भारत की खूबसूरती, संस्कृति और आध्यात्मिकता की चर्चा पूरे दुनियाभर में फैली हुई हैं। यहाँ एक से बढ़कर एक विशाल व प्राचीन मंदिर हैं, जिनकी सुंदरता अद्भुत है। हजारों साल पुराने इन मंदिरों की खूबसूरती को देखने के लिए दूर-दूर से सैलानी आते हैं। अक्सर आपने देखा होगा कि इन मंदिरों के बारे में कई बार परीक्षाओं में पूछा जाता है, इसलिए इस ब्लाॅग में हम आपको बिहार के प्रसिद्ध मंदिर महाबोधि मंदिर के बारे में बताएंगे। बिहार के सबसे प्रसिद्ध और पवित्र मंदिरों में से एक महाबोधि मंदिर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी के लिए इस लेख को अंत तक पढ़ें।
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महाबोधि मंदिर का परिचय
भारत के बिहार राज्य के बोधगया में स्थित महाबोधि मंदिर एक प्रसिद्ध बौद्ध विहार है। पौराणिक मान्यता है कि इस मंदिर का निर्माण सम्राट अशोक ने कराया था। हालाँकि इस मंदिर का निर्माण कब हुआ इसकी कोई स्पष्ट जानकारी तो नहीं है लेकिन कुछ इतिहासकारों के मुताबिक यह मंदिर 232 ईसा पूर्व से भी अधिक प्राचीन है। यह मंदिर बौद्ध धर्म के लोगों के लिए बेहद ही पवित्र स्थल है क्योंकि यहाँ गौतम बुद्ध ने ईसा पूर्व 6 वी शताब्दी में ज्ञान प्राप्त किया था। और इसी घटना के बाद बौद्ध धर्म की स्थापना की गई, जो अब विश्व का चौथा सबसे बड़ा धर्म है। 4.8 हेक्टेयर के क्षेत्र में फैला हुआ और 55 मीटर लंबा यह मंदिर अब एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है जहाँ दुनिया भर से लाखों लोग तीर्थ यात्रा के लिए आते हैं।
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आपको बता दें कि महाबोधि मंदिर परिसर में अन्य महत्वपूर्ण स्थल भी शामिल हैं जो कि निम्नलिखित है :
- बोधि वृक्ष: यह वही ऐतिहासिक वृक्ष या स्थान है जिसके नीचे गौतम बुद्ध ने दुनियाभर के कष्टों को खत्म करने का आत्मज्ञान प्राप्त किया था।
- महाबोधि मंदिर परिसर में कई स्तूप हैं, जिनमें महाबोधि स्तूप, अनिमेश लोचन चैत्य, पंचवर्गीय चैत्य शामिल हैं।
- इसके अलावा यहाँ बर्मी मठ, थेरवाद मठ, तिब्बती मठ और जापानी मठ भी शामिल है।
महाबोधि मंदिर का संक्षिप्त इतिहास
पूरी तरह से ईंटों से बना महाबोधि मंदिर का इतिहास बेहद रोचक है। मान्यता है कि, सबसे प्राचीन बौद्ध मंदिरों में एक महाबोधि मंदिर का निर्माण तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में मौर्य सम्राट अशोक ने कराया था। आपको बता दें कि अशोक एक महान बौद्ध शासक थे जिन्होंने बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए अनेक कार्य किए। उन्होंने कई बौद्ध मंदिरों का निर्माण कराया, जिनमें महाबोधि मंदिर भी शामिल है। वहीं इतिहास में यह भी उल्लेखित है कि महाबोधि मंदिर कई बार नष्ट और पुनर्निर्मित किया गया है। पहली बार इसे 6वीं शताब्दी में विदेशी आक्रमणकारियों ने नष्ट किया था। और फिर 9वीं शताब्दी में नेपाल के शाह राजवंश ने इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया।
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महाबोधि मंदिर की वास्तुकला
पूरी तरह से ईटों से निर्मित महाबोधि मंदिर, पूर्वी भारत में सबसे पुरानी ईंट संरचनाओं में से एक है। ऐसे में इस मंदिर को भारतीय ईंटवर्क का एक बेहतरीन उदाहरण भी माना जाता है। इसके अलावा यह मंदिर बलुआ पत्थर से बनी है और दो अलग-अलग प्रकार की रेलिंगों से घिटी हुई है। कुछ रेलिंगो में माता लक्ष्मी, हिंदू/बौद्ध धन की देवी आदि जैसे दृश्य हैं। जबकि कुछ में अवशेषी मंदिर और गरुड़ (चील) हैं। इन सब के अलावा मंदिर के गर्भगृह में बुद्ध की एक सोने की मूर्ति भी मौजूद है जिसे काले पत्थर से बनाया गया है।
वैश्विक धरोहर में शामिल महाबोधि मंदिर
