Bismil Azimabadi Shayari : बिस्मिल अज़ीमाबादी के चुनिंदा शेर, शायरी और गजल

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Bismil Azimabadi Shayari

बिस्मिल अज़ीमाबादी उर्दू भाषा के उन लोकप्रिय शायरों में से थे, जिन्हें क्रांतिकारी कवि और शायर होने का भी सम्मान प्राप्त था। बिस्मिल अज़ीमाबादी की रचनाएं देशभक्ति, वीरता और बलिदान की भावना से भरी हैं। बिस्मिल अज़ीमाबादी की शायरी भारत की आजादी के लिए युवाओं की चेतना जगाने और क्रांतिकारी विचारधारा के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। बिस्मिल अज़ीमाबादी के शेर, शायरी और ग़ज़लें विद्यार्थियों को उर्दू साहित्य की खूबसूरती से परिचित करवाएंगी, साथ ही बिस्मिल अज़ीमाबादी की रचनाएं युवाओं को जीवनभर प्रेरित करने का भी काम करेंगी। इस ब्लॉग के माध्यम से आप कुछ चुनिंदा Bismil Azimabadi Shayari पढ़ पाएंगे, जो आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाने का सफल प्रयास करेंगी।

बिस्मिल अज़ीमाबादी का जीवन परिचय

बिस्मिल अज़ीमाबादी का जन्म 24 सितंबर 1901 को बिहार के अज़ीमाबाद में हुआ था। बिस्मिल अज़ीमाबादी का मूल नाम सैयद शाह मोहम्मद हसन था। बिस्मिल अज़ीमाबादी ने पटना कॉलेज से बीए (ऑनर्स) की पढ़ाई पूरी की। बिस्मिल अज़ीमाबादी एक कवि होने के साथ-साथ एक लेखक और एक क्रांतिकारी भी थे। अपने जीवन की ज्योति से जग को जगमग करने वाले बिस्मिल अज़ीमाबादी एक वीर क्रांतिकारी थे, जिनकी रचनाओं ने समाज को स्वतंत्रता संग्राम के लिए प्रेरित किया और संगठित करने का काम किया। 27 दिसंबर 1927 को गोरखपुर जेल में सदी के महान उर्दू शायर और एक महान क्रांतिकारी सपूत बिस्मिल अज़ीमाबादी को फांसी की सजा हुई।

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बिस्मिल अज़ीमाबादी की शायरी – Bismil Azimabadi Shayari

बिस्मिल अज़ीमाबादी की शायरी पढ़कर युवाओं में साहित्य को लेकर एक समझ पैदा होगी, जो उन्हें उर्दू साहित्य की खूबसूरती से रूबरू कराएगी, जो इस प्रकार है:

Bismil Azimabadi Shayari

“न अपने ज़ब्त को रुस्वा करो सता के मुझे 
ख़ुदा के वास्ते देखो न मुस्कुरा के मुझे…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“वक़्त आने दे दिखा देंगे तुझे ऐ आसमाँ 
हम अभी से क्यूँ बताएँ क्या हमारे दिल में है…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“ये ज़िंदगी भी कोई ज़िंदगी हुई ‘बिस्मिल’ 
न रो सके न कभी हँस सके ठिकाने से…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“इक ग़लत सज्दे से क्या होता है वाइज़ कुछ न पूछ 
उम्र भर की सब रियाज़त ख़ाक में मिल जाए है…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“हो न मायूस ख़ुदा से ‘बिस्मिल’ 
ये बुरे दिन भी गुज़र जाएँगे…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“बयाबान-ए-जुनूँ में शाम-ए-ग़ुर्बत जब सताया की 
मुझे रह रह कर ऐ सुब्ह-ए-वतन तू याद आया की…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“क्या करें जाम-ओ-सुबू हाथ पकड़ लेते हैं 
जी तो कहता है कि उठ जाइए मय-ख़ाने से…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है 
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“देखा न तुम ने आँख उठा कर भी एक बार 
गुज़रे हज़ार बार तुम्हारी गली से हम…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“किस हाल में हो कैसे हो क्या करते हो ‘बिस्मिल’ 
मरते हो कि जीते हो ज़माने के असर से…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

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मोहब्बत पर बिस्मिल अज़ीमाबादी की शायरी

मोहब्बत पर बिस्मिल अज़ीमाबादी की शायरियाँ जो आपका मन मोह लेंगी – 

“रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत रह न जाना राह में 
लज़्ज़त-ए-सहरा-नवर्दी दूरी-ए-मंज़िल में है…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“जब कभी नाम-ए-मोहम्मद लब पे मेरे आए है 
लब से लब मिलते हैं जैसे दिल से दिल मिल जाए है…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“हो न हो कुछ बात है तब जी मिरा घबराए है 
आप आए हैं न ख़त ही भेज कर बुलवाए है…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“तेरे दीवाने पे ऐसी भी घड़ी आ जाए है 
दम-ब-ख़ुद रह जाए है सोचा न समझा जाए है…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“जी में रखते हैं कहें भी तो किसी से क्या कहें 
शिकवा उन का यूँ तो लब पर बार बार आ जाए है…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“आप की इक ज़ुल्फ़ सुलझाने को लाखों हाथ हैं 
मेरी गुत्थी भी कोई आ कर कभी सुलझाए है…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

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बिस्मिल अज़ीमाबादी के शेर

बिस्मिल अज़ीमाबादी के शेर पढ़कर युवाओं को बिस्मिल अज़ीमाबादी की लेखनी से प्रेरणा मिलेगी। बिस्मिल अज़ीमाबादी के शेर युवाओं के भीतर सकारात्मकता का संचार करेंगे, जो कुछ इस प्रकार हैं:

“आज़ादी ने बाज़ू भी सलामत नहीं रक्खे 
ऐ ताक़त-ए-परवाज़ तुझे लाएँ कहाँ से…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“ग़ैरों ने ग़ैर जान के हम को उठा दिया 
बैठे जहाँ भी साया-ए-दीवार देख कर…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“तुम सुन के क्या करोगे कहानी ग़रीब की 
जो सब की सुन रहा है कहेंगे उसी से हम…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“हँसी ‘बिस्मिल’ की हालत पर किसी को 
कभी आती थी अब आती नहीं है…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“जुरअत-ए-शौक़ तो क्या कुछ नहीं कहती लेकिन 
पाँव फैलाने नहीं देती है चादर मुझ को…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“मजबूरियों को अपनी कहें क्या किसी से हम 
लाए गए हैं, आए नहीं हैं ख़ुशी से हम…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“कहाँ तमाम हुई दास्तान ‘बिस्मिल’ की 
बहुत सी बात तो कहने को रह गई ऐ दोस्त…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“’बिस्मिल’ बुतों का इश्क़ मुबारक तुम्हें मगर 
इतने निडर न हो कि ख़ुदा का भी डर न हो…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“कहाँ क़रार है कहने को दिल क़रार में है 
जो थी ख़िज़ाँ में वही कैफ़ियत बहार में है…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“ख़िज़ाँ जब तक चली जाती नहीं है 
चमन वालों को नींद आती नहीं है…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

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बिस्मिल अज़ीमाबादी की दर्द भरी शायरी

बिस्मिल अज़ीमाबादी की दर्द भरी शायरियाँ कुछ इस प्रकार हैं:

“एक दिन वो दिन थे रोने पे हँसा करते थे हम 
एक ये दिन हैं कि अब हँसने पे रोना आए है…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“ये कह के देती जाती है तस्कीं शब-ए-फ़िराक़ 
वो कौन सी है रात कि जिस की सहर न हो…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“उगल न संग-ए-मलामत ख़ुदा से डर नासेह 
मिलेगा क्या तुझे शीशों के टूट जाने से…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“चमन को लग गई किस की नज़र ख़ुदा जाने 
चमन रहा न रहे वो चमन के अफ़्साने…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

“ग़ैरों ने ग़ैर जान के हम को उठा दिया 
बैठे जहाँ भी साया-ए-दीवार देख कर…”

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

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बिस्मिल अज़ीमाबादी की गजलें

बिस्मिल अज़ीमाबादी की गजलें आज भी प्रासंगिक बनकर बेबाकी से अपना रुख रखती हैं, जो नीचे दी गई हैं-

तंग आ गए हैं क्या करें इस ज़िंदगी से हम

तंग आ गए हैं क्या करें इस ज़िंदगी से हम 
घबरा के पूछते हैं अकेले में जी से हम 

मजबूरियों को अपनी कहें क्या किसी से हम 
लाए गए हैं, आए नहीं हैं ख़ुशी से हम 

कम-बख़्त दिल की मान गए, बैठना पड़ा 
यूँ तो हज़ार बार उठे उस गली से हम 

यारब! बुरा भी हो दिल-ए-ख़ाना-ख़राब का 
शर्मा रहे हैं इस की बदौलत किसी से हम 

दिन ही पहाड़ है शब-ए-ग़म क्या हो क्या न हो 
घबरा रहे हैं आज सर-ए-शाम ही से हम 

देखा न तुम ने आँख उठा कर भी एक बार 
गुज़रे हज़ार बार तुम्हारी गली से हम 

मतलब यही नहीं दिल-ए-ख़ाना-ख़राब का 
कहने में उस के आएँ गुज़र जाएँ जी से हम 

छेड़ा अदू ने रूठ गए सारी बज़्म से 
बोले कि अब न बात करेंगे किसी से हम 

तुम सुन के क्या करोगे कहानी ग़रीब की 
जो सब की सुन रहा है कहेंगे उसी से हम 

महफ़िल में उस ने ग़ैर को पहलू में दी जगह 
गुज़री जो दिल पे क्या कहें 'बिस्मिल' किसी से हम

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

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न अपने ज़ब्त को रुस्वा करो सता के मुझे

Bismil Azimabadi Shayari
न अपने ज़ब्त को रुस्वा करो सता के मुझे
ख़ुदा के वास्ते देखो न मुस्कुरा के मुझे 

सिवाए दाग़ मिला क्या चमन में आ के मुझे 
क़फ़स नसीब हुआ आशियाँ बना के मुझे 

अदब है मैं जो झुकाए हुए हूँ आँख अपनी 
ग़ज़ब है तुम जो न देखो नज़र उठा के मुझे 

इलाही कुछ तो हो आसान नज़'अ की मुश्किल 
दम-ए-अख़ीर तो तस्कीन दे वो आ के मुझे 

ख़ुदा की शान है मैं जिन को दोस्त रखता था 
वो देखते भी नहीं अब नज़र उठा के मुझे 

मिरी क़सम है तुम्हें रहरवान-ए-मुल्क-ए-अदम 
ख़ुदा के वास्ते तुम भूलना न जा के मुझे 

हमारा कौन ठिकाना है हम तो 'बिस्मिल' हैं 
न अपने आप को रुस्वा करो सता के मुझे

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

चमन को लग गई किस की नज़र ख़ुदा जाने

चमन को लग गई किस की नज़र ख़ुदा जाने 
चमन रहा न रहे वो चमन के अफ़्साने 

सुना नहीं हमें उजड़े चमन के अफ़्साने 
ये रंग हो तो सनक जाएँ क्यूँ न दीवाने 

छलक रहे हैं सुराही के साथ पैमाने 
बुला रहा है हरम, टोकते हैं बुत-ख़ाने 

खिसक भी जाएगी बोतल तो पकड़े जाएँगे रिंद 
जनाब-ए-शैख़ लगे आप क्यूँ क़सम खाने 

ख़िज़ाँ में अहल-ए-नशेमन का हाल तो देखा 
क़फ़स नसीब पे क्या गुज़री है ख़ुदा जाने 

हुजूम-ए-हश्र में अपने गुनाहगारों को 
तिरे सिवा कोई ऐसा नहीं जो पहचाने 

नक़ाब रुख़ से न सरकी थी कल तलक जिन की 
सभा में आज वो आए हैं नाचने-गाने 

किसी की मस्त-ख़िरामी से शैख़ नालाँ हैं 
क़दम क़दम पे बने जा रहे हैं मय-ख़ाने 

ये इंक़िलाब नहीं है तो और क्या 'बिस्मिल' 
नज़र बदलने लगे अपने जाने-पहचाने

-बिस्मिल अज़ीमाबादी

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आशा है कि इस ब्लॉग में आपको Bismil Azimabadi Shayari पढ़ने का अवसर मिला होगा। Bismil Azimabadi Shayari को पढ़कर आप उर्दू साहित्य के क्षेत्र में बिस्मिल अज़ीमाबादी की भूमिका को जान पाए होंगे। इसी तरह के अन्य ट्रेंडिंग आर्टिकल्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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