा अधिकार मुझे
तुम आत्म-समर्पण से सिहरीं, था
बना वही तो प्यार मुझे।
तुम लोक-लाज की चेरी थीं,
मैं अपना ही दीवाना था
ले चलीं पराजय तुम हँसकर,
दे चलीं विजय का भार मुझे ।
सुख से वंचित कर गया सुमुखि,
वह अपना ही अभिमान तुम्हें
अभिशाप बन गया अपना ही
अपनी ममता का ज्ञान तुम्हें
तुम बुरा न मानो, सच कह दूँ,
तुम समझ न पाई जीवन को
जन-रव के स्वर में भूल गया
अपने प्राणों का गान तुम्हें ।
था प्रेम किया हमने-तुमने
इतना कर लेना याद प्रिये,
बस फिर कर देना वहीं क्षमा
यह पल-भर का उन्माद प्रिये।
फिर मिलना होगा या कि नहीं
हँसकर तो दे लो आज विदा
तुम जहाँ रहो, आबाद रहो,
यह मेरा आशीर्वाद प्रिये।
रचनाकार- भगवतीचरण वर्मा
यह भी पढ़ें – शिक्षा पर कविता
अरे अब ऐसी कविता लिखो
अरे अब ऐसी कविता लिखो
कि जिसमें छंद घूम कर आय
घुमड़ता जाय देह में दर्द
कहीं पर एक बार ठहराय
कि जिसमें एक प्रतिज्ञा करूँ
वही दो बार शब्द बन जाय
बताऊँ बार-बार वह अर्थ
न भाषा अपने को दोहराय
अरे अब ऐसी कविता लिखो
कि कोई मूड़ नहीं मटकाय
न कोई पुलक-पुलक रह जाय
न कोई बेमतलब अकुलाय
छंद से जोड़ो अपना आप
कि कवि की व्यथा हृदय सह जाय
थाम कर हँसना-रोना आज
उदासी होनी की कह जाय
रचनाकार- रघुवीर सहाय
संबंधित आर्टिकल
आशा है कि आपको संघर्ष पर कविता (Sangharsh Par Kavita) पसंद आई होंगी। ऐसी ही अन्य लोकप्रिय हिंदी कविताओं को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।