मध्यकालीन भारत के इतिहास का दौर 5वीं शताब्दी से लेकर 15वीं शताब्दी तक माना जाता है। इस काल में पाल, प्रतिहार और राष्ट्रकूट से लेकर दिल्ली सल्तनत और मुगल साम्राज्य जैसे साम्राज्यों का शासन रहा है। इन्हीं में से एक सालुव वंश भी था जो विजयनगर साम्राज्य पर शासन करने वाला द्वितीय राजवंश था। तो आइए इस ब्लॉग के माध्यम से हम सालुव वंश के बारे में विस्तार से जानते हैं।
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सालुव वंश का उदय कैसे हुआ?
संगम वंश के पतन के बाद सालुव वंश, विजयनगर साम्राज्य पर शासन करने वाला दूसरा वंश बना और अगर बात विजयनगर साम्राज्य की हो तो यह दक्षिण भारत का शक्तिशाली साम्राज्य था जिसकी स्थापना 1336 ईसवी में हुई थी। इस साम्राज्य की स्थापना दो भाइयों, हरिहरा और बुक्का राय ने की थी। दक्षिण भारत के इतिहास में यहीं से संगम शासन की शुरुआत हुई जिसके बाद यहाँ 3 और राजवंशों ने शासन किया। पहला था संगम राजवंश, उसके बाद सालुव शासक, फिर तुलुव और आखिरी शासन यहाँ अराविदु वंश ने किया। विजयनगर साम्राज्य के शासक और शासनकाल नीचे दिए गए हैं:-
राजवंश | शासक/संस्थापक | शासनकाल |
संगम वंश | बुक्का व हरिहर | 1336-1485 ई |
सालुव वंश | नरसिंह सालुव | 1485- 1505 ई |
तुलुव वंश | वीर नरसिंह | 1505- 1570 ई |
अरावीडु वंश | तिरूमल्ल (तिरुमला) | 1570-1650 ई |
सालुव वंश का संक्षिप्त इतिहास
आइए अब हम इस ब्लॉग के मदद से आपको बताते है कि सालुव वंश का इतिहास क्या था। 1485 ई. में संगम वंश के शासक विरुपाक्ष द्वितीय की हत्या उसी के पुत्र द्वारा की गई थी, उस दौरान विजयनगर साम्राज्य में चारों ओर अशांति व अराजकता का वातावरण बन चुका था, ठीक उसी समय नरसिंह सालुव नाम के शासक ने साम्राज्य को संभावित विनाश से बचाया और अपने वंश यानी ‘सालुव वंश’ की स्थापना की और इस तरह सालुव वंश का उदय हुआ।
सालुव वंश: सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास
विजयनगर साम्राज्य पर शासन करने वाले दूसरे वंश ने समाज को आर्थिक, सांस्कृतिक और साहित्यिक दृष्टि से काफी प्रभावित किया था। इस वंश के शासनकाल के दौरान राजधानी हम्पी दक्षिण पूर्व एशिया में एक महत्वपूर्ण स्थान बन गया था। इस समय चीन और यूरोपीय देशों के साथ व्यापार में भी वृद्धि हुई। इसके अलावा स्थानीय व्यापारियों को व्यापार में भी लाभ हुआ।
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सालुव वंश के प्रमुख शासक
सालुव वंश के प्रमुख शासक निम्नलिखित है:-
सालुव नरसिंह (1485-91 ई.)
सालुव नरसिंह ही ‘सालुव वंश’ का संस्थापक था। जिसका शासनकल 1485 ई से लेकर 1491 ई. तक चला। अपने शासनकल के दौरान सालुव नरसिंह ने राज्य में आंतरिक विद्रोह को समाप्त करने का प्रयास किया और घोड़ों के व्यापार को पुनः प्रारम्भ किया। इसी के साथ सालुव नरसिंह ने अपने साम्राज्य का विस्तार करने की भी कोशिश की, लेकिन उस दौरान उसे सरदारों के विरोध का सामना करना पड़ा। 1491 ई. में सालुव नरसिंह की मृत्यु हो गई। जिसके बाद उसके पुत्र ‘इम्माड़ि नरसिंह’ को राजा बनाया गया।
इम्माड़ि नरसिंह (1491-1505 ई.)
इम्माडि नरसिंह, सालुव नरसिंह का पुत्र था। पिता की मृत्यु के बाद वह साम्राज्य का उत्तराधिकारी तो बना गया लेकिन अल्पायु होने के कारण सेनापति नरसा नायक ने उसका संरक्षक बनकर सारी शक्ति अपने हाथों में एकत्र कर ली और बाद में इम्माडि नरसिंह को बन्दी बना कर साम्राज्य पर स्वयं अधिकार कर लिया। उचित मौका देखकर नरसा नायक ने संपूर्ण उत्तर भारत पर अधिकार कर लिया और करीब 12-13 वर्षो तक शासन किया।
लेकिन 1503 ई. नरसा नायक का देहांत हो गया और 1505 ई. में उसी के पुत्र वीर नरसिंह ने इम्माडि नरसिंह की भी हत्या कर दी जिससे इस वंश का अंत हो गया। और इसके बाद एक नए वंश यानी तुलुव वंश की स्थापना हुई।
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सालुव वंश का पतन
लगभग 20 वर्षो तक शासन करने के बाद 1505 ई. इम्माडि नरसिंह की हत्या के साथ ही इस वंश का अंत हो गया। नरसा नायक के देहांत के बाद वीर नरसिंह ने सालुव नरसिंह के अयोग्य पुत्र इम्माडि नरसिंह की हत्या कर राजसिंहासन पर अधिकार कर लिया और इस तरह इस वंश का अंत और तुलुव वंश की स्थापना हुई जो विजयनगर साम्राज्य पर शासन करने वाला तीसरा वंश बना।
FAQs
इस वंश का शासनकाल 1485ई से लेकर 1505 ई तक था।
ब्रिटिश साम्राज्य (British Empire) को दुनिया का सबसे बड़ा साम्राज्य माना जाता था।
सालुव वंश का संस्थापक नरसिंह सालुव था।
विजयनगर साम्राज्य की स्थापना 1336 ई. में दो भाईयों हरिहर और बुक्का द्वारा की गई थी।
विजयनगर का वर्तमान नाम हम्पी (हस्तिनावती) है।
यदुवंशी अराविदु राजवंश हिन्दू धर्म का अंतिम राजवंश था जिन्होंने दक्षिण भारत के विजयनगर पर राज किया था।
रामराय विजयनगर साम्राज्य का अंतिम शासक था।
आशा है कि आपको सालुव वंश के बारे में बहुत सी आवश्यक जानकारी प्राप्त हुई होगी। ऐसे ही इतिहास से संबंधित अन्य ब्लॉग्स को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।