गोपालदास नीरज आधुनिक युगीन कवियों में एक अग्रणी स्थान रखते हैं। ‘नीरज’ बीसवीं सदी के लोकप्रिय गीतकारों में शामिल थे, जिनकी कविताओं में भक्ति, प्रेम और समष्टि चेतना-इन तीन काव्यधाराओं का त्रिवेणी संगम देखने को मिलता है। उन्होंने आधुनिक हिंदी काव्यधारा में कई अनुपम रचनाओं के साथ-साथ हिंदी फिल्मों के लिए भी अनेक लोकप्रिय गीत लिखे। वे उस दौर के चुनिंदा गीतकारों में से एक थे, जो हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में सहजता से लेखन कर सकते थे।
गोपालदास नीरज को आधुनिक हिंदी काव्य में विशेष योगदान देने के लिए भारत सरकार द्वारा वर्ष 1991 में ‘पद्मश्री’ और वर्ष 2007 में ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया गया था। उनकी कई रचनाओं को विद्यालयों के साथ ही बी.ए. और एम.ए. के पाठ्यक्रम में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है। अनेक शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की है। इसके अतिरिक्त, UGC-NET परीक्षा में हिंदी विषय के अभ्यर्थियों के लिए भी गोपालदास नीरज का जीवन परिचय और उनकी काव्य रचनाओं का अध्ययन उपयोगी सिद्ध होता है।
| मूल नाम | गोपालदास सक्सेना ‘नीरज’ |
| उपनाम | ‘नीरज’ |
| जन्म | 4 जनवरी,1925 |
| जन्म स्थान | पुरावली गांव, इटावा जिला, उत्तर प्रदेश |
| पिता का नाम | श्री ब्रजकिशोर |
| माता का नाम | श्रीमती सुखदेवी |
| पत्नी का नाम | श्रीमती सावित्री देवी |
| शिक्षा | एम.ए (हिंदी साहित्य) |
| पेशा | लेखक, गीतकार, प्रोफेसर |
| विधाएँ | काव्य |
| काव्य संग्रह | ‘बादर बसर गयौ’, ‘प्राण गीत’, ‘नदी किनारे’, ‘लहर पुकारे’ आदि। |
| विशेष | गोपालदास नीरज ने हिंदी फिल्मों में कई लोकप्रिय गीत लिखे थे जिनमें ‘कारवां गुज़र गया गुबार देखते रहे’, ‘ऐ भाई ज़रा देख के चलो’, ‘लिखे जो खत तुझे’, ‘दिल आज शायर है, ग़म आज नगमा है’ आदि शामिल हैं। |
| साहित्य काल | आधुनिक काल |
| पुरस्कार | ‘पद्मश्री’ (1991), ‘पद्म भूषण (2007)’ |
| निधन | 19 जुलाई, 2018 नई दिल्ली |
| जीवनकाल | 93 वर्ष |
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उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में हुआ था जन्म
हिंदी के विख्यात कवि और गीतकार गोपालदास नीरज का जन्म 4 जनवरी, 1925 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के ‘पुरावली’ गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री ब्रजकिशोर था, जो पेशे से जमींदार थे, किंतु बाद में उन्होंने जमींदारी छोड़कर नौकरी करना प्रारंभ कर दिया। उनकी माता श्रीमती सुखदेवी एक गृहिणी थीं। जब गोपालदास नीरज मात्र छह वर्ष के थे, तभी उनके पिता का आकस्मिक निधन हो गया, जिससे उनका प्रारंभिक बचपन संघर्षमय हो गया।
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पढ़ाई के साथ करनी पड़ी नौकरी
साधारण कायस्थ परिवार में जन्म लेने के कारण उनके परिवार के पास कोई पैतृक संपदा नहीं थी। इस कारण गोपालदास नीरज और उनके परिवार को आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा। उन पर अपने तीन छोटे भाइयों की जिम्मेदारी भी आ गई थी। इसलिए उन्हें अपने परिवार से दूर, फूफा के घर रहकर प्राथमिक शिक्षा आरंभ करनी पड़ी। वे लगभग 11 वर्षों तक अपनी माता और परिवार से दूर रहे, जो बिल्कुल भी आसान नहीं था।
अपनी शिक्षा का खर्च और परिवार की जीविका चलाने के लिए उन्होंने टाइपिंग का कार्य भी किया। वह अपने वेतन से घर पैसे भेजते थे, जिससे परिवार का जीवन यापन बड़ी कठिनाइयों से होता था। जीवन की इन चुनौतियों का सामना करते हुए उन्होंने वर्ष 1942 में प्रथम श्रेणी के साथ हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद उन्होंने वर्ष 1949 में इंटरमीडिएट और 1951 में प्रथम श्रेणी में बी.ए. की डिग्री प्राप्त की
जब गोपालदास नीरज अपनी बी.ए. की पढ़ाई कर रहे थे, उसी दौरान उनका विवाह सावित्री देवी से हुआ, जिससे वर्ष 1951 में उन्हें एक पुत्र प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्होंने नौकरी के साथ-साथ वर्ष 1953 में हिंदी साहित्य में एम.ए. की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की।
विस्तृत रहा कार्य क्षेत्र
गोपालदास नीरज ने आर्थिक तंगी के कारण अपनी आरंभिक शिक्षा के दौरान ही नौकरी करना शुरू कर दिया था। उन्होंने पढ़ाई के साथ-साथ कुछ वर्षों तक भारत सरकार के आपूर्ति विभाग में टाइपिस्ट के रूप में कार्य किया। इसके बाद उन्हें दिल्ली में ‘लिटरेरी असिस्टेंट’ के पद पर नियुक्ति मिली, जहाँ उन्होंने कुछ समय तक कार्य किया। बाद में उन्होंने इस पद से इस्तीफ़ा दे दिया और कानपुर चले गए। वहाँ उन्हें ‘डी.ए.वी. कॉलेज’ में क्लर्क के रूप में भी कार्य करना पड़ा।
इसके बाद उन्हें एक मित्र की सहायता से ‘वॉल्कर्ट ब्रदर्स कंपनी’ के कानपुर दफ़्तर में स्टेनो-टाइपिस्ट की नौकरी मिली, जहाँ उन्होंने लगभग पाँच वर्षों तक कार्य किया। बता दें कि इसके साथ ही ‘नीरज’ ने कानपुर में जिला सूचना अधिकारी, अलीगढ़ के ‘धर्म समाज कॉलेज’ में हिंदी साहित्य के प्रोफेसर तथा वर्ष 2012 में अलीगढ़ स्थित ‘मंगलायतन यूनिवर्सिटी’ के चांसलर के रूप में भी कार्य किया।
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गोपालदास नीरज की काव्य यात्रा की शुरुआत
अपनी एम.ए. की शिक्षा पूरी करने के बाद उन्हें कुछ समय तक खाली भी बैठना पड़ा क्योंकि उन्हें कोई स्थायी नौकरी नहीं मिल पाई। लेकिन यह समय उनके लिए एक वरदान साबित हुआ और यहीं से उनकी काव्य-यात्रा की शुरुआत हुई। अपनी काव्य रचनाओं के माध्यम से वे शीघ्र ही प्रख्यात कवियों की सूची में शामिल हो गए।
कुछ समय बाद उन्होंने कवि सम्मेलनों के माध्यम से भारत के अनेक क्षेत्रों का भ्रमण किया, जिससे उनकी लोकप्रियता और अधिक बढ़ने लगी। उनके काव्य की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे सरल और सहज शब्दों में अपनी बात अभिव्यक्त करते थे, जिससे पाठक को उस काव्य का पूर्ण रस और सौंदर्य अनुभव होता था।
गोपालदास नीरज के फिल्मी गीतों की सूची और योगदान
गोपालदास नीरज ने आधुनिक हिंदी काव्य में कई अनुपम रचनाएँ रचने के साथ-साथ हिंदी सिनेमा के लिए भी कई मशहूर गीत लिखे हैं। उन्होंने जिन फिल्मों के लिए गीत लिखे, उनकी सूची काफ़ी लंबी है। ‘नीरज’ ने ‘मेरा नाम जोकर’, ‘तेरे मेरे सपने’, ‘प्रेम पुजारी’, ‘नई उम्र की नई फसल’, ‘शर्मीली’ और वर्ष 1971 में आई फिल्म ‘गैंबलर’ जैसी कई फिल्मों के लिए लोकप्रिय गीतों की रचना की है।
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गोपालदास नीरज की साहित्यिक रचनाएँ
गोपालदास नीरज बीसवीं सदी में हिंदी काव्य धारा के प्रतिनिधि रचनाकारों में से एक माने जाते हैं, जिन्होंने आधुनिक हिंदी काव्य में विशेष योगदान दिया और हिंदी जगत को कई अनुपम रचनाएँ दीं। उनकी कई कविताओं का अनुवाद पंजाबी, गुजराती, मराठी, बंगाली और रूसी आदि भाषाओं में भी हो चुका है। यहाँ उनके संपूर्ण काव्य संग्रह के बारे में विस्तार से बताया जा रहा है, जो कि इस प्रकार हैः-
| काव्य-संग्रह | प्रकाशन वर्ष |
| संघर्ष | सन 1944 |
| अंतर्ध्वनि | सन 1946 |
| विभावरी | सन 1951 |
| प्राण गीत | सन 1954 |
| लिख-लिख बेजत पाती | सन 1956 |
| दर्द दिया है | सन 1956 |
| बादर बसर गयौ | सन 1958 |
| नीरज की पाती | सन 1958 |
| नदी किनारे | सन 1958 |
| दो गीत | सन 1958 |
| आसावरी | सन 1958 |
| लहर पुकारे | सन 1959 |
| मुक्तकी | सन 1960 |
| गीत भी अगीत भी | सन 1963 |
| हिंदी रुबाइयाँ | सन 1963 |
| नीरज के लोकप्रिय गीत | सन 1967 |
| फिर दीप जलेगा | सन 1970 |
| तुम्हारे लिए | सन 1971 |
| नीरज की गीतिकाएँ | सन 1992 |
| वंशीवट सूना है |
पुरस्कार एवं सम्मान
गोपालदास नीरज को आधुनिक हिंदी काव्य धारा में विशेष योगदान देने के लिए विभिन्न सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा कई प्रतिष्ठित पुरस्कार एवं सम्मान प्रदान किए गए हैं, जिनकी सूची इस प्रकार है:-
- पद्मश्री – वर्ष 1991
- पद्म भूषण – 2007
- फ़िल्म फेयर पुरस्कार
- विश्व उर्दू परिषद् पुरस्कार
- यश भारती सम्मान – उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ
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नई दिल्ली में हुआ था निधन
गोपालदास नीरज ने हिंदी साहित्य को कई अनूठी काव्य रचनाएँ दीं, जो आज भी आधुनिक हिंदी काव्य जगत में ‘मील का पत्थर’ मानी जाती हैं। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन काव्य-सृजन को समर्पित कर दिया। फेफड़ों में संक्रमण के कारण 93 वर्ष की आयु में, 19 जुलाई 2018 को, दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में उनका निधन हो गया। किंतु उनकी काव्य रचनाओं के लिए उन्हें हिंदी साहित्य जगत में सदैव स्मरण किया जाता रहेगा।
FAQs
उनका जन्म 4 जनवरी, 1925 को उत्तर प्रदेश राज्य के इटावा जिले के ‘पुरावली गांव’ में हुआ था।
उनका मूल नाम ‘गोपालदास सक्सेना नीरज’ था।
उनकी माता का नाम श्रीमती सुखदेवी और पिता का नाम श्री ब्रजकिशोर था।
गोपालदास नीरज को वर्ष 1991 में भारत सरकार द्वारा ‘पद्मश्री पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।
उनका निधन 93 वर्ष की आयु में 19 जुलाई, 2018 को हुआ था।
आशा है कि आपको इस लेख में हिंदी के महान कवि गोपालदास नीरज का जीवन परिचय और उनकी साहित्यिक उपलब्धियों पर आधारित जानकारी पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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