आपको बता दें कि महाबोधि मंदिर को 2002 में विश्व धरोहर स्थल का दर्जा मिला था। विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल होने वाला यह भारत का 23 वां आकर्षक स्थल था। आपको बता दें कि अभी तक भारत में कुल 41 विश्व धरोहर स्थल है जिसमें से 33 सांस्कृतिक, 7 प्राकृतिक स्थल और 1 मिश्रित विश्व विरासत स्थल हैं। यह भी बता दें कि वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स इन इंडिया में सबसे पहले 1983 में अजंता- एलोरा की गुफाएं, ताजमहल और आगरा के किले को शामिल किया गया था। उसके बाद धीरे धीरे कई स्थल जुड़ते चले गए। वहीं हाल ही में शांतिनिकेतन और होयसल के पवित्र मंदिर समूह को वैश्विक धरोहर की सूची में शामिल किया गया है।
बिहार के अन्य प्रसिद्ध मंदिर
बिहार एक ऐसा राज्य है, जो अपने इतिहास और आध्यात्मिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर कई प्रसिद्ध प्राचीन मंदिर हैं, जहां पर दर्शन करने के लिए देशभर से लोग आते हैं। आईये जानते है उन प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में।
जानकी मंदिर, सीतामढ़ी
जानकी मंदिर, सीतामढ़ी शहर से लगभग 5 किलोमीटर दूर है। इस मंदिर के बारे में यह मान्यता है कि यह जानकी माता यानी कि माँ सीता का जन्म स्थल है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह भी कहा जाता है कि एक बार मिथिला में भीषण अकाल पड़ा और उस दौरान राजा जनक को खेत में हल चलाने के लिए कहा गया। ऐसे में राजा जब हल चलाने लगा उसी दौरान जमीन के अंदर से मिट्टी का एक कलश निकला। जब राजा ने उसे बाहर निकला तो देखा कि उसमें एक बच्ची थी। वह बच्ची और कोई नहीं बल्कि माता सीता थीं।
विष्णुपद मंदिर, गया
करीब 100 फीट ऊँचा विष्णुपद मंदिर अपनी भव्यता और वैभवता के लिए प्रसिद्ध है। गया जिले में स्थित इस मंदिर में 40 सेमी लंबे विष्णु का पदचिह्न भी मौजूद है। भव्यता से पूर्ण इस मंदिर में पितृपक्ष के अवसर पर श्रद्धालुओं यहाँ पितरों के तर्पण के लिए पहुंचते हैं। और मान्यता है कि तर्पण के बाद यहाँ भगवान विष्णु के पदचिह्नो के दर्शन करने से सारे दुख खत्म हो जाते हैं।
महावीर मंदिर, पटना
देश के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक पटना के महावीर मंदिर को लेकर यह मान्यता है कि यहाँ पर प्रसाद खाने से हर तरह की बीमारी दूर हो जाती है। इस मंदिर में दर्शन करने के लिए दूर दूर से लोग आते हैं। खासकर मंगलवार और शनिवार को यहाँ खासी भीड़ उमड़ती है।
पटन देवी मंदिर, पटना
बिहार की राजधानी पटना में स्थित पटन देवी मंदिर का इतिहास काफी रोचक है। इस मंदिर को लेकर स्थानीय लोगों की यह मान्यता है कि यह शहर की रक्षा करती है जिसके कारण इसे रक्षिका भगवती पटनेश्वरी के नाम से भी जाना जाता है। बता दें कि 52 शक्तिपीठों में से एक पटनदेवी मंदिर भी है। यहाँ माता सती का जांघ गिरा था।
मिथिला शक्ति पीठ, दरभंगा
मिथिला शक्ति पीठ बिहार के दरभंगा जिले में स्थित है। आपको बता दें कि दरभंगा जिला भारत और नेपाल के बॉर्डर के करीब है। वहीं मिथिला शक्ति पीठ 52 शक्तिपीठों में से एक है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहाँ देवी सती का बाया कंधा गिरा था।
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FAQs
महाबोधि मंदिर बिहार राज्य के बोधगया में स्थित है। यह शहर गंगा नदी के तट पर स्थित है।
महाबोधि मंदिर का निर्माण तीसरी शताब्दी में मौर्य सम्राट अशोक ने किया गया था। 52 मीटर की ऊंचाई वाले इस मंदिर के भीतर भगवान बुद्ध भूमिस्पर्श मुद्रा में हैं।
दुनिया के सबसे पवित्र बौद्ध मंदिरों में से एक महाबोधि मंदिर 2,500 साल से भी अधिक पुराना है।
बिहार के बोधगया में स्थित महाबोधि मंदिर को 2002 में यूनेस्को की विश्व धरोहर स्थलों की सूची में शामिल किया गया था।
महाबोधि मंदिर के निकट मूचालिंडा सरोवर है।
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आशा है कि आपको महाबोधि मंदिर से जुड़ी सभी जानकारी इस लेख में मिल गयी होगी। वैश्विक धरोहर से जुड़े ऐसे ही अन्य ब्लॉग पढने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहिए।