धारा 420 क्या है? जानें सजा के प्रावधान और महत्वपूर्ण तथ्य

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कानून, समाज की सुरक्षा और न्याय का मजबूत स्तंभ है। यह हर नागरिक को अधिकार देने के साथ-साथ कर्तव्य भी सौंपता है, ताकि समाज में समानता और शांति बनी रहे। लेकिन जब कोई व्यक्ति छल-कपट से किसी को धोखा देता है, तो न्याय व्यवस्था उसे दंडित करने के लिए सख्त प्रावधान बनाती है। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 420 इसी प्रकार के अपराधों, धोखाधड़ी और बेईमानी पर लागू होती है। इस धारा के तहत यदि कोई व्यक्ति किसी को फर्जी वादे, धोखे या छल-कपट से किसी संपत्ति या धन का नुकसान पहुँचाता है, तो उसे कानून के अनुसार दंडित किया जा सकता है। इस लेख में आप विस्तार से जानेंगे कि धारा 420 क्या है, इसके अंतर्गत किस प्रकार के अपराध आते हैं और इसमें सजा के क्या प्रावधान हैं।

IPC की धारा 420 क्या है?

भारतीय दंड संहिता की धारा 420 के अनुसार, जब कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति को धोखा देकर उसकी संपत्ति, धन या मूल्यवान वस्तु हड़पता है, तो ऐसा अपराध करने वाले अपराधी को इस धारा के तहत दंडित किया जाता है। धारा 420 का उद्देश्य समाज में लोगों के बीच विश्वास और ईमानदारी बनाए रखना है। यह न केवल व्यक्तिगत सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि व्यवसाय और वाणिज्य में भी धोखाधड़ी रोकने में मदद करती है।

धारा 420 के अपराध के मुख्य तत्व

किसी भी मामले में धारा 420 लागू करने के लिए निम्नलिखित तत्वों का होना जरूरी है:

  • नुकसान (Loss): धोखा खाने वाले को वास्तविक आर्थिक या संपत्ति संबंधी नुकसान हुआ हो।
  • धोखा देना (Cheating): आरोपी ने झूठ बोलकर या गुमराह कर किसी को धोखा दिया हो।
  • बेईमानी का इरादा (Dishonest Intention): आरोपी ने शुरू से ही किसी को ठगने की योजना बनाई हो।
  • संपत्ति या धन का हस्तांतरण (Delivery of Property): धोखा खाने वाले व्यक्ति ने अपनी संपत्ति, धन या मूल्यवान वस्तु आरोपी को दे दी हो।

धारा 420 के तहत सजा

यदि किसी व्यक्ति पर धारा 420 के तहत अपराध साबित हो जाता है, तो उसे कानून के अनुसार सजा दी जा सकती है। इस अपराध में आरोपी को अधिकतम सात साल तक कैद हो सकती है। इसके अलावा कोर्ट उसे जुर्माने (Fine) के रूप में आर्थिक दंड भी लगा सकता है। धारा 420 गंभीर अपराध (Cognizable Offence) माना जाता है, इसलिए पुलिस आरोपी को बिना किसी वारंट के तुरंत गिरफ्तार कर सकती है। यह अपराध गैर-जमानती (Non-Bailable) है, यानी आरोपी को जमानत आसानी से नहीं मिलती।

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धारा 420 से बचाव के लिए सावधानियां क्या हैं?

धारा 420 से बचाव के लिए सावधानियां इस प्रकार हैंः

  • अगर किसी भी व्यक्ति पर धारा 420 लगाई गई है तो 7 साल की जेल की सजा मिलेगी, लेकिन कोर्ट जुर्म के हिसाब से सजा कम कर सकता है।
  • मजिस्ट्रेट के द्वारा धारा 420 के तहत सजा तय की जाती है।
  • कारावास के दंड के साथ ही जुर्माना भी लगता है, लेकिन जज द्वारा इसे कम किया जा सकता है या फिर माफ भी किया जा सकता है।
  • गिरफ्तारी होने पर सत्र न्यायालय में अग्रिम जमानत के लिए भी आवेदन किया जा सकता है। 
  • धारा 420 के अपराध में आरोप की गंभीरता पर ही जमानत मिलती है और विचार किया जाता है।
  • धारा 420 से बचने के लिए कभी भी फर्जीवाडा़ न करें और धोखाधड़ी कर वस्तु हासिल न करें। 

धारा 420 से जुड़े महत्वपूर्ण उदाहरण

धारा 420 से जुड़े महत्वपूर्ण उदाहरण को समझने के लिए आप निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से समझ सकते हैं, जो इस प्रकार हैं –

  1. फर्जी नौकरी ऑफर देकर पैसे लेना: कोई व्यक्ति किसी को अच्छी नौकरी का झांसा देकर उससे पैसे ऐंठता है और बाद में गायब हो जाता है। यह धारा 420 के तहत धोखाधड़ी मानी जाएगी।
  2. फेक लॉटरी स्कैम: किसी को फर्जी लॉटरी जीतने का संदेश भेजकर उनसे पैसे मांगे जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति पैसे भेज देता है, तो यह भी धारा 420 के तहत अपराध होगा।
  3. जाली दस्तावेज़ के आधार पर प्रॉपर्टी बेचना: कोई व्यक्ति नकली कागजात बनाकर किसी की जमीन या घर बेच देता है। यह धोखाधड़ी धारा 420 के अंतर्गत आती है।
  4. ऑनलाइन फ्रॉड: इंटरनेट पर किसी को झूठी स्कीम का लालच देकर पैसा लेना भी इस धारा के अंतर्गत आता है।

धारा 420 के अंतर्गत मुकदमे की प्रक्रिया क्या होती है?

धारा 420 के तहत मुकदमे की प्रक्रिया इस प्रकार हैः

  • इसके तहत मुकदमे की प्रक्रिया अन्य केसों की तरह होती है, सबसे पहले FIR दर्ज की जाती है और फिर जांच की प्रक्रिया। 
  • जांच के बाद अपराधी को गिरफ्तार किया जाता है और उसे मजिस्ट्रेट के समक्ष ले जाया जाता है।
  • अपराधी को 24 घंटे के अंदर पकड़ने की कोशिश की जाती है। हालाँकि पुलिस पर अपराधी को 24 घंटों के भीतर पकड़ने की कोई अनिवार्यता नहीं होती है।
  • गिरफ्तारी के बाद अपराधी को रिमांड पर लिया जाता है, हालाँकि ऐसा तभी संभव है जब मजिस्ट्रेट सबूतों के आधार पर यह तय करता है कि रिमांड दी जानी चाहिए या नहीं।
  • अगर पुलिस ऑफिसर को लगता है कि इस केस की जांच 24 घंटे में नहीं की जा सकती तो वह मजिस्ट्रेट के सामने आवेदन पेश करता है और इसमें मजिस्ट्रेट 15 दिन की हिरासत की अनुमति दे सकता है।
  • 15 दिन में अगर मामला नहीं सुलझा तो मजिस्ट्रेट अवधि को बढ़ा सकता है।
  • पुलिस ने 60 या 90 दिन खत्म होने पर भी जांच रिपोर्ट पेश नहीं की तो अपराधी को जमानत दे दी जाती है। बशर्ते अपराधी/अभियुक्त ने किसी विशेष कारण से मजिस्ट्रेट को आगे की जांच के लिए संतुष्ट न किया हो।
  • अगर पुलिस अपराधी के विरुद्ध सुबूत एकत्र नहीं कर पाई तो या फिर आरोप सिद्ध नहीं होता है तो अदालत केस बंद कर सकती है।

धारा 420 के अंतर्गत रिपोर्ट कैसे करें?

धारा 420 के अंतर्गत रिपोर्ट करने के लिए आप निम्नलिखित स्टेप्स को फॉलो कर सकते हैं –

  • सबसे पहले नजदीकी पुलिस स्टेशन में एफआईआर (FIR) दर्ज कराएं।
  • यदि पुलिस कार्रवाई नहीं करती, तो अदालत में शिकायत (Private Complaint) दर्ज कर सकते हैं।
  • साइबर फ्रॉड के मामलों में साइबर सेल में शिकायत करें।

धारा 420 के महत्वपूर्ण तथ्य

धारा 420 के महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैं –

  • धारा 420 भारतीय दंड संहिता (IPC) 1860 की एक धारणा है, जो धोखाधड़ी और बेईमानी से संपत्ति प्राप्त करने से संबंधित है।
  • यह एक गंभीर और संज्ञेय अपराध है। साथ ही इसे जमानती अपराध का दर्जा दिया गया है।
  • इस धारा के लगने पर अधिकतम 7 वर्ष की कैद हो सकती है, इसके साथ ही इसमें जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
  • यह धारा धोखा देने, बेईमानी की मंशा होने, धोखे के कारण संपत्ति का हस्तांतरण करने और धोखाधड़ी के कारण वास्तविक या संभावित नुकसान के होने पर लगाई जाती है।
  • सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के अनुसार बिना धोखा देने की मंशा सिद्ध किए, केवल लेन-देन के विवाद में धारा 420 नहीं लगाई जा सकती।

FAQs

धारा 420 कब लगती है?

धारा 420 धोखाधड़ी करने पर या फिर फर्जीवाड़ा करने पर लगती है।

अगर किसी पर झूठा धारा 420 का मामला दर्ज हो जाए तो क्या करें?

झूठे मामले से बचाव के लिए आरोपी को तुरंत एक योग्य वकील से परामर्श लेना चाहिए और अदालत में मामले को चुनौती देनी चाहिए। आरोपी हाईकोर्ट में एफआईआर रद्द कराने के लिए याचिका भी दायर कर सकता है।

धारा 420 के तहत FIR दर्ज करने की प्रक्रिया क्या है?

यदि किसी के साथ धोखाधड़ी हुई है, तो वह व्यक्ति नजदीकी पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करा सकता है। पुलिस द्वारा जांच के बाद, यदि आरोप सही पाए जाते हैं, तो IPC की धारा 420 के तहत FIR दर्ज की जाती है।

क्या ऑनलाइन धोखाधड़ी पर भी धारा 420 लागू होती है?

हाँ, यदि कोई व्यक्ति ऑनलाइन धोखाधड़ी (जैसे कि साइबर फ्रॉड, फेक वेबसाइट के जरिए पैसा ठगना, आदि) करता है, तो उसके खिलाफ भी धारा 420 के तहत मामला दर्ज किया जा सकता है।

आशा है कि इस लेख के माध्यम से आपको धारा 420 से संबंधित आवश्यक जानकारी प्राप्त हुई होगी। ऐसे ही सामान्य ज्ञान से संबंधित अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ जुड़े रहें।

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